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भारतीय अर्थव्यवस्था

स्पॉट गोल्ड एक्सचेंज

  • 19 May 2021
  • 5 min read

चर्चा में क्यों? 

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) द्वारा  स्पॉट गोल्ड एक्सचेंज (Spot Gold Exchange) स्थापित करने हेतु एक रूपरेखा का प्रस्ताव रखा गया है।

  • स्पॉट एक्सचेंज वह स्थान  है जहांँ तत्काल वितरण हेतु  वित्तीय साधनों जैसे- वस्तुओं, मुद्राओं और प्रतिभूतियों का कारोबार होता है।
  • अप्रैल 1992 में सेबी की स्थापना भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के तहत की गई थी जो कि एक एक वैधानिक निकाय है।

Gold-Exchange

प्रमुख बिंदु: 

गोल्ड एक्सचेंज की रूपरेखा:

  • पहले चरण में एक्सचेंज प्लेटफॉर्म पर स्थानीय रूप से निर्मित या आयातित सोने की डिलीवरी की इच्छुक इकाई को सेबी के विनियमित वॉल्ट मैनेजर से संपर्क करना होगा और उसे फिज़िकल गोल्ड (Physical Gold ) को जमा कराना होगा जो गुणात्मक (Quality) और मात्रात्मक (Quantity) दोनों पैरामीटर्स पर खरा उतरे।
  • दूसरे चरण में एक्सचेंज पर ट्रेड करने हेतु वाल्ट मैनेजर इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड रिसीप्ट (Electronic Gold Receipt- EGR) जारी करेगा ।
  • लाभ प्राप्तकर्त्ता मालिक (Beneficial Owner) इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड रिसीप्ट  को वॉल्ट मैनेजर को सौंप देगा और तीसरे चरण में सोने की डिलीवरी लेगा।
  •  तीनों चरण में जो भी कारोबार होगा, उसे आसान बनाने हेतु वाल्ट मैनेजर्स, डिपॉज़िटरीज़, क्लियरिंग कॉर्पोरेशन और स्टॉक एक्सचेंज के मध्य एक कॉमन इंटरफेस (Common Interface) को विकसित किया जाएगा। 
  • इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड रिसीप्ट्स के तहत सोने के विभिन्न प्रस्तावित मूल्य जैसे 1 किलोग्राम, 100 ग्राम, 50 ग्राम का होगा तथा कुछ शर्तों के साथ इन्हें 5 और 10 ग्राम में भी रखा जा सकेगा।
  • इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड रिसीप्ट की खरीद के समय प्रतिभूति लेन-देन कर (Security Transaction Tax- STT) और एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (Integrated Goods and Services Tax-IGST) लगाया जाएगा।

सेबी द्वारा उठाए गए अन्य मुद्दे:

  • इनमें वॉल्ट मैनेजर्स के मध्य फंगिबिलिटी (Fungibility) और इंटरऑपरेबिलिटी (Interoperability) शामिल हैं।
  • फंगिबिलिटी का मतलब है कि ईजीआर 1 के तहत जमा किया गया सोना उसी अनुबंध विनिर्देशों को पूरा करने वाले ईजीआर 2 के अध्यर्पण (Surrender) पर  दिया जा सकता है।
  • इंटरऑपरेबिलिटी का मतलब है कि वॉल्ट मैनेजर द्वारा एक स्थान पर जमा किये गए गोल्ड को  किसी दूसरे स्थान पर उसी या अलग वॉल्ट मैनेजर से वापस प्राप्त किया जा सकता है। इससे खरीदारों (Buyers) की लागत कम होगी ।

गोल्ड के लिये अलग एक्सचेंज बनाने का कारण:

  • भारत में एक जीवंत स्वर्ण पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करना (Vibrant Gold Ecosystem) जो वैश्विक स्तर पर स्वर्ण  खपत के बड़े हिस्से के अनुरूप कार्य करता हो।
  • भारत (चीन के बाद) विश्व स्तर पर सोने का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जिसकी वार्षिक सोने की मांग लगभग 800-900 टन है, जो  वैश्विक बाज़ारों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
  • गोल्ड एक्सचेंज स्थापित करने के पीछे भारत का उद्देश्य  मूल्य चुकाने वाले  के बजाय एक मूल्य निर्धारणकर्त्ता बनना है और लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन (London Bullion Market Association- LBMA) के समान भारत में अच्छे वितरण मानक स्थापित करना है ।
  • नया स्टॉक स्पॉट गोल्ड एक्सचेंज स्थापित करने से  सिंगल रेफरेंस प्राइस (Single Reference Price), लिक्विडिटी (Liquidity), बेहतर डिलीवरी स्टैंडर्ड (Good Delivery Standard) जैसे फायदे हैं।

स्रोत: द हिंदू

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