तमिलनाडु द्वारा केंद्र-राज्य संबंध हेतु समीक्षा समिति का गठन | 17 Apr 2025

स्रोत:द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

तमिलनाडु ने केंद्र-राज्य संबंधों की समीक्षा करने तथा संवैधानिक प्रावधानों, शक्ति हस्तांतरण और राज्य सरकार की स्वायत्तता पर ध्यान केंद्रित करते हुए राज्य की स्वायत्तता को मज़बूत करने के उपायों की सिफारिश करने के लिये तीन सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है।

केंद्र-राज्य संबंधों में प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • विधायी शक्तियों का ह्रास: कई विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया है, जिससे शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर राज्यों का नियंत्रण कम हो गया है।
    • स्वर्ण सिंह समिति (1976) की सिफारिश के बाद 42वें संशोधन अधिनियम 1976 ने शिक्षा, वानिकी, वन्यजीव और पक्षी संरक्षण, न्याय प्रशासन और बाट व माप जैसे पाँच प्रमुख विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया।
  • राष्ट्रीय नीतियाँ: राज्यों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि राष्ट्रीय नीतियाँ प्रायः राज्य-विशिष्ट नीतियों पर हावी हो जाती हैं, जिससे राज्यों की यह स्वायत्तता सीमित हो जाती है कि वे अपने लोगों के लिये क्या सर्वोत्तम है।
    • तमिलनाडु ने चिंता जताई है कि केंद्र सरकार द्वारा मेडिकल प्रवेश के लिये राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NEET) के कार्यान्वयन ने राज्य की नीतियों को दरकिनार कर दिया है, जिसमें हाशिये के समुदायों के छात्रों के लिये अवसरों को प्राथमिकता दी गई थी।
    • इसी तरह, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के त्रि-भाषा फार्मूले और तमिलनाडु के शिक्षा कार्यक्रमों के लिये धनराशि रोके जाने से राज्य सरकार का प्रतिरोध बढ़ गया है, तथा राज्य सरकार अपनी भाषाई और सांस्कृतिक विशिष्टता के संरक्षण की दलील दे रही है।
  • राजकोषीय असमानताएँ: राज्यों का तर्क है कि वस्तु एवं सेवा कर (GST) प्रणाली के कारण राजस्व हानि हुई है, जिससे उन्हें स्थानीय नीतियों को लागू करने के लिये कम वित्तीय स्वतंत्रता मिली है।
    • तमिलनाडु का तर्क है कि वह केंद्र को जो एक रुपए का योगदान देता है, उसके बदले उसे केवल 29 पैसे ही वापस प्राप्त होते हैं, जिससे राष्ट्रीय आर्थिक विकास में उसकी भूमिका हतोत्साहित होती है तथा उसे अपनी सफलता के लिये दंडित महसूस होता है।
  • प्रतिनिधित्व में कमी: तमिलनाडु जैसे राज्य परिसीमन प्रक्रिया से दंडित महसूस करते हैं, जिससे सक्रिय जनसंख्या नियंत्रण उपायों के बावजूद संसद में उनका प्रतिनिधित्व कम हो सकता है।
  • प्रमुख निर्णयों से बहिष्करण: राज्यों का मानना ​​है कि उन्हें प्रायः विमुद्रीकरण (वर्ष 2016) जैसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय निर्णयों से बाहर रखा जाता है, जिससे भारत के संघीय ढाँचे में परिकल्पित भागीदारीपूर्ण शासन को नुकसान पहुँचता है।

केंद्र-राज्य संबंध के संबंध में विभिन्न आयोगों की प्रमुख अनुशंसाएँ क्या हैं?

  • राजमन्नार समिति (1969): तमिलनाडु द्वारा गठित, राजमन्नार समिति केंद्र-राज्य संबंधों की समीक्षा करने वाली पहली राज्य-स्तरीय पहल थी।
    • इसमें सत्ता के बढ़ते केंद्रीकरण की आलोचना की गई, जिससे राज्य की स्वायत्तता प्रभावित हो रही थी। 
    • यद्यपि संविधान संघीय प्रतीत होता है, लेकिन समिति के अनुसार यह एकात्मक रूप से कार्य करता है, जिससे राज्य केंद्र के प्रशासनिक अंग बन जाते हैं। 
      • इसने अनुच्छेद 256 (राज्यों को संसद द्वारा निर्मित विधि का पालन करना चाहिये), 257 (संघ को कुछ मामलों में राज्यों को निर्देश देने की अनुमति), 365 और 356 को अनुचित केंद्र नियंत्रण को सक्षम करने के लिये चिह्नित किया और अनुच्छेद 356 को निरस्त करने की सिफारिश की।
      • समिति ने पुनः संघीय संतुलन स्थापित करने हेतु अंतर्राज्यीय परिषद (ISC) का सुदृढ़ीकरण करने का आह्वान किया।
  • प्रशासनिक सुधार आयोग (1969): अनुच्छेद 263 के तहत एक ISC की स्थापना करने और राज्य प्रशासन में सहकारी संघवाद तथा निष्पक्षता को बढ़ावा देने के लिये अनुभवी, अपक्षपाती व्यक्तियों को राज्यपाल के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गई।
    • इसने राज्यों की केंद्र पर निर्भरता कम करने के लिये अधिक शक्तियाँ और वित्तीय संसाधन सौंपने तथा केंद्रीय सशस्त्र बलों के नियंत्रित परिनियोजन की वकालत की।
  • सरकारिया आयोग (1983): इसके द्वारा यह अनुशंसा की गई कि अनुच्छेद 356 का प्रयोग केवल विरले मामलों में, अंतिम उपाय के रूप में, राज्य को पूर्व चेतावनी देने तथा स्पष्ट औचित्य के साथ किया जाना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त ISC को एक स्थायी निकाय बनाने की सिफारिश की गई, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1990 में राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से इसकी औपचारिक स्थापना हुई।
    • इसमें राज्य के विषयों को प्रभावित करने वाले केंद्रीय विधियों, सूत्र-आधारित केंद्रीय अनुदानों और केंद्रीय बलों की तैनाती में अधिक स्वायत्तता पर राज्य से पूर्व परामर्श की वकालत की गई।
  • पुंछी आयोग (2007): इसने सिफारिश की कि समवर्ती सूची के विषयों पर विधेयक पेश करने से पहले राज्यों से अंतर्राज्यीय परिषद के माध्यम से परामर्श किया जाना चाहिये और राज्य सूची के मामलों पर संघ की संधि-निर्माण शक्ति के विनियमन की मांग की।
    • इससे उनके आंतरिक मामलों में राज्यों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा और सहकारी संघवाद को बढ़ावा मिलेगा।
    • राजकोषीय मामलों में राज्यों को अधिक स्वायत्तता दिए जाने के साथ वित्तीय संसाधनों के आवंटन में सुधार किये जाने का सुझाव दिया गया।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत की संघीय प्रणाली में राज्य की स्वायत्तता के समक्ष चुनौतियों की विवेचना कीजिये और इन मुद्दों के समाधान में विभिन्न आयोगों की सिफारिशों का मूल्यांकन कीजिये।

और पढ़ें: केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज्म) सशक्त केन्द्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये। (2014)