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शासन व्यवस्था

‘एक राष्ट्र, एक समय’

  • 30 Jan 2025
  • 14 min read

मेन्स के लिये:

CSIR- राष्ट्रीय भौतिक विज्ञान, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, भारतीय मानक समय, वैश्विक प्रक्षेपण प्रणाली, ग्रीनविच मीन टाइम, एटॉमिक क्लॉक, Navik, नाविक, नेटवर्क टाइम रिकॉर्ड

मेन्स के लिये:

विधिक माप विज्ञान (MST) नियम, 2025, आत्मनिर्भर सहयोग सहयोग की भूमिका, आधार संरचना और डिजिटल अर्थव्यवस्था, एक राष्ट्र एक समय

स्रोत: BS

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (NPL) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सहयोग से उपभोक्ता मामले विभाग, भारत सरकार द्वारा तैयार विधिक माप विज्ञान (भारतीय मानक समय (IST)) नियम, 2025 का उद्देश्य सभी क्षेत्रों में भारतीय मानक समय (IST) के उपयोग को मानकीकृत और अनिवार्य बनाना तथा "एक राष्ट्र, एक समय" के दृष्टिकोण को सुदृढ़ करना है।

  • सिद्धांत का उद्देश्य सभी क्षेत्रों में भारतीय मानक समय को मानकीकृत और अनिवार्य बनाना, साथ ही "एक राष्ट्र, एक समय" के दृष्टिकोण को समझना है।

विधिक माप विज्ञान (MST) नियम, 2025 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • IST को अनिवार्य रूप से अपनाना: CSIR-NPL द्वारा स्थापित IST, भारत में अनिवार्य कानूनी रूप से प्राप्त समय मानक होगा, जो "एक राष्ट्र, एक समय" को निर्दिष्ट करता है। 
    • जब तक सरकार द्वारा स्पष्ट रूप से अधिकृत न किया जाए, विदेशी समय संदर्भों - जैसे ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) समय का उपयोग निषिद्ध होगा।
  • महत्त्वपूर्ण घटकों का समन्वय: सभी सरकारी बैंकों, वित्तीय शेयरधारकों, वित्तीय संस्थानों और डिजिटल परामर्शदाताओं को अपने समूह को IST के साथ समन्वयित करना होगा।
  • संस्थागत संरचना: संरचना की निगरानी अवधिक स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से की जाएगी और संरचना न करने पर जुर्माना लगाया जाएगा।
  • विशेष प्रावधान: वैकल्पिक समय संदर्भों का उपयोग सरकार के पूर्व अनुमोदन के साथ नौवहन अनुप्रयोगों, खगोल विज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधान में किया जा सकता है।
    • ये नियम सामरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा अनुप्रयोगों के लिये लचीलापन प्रदान करते हैं।

भारतीय मानक समय

  • भारतीय मानक समय (IST) 82.5 डिग्री देशांतर पर आधारित है, जो उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर से होकर गुज़रता है।
  • यह ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से 5 घंटे 30 मिनट आगे है, जिसे वर्तमान में यूनिवर्सल कोऑर्डिनेटेड टाइम (UTC) कहते हैं।
    • IST की स्थापना वर्ष 1906 में ब्रिटिश काल के तीन क्षेत्रीय टाइम ज़ोन (बॉम्बे, कलकत्ता और मद्रास समय) को प्रतिस्थापित कर की गई थी। 

एक राष्ट्र, एक समय क्या है?

  • परिचय: 'एक राष्ट्र, एक समय' का उद्देश्य सभी सरकारी, औद्योगिक, तकनीकी और सामाजिक संस्थानों के लिये एक एकीकृत और सुव्यवस्थित समय-निर्माण संरचना स्थापित करना है।
    • सरकार ने काल प्रसार में माइक्रोसेकंड स्तर की सटीकता लाने के उद्देश्य से भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पाँच विधिक मापविज्ञान प्रयोगशालाएँ स्थापित किये जाने की योजना बनाई है।
  • आत्मनिर्भर टाइम-कीपिंग की आवश्यकता: भारत की परमाणु सुरक्षा और साइबर सुरक्षा जोखिम का जन्म होता है। 1999 के कारगिल के दौरान, इस पोर्टफोलियो ने दुश्मनों के आकलन पर भारत की क्षमता को खतरनाक युद्ध में डाल दिया। 
  • भारत इस संदर्भ में GPS उपग्रहों (अमेरिका द्वारा नियंत्रित) पर निर्भर है जिससे इसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और साइबर सुरक्षा को खतरा हो सकता है। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान, इस निर्भरता के कारण ही दुश्मन के ठिकानों पर सटीक निशाना लगाने की भारत की क्षमता प्रभावित हुई थी।
    • इस दृष्टि से आत्मनिर्भर प्रणाली की सहायता से भारत की निर्भरता कम होगी और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
  • प्रकार्य: NPL, भारतीय नक्षत्र के साथ नेविगेशन (Navigation with Indian Constellation- NavIC) के माध्यम से तुल्यकालित, सटीक समय प्रदान करने हेतु परमाणु घड़ियों के उपयोग पर आधारित होगा।
    • NPL की उन्नत परमाणु घड़ियाँ, जिनमें लाखों वर्षों में केवल एक सेकंड का अंतराल (परिशुद्धता स्तर) आता है, IST के लिये संदर्भ की भूमिका निभाएंगी।
    • नेटवर्क टाइम प्रोटोकॉल (NTP) और प्रिसिजन टाइम प्रोटोकॉल (PTP) जैसे सिंक्रोनाइज़ेशन प्रोटोकॉल को सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक संगठनों द्वारा अपनाया जाएगा।
  • लाभ: 5G, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, नेविगेशन और पावर ग्रिड सिंक्रोनाइज़ेशन जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र उच्च परिशुद्धता के साथ संचालन करेंगे।
    • वित्तीय लेन-देन अधिक धोखाधड़ी-रोधी हो जाएँगे और विनियामक अनुपालन अधिक सटीक होगा।
    • डिजिटल उपकरणों और संचार नेटवर्क को तुल्यकालित किया जाएगा, जिससे परिचालन दक्षता और उपभोक्ता सेवाओं में सुधार होगा।
    • भारत के डिजिटल बुनियादी ढाँचे को मज़बूती मिलने से यह वैश्विक तकनीकी निवेश के लिये एक आकर्षक केंद्र बनेगा।
      • अंतर्राष्ट्रीय विमानन और दूरसंचार मानकों जैसी सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ समन्वय बढ़ेगा।

NavIC

CSIR- राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला

  • NPL भारत की सबसे पुरानी राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में से एक है। इसकी आधारशिला वर्ष 1947 में जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी और इसका औपचारिक उद्घाटन वर्ष 1950 में सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया था। 
  • कार्य: यह मीटर, किलोग्राम, सेकंड, केल्विन, एम्पीयर और कैंडेला सहित अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली (SI मात्रक) पर आधारित भौतिक माप इकाइयों को बनाए रखने के लिये ज़िम्मेदार है।
    • NPL द्वारा उद्योगों को सटीक माप में सहायता प्रदान करने के साथ उत्सर्जन निगरानी उपकरणों को प्रमाणित किया जाता है। 
  • प्रमुख योगदान: उन्नत परमाणु घड़ियों का विकास करना तथा सीज़ियम परमाणु घड़ियों (सीज़ियम परमाणुओं के उपयोग द्वारा संचालित होना) और हाइड्रोजन मेसर (सटीक आवृत्ति प्रदान करने के लिये हाइड्रोजन परमाणुओं का उपयोग करना) का उपयोग करके भारतीय मानक समय (IST) को बनाए रखना। 
    • यह परीक्षण और अंशांकन प्रयोगशालाओं हेतु राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (NABL) का समर्थन करता है।

एक राष्ट्र एक समय को लागू करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • दूरसंचार और ISP द्वारा अपनाना: इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP) और दूरसंचार ऑपरेटर विदेशी समय स्रोतों पर निर्भर होते हैं, IST को अनिवार्य रूप से अपनाने के लिये तकनीकी उन्नयन, नियामक प्रवर्तन एवं एक केंद्रीकृत निगरानी प्राधिकरण की आवश्यकता होती है।
  • वैश्विक एकीकरण: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वित्तीय बाज़ारों में लगे व्यवसायों को वैश्विक समय मानकों (UTC, GMT आदि) के साथ समन्वय की आवश्यकता होती है।
    • निर्बाध संक्रमण एवं दोहरे अनुपालन के लिये तंत्र स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।
  • अवसंरचना विकास: सीमित कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों सहित पूरे देश में निर्बाध समय समन्वय सुनिश्चित करने के क्रम में दूरदराज़ के क्षेत्रों में मौजूदा नेटवर्क तथा प्रणालियों के साथ एकीकरण में तार्किक एवं तकनीकी बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • साइबर सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: समय समन्वयन प्रणालियाँ साइबर हमलों के लिये संभावित लक्ष्य हैं। सुरक्षित एन्क्रिप्शन और वैकल्पिक समय प्रसार विधियों की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • साइबर सुरक्षा उपाय: साइबर हमलों से समय समन्वयन प्रणालियों की सुरक्षा के लिये मज़बूत एन्क्रिप्शन विधियों को लागू करना।
    • संभावित व्यवधानों के प्रति लचीलापन सुनिश्चित करने के लिये समय प्रसार हेतु बैकअप प्रणालियाँ विकसित करना।
  • पर्यवेक्षक प्राधिकारी: सभी क्षेत्रों में IST समन्वय के कार्य और घटक की व्याख्या के लिये एक समर्पित केंद्र अधिकृत पर्यवेक्षण प्राधिकारी की स्थापना करना
  • जागरूकता को बढ़ावा देना: निर्बाध अंतर्राष्ट्रीय एकीकरण के लिये वैश्विक मानकीकरण निकायों के साथ सहयोग करते हुए, उद्योगों, वित्तीय संस्थानों और सार्वजनिक सेवाओं को IST समन्वयन लाभों के बारे में शिक्षित करना।
  • अनुसंधान एवं विकास: समय-निर्धारण प्रौद्योगिकियों और प्रोटोकॉल में निरंतर सुधार के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भारत सटीक समय-निर्धारण में अग्रणी बना रहे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: विश्लेषण कीजिये कि भारत की एक राष्ट्र एक समय समन्वय प्रणाली राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा तैयारियों को किस प्रकार बढ़ा सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. निम्नलिखित देशों में से किस एक के पास अपनी उपग्रह मार्गनिर्देशन (नैविगेशन) प्रणाली है? (2023)

(a) ऑस्ट्रेलिया
(b) कनाडा
(c) इज़रायल
(d) जापान

उत्तर: (d)

  • विश्व में परिचालन नेविगेशन प्रणाली:
    • अमेरिका की GPS प्रणाली
    • रूस की GLONASS प्रणाली
    • यूरोपीय संघ की गैलीलियो प्रणाली
    • चीन की  BeiDou प्रणाली
    • भारत की नाविक प्रणाली
    • जापान की QZSS 

अतः विकल्प (d) सही है।


प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय-संचालन उपग्रह प्रणाली (इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम/IRNSS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. IRNSS के तुल्यकाली (जियोस्टेशनरी) कक्षाओं में तीन उपग्रह हैं और भूतुल्यकाली (जियोसिंक्रोनेस) कक्षाओं में चार उपग्रह हैं।
  2.  IRNSS की व्याप्ति संपूर्ण भारत पर और इसकी सीमाओं के लगभग 5500 वर्ग किलोमीटर बाहर तक है।
  3.  2019 के मध्य तक भारत की पूर्ण वैश्विक व्याप्ति के साथ अपनी उपग्रह संचालन प्रणाली होगी।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. भारतीय प्रादेशिक नौपरिवहन उपग्रह प्रणाली (आई.आर.एन.एस.एस.) की आवश्यकता क्यों है? यह नौपरिवहन में किस प्रकार सहायक है? (2018)

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