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भारतीय राजव्यवस्था

बुलडोज़र न्याय पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश

  • 14 Nov 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 142, नगरपालिका कानून, कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधि का शासन, सम्मान से जीने का अधिकार, अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 300A, अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 51, जिनेवा कन्वेंशन 1949, विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया, विधि की सम्यक प्रक्रिया, मेनका गांधी मामला 1978, हेट स्पीच, न्यायाधिकरण, वैकल्पिक विवाद समाधान 

मेन्स के लिये:

संपत्तियों को ध्वस्त करने हेतु उचित प्रक्रिया का पालन।  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अखिल भारतीय दिशा-निर्देश दिये हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नागरिकों की संपत्तियों को ध्वस्त करने हेतु उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए। 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि उचित प्रक्रिया का पालन किये बिना किसी आरोपी या दोषी की संपत्ति को ध्वस्त करना “असंवैधानिक” है।
  • संबंधित मामले में अपराध के आरोपी व्यक्तियों के घरों को "अवैधानिक" तरीके से ध्वस्त करने को चुनौती दी गई थी, जैसा कि हाल ही में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में देखा गया है। 

नोट: बुलडोज़र न्याय से तात्पर्य उन संपत्तियों को ध्वस्त करने की प्रथा (कभी-कभी उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किये बिना) से है जो अक्सर अपराध के आरोपी लोगों की होती हैं।

बुलडोज़र न्याय पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश क्या हैं?

  • नोटिस देना: किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ से पहले संपत्ति के मालिक को कम से कम 15 दिन का नोटिस दिया जाना चाहिये।
    • नोटिस में ध्वस्त किये जाने वाले ढाँचे का विवरण तथा ध्वस्त किये जाने के कारण स्पष्ट रूप से उल्लिखित होने चाहिये।
  • निष्पक्ष सुनवाई: व्यक्तिगत सुनवाई के लिये निर्धारित समय देना चाहिये, जिससे प्रभावित पक्ष को विध्वंस का विरोध करने या स्थिति को स्पष्ट करने का अवसर मिल सके।
  • पारदर्शिता: प्राधिकारियों को नोटिस भेजने के बाद स्थानीय कलेक्टर या ज़िला मजिस्ट्रेट को ई-मेल के माध्यम से सूचित करना होगा
  • अंतिम आदेश जारी करना: अंतिम आदेश में संपत्ति मालिक के तर्क, ध्वस्तीकरण को एकमात्र विकल्प मानने का प्राधिकारी का औचित्य तथा यह कि क्या संपूर्ण संरचना या आंशिक संरचना को ध्वस्त किया जाना है, शामिल होना चाहिये।
  • अंतिम आदेश के बाद की अवधि: यदि ध्वस्तीकरण का आदेश जारी किया जाता है, तो इसके क्रियान्वयन से पहले 15 दिन का समय दिया जाए, जिससे संपत्ति मालिक को संरचना को हटाने या आदेश को न्यायालय में चुनौती देने का मौका मिल सके।
  • विध्वंस का दस्तावेज़ीकरण: प्राधिकरण को विध्वंस का वीडियो रिकॉर्ड करना होगा और पहले से ही एक "निरीक्षण रिपोर्ट" तैयार करनी होगी, साथ ही इसमें शामिल कर्मियों की सूची वाली एक "विध्वंस रिपोर्ट" भी तैयार करनी होगी।
  • दोहरे उल्लंघन के लिये परीक्षण: सर्वोच्च न्यायालय ने उन मामलों के लिये एक अलग परीक्षण निर्धारित किया है, जहाँ ध्वस्त की गई संपत्ति में किसी आरोपी का निवास हो और अवैध निर्माण के रूप में उस संपत्ति द्वारा नगरपालिका कानूनों का उल्लंघन होता हो।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि केवल एक संरचना को ध्वस्त किया जाता है, जबकि समान संरचनाओं को अछूता छोड़ दिया जाता है, तो इसका अर्थ यह हो सकता है कि इसका उद्देश्य आरोपी को दंडित करना है, न कि अवैध निर्माण को हटाना।
  • अपवाद: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसके निर्देश उन मामलों में लागू नहीं होंगे, जहाँ सड़क, गली या फुटपाथ जैसे किसी सार्वजनिक स्थान पर, रेलवे लाइन या किसी नदी या जल निकाय के समीप कोई अनधिकृत संरचना है तथा उन मामलों में भी लागू नहीं होंगे, जहाँ न्यायालय द्वारा ध्वस्तीकरण का आदेश दिया गया है।

अनुच्छेद 142

  • संविधान का अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी मामले में पूर्ण न्याय के लिये आवश्यक आदेश और डिक्री पारित करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 142(1) सर्वोच्च न्यायालय को सम्पूर्ण न्याय करने के लिये पूरे भारत में प्रवर्तनीय आदेश पारित (राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित) करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 142(2)  न्यायालय को उपस्थिति सुनिश्चित करने, दस्तावेज़ों की खोज करने या अवमानना ​​के लिये दंड देने की शक्ति प्रदान करता है।
  • समय के साथ, इस प्रावधान का उपयोग "पूर्ण न्याय" सुनिश्चित करने और विधायी खामियों को दूर करने के लिये किया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का क्या महत्त्व है?

  • शक्तियों का पृथक्करण: फैसले में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि न्यायपालिका के पास दोष तय करने तथा यह निर्धारित करने की शक्ति है कि क्या राज्य के किसी अंग ने अपनी सीमाओं का अतिक्रमण किया है।
    • कार्यपालिका अपने मूल कार्यों के निष्पादन में न्यायपालिका का स्थान नहीं ले सकती।
  • विधि का शासन: न्यायालय ने कहा कि बिना उचित सुनवाई के किसी को दण्ड के रूप में ध्वस्त करना कार्यपालिका के लिये अनुचित है। यह सुनिश्चित करके विधि के शासन को कायम रखता है कि राज्य की कार्रवाई संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन न करे।
    • ऐसे विध्वंस जो कुछ समुदायों (जैसे झुग्गीवासियों) को असमान रूप से प्रभावित करते हैं, उन्हें अनुच्छेद 14 के तहत भेदभावपूर्ण के रूप में चुनौती दी जा सकती है।
  • अधिकारियों की जवाबदेही: यह अनिवार्य करके कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की सार्वजनिक रूप से जाँच की जाए तथा विस्तृत रिकॉर्ड (जैसे वीडियो रिकॉर्डिंग और निरीक्षण रिपोर्ट) प्रस्तुत किए जाएँ, दिशा-निर्देशों का उद्देश्य सत्ता के दुरुपयोग को रोकना तथा अधिक जवाबदेही को बढ़ावा देना है।
  • आवास का अधिकार: संपूर्ण संपत्ति को प्रभावित करने वाला विध्वंस, जिसमें आरोपी न होने वाले लोग भी शामिल हैं, असंवैधानिक होगा क्योंकि यह आवास के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार में आश्रय या आवास का अधिकार भी शामिल है। 
    • अनुच्छेद 300A गारंटी देता है कि किसी भी व्यक्ति को कानून के अलावा उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। यह प्रावधान इस बात पर ज़ोर देता है कि संपत्ति को केवल उचित प्रक्रिया एवं वैध कानूनों के तहत ही छीना जा सकता है।
  • व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण: उचित प्रक्रिया और शक्तियों के पृथक्करण पर न्यायालय व्यक्तियों को राज्य की मनमानी कार्रवाइयों से बचाता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि कानून प्रवर्तन की आड़ में अधिकारों का उल्लंघन न हो।
  • जिनेवा कन्वेंशन, 1949: जिनेवा कन्वेंशन 1949 का अनुच्छेद 87(3) सामूहिक दंड पर प्रतिबंध लगाता है। 
    • इस तरह के विध्वंस भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 का भी उल्लंघन करते हैं, जिसमें कहा गया है कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय संधियों और कानूनों का सम्मान करना चाहिये।

बुलडोज़र न्याय एक चिंता का विषय क्यों है?

  • दंडात्मक विध्वंस में वृद्धि: आवास और भूमि अधिकार नेटवर्क (HLRN) के वर्ष 2024 के अनुमान में पाया गया कि अधिकारियों ने वर्ष 2022 और 2023 में 153,820 घरों को ध्वस्त कर दिया, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 738,438 से अधिक लोग विस्थापित हो गए।
  • नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (ICCPR): ICCPR के अनुच्छेद 17 में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से या दूसरों के साथ मिलकर संपत्ति रखने का अधिकार है, और किसी को भी मनमाने ढंग से उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।
  • सामूहिक दंड: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि ध्वस्तीकरण अभियान न केवल अपराध के कथित अपराधियों को निशाना बनाता है, बल्कि उनके निवास स्थान को नष्ट करके उनके परिवारों पर एक प्रकार का "सामूहिक दंड" भी लगाता है।
  • त्वरित न्याय: अतिक्रमण या अनधिकृत निर्माण के खिलाफ कार्रवाई के रूप में तोड़फोड़ को उचित ठहराया गया है। दंडात्मक हिंसा के ऐसे राज्य-स्वीकृत कृत्यों को "त्वरित न्याय" के रूप में सराहा गया है।

संपत्ति विध्वंस से संबंधित अन्य न्यायिक घोषणाएँ

  • मेनका गांधी केस, 1978: सर्वोच्च न्यायालय ने "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया" के दायरे का विस्तार करते हुए निर्णय दिया कि यह न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित होनी चाहिये, जिससे "कानून की उचित प्रक्रिया" के सिद्धांत का प्रवर्तन हुआ।
    • इसलिये संदेह या निराधार आरोपों के आधार पर की गई तोड़फोड़ न्याय, निष्पक्षता और गैर-मनमानी के सिद्धांतों के विपरीत है।
  • ओल्गा टेलिस केस, 1985: सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि जीवन के अधिकार की गारंटी देने वाले अनुच्छेद 21 में आजीविका और आश्रय का अधिकार भी शामिल है।
    • इसका अर्थ है कि बिना उचित प्रक्रिया के घरों को ध्वस्त करना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
  • के.टी. प्लांटेशन (P) लिमिटेड केस, 2011: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि अनुच्छेद 300-A के तहत संपत्ति से वंचित करने का प्रावधान करने वाला कानून न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित होना चाहिये।

सर्वोच्च न्यायालय दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भरता: प्रतिशोध या निवारण के रूप में विध्वंस का उपयोग करने का राजनीतिक दबाव, विशेष रूप से राजनीतिक रूप से आवेशित वातावरण में, बना रह सकता है।
  • दंड से मुक्ति की संस्कृति: हालाँकि दिशा-निर्देश अधिकारियों पर जवाबदेही थोपते हैं, लेकिन ऐतिहासिक उदाहरण, जैसे कि हेट स्पीच या मॉब लिंचिंग जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिये न्यायालय के पिछले प्रयास, यह सुझाव देते हैं कि इसी तरह के प्रयासों से हमेशा पर्याप्त परिणाम या जवाबदेही नहीं मिली है।
  • निगरानी का अभाव: यह जोखिम बना रहता है कि स्थानीय प्राधिकारी या अधिकारी इन नियमों को दरकिनार करने के तरीके ढूंढ लेंगे, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ न्यायिक निगरानी कमज़ोर है। 
  • दीर्घकालिक सांस्कृतिक परिवर्तन: अकेले दिशा-निर्देश व्यापक सांस्कृतिक और संस्थागत प्रथाओं को बदलने के लिये पर्याप्त नहीं हो सकते हैं जो इस तरह की कार्रवाइयों की अनुमति देते हैं। 

आगे की राह

  • कानून के शासन को कायम रखना: सभी राज्य कार्रवाई कानून के सख्त अनुपालन में होनी चाहिये। कानूनी प्रणाली को आपराधिक न्याय और सामूहिक दंड के बीच अंतर करना चाहिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि निर्दोषता की धारणा कायम रहे।
  • न्यायिक निगरानी को बढ़ाना: संपत्ति के विध्वंस से संबंधित विवादों से विशेष रूप से निपटने के लिये विशेष न्यायाधिकरणों की स्थापना की जानी चाहिये, जिनके पास सरकारी निर्णयों की समीक्षा करने की शक्तियाँ हों।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान: संपत्ति अधिकारों और विध्वंस से संबंधित विवादों को हल करने के प्रभावी तरीके के रूप में  मध्यस्थता और पंचनिर्णय जैसे तंत्रों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • पुनर्वास योजनाएँ: विध्वंस से प्रभावित व्यक्तियों के लिये विस्तृत पुनर्वास योजनाएँ बनाना महत्त्वपूर्ण है, जिसमें वैकल्पिक आवास, आजीविका सहायता और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का प्रावधान हो।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: 'बुलडोज़र न्याय' के संदर्भ में संपत्ति विध्वंस पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश किस प्रकार उचित प्रक्रिया, पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों को सुदृढ़ करते हैं?

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