भारत में विद्युत बाज़ार | 26 Jun 2024

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय ऊर्जा विनिमय खरीद, विद्युत अधिनियम 2003, केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग

मेन्स के लिये:

डिस्कॉम का विनियमन और भारत के विद्युत क्षेत्र का महत्त्व

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने गर्मियों के दौरान बढ़ती मांग के बीच देश के विद्युत बाज़ारों में “लिंकेज कोयले” से उत्पन्न अधिशेष विद्युत व्यापार की अनुमति दे दी है।

  • कोयला लिंकेज, सरकार द्वारा ताप विद्युत इकाइयों को आबंटित संसाधन हैं, जो वितरण कम्पनियों के साथ दीर्घकालिक विद्युत क्रय समझौतों (power purchase agreements - PPAs) पर आधारित होते हैं, ताकि विद्युत उत्पादन के लिये विश्वसनीय और निरंतर कोयला आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।

भारत के विद्युत बाज़ार क्या हैं?

  • परिचय:
    • भारत में विद्युत बाज़ार एक ऐसी प्रणाली का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहाँ विद्युत का व्यापार विभिन्न तंत्रों और विद्युत एक्सचेंजों जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से किया जाता है, जिससे विद्युत शक्ति का लचीला और कुशल आवंटन संभव होता है।
  • विद्युत विनिमय:
    • विद्युत विनिमय या एक्सचेंज विद्युत बाज़ारों के भीतर एक प्रमुख अवसंरचना है जो पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी प्रक्रियाओं के माध्यम से विद्युत की खरीद और बिक्री को सक्षम बनाता है, जिससे विद्युत आपूर्ति प्रणाली की समग्र दक्षता और विश्वसनीयता में योगदान मिलता है।
    • संरचना और विकास:
      • विद्युत विनिमय की शुरुआत सबसे पहले 1990-91 में यूरोप में हुई थी और अब ये दुनिया भर के लगभग 50 देशों में संचालित होते हैं।
      • भारत में विद्युत अधिनियम, 2003  ने एक्सचेंज संचालन के लिये रूपरेखा स्थापित की और एक्सचेंजों की शुरुआत 2008 में हुई।
        • लचीलापन और जवाबदेही बढ़ाने के लिये 2020 में स्पॉट मार्केट की शुरुआत की गई थी।
    • व्यापार तंत्र:
      • नीलामी प्रक्रिया: क्रेता बिजली खरीदने के लिये बोलियाँ लगाते हैं और विक्रेता बेचने के लिए प्रस्ताव देते हैं।
      • बाज़ार समाशोधन मूल्य: मांग बोलियों और आपूर्ति प्रस्तावों का संतुलन उस बाज़ार समाशोधन मूल्य को निर्धारित करता है जिस पर विद्युत का कारोबार होता है।
    • विद्युत बाज़ारों की श्रेणियाँ:
      • स्पॉट मार्केट:
        • तत्काल डिलीवरी के लिये रियल टाइम मार्केट (RTM)।
        • डिलीवरी से कुछ घंटे पहले उसी दिन ट्रेड के लिये इंट्राडे मार्केट।
      • अनुबंध बाज़ार:
        • अगले दिन के लिये 15 मिनट के समय ब्लॉक में बंद नीलामी के लिये डे-अहेड मार्केट (DAM)।
        • 3 घंटे से लेकर 11 दिन पहले तक के ट्रेड के लिये टर्म-अहेड मार्केट (TAM)।
  • विद्युत बाज़ार के लाभ:
    • स्थिति स्थापकता: बाज़ार में विद्यमान विद्युत उत्पादक अल्पकालिक मांग में होने वाले उतार-चढ़ाव की पूर्ति करने के लिये अधिशेष विद्युत का विक्रय करने में सक्षम हैं जिसके लिये उन्हें दीर्घकालिक विद्युत खरीद समझौतों (Power Purchase Agreement- PPA) पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है।
    • पारदर्शिता और विश्वसनीयता: मूल्य-आधारित मांग प्रतिक्रिया में कई पक्ष शामिल होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप द्विपक्षीय अनुबंधों की अपेक्षा इसमें अधिक पारदर्शिता और विश्वसनीयता होती है।
    • संसाधन अनुकूलन: बाज़ार के विद्युत उत्पादकों का बाज़ार-संचालित उपागम उन्हें अपने उत्पादन और राजस्व का सबसे बेहतर ढंग से उपयोग करने में सक्षम बनाता है, जिससे विद्युत की परिवर्तनशील माँगों को अधिक कुशलता से पूरा किया जा सकता है।
  • भारत में प्रमुख विद्युत एक्सचेंज:
    • इंडियन एनर्जी एक्सचेंज लिमिटेड (IEX): बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी 90% है।
      • वित्त वर्ष 2023-24 में इसने लगभग 110 बिलियन यूनिट (BU) विद्युत का व्यापार किया, जिसमें साल-दर-साल 14% की वृद्धि हो रही है।
    • पावर एक्सचेंज इंडिया लिमिटेड (PXIL): यह भारत का पहला संस्थागत रूप से प्रवर्तित पावर एक्सचेंज है जो वर्ष 2008 से ही अभिनव और विश्वसनीय समाधान प्रदान कर रहा है।
    • हिंदुस्तान पावर एक्सचेंज लिमिटेड (HPX): यह विभिन्न विद्युत उत्पादों के लिये एक व्यापक बाज़ार मंच प्रदान करता है।
  • विनियमन: सभी एक्सचेंजों का विनियमन केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (Central Electricity Regulatory Commission- CERC) द्वारा किया जाता है।
    • CERC का उद्देश्य थोक विद्युत बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा, दक्षता और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना, आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार करना, निवेश को बढ़ावा देना और मांग-आपूर्ति के अंतराल को पाटने हेतु संस्थागत बाधाओं का समाधान करने के संबंध में सरकार को सलाह देना है।
    • यह विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत गठित अर्द्ध-न्यायिक स्थिति के साथ कार्य करने वाला एक सांविधिक निकाय है।
    • विद्युत अधिनियम 2003: विद्युत अधिनियम, 2003 में केंद्र और राज्य दोनों स्तरों (CERC और SERC) पर विद्युत विनियामक आयोगों के गठन का प्रावधान किया गया है।

विद्युत बाज़ार से संबंधित लिखत 

  • नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC) तंत्र:
    • यह उपयोगिताओं को REC का क्रय कर नवीकरणीय खरीद दायित्वों (Renewable Purchase Obligations- RPO) को पूरा करने की अनुमति देता है, जिनमें से प्रत्येक REC 1 मेगावाट नवीकरणीय विद्युत के बराबर है।
      • RPO की शुरात वर्ष 2011 में की गई थी, यह एक ऐसा शासनादेश है जिसके तहत बड़े विद्युत क्रेताओं को अपनी बिजली मांग का एक निश्चित प्रतिशत नवीकरणीय स्रोतों से खरीदना आवश्यक है।
    • अपर्याप्त नवीकरणीय क्षमता वाले राज्य हरित ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिये REC की खरीद कर सकते हैं।
  • विद्युत खरीद समझौते (PPA):
    • ये विद्युत उत्पादकों और क्रेताओं (प्रायः सार्वजनिक उपयोगिताओं) के बीच दीर्घकालिक समझौते (प्रायः 25 वर्ष) होते हैं।
    • इसमें उत्पादकों को निश्चित दरों पर विद्युत की आपूर्ति करने के लिये प्रतिबद्ध करना शामिल है, जिससे महत्त्वपूर्ण उत्पादन क्षमता सुनिश्चित होती है।
    • वे लचीले नहीं होते और गतिशील बाज़ार स्थितियों के अनुकूल ढलने में असमर्थ होते हैं।

भारत में विद्युत बाज़ार के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • ट्रांसमिशन बाधाएँ: अपर्याप्त ट्रांसमिशन अवसंरचना ग्रिड में भीड़भाड़ पैदा करती है, जिससे उत्पादन स्रोतों से उपभोक्ताओं तक विद्युत का कुशल प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है।
    • यह मांग केंद्रों से दूर स्थित नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करने के लिये विशेष रूप से समस्याग्रस्त है।
  • डिस्कॉम की वित्तीय स्थिति: अकुशलता, चोरी और अवैतनिक बिलों से होने वाले उच्च घाटे के कारण वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की वित्तीय स्थिति कमज़ोर है, जिससे ग्रिड में निवेश करने और विद्युत उत्पादकों को तुरंत भुगतान करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है, जिससे बाज़ार प्रभावित होता है।
    • उदाहरण के लिये भारत में पारेषण और वितरण हानि (T&D) 20% से अधिक है जो विश्व औसत से अधिक है।
  • कोयले पर निर्भरता और मूल्य अस्थिरता: विद्युत उत्पादन के लिये कोयले पर भारत की भारी निर्भरता के कारण वैश्विक कोयला बाज़ार में मूल्य में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। इससे विद्युत मूल्य स्थिरता बाधित होती है और जनरेटर के मार्जिन पर दबाव पड़ सकता है।
  • बाज़ार डिज़ाइन और बुनियादी ढाँचा: बाज़ार युग्मन और क्षमता बाज़ारों सहित मज़बूत बाज़ार डिज़ाइन विकसित करने के लिये बुनियादी ढाँचे और समन्वय में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है।
  • असंगत नीति और नियामक ढाँचा: एक जटिल तथा विकासशील नियामक वातावरण विद्युत क्षेत्र में निवेशकों के लिये अनिश्चितता पैदा करता है।
  • सीमित बाज़ार उत्पाद: वर्तमान विद्युत बाज़ार मुख्य रूप से अल्पकालिक व्यापार पर ध्यान केंद्रित करता है, न कि वायदा और व्युत्पन्न अनुबंध जैसे बाज़ार उत्पादों की एक व्यापक शृंखला विकसित करता है।

नोट:

  • बाज़ार युग्मन: बाज़ार युग्मन एक तंत्र है जिसका उपयोग विद्युत बाज़ारों में विभिन्न क्षेत्रों या देशों में विद्युत के व्यापार को एकीकृत और समन्वित करने के लिये किया जाता है।
    • इसका उद्देश्य सभी भागीदार विद्युत एक्सचेंजों या बाज़ार प्लेटफार्मों से आपूर्ति और मांग बोलियों का मिलान करके विद्युत के लिये एकल बाज़ार समाशोधन मूल्य प्राप्त करना है।
  • क्षमता बाज़ार: क्षमता बाज़ार विद्युत क्षेत्र के भीतर की व्यवस्थाएँ हैं, जहाँ उत्पादकों को न केवल उनके द्वारा उत्पादित और बेची गई विद्युत के लिये भुगतान किया जाता है, बल्कि विद्युत उत्पन्न करने की उनकी क्षमता हेतु भी भुगतान किया जाता है।

भारत में विद्युत बाज़ार को मज़बूत करने हेतु क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?

  • बाज़ार आधारित मूल्य निर्धारण को बढ़ावा देना: आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में विद्युत मूल्य निर्धारण के लिये बाज़ार आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। इसमें उच्च आय वाले उपभोक्ताओं हेतु सब्सिडी वाली विद्युत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना और विद्युत उत्पादकों को मांग तथा आपूर्ति के आधार पर कीमतें निर्धारित करने में अधिक लचीलापन प्रदान करना जैसे सुधार शामिल हो सकते हैं।
  • बाज़ार युग्मन: विद्युत मूल्य को एकजुट करने तथा ग्रिड विश्वसनीयता हेतु प्रोत्साहन एवं समर्थन के साथ क्षमता बाज़ार विकसित करने के लिये बाज़ार युग्मन को लागू करना।
  • डिस्कॉम के वित्तीय मुद्दों का समाधान: बिलिंग एवं संग्रहण प्रणालियों में सुधार, विद्युत चोरी में कमी लाने तथा सार्वजनिक-निजी भागीदारी की संभावनाएँ तलाशने जैसे उपायों से उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार हो सकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण को प्रोत्साहित करना: बेहतर पूर्वानुमान, भंडारण, मीटरिंग, डेटा विश्लेषण एवं स्वचालन के माध्यम से ग्रिड प्रबंधन, दक्षता तथा विश्वसनीयता में सुधार के लिये नवीकरणीय ऊर्जा एवं स्मार्ट ग्रिड प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
  • विनियामक ढाँचे में सामंजस्य स्थापित करना: विसंगतियों को कम करने एवं एक सुसंगत बाज़ार वातावरण बनाने के लिये राज्यों में एक समान नियम विकसित करना।
  • ट्रांसमिशन बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: दुर्गम क्षेत्रों में लाइन निरीक्षण एवं रखरखाव के लिये ड्रोन का उपयोग करना तथा हल्के, मज़बूत एवं अधिक कुशल ट्रांसमिशन टावरों के लिये उन्नत सामग्रियों की खोज करने के साथ-साथ ट्रांसमिशन बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने में भी सहायता प्रदान कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में विद्युत बाज़ारों के सामने आने वाली चुनौतियों की जाँच करना तथा इन चुनौतियों पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिये आवश्यक कदमों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा सरकार की एक योजना 'उदय'(UDAY) का उद्देश्य है? (2016)

(a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्टअप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
(b) वर्ष 2018 तक देश के हर घर में विद्युत पहुँचाना।
(c) कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को समय के साथ प्राकृतिक गैस, परमाणु, सौर, पवन और ज्वारीय विद्युत संयंत्रों से बदलना।
(d) विद्युत वितरण कंपनियों के बदलाव और पुनरुद्धार के लिये वित्त प्रदान करना।

उत्तर: (d)