शासन व्यवस्था
हिरासत में होने वाली मौत पर NHRC का ओडिशा सरकार को नोटिस
- 06 Jul 2024
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स्रोत:टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने ओडिशा सरकार को एक नोटिस जारी किया है, जिसमें इस बात का स्पष्टीकरण मांगा गया है कि आयोग को कथित तौर पर पुलिस हिरासत में मरने वाले एक व्यक्ति के परिजनों को आर्थिक मुआवजा देने की सिफारिश क्यों नहीं करनी चाहिये।
हिरासत में होने वाली मौत क्या है?
- हिरासत में होने वाली मौत से तात्पर्य उस मौत से है,जो तब होती है जब कोई व्यक्ति कानून प्रवर्तन अधिकारियों या सुधार गृह की हिरासत में होता है। यह विभिन्न कारणों जैसे अत्यधिक बल का प्रयोग, उपेक्षा या अधिकारियों द्वारा दुर्व्यवहार से हो सकता है ।
- भारत के विधि आयोग के अनुसार, किसी लोक सेवक द्वारा गिरफ्तार या हिरासत में लिये गए व्यक्ति के खिलाफ की गई हिंसा हिरासत में यातना के समान है।
- हिरासत में होने वाली मौत पर न्यायिक घोषणाएँ:
- किशोर सिंह बनाम राजस्थान राज्य (1981): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि पुलिस द्वारा थर्ड डिग्री का इस्तेमाल भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
- नीलाबती बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य (1993): जीवन के अधिकार की रक्षा के लिये राज्य की ज़िम्मेदारी को स्वीकार करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि पुलिस की लापरवाही या क्रूरता के परिणामस्वरूप हिरासत में होने वाली मौतों के लिये राज्य मुआवजा देने के लिये उत्तरदायी है।
- जोगिंदर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1994): सर्वोच्च न्यायालय ने मानव अधिकारों के उल्लंघन के परिणामस्वरूप होने वाली अव्यवस्थित गिरफ्तारियों के मुद्दे पर विचार किया। उन्होंने राष्ट्रीय पुलिस आयोग की तीसरी रिपोर्ट में की गई सिफारिशों का हवाला दिया कि अधिकारियों को तब तक गिरफ्तारी नहीं करनी चाहिये जब तक कि वे जघन्य अपराधों से संबंधित न हों।।
- डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997): सर्वोच्च न्यायालय ने हिरासत में यातना और मौतों को रोकने के लिये विशिष्ट दिशा-निर्देश निर्धारित किये, जिनमें गिरफ्तारी मेमो, चिकित्सा परीक्षण का अधिकार और कानूनी परामर्श तक पहुँच की आवश्यकताएँ शामिल थीं।
टिप्पणी:
- डी.के. बसु मामले में हिरासत में होने वाली मृत्यु के संबंध में दिशा-निर्देश निर्धारित किये गए:
- पुलिस अधिकारी का यह कर्त्तव्य है, कि वह अभियुक्त से जाँच और पूछताछ करते समय थर्ड डिग्री के तरीकों का इस्तेमाल न करें।
- पुलिस अधिकारियों के कामकाजी माहौल, प्रशिक्षण और बुनियादी मानवीय मूल्यों के साथ उनके उन्मुखीकरण की जाँच करने में ध्यान दिया जाना चाहिये।
- विधानसभा को धारा 114-B को शामिल करके विधि आयोग की रिपोर्ट द्वारा दी गई सिफारिशों को अपनाना चाहिये।
- पुलिस को दुर्दांत अपराधियों से जानकारी निकालने के लिये संतुलित दृष्टिकोण का इस्तेमाल करना चाहिये।
- गिरफ्तारी के समय प्रभारी पुलिस अधिकारी द्वारा एक ज्ञापन बनाया जाना चाहिये एवं गिरफ्तारी के समय अभियुक्त के कम से कम एक परिवार के सदस्य को मौजूद रहना चाहिये।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 (1) के तहत संविधान की आवश्यकताओं का पुलिस अधिकारियों द्वारा पालन किया जाना चाहिये।
- गिरफ्तार व्यक्ति को उसके मूल अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिये ताकि जब उसे हिरासत में लिया जाए तो वह उन्हें समझ सके।
- साथ ही, न्यायालय ने कुछ निवारक उपाय भी प्रदान किये हैं जिनका किसी आरोपी की गिरफ्तारी के समय प्रभारी पुलिस अधिकारी को पालन करना चाहिये।
हिरासत में होने वाली मौतों से संबंधित नैतिक चिंताएँ क्या हैं?
- मानव अधिकारों एवं गरिमा का उल्लंघन:
- हर व्यक्ति के साथ गरिमापूर्ण एवं निष्पक्ष व्यवहार किया जाना चाहिये। हिरासत में हिंसा/यातना से शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक क्षति होने के साथ व्यक्तियों की गरिमा एवं मूल मानवाधिकारों की अवहेलना होती है।
- विधि के शासन का कमज़ोर होना:
- इससे विधि के शासन एवं सम्यक प्रक्रिया जैसे मूल सिद्धांतों पर प्रश्नचिह्न लगता है। विधि प्रवर्तन अधिकारियों पर विधि व्यवस्था बनाए रखने तथा लागू करने की ज़िम्मेदारी होती है ऐसे में हिंसा होने से न्याय, समानता तथा मानवाधिकारों की सुरक्षा जैसे मूल सिद्धांतों का खंडन होता है।
- दोष की पूर्वधारणा:
- इससे "दोषी साबित होने तक निर्दोष" को प्राप्त अधिकारों की अवहेलना होती है। किसी अपराध के लिये दोषी ठहराए जाने से पहले व्यक्तियों को यातना देने के साथ निष्पक्ष सुनवाई एवं उचित प्रक्रिया जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित करना अमानवीय है।
- व्यावसायिकता और ईमानदारी की अवहेलना:
- पुलिस अधिकारियों से उच्च नैतिक मानकों को बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है, जिसमें व्यावसायिकता, ईमानदारी और मानवाधिकारों का सम्मान करने की प्रतिबद्धता शामिल है। हिरासत में हिंसा से इन नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन होने के साथ इनकी पेशेवर प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगता है।
हिरासत में होने वाली हिंसा को रोकने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- विधिक प्रणालियों को मज़बूत बनाना:
- हिरासत में होने वाली हिंसा के आरोपों की त्वरित एवं निष्पक्ष जाँच सुनिश्चित होनी चाहिये।
- हिरासत में होने वाली हिंसा के आरोपों की त्वरित एवं निष्पक्ष जाँच सुनिश्चित होनी चाहिये।
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निष्पक्ष एवं त्वरित सुनवाई के माध्यम से अपराधियों को दंड देना चाहिये।
- पुलिस सुधार और संवेदनशीलता:
- मानव अधिकारों एवं गरिमा को बनाए रखने के क्रम में पुलिस प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सुधार किया जाना चाहिये। हिरासत में हिंसा के मामलों की प्रभावी निगरानी के साथ इनके समाधान हेतु निगरानी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
- विधि प्रवर्तन एजेंसियों की जवाबदेहिता, व्यावसायिकता तथा सहानुभूति संबंधी संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, प्रकाश सिंह मामले, 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में पुलिस सुधारों से संबंधित सात निर्देश जारी किये। इसमें राजनीतिकरण एवं जवाबदेहिता की कमी के साथ पुलिस कर्मियों के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाली प्रणालीगत कमज़ोरियों जैसे व्यापक मुद्दों पर प्रकाश डाला गया।
- नागरिक समाज और मानवाधिकार संगठनों का सशक्तीकरण:
- हिरासत में यातना से पीड़ित व्यक्तियों के लिये नागरिक समाज संगठनों द्वारा उनके लिये आवाज़ उठाने को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को मानवाधिकार उल्लंघन की कथित तिथि से एक वर्ष के पश्चात् भी किसी भी मामले की जाँच करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
- पीड़ित व्यक्तियों और उनके परिवार का समर्थन कर उन्हें विधिक सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
- निवारण और न्याय प्रदान के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार निकायों और संगठनों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।
नोट:
- वे मानवाधिकार और हिरासत में यातना पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय जिनका भारत हस्ताक्षरकर्त्ता है:
- यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय(UNCAT)
- मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR)
- नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा (ICCPR)
- सभी प्रकार के नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय।
- महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (CEDAW)
- बाल अधिकार अभिसमय
- दिव्यांग व्यक्ति अधिकार अभिसमय
- आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा (ICESCR)
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. अभिरक्षा में होने वाली मौतों से संबंधित नैतिक चिंताएँ क्या हैं? इनकी रोकथाम के लिये संभव उपायों की विवेचना कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, वित्त वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2011)
उपरोक्त में से कौन-सा/से "मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा" के अंतर्गत मानवाधिकार है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. यद्यपि मानवाधिकार आयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के सरंक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है, फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। उनकी संरचनात्मक एवं व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों के सुझाव दीजिये। (2021) |