सामाजिक न्याय
सेक्स ट्रैफिकिंग की निष्क्रियता पर सर्वोच्च न्यायालय की चिंताएँ
- 14 Nov 2024
- 18 min read
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, लोकसभा, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी, भारतीय न्याय संहिता, 2023, संगठित अपराध, रोहिंग्या शरणार्थी, अनुसूचित जाति, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन मेन्स के लिये:महिलाओं से संबंधित मुद्दे, मानव तस्करी, सेक्स ट्रैफिकिंग और लैंगिक शोषण |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने सेक्स ट्रैफिकिंग के खिलाफ व्यापक कानून लागू करने में केंद्र सरकार की विफलता पर गंभीर असंतोष व्यक्त किया। सरकार ने ‘संगठित अपराध जाँच एजेंसी’ (OCIA) स्थापित ( या व्यापक तस्करी विरोधी कानून नहीं बनाने) करने के सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2015 के निर्देश का पालन नहीं किया।
- इस विफलता ने सेक्स ट्रैफिकिंग के बढ़ते खतरे से निपटने के लिये मौजूदा ढाँचे की प्रभावशीलता के बारे में महत्त्वपूर्ण चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं।
सर्वोच्च न्यायालय OCIA की स्थापना को लेकर चिंतित क्यों है?
- न्यायालय के निर्देशों के बावजूद निष्क्रियता: प्रज्वला बनाम भारत संघ, 2015 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने गृह मंत्रालय को सेक्स ट्रैफिकिंग से निपटने के लिये OCIA की स्थापना करने का निर्देश दिया।
- हालाँकि, 30 सितंबर, 2016 की अंतिम तिथि तथा 1 दिसंबर, 2016 की नियोजित परिचालन तिथि के बावजूद, एजेंसी का गठन नहीं हो पाया है, जिससे सेक्स ट्रैफिकिंग के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई में देरी हो रही है।
- तस्करी से निपटने का महत्त्व:
- मामलों की उच्च मात्रा: गृह मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 और 2022 के बीच 10,659 से अधिक तस्करी के मामले दर्ज किये गए, जो दर्शाता है कि तस्करी एक प्रणालीगत मुद्दा बना हुआ है।
- प्रतिवर्ष औसतन लगभग 2,000 मामले सामने आते हैं, जो सुदृढ़ नीतियों, कानून प्रवर्तन और सामुदायिक जागरूकता की आवश्यकता को दर्शाते हैं।
- उच्च गिरफ्तारियों के बावजूद दोषसिद्धि दर कम: यद्यपि पिछले कुछ वर्षों में हज़ारों लोगों को गिरफ्तार किया गया, फिर भी दोषसिद्धि दर बेहद कम है।
- गिरफ्तारी और दोषसिद्धि के बीच यह अंतर अपर्याप्त जाँच और न्यायालय में मामले की कमज़ोर प्रस्तुति जैसे मुद्दों की ओर इशारा करता है।
- पीड़ितों की भेद्यता: तस्करी के शिकार कई लोग \आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि से आते हैं, जिन्हें अक्सर पर्याप्त सहायता नहीं मिल पाती है।
- पीड़ितों को मुआवजा राशि वितरित करने में आने वाली चुनौतियाँ उनकी कमज़ोरियों को और बढ़ा देती हैं, जिससे कभी-कभी वित्तीय कठिनाई और संसाधनों की कमी के कारण वे न्यायालय में अपने बयान से पलट जाते हैं।
- पीड़ितों को सहायता: तस्करी रोधी इकाइयों और खुफिया तंत्र में सुधार के बावजूद, दोषसिद्धि की कम दरें, बेहतर कानून प्रवर्तन प्रशिक्षण, मज़बूत पीड़ित सहायता तथा अधिक प्रभावी मामले से निपटने के लिये शीघ्र मुआवजे की आवश्यकता को उजागर करती हैं।
- मामलों की उच्च मात्रा: गृह मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 और 2022 के बीच 10,659 से अधिक तस्करी के मामले दर्ज किये गए, जो दर्शाता है कि तस्करी एक प्रणालीगत मुद्दा बना हुआ है।
- सर्वोच्च न्यायालय की चिंताओं पर सरकार की प्रतिक्रिया:
- लंबित विधायी प्रयास: सरकार ने पहले मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2018 का मसौदा तैयार किया था, जो लोकसभा में पारित हो गया, लेकिन वर्ष 2019 में राज्यसभा में पेश किये बिना ही व्यपगत हो गया।
- इस विधायी चूक के कारण व्यापक तस्करी विरोधी कानून के प्रति प्रतिबद्धता को पूरा करने में देरी हुई है।
- NIA को सेक्स ट्रैफिकिंग के मामलों में भूमिका सौंपी गई: अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) द्वारा प्रतिनिधित्त्व किये गए केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि सरकार द्वारा OCIA की स्थापना के बजाय राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) को सेक्स ट्रैफिकिंग के मामलों को संभालने का अतिरिक्त कार्य सौंपने का फैसला किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इस दृष्टिकोण की प्रभावकारिता पर सवाल उठाया तथा इस बात पर बल दिया कि NIA के पास तस्करी पीड़ितों को पर्याप्त सुरक्षा और पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करने के लिये संसाधनों और अधिदेश की कमी हो सकती है।
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 का संदर्भ: ASG ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि भारतीय न्याय संहिता, 2023 (धारा 111 और 112) के हालिया प्रावधानों में संगठित अपराध से निपटने के उपाय शामिल हैं, जिनमें सेक्स ट्रैफिकिंग से निपटने के लिये एक आंशिक फ्रेमवर्क का सुझाव दिया गया है।
- लंबित विधायी प्रयास: सरकार ने पहले मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2018 का मसौदा तैयार किया था, जो लोकसभा में पारित हो गया, लेकिन वर्ष 2019 में राज्यसभा में पेश किये बिना ही व्यपगत हो गया।
भारत में सेक्स ट्रैफिकिंग किस प्रकार जारी है?
- प्रवास के माध्यम से शोषण: महिलाओं और लड़कियों को (विशेष रूप से गरीब क्षेत्रों से) तस्करों द्वारा शहरों में नौकरी का लालच देकर लाया जाता है।
- इसके बाद उन्हें घरेलू कार्य, स्पा और ब्यूटी पार्लरों में कार्य करने के लिये मजबूर किया जाता है, जहाँ उन्हें अक्सर यौन या श्रम तस्करी से गुजरना पड़ता है।
- दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में शोषण बड़े पैमाने पर होता है, जहाँ तस्कर बेहतर आर्थिक अवसरों का वादा करके अवसर का फायदा उठाते हैं।
- व्यावसायिक सेक्स ट्रैफिकिंग: भारत में प्रमुख रूप से अनुसूचित जाति और जनजाति सहित हाशिये के समुदायों की महिलाएँ और लड़कियाँ तस्करी की शिकार होती हैं।
- तस्करों ने सेक्स ट्रैफिकिंग के कार्य को पारंपरिक रेड-लाइट क्षेत्रों से हटाकर डांस बार और निजी आवासों जैसे अधिक गुप्त स्थानों पर स्थानांतरित किया है, जिससे इनका पता लगा पाना जटिल हो गया है।
- व्यावसायिक देह व्यापार में अधिकांश नाबालिग भी संलग्न हैं। यह ऋण जाल में फँस जाने के कारण इस स्थिति से मुक्त होने में असमर्थ हो जाती हैं।
- तस्कर, डिजिटल प्लेटफॉर्म को तीव्रता से अपना रहे हैं जिसके कारण सेक्स ट्रैफिकिंग का विकेंद्रीकरण पारंपरिक वेश्यालयों से परे छोटे प्रतिष्ठानों और निजी आवासों तक हो रहा है।
- सांस्कृतिक शोषण: कुछ क्षेत्रों में दलित महिलाओं और लड़कियों का “देवदासी” या “जोगिनी” जैसी प्रथाओं के तहत शोषण किया जाता है, जहाँ उनका औपचारिक विवाह देवताओं से कर दिया जाता है, लेकिन स्थानीय समुदायों द्वारा उन्हें यौन शोषण के लिये मजबूर किया जाता है।
- धार्मिक और पर्यटन केंद्र भी सेक्स ट्रैफिकिंग के लिये अनुकूल स्थल (तस्कर इन स्थानों का उपयोग कमज़ोर महिलाओं और बच्चों का शोषण करने के लिये करते हैं) बन चुके हैं।
- हालाँकि मध्य प्रदेश के बाँछड़ा जैसे कुछ आदिवासी समुदायों में वेश्यावृत्ति को जीवनयापन का साधन (जहाँ लड़की के जन्म को वेश्यावृत्ति के माध्यम से कमाई का अवसर समझा जाता है) माना जाता है।
- वेश्यावृत्ति को सामान्य मानने से सेक्स ट्रैफिकिंग को बढ़ावा मिलता है और इससे महिलाओं का शोषण होता है।
- सीमा पार तस्करी: राज्यों के बीच तथा नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ सीमित सहयोग के कारण सीमा पार तस्करी के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई में बाधा आती है।
- मानव तस्करी से निपटने और पीड़ितों के शीघ्र प्रत्यावर्तन से संबंधित समझौते अभी भी अधूरे हैं।
- तस्कर मध्य एशिया, पूर्वी यूरोप, अफ्रीका और रोहिंग्या शरणार्थियों की महिलाओं और लड़कियों को भी अपना निशाना बनाते हैं तथा अक्सर रोज़गार के झूठे बहाने बनाकर भारत में यौन शोषण और श्रम के रूप में उनका शोषण करते हैं।
- तस्कर खाड़ी देशों, दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरोप में भारतीय नागरिकों का शोषण करते हैं।
मानव तस्करी से निपटने हेतु भारत द्वारा क्या उपाय किये गए हैं?
संवैधानिक और विधायी प्रावधान:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 23(1): इसके तहत मानव तस्करी और बलात् श्रम को प्रतिषेध किया गया है।
- अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (ITPA): यह वाणिज्यिक यौन शोषण हेतु होने वाली तस्करी को रोकने पर केंद्रित है।
- आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013: यह यौन शोषण, दासता और अंग निकालने हेतु की जाने वाली मानव तस्करी को रोकने पर केंद्रित है।
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012: यह बच्चों को यौन दुर्व्यवहार एवं शोषण से बचाने पर केंद्रित है।
उठाए गए कदम:
- तस्करी रोधी प्रकोष्ठ (ATC): तस्करी रोधी कार्रवाइयों के समन्वय और अनुवर्ती कार्रवाई के लिये गृह मंत्रालय द्वारा स्थापित।
- मानव तस्करी रोधी इकाइयाँ (AHTU): गृह मंत्रालय ने मानव तस्करी पर कानून प्रवर्तन प्रतिक्रिया से निपटने के लिये AHTU की स्थापना की है, जिसमें विधायी, कल्याण और प्रचार संबंधी पहलू शामिल नहीं हैं, जो महिला एवं बाल विकास विभाग के विषय हैं।
- मिशन वात्सल्य कार्यक्रम: यह तस्करी सहित अपराध के शिकार बच्चों को सहायता प्रदान करता है।
- क्षमता निर्माण और जागरूकता: मानव तस्करी के संबंध में न्यायिक अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिये कार्यशालाओं और न्यायिक संगोष्ठियों के माध्यम से कानून प्रवर्तन एजेंसियों और अभियोजकों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
तस्करी पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन:
- संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन: संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑन ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज्ड क्राइम (United Nations Convention on Transnational Organised Crime- UNCTOC ) में मानव तस्करी, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की तस्करी की रोकथाम, दमन और दंड के लिये एक प्रोटोकॉल शामिल है।
- भारत ने कन्वेंशन का अनुसमर्थन किया तथा मानव तस्करी संबंधी प्रोटोकॉल के अनुरूप आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 को क्रियान्वित किया।
- हालाँकि UNCTOC "संगठित आपराधिक समूह" को परिभाषित करता है, लेकिन "संगठित अपराध" के लिये कोई परिभाषा नहीं देता है। स्पष्ट परिभाषा का अभाव सेक्स ट्रैफिकिंग जैसे संगठित अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- सार्क कन्वेंशन: भारत ने वेश्यावृत्ति के लिये महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने और उसका मुकाबला करने पर दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) कन्वेंशन का अनुसमर्थन किया है।
OCIA जैसी एजेंसी भारत में सेक्स ट्रैफिकिंग से निपटने में कैसे मदद कर सकती है?
- विशेष जाँच इकाइयाँ: OCIA शहरी केंद्रों और सीमाओं जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में सेक्स ट्रैफिकिंग के साथ-साथ अन्य संगठित अपराधों को लक्षित करने के लिये इकाइयाँ बना सकता है, तथा खुफिया जानकारी जुटाने और बचाव के लिये प्रशिक्षित कार्यकर्त्ताओं को तैनात कर सकता है।
- त्वरित बचाव के लिये त्वरित प्रतिक्रिया दल तैनात किये जा सकते हैं तथा पीड़ितों को समाज में पुनः एकीकृत करने में सहायता के लिये पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करने वाले गैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग किया जा सकता है।
- डेटा संग्रहण और खुफिया जानकारी साझा करना: एक केंद्रीकृत डेटाबेस सक्रिय हस्तक्षेप और बेहतर सूचना साझाकरण के लिये पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण का उपयोग करके तस्करी के मामलों और अपराधियों पर नज़र रख सकता है।
- कानून प्रवर्तन के साथ सहयोग: OCIA तस्करी के मामलों पर पुलिस और सीमा बलों को प्रशिक्षित कर सकता है तथा कुशल बचाव एवं छापे के लिये संयुक्त अभियानों का समन्वय कर सकता है।
- सीमा पार संचालन: OCIA पड़ोसी देशों के साथ संयुक्त संचालन, खुफिया जानकारी साझा करने और सीमा पार तस्करी के मामलों में कानूनी सहायता के लिये काम कर सकता है।
- जन जागरूकता अभियान: OCIA कमजोर आबादी को शिक्षित करने के लिये अभियान चला सकता है और तस्करी गतिविधियों की सुरक्षित रिपोर्टिंग के लिये हेल्पलाइन स्थापित कर सकता है।
- नीति समर्थन: OCIA मज़बूत तस्करी विरोधी कानूनों का समर्थन कर सकता है और उनके कार्यान्वयन की निगरानी कर सकता है, जिससे पीड़ितों को बेहतर सुरक्षा तथा तस्करों के लिये कठोर दंड सुनिश्चित हो सके।
- न्यायिक सहायता: OCIA पीड़ितों के लिये न्यायालयों को साक्ष्य और कानूनी सहायता प्रदान कर सकता है, जिससे तस्करों के अभियोजन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
निष्कर्ष
भारत ने सेक्स ट्रैफिकिंग से निपटने में थोड़ी प्रगति की है, लेकिन प्रवर्तन, पीड़ित संरक्षण और कानूनी ढाँचे में प्रणालीगत चुनौतियाँ बनी हुई हैं। विधायी सुधारों तथा सुसंगत नीति कार्यान्वयन के साथ एक व्यापक दृष्टिकोण इस मुद्दे को संबोधित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। सरकार को तस्करी को प्रभावी ढंग से कम करने एवं अंततः समाप्त करने के लिये इन प्रयासों को प्राथमिकता देनी चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में सेक्स ट्रैफिकिंग और अन्य संगठित अपराधों से निपटने के लिये एक संगठित अपराध जाँच एजेंसी की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये तथा ऐसे मुद्दों से निपटने में विशेष एजेंसियों की भूमिका पर प्रकाश डालिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न: संसार के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उगाने वाले राज्यों से भारत की निकटता ने भारत की आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। नशीली दवाओं के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, गुपचुप धन विदेश भेजने और मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों को रोकने के लिये क्या-क्या प्रतिरोधी उपाय किये जाने चाहिये? (2018) |