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कृषि

उत्पादकता से परे कृषि का मूल्यांकन

  • 17 Oct 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

उच्च उपज, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) 2019-2021, हरित क्रांति, मोनोकल्चर कृषि, इंटरक्रॉपिंग, फसल चक्रण, बाजरा, परिशुद्ध खेती, जैविक कृषि, कृषि वानिकी, संरक्षण जुताई, जलवायु प्रतिरोधी फसल किस्में, मृदा की उर्वरता, सूक्ष्म पोषक तत्त्व

मेन्स के लिये:

घटते कृषि उत्पादन और जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर धारणीय कृषि की आवश्यकता।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

कृषि की सफलता के मापन के रूप में केवल उत्पादन के बजाय लोगों को पोषण देने, आजीविका को बनाए रखने तथा भविष्य की पीढ़ियों के लिये ग्रह की रक्षा करने की इसकी क्षमता को महत्त्व दिया जाना आवश्यक है।

कृषि में केवल उपज पर ध्यान केंद्रित करने से संबंधित मुद्दे क्या हैं?

  • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी: अधिक उपज देने वाली चावल और गेहूँ की किस्मों के विकास के कारण उनके पोषण स्तर में कमी आई है। 
    • ICAR के एक अध्ययन में पाया गया कि चावल में जिंक का स्तर 33% तथा आयरन का स्तर 27% तक कम हो गया है जिससे सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी की स्थिति और भी बदतर हो गई है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: खाद्यान्नों की पोषण गुणवत्ता में गिरावट, बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं से संबंधित है। 
    • NFHS-5 (2019-2021) के अनुसार पाँच वर्ष से कम आयु के 35.5% भारतीय बच्चे अविकसित और 19.3% कमजोर हैं तथा 67.1% एनीमिया से पीड़ित हैं।
    • उर्वरक पर निर्भरता: 1970 के दशक से उर्वरकों के संबंध में फसल की प्रतिक्रिया में 80% से अधिक की गिरावट आई है।
    • किसानों को समान उपज प्राप्त करने के लिये अधिक उर्वरकों का उपयोग करना पड़ता है, जिससे आय में आनुपातिक वृद्धि के बिना इनपुट लागत बढ़ जाती है।
    • वर्ष भर की फसल उत्पादकता को अनदेखी करना: केवल उपज को अधिकतम करने पर ध्यान केंद्रित करने से मौसमी फसल उत्पादन में मदद मिल सकती है लेकिन पूरे वर्ष उत्पादन को अधिकतम करना संभव नहीं है।
    • विभिन्न मौसमों के दौरान और विभिन्न मौसमों में फसलों के बीच होने वाले सहजीवी संबंधों पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है जिससे वर्ष भर में समग्र पोषण उत्पादन और लाभ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • जैवविविधता की हानि: केवल उपज पर ध्यान केंद्रित करने से प्रत्येक जगह केवल कुछ ही उच्च उपज देने वाली किस्मों के बीजों को बढ़ावा मिलता है, जिससे जैवविविधता की हानि होती है।
    • इससे कृषि प्रणाली कीटों, बीमारियों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो गई है।  
    • उदाहरण के लिये हरित क्रांति के बाद से भारत में चावल की लगभग 1,04,000 किस्में लुप्त हो चुकी हैं तथा केवल 6,000 पुरानी किस्में ही बची हैं। 
    • कृषि अनुकूलन में कमी: एकल कृषि पद्धतियाँ बाढ़, सूखे और हीट वेव जैसी घटनाओं के प्रति संवेदनशील होती हैं जिससे कृषि अनुकूलन में कमी आई है।
    • फसलों की कई स्थानीय किस्में चरम स्थितियों के प्रति अधिक अनुकूल साबित हुई हैं।
    • मोनोकल्चर नामक कृषि पद्धति का आशय एक ही फसल को एक बड़े क्षेत्र में कई फसली मौसमों तक उगाया जाना है।
    • पारिस्थितिकी संतुलन में व्यवधान: एकल फसल उत्पादन से अंतरफसल एवं फसल चक्रण के लाभों की अनदेखी होती है, जिससे दीर्घकालिक कृषि उत्पादकता और लाभप्रदता कम हो सकती है।
    • आंध्र प्रदेश में सब्जियों के साथ गन्ने की अंतरफसलीय खेती से पूरे वर्ष आय स्थिरता में सुधार हुआ है लेकिन एकल फसली खेती में इसकी अनदेखी होती है।
    • अधिक पोषक तत्त्वों वाली फसलों की उपेक्षा: उच्च उपज वाली चावल और गेहूँ की किस्मों को प्राथमिकता देने से अनुकूल एवं अधिक पोषक तत्त्वों वाली फसलों फसलों में गिरावट आई है। 
    • उदाहरण के लिये, मोटे अनाज जैसे बाजरा के अंतर्गत बोया गया क्षेत्र 1950 के दशक से 10 मिलियन हेक्टेयर कम हो गया है जबकि चावल और गेहूँ का हिस्सा क्रमशः 13 मिलियन हेक्टेयर और 21 मिलियन हेक्टेयर बढ़ गया है। 
    • आय में अस्थिरता: उच्च पैदावार के लिये एक ही फसल पर निर्भरता के परिणामस्वरूप आर्थिक अस्थिरता हो सकती है, विशेष रूप से तब जब फसल की कीमतों में उतार-चढ़ाव होता है या जलवायु परिस्थितियों के कारण पैदावार कम हो जाती है।

कृषि संकेतक क्या हैं?

  • कृषि संकेतकों से कृषि प्रणालियों के  स्वास्थ्य, प्रदर्शन और स्थिरता के बारे में जानकारी मिलती है।
    • ये उत्पादकता, आर्थिक व्यवहार्यता, पर्यावरणीय प्रभाव और सामाजिक कारकों सहित कृषि के विभिन्न पहलुओं का आकलन करने में मदद करते हैं। 
  • कुछ प्रमुख कृषि संकेतक:
    • फसल उपज: फसल उपज से तात्पर्य फसलों के लिये प्रयुक्त भूमि में प्रति इकाई उपज की मात्रा से है।
    • पशुपालन: इसका आशय पशु उत्पादों (जैसे, मांस या अंडे) हेतु पशुओं का पालन करना है।
    • इनपुट दक्षता: इसका तात्पर्य सीमित संसाधनों जैसे भूमि, जल, पोषक तत्त्व, ऊर्जा आदि का उपयोग करके उच्च मात्रा एवं गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों का उत्पादन करना है।
    • मृदा स्वास्थ्य: इसमें पोषक तत्त्वों की उपलब्धता, जड़ों को ऑक्सीजन की उपलब्धता, पोषक तत्त्व धारण क्षमता आदि शामिल हैं जिससे निर्धारित होता है कि मृदा कितनी अच्छी तरह कार्य कर सकती है। 
    • जल उपयोग दक्षता: यह जल की प्रत्येक इकाई द्वारा उत्पादित बायोमास या अनाज के रूप में संग्रहीत कार्बन की मात्रा को संदर्भित करता है।
    • पोषण: कृषि में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों जैसे लोहा, जस्ता, विटामिन A और फोलेट से समृद्ध खाद्य पदार्थों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: परिशुद्ध कृषि, जैविक कृषि, कृषि वानिकी और संरक्षण जुताई जैसी तकनीकों को अपनाया जाना चाहिये, जिससे उर्वरकों और जीवाश्म ईंधन जैसे इनपुट को कम करने में मदद मिलने के साथ उत्सर्जन में कमी आती है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन: रोपण की तिथियों को समायोजित करने, जलवायु प्रतिरोधी फसल किस्मों का चयन करने एवं कृषि वानिकी से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति कृषि अनुकूलन को बढ़ाया जा सकता है।

Sustainable_Agriculture

उत्पादकता से परे कृषि का मूल्यांकन करने से कृषि में किस प्रकार सुधार हो सकता है?

  • समग्र विकास: कृषि संकेतक केवल कृषि मंत्रालय द्वारा निर्धारित नहीं किये जाने चाहिये बल्कि स्वास्थ्य, कृषि, जल और पर्यावरण मंत्रालयों द्वारा सामूहिक रूप से निर्धारित किये जाने चाहिये।
    • इससे यह सुनिश्चित होगा कि कृषि नीतियों में लोक स्वास्थ्य, जल प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण जैसे विविध पहलुओं को ध्यान में रखा जाए। 
  • पोषण सुरक्षा: मात्रा (किलोग्राम/हेक्टेयर) के संदर्भ में उत्पादन को मापने की तुलना में प्रति हेक्टेयर पोषण उत्पादन को मापने से यह सुनिश्चित होगा कि खाद्य उत्पादन से प्रत्यक्ष रूप से मानव कल्याण में योगदान मिल रहा है। 
    • इससे न केवल मात्रा, बल्कि भोजन की गुणवत्ता को प्राथमिकता देकर कुपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी जैसे गंभीर मुद्दों का समाधान हो सकता है।
  • मृदा स्वास्थ्य और जैविक गतिविधि: मृदा में जैविक संतुलन और मृदा कार्बन जैसे मापदंड दीर्घकालिक मृदा उर्वरता के महत्त्वपूर्ण संकेतक हैं।
    • स्वस्थ मृदा को बनाए रखने से रासायनिक इनपुट पर अत्यधिक निर्भरता के बिना निरंतर उत्पादकता सुनिश्चित होती है। उदाहरण के लिये, मृदा स्वास्थ्य कार्ड
  • जल-उपयोग दक्षता: जल दक्षता में सुधार से इसके संरक्षण में मदद मिलती है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रति कृषि अधिक अनुकूल बनती है।
    • तेलंगाना का AI-संचालित 'सागु-बागु' पायलट यह प्रदर्शित करता है कि किस प्रकार प्रौद्योगिकी सिंचाई को अनुकूलित कर सकती है और जल-उपयोग दक्षता में सुधार कर सकती है।
  • फसल विविधीकरण: किसी क्षेत्र में एक से अधिक फसलें उगाने से यह सुनिश्चित होता है कि कोई क्षेत्र एक ही फसल पर अत्यधिक निर्भर न हो जाए, जिससे कीटों, बीमारियों और मूल्य में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है।
    • फसलों की क्षेत्रीय विविधता का आकलन करने के लिये लैंडस्केप डायवर्सिटी स्कोर विकसित किया जाना चाहिये।
  • आय विविधीकरण: फसल विविधीकरण, पशुपालन और अंतरफसल जैसे आय विविधीकरण के माध्यम से आर्थिक रूप से अधिक लचीली कृषि प्रणालियों का निर्माण हो सकता है।

निष्कर्ष

यील्ड/उपज-केंद्रित दृष्टिकोण से हटकर व्यापक कृषि ढाँचे की ओर जाने से पोषण सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है, मिट्टी और जल स्वास्थ्य में सुधार होता है तथा जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है। विविध संकेतकों को एकीकृत करके एवं मंत्रालयों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर, भारत एक अधिक लचीली व सतत् कृषि प्रणाली बना सकता है जो लोगों को पोषण प्रदान करते हुए भावी पीढ़ियों के लिये पर्यावरण की रक्षा करेगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय कृषि में पोषण गुणवत्ता की तुलना में यील्ड को प्राथमिकता देने के परिणामों पर चर्चा कीजिये। यील्ड के अलावा कृषि में कैसे सुधार हो सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: 'गहन कदन्न संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा के लिये पहल (Initiative for Nutritional Security through Intensive Millets Promotion)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है/हैं? (2016)

  1. इस पहल का उद्देश्य उन्नत उत्पादन और कटाई-उपरांत प्रौद्योगिकियों को निर्देशित करना है, एवं समूह उपागम (क्लस्टर अप्रोच) के साथ एकीकृत रीति से तथा मूल्य वर्द्धन तकनीकों को निर्देशित करना है।
  2. इस योजना में निर्धन, लघु, सीमांत एवं जनजातीय किसानों की बड़ी हितधारिता (स्टेक) है।
  3. इस योजना का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य वाणिज्यिक फसलों के किसानों को, पोषकों के अत्यावश्यक निवेशों के और लघु सिंचाई उपकरणों के नि: शुल्क किट प्रदान कर, कदन्न की खेती की ओर प्रोत्साहित करना है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न: एकीकृत कृषि प्रणाली (आई. एफ. एस.) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019)

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