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कृषि

खरपतवार और फसल उत्पादकता की हानि

  • 11 Oct 2024
  • 13 min read

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

खरीफ फसलें, रबी फसलें, कृषि विज्ञान केंद्र, शाकनाशी, मशीनीकरण, खरपतवार प्रबंधन, जैविक और धारणीय कृषि पद्धतियाँ, परिशुद्ध  कृषि। 

मुख्य परीक्षा के लिये:

खरपतवार नियंत्रण रणनीतियाँ और खरपतवार समस्याओं को कम करने के लिये सरकारी पहल।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारतीय बीज उद्योग महासंघ (FSII) के एक अध्ययन के अनुसार खरपतवार के कारण प्रत्येक वर्ष फसल उत्पादकता में 92000 करोड़ रुपये (11 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की हानि हो रही है।

  • रिपोर्ट में इस बढ़ती समस्या को कम करने के लिये प्रौद्योगिकी-आधारित खरपतवार नियंत्रण रणनीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

अध्ययन के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • उपज हानि के आँकड़े: भारत भर में खरपतवार के कारण खरीफ फसलों में लगभग 25-26% तथा रबी फसलों में 18-25% की उत्पादकता हानि होती है।
  • विविध फसलें और क्षेत्र: अध्ययन में 11 राज्यों के 30 ज़िलों की सात प्रमुख फसलों - चावल, गेहूँ, मक्का, कपास, गन्ना, सोयाबीन और सरसों को शामिल किया गया।
  • हितधारकों की भागीदारी: शोधकर्त्ताओं ने 3,200 किसानों, 300 डीलरों के साथ-साथ कृषि विज्ञान केंद्रों एवं कृषि विभाग के अधिकारियों का साक्षात्कार लिया।
  • औसत व्यय: खरपतवार नियंत्रण पर औसत व्यय 3,700 रुपये से 7,900 रुपये प्रति एकड़ तक हो जाता है।
  • खरपतवार प्रबंधन रणनीतियाँ: अध्ययन में खरपतवारनाशकों, मशीनीकरण, फसल चक्रण, आवरण फसल और जैविक नियंत्रण की सिफारिश की गई है, जिससे पारंपरिक तरीकों की तुलना में लागत में 40-60% की कमी आ सकती है।

भारतीय बीज उद्योग महासंघ (FSII)

  • FSII एक 40 सदस्यीय संघ है जो भारत में अनुसंधान एवं विकास-संचालित पादप विज्ञान उद्योग का प्रतिनिधित्व करता है।
  • यह देश के कृषि क्षेत्र को सहायता प्रदान करते हुए खाद्य, चारा और फाइबर के लिये उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के उत्पादन में संलग्न है।
  • FSII प्रौद्योगिकी-संचालित कृषि समाधानों को बढ़ावा देने के साथ नुकसानों को कम करते हुए कृषि उत्पादकता में सुधार में भूमिका निभाता है।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय बीज संघ (ISF) और एशिया एवं प्रशांत बीज संघ (APSA) जैसे अंतर्राष्ट्रीय निकायों से संबद्ध है, जिससे इसकी वैश्विक पहुँच और समन्वय में वृद्धि हो रही है।

खरपतवार क्या हैं?

  • परिचय: 
    • खरपतवार आमतौर पर ऐसे अवांछित पौधे होते हैं जो कृषि या पारिस्थितिकी संतुलन को बाधित करते हैं। जैसे नट ग्रास, पोर्टुलाका, कॉमन काउच और ल्यूकेना।
  • विशेषताएँ:
    • ये फसलों और अन्य वनस्पतियों के साथ आक्रामक रूप से प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
    • खरपतवार विविध पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति अनुकूलन क्षमता प्रदर्शित करते हैं, जिससे ये विभिन्न परिस्थितियों में विकसित हो जाते हैं।
    • खरपतवार की वृद्धि तेजी से होती है (मुख्य रूप से बीजों, प्रकंदों या अन्य वनस्पति संरचनाओं के माध्यम से), जिससे उनका प्रसार आसान हो जाता है।

खरपतवारों से क्या चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं?

  • कृषि उत्पादकता में कमी: लागत के अलावा खरपतवार फसल हानि का प्रमुख कारण है, जो प्रारंभिक जुताई चरण से लेकर कटाई के बाद के चरण तक संसाधनों हेतु प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
    • खरपतवार आवश्यक संसाधनों जैसे जल, पोषक तत्त्व, सूर्य का प्रकाश और स्थान के लिये फसलों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप फसल की उत्पादकता कम हो जाती है।
  • कृषि लागत में वृद्धि: खरपतवार प्रबंधन के लिये श्रम, खरपतवारनाशकों और अन्य नियंत्रण विधियों के संदर्भ में काफी निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे कृषि कार्यों का समग्र खर्च बढ़ सकता है।
  • शाकनाशी प्रतिरोध: शाकनाशियों के निरंतर उपयोग से शाकनाशी-प्रतिरोधी खरपतवार प्रजातियों का विकास होता है। इससे नियंत्रण प्रयास जटिल हो जाते हैं और इन्हें प्रबंधित करने के लिये वैकल्पिक या अधिक महंगे तरीकों का उपयोग करना आवश्यक हो जाता है।
  • मृदा स्वास्थ्य में असंतुलन: कुछ खरपतवार प्रजातियाँ पोषक तत्वों के संतुलन को बदलकर या मृदा अपरदन को बढ़ाकर मृदा की गुणवत्ता को खराब कर सकती हैं। उनकी आक्रामक जड़ प्रणालियाँ अन्य पौधों की वृद्धि में भी बाधा डाल सकती हैं, जिससे दीर्घकालिक मृदा क्षरण हो सकता है।
  • कीट और रोग का बढ़ता जोखिम: खरपतवार अक्सर विभिन्न कीटों और रोगाणुओं के लिये मेजबान का कार्य करते हैं तथा कीटों एवं रोगों के लिये प्रजनन आधार बन जाते हैं, जिससे कृषि संबंधी चुनौतियाँ और भी बढ़ जाती हैं।

खरपतवार के क्या लाभ हैं?

  • वन्यजीवों के लिये आवास और भोजन: खरपतवार विभिन्न कीटों, पक्षियों और छोटे जीवों के लिये आवास और भोजन का स्रोत बनते हैं। ये द्वितीयक प्रजातियों के साथ पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करके जैवविविधता को बनाए रखने में भूमिका निभाते हैं।
  • औषधीय और पोषण संबंधी उपयोग: कुछ खरपतवारों में औषधीय गुण होते हैं या पारंपरिक चिकित्सा में प्राकृतिक उपचार के रूप में भी इनका उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये, डंडेलियन और नेटल जैसे पौधे अपने स्वास्थ्य लाभों के लिये जाने जाते हैं। कुछ खरपतवार खाने योग्य भी होते हैं और भोजन के रूप में उपयोग किये जाने पर पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं।
  • प्राकृतिक परागण आकर्षित करने वाले: कई खरपतवारों से ऐसे फूल उत्पन्न होते हैं जो मधुमक्खियों, तितलियों और अन्य लाभकारी कीटों जैसे परागणकों को आकर्षित करते हैं। परागणकर्त्ताओं की आबादी का समर्थन करके, खरपतवार अप्रत्यक्ष रूप से आस-पास की फसलों और पौधों की उत्पादकता बढ़ाते हैं।

प्रभावी खरपतवार प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • खरपतवार प्रतिरोध:
    • खरपतवारनाशकों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण खरपतवारनाशक प्रतिरोधी खरपतवारों का विकास हो सकता है, जिससे समय के साथ उन्हें नियंत्रित करना अधिक कठिन हो जाता है।
  • श्रम की कमी:
    • कृषि श्रम शक्ति में कमी आने तथा गाँवों से शहरों की ओर पलायन बढ़ने के कारण, हाथ से निराई करना कम व्यवहार्य होता जा रहा है।
  • ऊँची कीमतें:
    • यद्यपि खरपतवारनाशकों और मशीनीकरण जैसे तकनीकी समाधान लागत को कम कर सकते हैं, लेकिन इन प्रौद्योगिकियों के लिये प्रारंभिक निवेश छोटे स्तर के किसानों के लिये निषेधात्मक हो सकता है।
  • पर्यावरण एवं स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ:
    • रासायनिक खरपतवारनाशकों के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरण क्षरण, जल प्रदूषण, तथा किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिये संभावित स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
  • जैविक और प्राकृतिक कृषि के साथ एकीकरण:

आगे की राह

  • तकनीकी एकीकरण: अध्ययन में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये एक व्यापक, प्रौद्योगिकी-संचालित खरपतवार प्रबंधन ढाँचे की सिफारिश की गई है। 
    • उदाहरण के लिये डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) में बीजों को सीधे खेतों में डाला जाता है, जिससे भूजल को संरक्षित करने में सहायता मिलती है। इसी प्रकार जीरो-टिलेज (ZT) गेहूँ तकनीक में मृदा को विच्छेदित कियेबगैर बीज बोना शामिल है।
  • सार्वजनिक-निजी सहयोग: विशेषज्ञ खरपतवार से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिये सार्वजनिक और निज़ी क्षेत्रों के बीच सहयोग की आवश्यकता पर बल देते हैं।
  • नवीन समाधान: खरपतवारनाशक-सहिष्णु गुणों को अपनाना तथा परिशुद्ध कृषि को श्रम की कमी तथा संसाधन की कमी को दूर करने के लिये प्रमुख रणनीति के रूप में देखा जाता है।
  • फसल चक्रण: यह एक ऐसी पद्धति है, जिसमें एक ही क्षेत्र में विभिन्न मौसमों में विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाया जाता है तथा इससे खरपतवार का प्रकोप कम होता है।
  • समग्र रूपरेखा: कृषि मंत्रालय के अनुसार, पारंपरिक, यांत्रिक, रासायनिक और जैविक कृषि समाधानों को मिलाकर एक एकीकृत दृष्टिकोण प्रभावी खरपतवार प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: प्रभावी खरपतवार प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये साथ ही संभावित समाधान बताइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक: 

प्रश्न. निम्नलिखित प्रकार के जीवों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. जीवाणु
  2. कवक
  3. फूलों के पौधे

उपरोक्त में से किस प्रकार के जीवों की कुछ प्रजातियों को जैव कीटनाशकों के रूप में कार्यरत हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

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