भारत के निजी अंतरिक्ष उद्योग का उदय | 01 Mar 2025

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र, वेंचर कैपिटल, POEM

मेन्स के लिये:

भारत के अंतरिक्ष स्टार्टअप, 2020 के अंतरिक्ष क्षेत्र सुधार और उनके प्रभाव

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड

चर्चा में क्यों? 

2020 के अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों से प्रेरित भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी में वृद्धि से संबद्ध क्षेत्र में निजी अभिकर्त्ताओं को अनुमति प्रदान कर नवाचार और निवेश में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है।

  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की निरंतर उपलब्धियाँ, भारत के अंतरिक्ष तकनीक स्टार्टअप के साथ, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, अन्वेषण और व्यावसायीकरण में तेज़ी से प्रगति कर रही हैं।

भारत का निजी अंतरिक्ष उद्योग किस प्रकार विकसित हुआ है?

  • निजी भागीदारी: भारत में वर्तमान में 200 से भी अधिक अंतरिक्ष स्टार्टअप सक्रिय हैं, जो ISRO की सुविधाओं (ISRO की परीक्षण, प्रक्षेपण और ग्राउंड स्टेशन सुविधाएँ) का लाभ उठाते हैं।
  • निजी निवेश: अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था निजी निवेश से प्रेरित है, जो तेज़ी से बढ़ रही है।
  • माउंटटेक ग्रोथ फंड- कवच (MGF-कवच) उद्यम पूंजी वित्तपोषण के माध्यम से घरेलू निवेश को बढ़ावा दे रहा है, जिसमें पिछले 3 वर्षों में स्टार्टअप्स ने 2,500 करोड़ रुपए जुटाए हैं।
  • भारतीय स्टार्टअप की प्रगति: GalaxEye ने विश्व का पहला ऑप्टिकल इमेजरी के साथ सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) का संलयन किया, जिससे तीव्र डेटा संपीड़न संभव हुआ।
    • पिक्सल (Pixxel) विश्व का सबसे उन्नत हाइपरस्पेक्ट्रल उपग्रह समूह (Firefly) विकसित कर रहा है, जबकि इंस्पेसिटी (आईआईटी बॉम्बे) उपग्रह की मरम्मत और ईंधन भरने के लिये इन-ऑर्बिट डॉकिंग पर कार्य कर रहा है। 
      • स्काईरूट (Skyroot) और अग्निकुल (Agnikul) लागत प्रभावी उपग्रह तैनाती के लिये अग्रणी निजी प्रक्षेपण यान हैं।

अंतरिक्ष क्षेत्र सुधार 2020:

  • भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र सुधार 2020 ने भारत की वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये उपग्रह डिज़ाइन, प्रक्षेपण यान निर्माण और ग्राउंड स्टेशन सेवाओं सहित सभी अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी भागीदारी का विस्तार किया।
  • IN-SPACe की स्थापना एक नियामक निकाय के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुविधाजनक बनाना तथा बढ़ावा देना है, तथा यह गैर-सरकारी निजी संस्थाओं (NGPEs) को ISRO के लिये केवल विक्रेता बनने के बजाय अंतरिक्ष-आधारित गतिविधियों में संलग्न होने को सक्षम बनाता है।
  • इन  सुधारों द्वारा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के माध्यम से ISRO से निजी संगठनों तक प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण को भी बढ़ावा दिया गया है।

भारत के अंतरिक्ष उद्योग के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • वित्तपोषण और निवेश में अंतराल: उद्यम पूंजी में रुचि बढ़ने के बावजूद प्रारंभिक स्तर का निवेश अभी भी दुर्लभ है, जिससे कंपनियों के लिये विकास करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
  • प्रतिभा की कमी: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में विशिष्ट शैक्षणिक संस्थानों और पाठ्यक्रमों की कमी प्रतिभा विकास में बाधा डालती है।
    • केवल एक ही भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) मौजूद है, जिससे अधिक संस्थानों एवं उद्योग-अकादमिक सहयोग की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों के उन्नत अंतरिक्ष कार्यक्रम हैं जिनमें पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष यान, अंतरिक्ष पर्यटन एवं व्यापक उपग्रह समूह शामिल हैं।
    • भारत इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है लेकिन अनुसंधान एवं विकास के सीमित होने से इसमें बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं।
  • विदेशी प्रक्षेपण यान: यद्यपि भारत ने प्रक्षेपण क्षमताएँ विकसित कर ली हैं लेकिन कई स्टार्टअप लागत तथा समय-सीमा संबंधी बाधाओं के कारण स्पेसएक्स के फाल्कन-9 जैसे विदेशी रॉकेटों पर निर्भर हैं।
    • इस क्रम में निर्भरता कम करने के लिये अधिक कुशल एवं पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यानों का विकास करना आवश्यक है।

आगे की राह

  • अनुसंधान एवं विकास के साथ बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना: अंतरिक्ष-ग्रेड घटकों के लिये उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना के माध्यम से उपग्रह घटकों के घरेलू विनिर्माण का विस्तार करना चाहिये।
    • कुशल कार्यबल तैयार करने के क्रम में IISTs तथा IITs में अधिक संख्या में अंतरिक्ष-केंद्रित पाठ्यक्रम शुरू करने चाहिये।
    • उपग्रह और प्रक्षेपण यान निर्माण के लिये एक मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये स्पेस कोस्ट, फ्लोरिडा की तरह एक समर्पित अंतरिक्ष औद्योगिक गलियारा विकसित करना।
  • वैश्विक सहयोग: अग्रणी अंतरिक्ष एजेंसियों (नासा, ESA, रोस्कोस्मोस) के साथ द्विपक्षीय समझौतों को मज़बूत करना।
    • उपग्रह प्रक्षेपण को अधिक किफायती बनाने के लिये स्टार्टअप्स के लिये राइडशेयर मिशन को बढ़ावा देना।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: ISRO की प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पहल का विस्तार करना, ताकि स्टार्टअप्स को घरेलू नवाचारों का व्यवसायीकरण करने में सक्षम बनाया जा सके।
    • कृषि, आपदा प्रबंधन और शहरी नियोजन जैसे उद्योगों के लिये अनुप्रयोग विकसित करने हेतु अंतरिक्ष स्टार्टअप का लाभ उठाना, जिससे वाणिज्यिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के अंतरिक्ष उद्योग में निजी भागीदारी को बढ़ावा देने में वर्ष 2020 के अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न. भारत की अपना स्वयं का अंतरिक्ष केंद्र प्राप्त करने की क्या योजना है और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को यह किस प्रकार लाभ पहुँचाएगी? (2019)

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस तकनीक के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की? (2016)