भारत में मैंग्रोव | 02 Aug 2023
प्रिलिम्स के लिये:मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन, भारतीय राज्य वन रिपोर्ट 2021, सुंदरबन, रॉयल बंगाल टाइगर, इरावदी डॉल्फिन, मिष्टी (मैंग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हैबिटेट्स एंड टैंगेबल इनकम्स), सतत् झींगा पालन हेतु समुदाय-आधारित पहल (SAIME) मेन्स के लिये:मैंग्रोव का महत्त्व, भारत में मैंग्रोव से संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस ( International Day for the Conservation of the Mangrove Ecosystem) पर पश्चिम बंगाल, जो भारत के लगभग 40% मैंग्रोव वनों का आवास है, ने मैंग्रोव प्रबंधन प्रयासों को सुव्यवस्थित करने के लिये एक समर्पित 'मैंग्रोव सेल (Mangrove Cell)' स्थापित करने की योजना का अनावरण किया।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस:
- मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है तथा इसका उद्देश्य "एक अद्वितीय, विशेष और कमज़ोर पारिस्थितिकी तंत्र" के रूप में मैंग्रोव पारिस्थितिकी प्रणालियों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना तथा उनके स्थायी प्रबंधन, संरक्षण और उपयोग के लिये समाधान को बढ़ावा देना है।
- इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस को वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UN Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) के सामान्य सम्मेलन द्वारा अपनाया गया था।
भारत में मैंग्रोव की स्थिति:
- परिचय:
- मैंग्रोव उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक अद्वितीय तटीय पारिस्थितिकी तंत्र है। ये नमक-सहिष्णु वृक्षों तथा झाड़ियों के घने वन हैं जो अंतर्ज्वारीय क्षेत्रों- जहाँ भूमि और समुद्र मिलते हैं, में विकसित होते हैं।
- इन पारिस्थितिक तंत्रों की विशेषता खारे पानी, ज्वारीय विविधताओं और कीचड़युक्त, ऑक्सीजन-रहित मृदा जैसी कठोर परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता है।
- विशेषताएँ:
- मैंग्रोव प्रजनन के जरायुजता मोड (Viviparity Mode) को प्रदर्शित करते हैं, जहाँ बीज ज़मीन पर गिरने से पहले पेड़ के भीतर अंकुरित होते हैं।
- खारे पानी में अंकुरण की चुनौती को दूर करने के लिये जरायुजता (Viviparity) एक अनुकूली तंत्र है।
- कुछ मैंग्रोव प्रजातियाँ अपनी पत्तियों के माध्यम से अतिरिक्त नमक का स्राव करती हैं, जबकि अन्य अपनी जड़ों में नमक के अवशोषण को अवरुद्ध करती हैं।
- मैंग्रोव पादपों में स्तंभ मूल (Prop Roots) और श्वसन मूल (Pneumatophores) जैसी विशेष जड़ें होती हैं, जो जल प्रवाह को बाधित करने में सहायता करती हैं तथा चुनौतीपूर्ण ज्वारीय वातावरण में सहायता प्रदान करती हैं।
- मैंग्रोव प्रजनन के जरायुजता मोड (Viviparity Mode) को प्रदर्शित करते हैं, जहाँ बीज ज़मीन पर गिरने से पहले पेड़ के भीतर अंकुरित होते हैं।
- भारत में मैंग्रोव आवरण:
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट (Indian State Forest Report), 2021 के अनुसार, भारत में मैंग्रोव आवरण 4992 वर्ग किमी. है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है।
- पश्चिम बंगाल में सुंदरवन विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन क्षेत्र है। इसे यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- सुंदरबन, अंडमान, गुजरात के कच्छ और जामनगर क्षेत्रों में भी पर्याप्त मैंग्रोव आवरण क्षेत्र है।
- महत्त्व:
- जैव विविधता संरक्षण: मैंग्रोव विभिन्न प्रकार के पादपों एवं जीवों की प्रजातियों को आवास प्रदान करते हैं, जो विभिन्न सागरीय और स्थलीय जीवों के प्रजनन, संवर्द्धन एवं चरागाह के रूप में कार्य करते हैं।
- उदाहरण के लिये सुंदरबन में रॉयल बंगाल टाइगर, इरावदी डॉल्फिन, रीसस मकाक, तेंदुआ, छोटे भारतीय कस्तूरी बिलाव निवास करते हैं।
- तटीय संरक्षण: मैंग्रोव तटीय अपरदन, तूफान और सुनामी के प्रति प्राकृतिक बफर के रूप में कार्य करते हैं।
- उनकी सघन जड़ों और स्तंभ मूलों (prop root) का उलझा हुआ जाल तटीय अपरदन को रोकता है तथा लहरों एवं धाराओं के प्रभाव को कम करता है।
- तूफान एवं चक्रवात के दौरान मैंग्रोव उनकी ऊर्जा को अवशोषित और नष्ट कर सकते हैं, जिससे अंतर्देशीय क्षेत्रों तथा मानवीय बस्तियों को विनाशकारी क्षति से बचाया जा सकता है।
- कार्बन पृथक्करण: मैंग्रोव अत्यधिक कुशल कार्बन सिंक होते हैं, जो वायुमंडल से वृहद् मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अलग करते हैं और इसे अपने बायोमास एवं अवसाद के रूप में संग्रहीत करते हैं।
- मत्स्य पालन एवं आजीविका: मैंग्रोव मत्स्य और घोंघा के लिये संवर्द्धित क्षेत्र प्रदान करके मत्स्य उत्पादकता को बढ़ाने के साथ ही आजीविका तथा स्थानीय खाद्य सुरक्षा में योगदान कर मत्स्य पालन का समर्थन करते हैं।
- जल की गुणवत्ता में सुधार: मैंग्रोव प्राकृतिक फिल्टर (निस्यंदन) के रूप में कार्य करते हैं, जो तटवर्ती जल को खुले समुद्र में पहुँचने से पूर्व उसको प्रदूषित होने से रोकते हैं और उसके पोषक तत्त्वों को भी बचाते हैं।
- जल को शुद्ध करने में पोषक तत्त्वों की भूमिका समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने और कमज़ोर तटों के पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में सहायता करती है।
- पर्यटन और मनोरंजन: मैंग्रोव पर्यावरण-पर्यटन, बर्डवॉचिंग (पक्षी अवलोकन), कयाकिंग और प्रकृति-आधारित गतिविधियों जैसे मनोरंजक अवसर प्रदान करते हैं, जो स्थानीय समुदायों के लिये स्थायी आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
- जैव विविधता संरक्षण: मैंग्रोव विभिन्न प्रकार के पादपों एवं जीवों की प्रजातियों को आवास प्रदान करते हैं, जो विभिन्न सागरीय और स्थलीय जीवों के प्रजनन, संवर्द्धन एवं चरागाह के रूप में कार्य करते हैं।
- चुनौतियाँ:
- पर्यावास का विनाश और विखंडन: कृषि, शहरीकरण, जलीय कृषि और बुनियादी ढाँचे के विकास सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिये मैंग्रोव वनों का सफाया किया जाना।
- इस तरह की गतिविधियों से मैंग्रोव आवासों का विखंडन और क्षय होता है, जिससे उनके पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता में बाधा उत्पन्न होती है।
- मैंग्रोव को झींगा फार्मों (Shrimp Farms) और अन्य व्यावसायिक उपयोगों में परिवर्तित करना भी चिंता का विषय है।
- जलवायु परिवर्तन और समुद्र स्तर में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का बढ़ता स्तर मैंग्रोव के लिये एक गंभीर खतरा है।
- जलवायु परिवर्तन से चक्रवात और तूफान जैसी चरम मौसमी घटनाएँ भी सामने आती हैं, जो मैंग्रोव वनों को गंभीर नुकसान पहुँचा सकती हैं।
- प्रदूषण और संदूषण: कृषि अपवाह, औद्योगिक निर्वहन एवं अनुचित अपशिष्ट निपटान से होने वाला प्रदूषण मैंग्रोव आवासों को दूषित करता है।
- भारी धातुएँ, प्लास्टिक और अन्य प्रदूषक इन पारिस्थितिक तंत्रों की वनस्पतियों और जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
- एकीकृत प्रबंधन का अभाव: अक्सर मैंग्रोव को प्रवाल भित्तियों और सीग्रास बेड (Seagrass Bed) जैसे आसन्न पारिस्थितिक तंत्रों के साथ उनके अंतर्संबंध पर विचार किये बिना पृथक रूप से प्रबंधित किया जाता है।
- एकीकृत प्रबंधन दृष्टिकोण जिसके तहत व्यापक तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पर विचार किया जा सकता है, इसके प्रभावी संरक्षण के लिये आवश्यक है।
- पर्यावास का विनाश और विखंडन: कृषि, शहरीकरण, जलीय कृषि और बुनियादी ढाँचे के विकास सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिये मैंग्रोव वनों का सफाया किया जाना।
- मैंग्रोव संरक्षण से संबंधित सरकारी पहल:
आगे की राह
- ड्रोन निगरानी और AI: मैंग्रोव स्वास्थ्य की निगरानी करने और अतिक्रमण या अवैध कटाई जैसी गतिविधियों का पता लगाने के लिये उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले कैमरों और AI एल्गोरिदम से लैस ड्रोन तकनीक का उपयोग करना।
- यह दृष्टिकोण विशाल क्षेत्रों में कुशल और समय पर निगरानी करने में मदद कर सकता है।
- मैंग्रोव एडॉप्शन प्रोग्राम: एक सार्वजनिक-संचालित पहल शुरू करना जहाँ व्यक्ति, कॉर्पोरेट और संस्थान मैंग्रोव क्षेत्र के एक हिस्से को "एडॉप्ट" कर सकें।
- प्रतिभागी एडॉप्ट किये गए क्षेत्र के रखरखाव, सुरक्षा और बहाली, स्वामित्व एवं सामूहिक ज़िम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देने के लिये उत्तरदायी होंगे।
- मैंग्रोव अनुसंधान एवं विकास: मैंग्रोव के संबंध में नवीन अनुप्रयोगों के लिये अनुसंधान में निवेश करना, जैसे- प्रदूषित पानी को साफ करने के लिये फाइटोरेमेडिएशन या मैंग्रोव पौधों के अर्क से नई दवाएँ विकसित करना।
- इससे सतत् विकास के लिये मैंग्रोव के अद्वितीय गुणों का लाभ उठाने के नए तरीके सामने आ सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से किस एक में मैंग्रोव वन, सदापर्णी वन और पर्णपाती वनों का संयोजन है? (2015) (a) उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. मैंग्रोवों के रिक्तीकरण के कारणों पर चर्चा कीजिये और तटीय पारिस्थितिकी का अनुरक्षण करने में इनके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। (2019) |