शासन व्यवस्था
PSC द्वारा MGNREGA योजना में सुधार का सुझाव
- 20 Dec 2024
- 15 min read
प्रिलिम्स के लिये:ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर संसदीय स्थायी समिति, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना, आधार-आधारित भुगतान प्रणाली, आधार, ग्राम पंचायत, लोकपाल, मुद्रास्फीति, राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली, कृषि श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) ग्रामीण, लोकसभा अध्यक्ष। मेन्स के लिये:मनरेगा योजना से संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह। |
स्रोत: लाइवमिंट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर संसदीय स्थायी समिति (PSC) ने उन चुनौतियों पर प्रकाश डाला है जिससे MGNREGS के तहत मजदूरी, मुद्रास्फीति के अनुरूप नहीं हो पाई है और इसने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) में कुछ सुधारों की सिफारिश की है।
नोट: मुद्रास्फीति से तात्पर्य धन की क्रय शक्ति में कमी से है जो किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में सामान्य वृद्धि के माध्यम से स्पष्ट होती है।
मनरेगा के कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- मजदूरी दर का मुद्रास्फीति के अनुरूप न होना: मनरेगा मजदूरी दर मुद्रास्फीति के अनुरूप न होने से ग्रामीण श्रमिकों की क्रय शक्ति में कमी आती है और ये 100 कार्यदिवस पूरा करने से हतोत्साहित होते हैं।
- इसके अतिरिक्त 100 दिन की रोज़गार गारंटी प्रायः अपर्याप्त (विशेष रूप से प्राकृतिक आपदाओं और महामारी के बाद की स्थिति में) सिद्ध होने से ग्रामीण परिवारों को दीर्घकालिक आजीविका सुरक्षा प्रदान करने की इसकी क्षमता सीमित हो जाती है।
- अनुमेय कार्यों में संशोधन: मनरेगा कार्य सूची प्रायः बाढ़ सुरक्षा और भूमि अपरदन प्रबंधन जैसी ग्रामीण आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहती है।
- स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर अनुमेय कार्यों को संशोधित करने में विलंब, क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने में योजना की प्रभावशीलता को सीमित करता है।
- मजदूरी का विलंबित भुगतान: भुगतान में देरी अक्सर आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS), निष्क्रिय आधार विवरण, या फ्रीज हुए बैंक खातों के कारण होती है, जिससे योजना का अपेक्षित प्रभाव प्रभावित होता है।
- संभावित तकनीकी खामियों और बुनियादी ढाँचा संबंधी समस्याओं के कारण कमज़ोर श्रमिकों को भुगतान नहीं मिल पाता।
- मुआवज़े में विलंब: मज़दूरी के भुगतान में विलंब के मामले में, लाभार्थी विलंब अवधि के लिये प्रतिदिन अवैतनिक श्रम के 0.05% की दर से मुआवज़े के हकदार हैं।
- हालाँकि देश में अधिकांश स्थानों पर विलंब मुआवज़े के भुगतान का पालन नहीं किया जाता है।
- बेरोज़गारी भत्ता: मनरेगा के अंतर्गत जो व्यक्ति काम के लिये आवेदन करते हैं, लेकिन उन्हें 15 दिनों के भीतर काम नहीं मिलता है, वे दैनिक बेरोज़गारी भत्ते के हकदार होते हैं।
- बेरोज़गारी भत्ता शायद ही कभी दिया जाता है और दी जाने वाली राशि भी न्यूनतम होती है।
- कमजोर सामाजिक अंकेक्षण: मनरेगा के अंतर्गत, ग्राम सभा को ग्राम पंचायत के अंतर्गत शुरू की गई सभी परियोजनाओं का नियमित सामाजिक अंकेक्षण करना चाहिये।
- हालाँकि वर्ष 2020-21 में केवल 29,611 ग्राम पंचायतों का कम-से-कम एक बार ऑडिट किया गया, जो कमज़ोर सामाजिक ऑडिट तंत्र को दर्शाता है।
- लोकपालों की कमी: 715 संभावित नियुक्तियों में से अभी तक केवल 263 लोकपालों की नियुक्ति की गई है।
समिति द्वारा मनरेगा में सुधार हेतु सुझाव की विभिन्न सिफारिशें क्या हैं?
- मजदूरी दरों में संशोधन: पारिश्रमिक दरों में ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन निर्वाह की बढ़ती लागत के दृष्टिगत मौजूदा मुद्रास्फीति के अनुरूप उपयुक्त मुद्रास्फीति सूचकांक के अनुसार संशोधन किया जाना चाहिये।
- आधार वर्ष 2009-2010 और दरों को वर्तमान मुद्रास्फीति उपनति और ग्रामीण आर्थिक स्थितियों के अनुरूप अद्यतन करने की आवश्यकता है।
- कार्य दिवसों में वृद्धि: समिति ने मनरेगा के अंतर्गत कार्य दिवसों की संख्या को 100 से बढ़ाकर 150 करने की भी सिफारिश की।
- भुगतान तंत्र: इसने निर्बाध वेतन संवितरण सुनिश्चित करने के लिये APBS के साथ-साथ वैकल्पिक भुगतान प्रणालियों को बनाए रखने की सिफारिश की।
- पैनल ने समय पर वेतन भुगतान सुनिश्चित करने के लिये एक सुव्यवस्थित भुगतान प्रक्रिया की सिफारिश की, जिसका उद्देश्य नौकरशाही बाधाओं को कम करना है।
- राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली (NMMS): समिति ने लाभार्थियों को NMMS का प्रभावी उपयोग करने में सहायता के लिये जागरूकता अभियान और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल दिया।
- इसने तकनीकी समस्याओं के कारण श्रमिकों द्वारा योजना से बाहर होने से बचाने के लिये वैकल्पिक उपस्थिति पद्धति को बनाए रखने की भी सिफारिश की।
- NMMS की सहायता से पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिये मनरेगा के अंतर्गत उपस्थिति और कार्य प्रगति की निगरानी की जाती है।
- मनरेगा के लिये पर्याप्त निधि आवंटन: समिति ने सरकार द्वारा मनरेगा के लिये पर्याप्त वित्तीय आवंटन सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि ग्रामीण परिवारों को आजीविका सुरक्षा प्रदान करने में इसकी प्रभावशीलता सुनिश्चित हो सके।
नोट:
- वित्तीय वर्ष 2024-25 में संपूर्ण भारत में औसत मनरेगा पारिश्रमिक में प्रतिदिन केवल 28 रुपए की वृद्धि हुई।
- वित्तीय वर्ष 2023-24 में मनरेगा पारिश्रमिक वृद्धि 2% से 10% तक रही।
- भारत सरकार कृषि श्रम के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL) का उपयोग करके मनरेगा के तहत पारिश्रमिक दर अधिसूचित करती है।
- राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी (NMW) के निर्धारण की कार्यप्रणाली की समीक्षा और सिफारिश करने के लिये गठित डॉ. अनूप सत्पथी समिति (2019) ने सिफारिश की थी कि मनरेगा के तहत मजदूरी 375 रुपए प्रतिदिन होनी चाहिये।
- डॉ. नागेश सिंह समिति (2017) ने मनरेगा मजदूरी को CPI-कृषि श्रम के बजाय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) ग्रामीण के अनुसार अनुक्रमित करने की सिफारिश की।
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संबंधी संसदीय स्थायी समिति क्या है?
- परिचय: इसे पहली बार 5 अगस्त, 2004 को लोकसभा के प्रक्रिया एवं कार्य-संचालन नियमों के 331C के अंतर्गत ग्रामीण विकास से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये गठित किया गया था।
- अधिकारिता: निम्नलिखित मंत्रालय/विभाग पर समिति की अधिकारिता है:
- ग्रामीण विकास मंत्रालय
- पंचायती राज मंत्रालय
- संरचना: समिति में अध्यक्ष द्वारा लोकसभा से नामित 21 सदस्य और सभापति द्वारा राज्यसभा से नामित 10 सदस्य, कुल 31 सदस्य शामिल हैं।
- किसी मंत्री को समिति के सदस्य के रूप में नामित नहीं किया जाता है।
- समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा समिति के सदस्यों में से की जाती है।
- सदस्यों का कार्यकाल: समिति के सदस्यों का कार्यकाल एक वर्ष से अनधिक होता है।
- कार्य:
- अनुदानों की मांगों पर विचार करना और सदनों को सूचना देना।
- अध्यक्ष या सभापति द्वारा प्रेषित विधेयकों की जाँच करना तथा उनकी सूचना देना।
- मंत्रालयों/विभागों की वार्षिक रिपोर्ट की समीक्षा करना और उनकी सूचना देना।
- अध्यक्ष या सभापति द्वारा संदर्भित राष्ट्रीय नीति दस्तावेज़ों पर विचार करना और सूचना देना।
MGNREGS
- परिचय: ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2005 में शुरू किया गया, MGNREGS सबसे बड़े कार्य गारंटी कार्यक्रमों में से एक है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार को न्यूनतम वेतन पर 100 दिनों का शारीरिक कार्य प्रदान किया जाता है।
- कार्यान्वयन: ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों के साथ मिलकर योजना के कार्यान्वयन की देखरेख करता है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- विधिक गारंटी: मनरेगा की मुख्य विशेषता इसके अंतर्गत कार्य की विधिक गारंटी है, जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्र के वयस्कों द्वारा कार्य का अनुरोध किये जाने पर 15 दिनों के भीतर कार्य प्रदान किया जाना सुनिश्चित किया जाता है।
- बेरोज़गारी भत्ता: यदि 15 दिनों के भीतर काम उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो बेरोज़गारी भत्ता प्रदान किया जाना होता है।
- महिला वर्ग का समावेशन: इस योजना में महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है तथा लाभुकों में न्यूनतम एक तिहाई महिलाओं का होना सुनिश्चित किया जाता है, जिन्होंने पंजीकरण कराया हो तथा काम के लिये अनुरोध किया हो।
- सामाजिक अंकेक्षण: महात्मा गांधी नरेगा, 2005 की धारा 17 में ग्रामसभा द्वारा योजना कार्यों का सामाजिक अंकेक्षण किये जाने का अधिदेश वर्णित है।
- लागत सहभागिता: केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा क्रमशः 90:10 के अनुपात में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- संविदाकार पर प्रतिबंध: संविदाकारों की नियुक्ति और श्रमिकों का विस्थापन करने वाली मशीनों के उपयोग पर प्रतिबंध है।
निष्कर्ष
- मनरेगा के लिये संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों का उद्देश्य अपर्याप्त कार्यदिवस, पारिश्रमिक असमानता, विलंबित भुगतान और अनुपयुक्त निगरानी प्रणाली जैसी प्रमुख चुनौतियों का समाधान करना है। ग्रामीण आजीविका में सुधार और दीर्घावधि में योजना की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये इन सुधारों का प्रभावी कार्यान्वयन आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) के कार्यान्वयन की चुनौतियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये और इसकी प्रभावकारिता बढ़ाने हेतु सुधारों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभान्वित होने के पात्र हैं? (2011) (a) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों के वयस्क सदस्य उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत में आज भी सुशासन के लिये भूख और गरीबी सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं. मूल्यांकन कीजिये कि इन विशाल समस्याओं से निपटने में सरकारों ने कितनी प्रगति की है। सुधार के उपाय सुझाइये। (2017) प्रश्न. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं? (2014) |