बफर स्टॉक संबंधी सुधार | 16 Jul 2024
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गेहूँ और चना की खुले बाज़ार में बिक्री ने अनाज तथा दालों की कीमतों में होने वाली स्फीति को रोकने में मदद की, जो दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य आपूर्ति में बढ़ती बाधाओं एवं इनके मूल्य में होने वाले उतार-चढ़ाव को दृष्टिगत रखते हुए अन्य प्रमुख खाद्यान्नों का बफर स्टॉक बनाने की आवश्यकता है।
भारत सरकार की बफर स्टॉक नीति क्या है?
- बफर स्टॉक अथवा सुरक्षित भंडार का तात्पर्य किसी वस्तु के भंडारण से है जिसका उपयोग इसकी कीमत में होने वाले उतार-चढ़ाव और आकस्मिक आपात स्थितियों में किया जाता है।
- बफर स्टॉक की संकल्पना प्रथमतः चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74) में प्रस्तुत की गई थी।
- भारत सरकार (GOI) द्वारा केंद्रीय पूल में खाद्यान्नों का बफर स्टॉक निम्नलिखित उद्देश्यों के लिये बनाए रखा जाता है:
- खाद्य सुरक्षा के लिये निर्धारित न्यूनतम भंडारण आवश्यकताओं को पूरा करना।
- लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं (OWS) के माध्यम से आपूर्ति हेतु खाद्यान्नों का मासिक आवंटन।
- अनपेक्षित फसल नाश, प्राकृतिक आपदाओं आदि से उत्पन्न आपात स्थितियों से निपटना।
- खुले बाज़ार की कीमतों को नियंत्रित करने में मदद के लिये बाज़ार हस्तक्षेप के माध्यम से मूल्य स्थिरीकरण या आपूर्ति में वृद्धि करना।
- आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति तिमाही आधार पर न्यूनतम भंडारण आवश्यकता हेतु मानदंड निर्धारित करती है।
- बफर स्टॉक के आँकड़ों की समीक्षा प्रायः प्रत्येक पाँच वर्ष के उपरांत की जाती है।
- सरकार ने बफर स्टॉक के लिये दालों की खरीद हेतु भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (NAFED), लघु कृषक कृषि-व्यवसाय संघ (SFAC) और भारतीय खाद्य निगम (FCI) को नियुक्त किया है।
- न्यूनतम भंडारण मानदंडों के अतिरिक्त सरकार ने गेहूँ (वर्ष 2008 से) और चावल (वर्ष 2009 से) का रणनीतिक भंडारण निर्धारित किया है।
- वर्ष 2015 में सरकार ने दालों की कीमतों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिये 1.5 लाख टन दालों का बफर स्टॉक तैयार किया।
- वर्तमान में सरकार द्वारा निर्धारित भंडारण मानदंडों में शामिल हैं:
- परिचालन स्टॉक: यह TPDS और OWS के तहत मासिक वितरण आवश्यकताओं को पूरा करने से संबंधित है।
- खाद्य सुरक्षा भंडार/रिज़र्व: यह खरीद में होने वाली कमी की पूर्ति करने से संबंधित है।
- केंद्रीय पूल में खाद्यान्न भंडार में भारतीय खाद्य निगम (FCI), विकेंद्रीकृत खरीद योजना में भाग लेने वाले राज्यों तथा राज्य सरकार एजेंसियों (SGA) द्वारा बफर और परिचालन दोनों आवश्यकताओं के लिये रखे गए स्टॉक शामिल हैं।
भारतीय खाद्य निगम (FCI)
- FCI एक सरकारी स्वामित्व वाला निगम है जो भारत में खाद्य सुरक्षा प्रणाली का प्रबंधन करता है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1965 में खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत पूरे देश में खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने और बाज़ार में मूल्य स्थिरता बनाए रखने के उद्देश्य से की गई थी।
- FCI खाद्य संबंधी कमी या संकट के समय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये खाद्यान्नों के बफर स्टॉक को भी बनाए रखता है।
- FCI सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिये पूरे देश में खाद्यान्न वितरण हेतु उत्तरदायी है।
- FCI ई-नीलामी भी आयोजित करता है जो कि अधिशेष खाद्यान्न से निपटने के तरीकों में से एक है।
बफर स्टॉक के लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं?
- लाभ:
- खाद्य सुरक्षा: सूखा, बाढ़ या अन्य संकट जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों के दौरान जनता, विशेषकर कमज़ोर वर्गों के लिये खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- मूल्य स्थिरीकरण: आपूर्ति को विनियमित करके बाज़ार में आवश्यक खाद्यान्नों की स्थिर कीमतें बनाए रखना।
- वर्ष 2022-23 में भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India - FCI) ने बाज़ार में आपूर्ति बढ़ाने के लिये 34.82 लाख टन गेहूँ जारी किया।
- FCI की खुले बाज़ार में बिक्री योजना ने अनाज और गेहूँ में खुदरा मुद्रास्फीति को काफी कम कर दिया।
- किसानों को समर्थन: किसानों को उनकी उपज के लिये न्यूनतम मूल्य का आश्वासन देता है, जिससे उनकी आय स्थिर होती है और कृषि उत्पादन को निरंतर बढ़ावा मिलता है।
- आपदा प्रबंधन: प्राकृतिक आपदाओं के दौरान बिना देरी के खाद्यान्न की आपूर्ति करके तत्काल राहत प्रदान करना। जैसे- कोविड-19 के दौरान मुफ्त राशन की आपूर्ति।
- चुनौतियाँ:
- भंडारण संबंधी मुद्दे: भारत को अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं के संदर्भ में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण खाद्यान्न की बर्बादी और खराबी होती है।
- अधिप्राप्ति असंतुलन: विभिन्न अनाजों की खरीद में अक्सर असंतुलन होता है, जिसके कारण कुछ अनाजों का स्टॉक अधिक हो जाता है, जबकि अन्य का कम हो जाता है।
- वित्तीय भार: बड़े बफर स्टॉक को बनाए रखने के लिये खरीद, भंडारण और वितरण से संबंधित उच्च वित्तीय लागत की आवश्यकता होती है।
- वितरण में अक्षमताएँ: सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अक्सर लीकेज, चोरी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ होती हैं, जो बफर स्टॉक के प्रभावी वितरण में बाधा उत्पन्न करती हैं।
- गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ: लंबे समय तक भंडारित खाद्यान्न की गुणवत्ता सुनिश्चित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
आगे की राह
- खरीद पद्धतियों में विविधता लाना: सरकारी खरीद फिलहाल चावल, गेहूँ और कुछ दालों तथा तिलहनों तक ही सीमित है। इसमें मुख्य सब्ज़ियों और स्किम्ड मिल्क पाउडर (skimmed milk powder - SMP) जैसी अन्य आवश्यक खाद्य वस्तुओं को शामिल करने से कीमतों को और स्थिर करने में मदद मिल सकती है।
- केंद्र सरकार प्याज़ के बफर स्टॉक की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिये विकिरण की एक सुरक्षित, विनियमित खुराक का उपयोग करके प्याज़ के विकिरण को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाने की योजना बना रही है, जो अंकुरित होने से रोकता है और खराब होने की संभावना को कम करता है।
- बफर स्टॉक मानदंडों का वैज्ञानिक मूल्यांकन: दशकीय जनगणना डेटा तथा खाद्यान्न वितरण प्रतिबद्धताओं के आधार पर परिचालन एवं रणनीतिक बफर खाद्यान्न स्टॉक के लिये तार्किक मूल्यांकन एवं मानदंड निर्धारित करने के लिये अर्थमितीय विधियों एवं समय-शृंखला डेटा का उपयोग करना।
- गतिशील बफर मानदंड: भारत के वर्तमान तिमाही बफर स्टॉक मानदंडों को वास्तविक समय के आँकड़ों के साथ संरेखित करने हेतु अधिक गतिशील दृष्टिकोण पर विचार करना चाहिये।
- फसल उपज पूर्वानुमान, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के रुझान एवं संभावित व्यवधानों जैसे कारकों के आधार पर बफर स्टॉक के स्तर को समायोजित करने के लिये कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग एवं राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के आँकड़ों का उपयोग करना।
- तकनीकी समेकन: पारदर्शी एवं सुरक्षित बफर स्टॉक प्रबंधन के लिये ब्लॉकचेन जैसी तकनीक को एकीकृत करने पर विचार करना। इसके अतिरिक्त, उत्पादन को प्रभावित करने वाली संभावित मौसम की घटनाओं के आधार पर बफर स्टॉक को पहले से समायोजित करने के लिये भारत मौसम विज्ञान विभाग के मौसम पूर्वानुमान डेटा का उपयोग करने पर भी विचार करना।
- विवेकपूर्ण वित्तीय व्यवस्था: यह सुनिश्चित करना कि बफर स्टॉक बनाए रखने का वित्तीय बोझ बेहतर बजटिंग एवं क्रय अक्षमताओं को कम करके प्रबंधित किया जाता है।
- निजी क्षेत्र की सहभागिता: FCI के बफर स्टॉक के प्रबंधन के साथ-साथ भंडारण सुविधाओं, रसद अथवा जोखिम प्रबंधन रणनीतियों जैसे क्षेत्रों में अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिये निजी अभिकर्त्ताओं के साथ सहयोग स्थापित करना।
- प्रतिस्पर्द्धी उद्देश्यों को अलग करना: बफर-स्टॉकिंग परिचालन में टकराव तथा अकुशलता से बचने के लिये मूल्य स्थिरीकरण, खाद्य सुरक्षा एवं उत्पादन प्रोत्साहन के लक्ष्यों को अलग-अलग करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में बफर स्टॉक को विविधतापूर्ण बनाने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये। इस विविधीकरण से जुड़ी मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये। (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) के द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकियों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015) |