शासन व्यवस्था
चुनावों पर सीमित व्यय
- 30 Oct 2024
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:गैर-लाभकारी संगठन, लोकसभा, आम चुनाव, प्रतिनिधि सभा, राष्ट्रीय पार्टी, राज्य पार्टियाँ, भारतीय निर्वाचन आयोग, इंद्रजीत गुप्ता समिति, विधि आयोग, चुनावों के लिये राज्य वित्तपोषण। मेन्स के लिये:चुनावों पर अत्यधिक व्यय, उनके प्रभाव और उनसे निपटने की पद्धत। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (CMS) के अनुसार, वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के लिये विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा कुल व्यय लगभग 1,00,000 करोड़ रुपए था।
- CMS एक गैर-लाभकारी संगठन है जो उत्तरदायी शासन और समतामूलक विकास की दिशा में कार्य करता है।
भारत में चुनाव व्यय की स्थिति क्या है?
- उम्मीदवारों के लिये चुनाव व्यय सीमा: बड़े राज्यों में लोकसभा सीटों के लिये उम्मीदवारों के लिये चुनाव व्यय सीमा 95 लाख रुपए और विधानसभा सीटों के लिये 40 लाख रुपए तथा छोटे राज्यों में क्रमशः 75 लाख रुपए तथा 28 लाख रुपए निर्धारित की गई है।
- राजनीतिक दलों का व्यय: वर्तमान में चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों पर कोई व्यय सीमा नहीं लगाई गई है, जिससे उन्हें अप्रतिबंधित व्यय करने की अनुमति मिलती है।
- वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भारत में एक वोट की कीमत लगभग 1,400 रुपए थी और कुल व्यय लगभग 1 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया था।
- योजनाओं को बढ़ावा देना: सरकारी विज्ञापन, विशेषकर चुनावों से पहले, अक्सर सत्तारूढ़ पार्टी के लिये अभियान के रूप में कार्य करते हैं।
- केंद्र सरकार ने वर्ष 2018-19 और वर्ष 2022-23 के बीच विज्ञापनों पर 3,020 करोड़ रुपए का व्यय किया, जिसमें चुनावी वर्षों में अधिक व्यय वर्ष 2018-19 में 1,179 करोड़ रुपए जबकि वर्ष 2022-23 में 408 करोड़ रुपए रहा।
- पिछले चुनावों से तुलना: वर्ष 1951-52 में प्रथम आम चुनावों के दौरान उम्मीदवारों ने शुरू में केवल 25,000 रुपये का व्यय किया, जो अब बढ़कर 75-95 लाख रुपए (300 गुना वृद्धि) हो गया।
- इसके अतिरिक्त, कुल चुनाव व्यय वर्ष 1998 में 9,000 करोड़ रुपए से छह गुना बढ़कर वर्ष 2024 में लगभग 1,00,000 करोड़ रुपए हो गया।
- पारदर्शिता के उपाय: राजनीतिक दलों को 20,000 रुपए से अधिक के दान के लिये भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) को वार्षिक योगदान रिपोर्ट प्रस्तुत करना आवश्यक है।
- उन्हें चुनाव के बाद 75 दिनों के भीतर वार्षिक लेखापरीक्षित लेखा (AAA) और चुनाव व्यय रिपोर्ट भी प्रस्तुत करनी होगी।
- वित्तपोषण स्रोत: राजनीतिक वित्तपोषण का अधिकांश हिस्सा कॉर्पोरेट संस्थाओं और व्यवसायों से आता है, जिससे दानदाताओं तथा राजनेताओं के बीच मज़बूत गठजोड़ बनता है।
अन्य लोकतंत्रों में चुनाव व्यय की स्थिति
- संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका में चुनाव वित्तपोषण मुख्य रूप से व्यक्तियों, निगमों और राजनीतिक कार्रवाई समितियों (PAC) द्वारा दिये गए सीमित योगदान से प्राप्त होता है।
- अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों ने सुपर PAC के उद्भव को सुगम बना दिया है, जो राजनीतिक प्रचार पर असीमित राशि व्यय कर सकते हैं।
- यूनाइटेड किंगडम: चुनाव लड़ते समय राजनीतिक दलों को विशिष्ट व्यय सीमा का सामना करना पड़ता है।
- प्रत्येक पार्टी को प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में £ 54,010 व्यय करने की अनुमति है, जिससे सभी निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ने वाली पार्टियों के लिये कुल व्यय सीमा £ 35 मिलियन हो जाती है।
- लंबे अभियान चरण (हाउस ऑफ कॉमन्स का कार्यकाल समाप्त होने से पाँच महीने पहले) के दौरान उम्मीदवार प्रति निर्वाचन क्षेत्र £46,000 से £49,000 तक व्यय कर सकते हैं। लघु अभियान अवधि (चुनाव की घोषणा के बाद) में व्यय प्रति निर्वाचन क्षेत्र £17,000 से £20,000 तक सीमित है।
भारत में चुनाव व्यय का नियमन किस प्रकार किया जाता है?
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951:
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 77 के अनुसार उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने के दिन से लेकर चुनाव के दिन तक अपने अभियान से संबंधित सभी खर्चों का विस्तृत और सटीक लेखा रखना आवश्यक है।
- धारा 78 के अनुसार प्रत्येक उम्मीदवार को परिणाम घोषित होने के 30 दिनों के अंदर अपना चुनाव व्यय लेखा ज़िला निर्वाचन अधिकारी को प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
- कंपनी अधिनियम, 2013: कम से कम तीन वर्षों से परिचालनरत कोई गैर-सरकारी कंपनी, पिछले तीन वर्षों के अपने औसत शुद्ध लाभ का 7.5% तक का अंशदान लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दे सकती है।
- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010: भारत में राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और चुनाव-संबंधी संस्थाओं को विदेशी अंशदान प्राप्त करने पर प्रतिबंध है।
- इसमें धन, उपहार, दान और विदेशी स्रोतों से प्राप्त कोई भी वित्तीय सहायता शामिल है।
भारत में चुनाव व्यय से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- विनियमन का अभाव: अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ब्राज़ील सहित 65 देशों के विपरीत भारत में चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों के खर्च पर कोई सीमा नहीं है।
- इससे असमान स्थिति पैदा होती है तथा क्षेत्रीय और स्वतंत्र उम्मीदवारों की तुलना में अच्छी तरह से वित्तपोषित राष्ट्रीय दलों को अधिक लाभ मिलता है।
- मीडिया विज्ञापन: राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दल अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा मीडिया विज्ञापनों पर खर्च करते हैं, जो रैलियों जैसी जमीनी गतिविधियों पर होने वाले खर्च से कहीं अधिक होता है।
- इससे कम वित्तीय संसाधन वाले उम्मीदवार हाशिये पर बने रहते हैं।
- असंगत डिजिटल विज्ञापन: गूगल और मेटा (फेसबुक) जैसे डिजिटल प्लेटफाॅर्मों के बढ़ते प्रभाव से खर्च के अंतराल में वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय दल, राज्य दलों की तुलना में डिजिटल विज्ञापन में काफी अधिक निवेश कर रहे हैं।
- यह प्रवृत्ति मौजूदा असमानताओं को बढ़ाने के साथ छोटे दलों और उम्मीदवारों के प्रभाव को कम करती है।
- अतिरिक्त धन खर्च का जोखिम: तीसरे पक्ष के प्रचारकों हेतु विनियमन की अनुपस्थिति से चुनावी प्रक्रिया में अतिरिक्त धन खर्च संबंधी चिंताएँ बनी रहती हैं।
- इसमें परस्पर लाभ प्राप्ति की व्यवस्था का जोखिम बढ़ जाता है, जहाँ वित्तीय योगदान उचित जवाबदेही के बिना राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करता है।
चुनावों के व्यय में क्या सुधार आवश्यक हैं?
- व्यय की उच्चतम सीमा: 2016 में ECI की 'प्रस्तावित चुनाव सुधार' रिपोर्ट के अनुसार, भारत में राजनीतिक दलों के लिये व्यय की सीमा निर्धारित की जानी चाहिये।
- इससे अधिक न्यायसंगत प्रतिस्पर्द्धा का अवसर सुनिश्चित होगा, जिससे दलों को वित्तीय प्रबलता के स्थान पर विचारों के आधार पर प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
- तृतीय-पक्ष प्रचारकों का विनियमन: भारत को ऑस्ट्रेलिया की तरह तृतीय-पक्ष प्रचारकों के लिये औपचारिक पंजीकरण और प्रकटीकरण आवश्यकताओं का क्रियान्वन करना चाहिये।
- चुनावों के लिये राज्य द्वारा वित्तपोषण: इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) और विधि आयोग की रिपोर्ट (1999) में चुनावों के लिये राज्य द्वारा वित्तपोषण की सिफारिश की गई, जिसके तहत सरकार मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों द्वारा नामित प्रत्याशियों के चुनाव व्यय का आंशिक रूप से वित्तपोषण करने की अनुशंसा की गई थी।
- सरकारी विज्ञापनों पर प्रतिबंध : सत्तारूढ़ पार्टी की बढ़त को कम करने और प्रत्याशियों के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के लिये चुनाव से पूर्व छह माह की अवधि के दौरान सरकारी विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।
- पार्टी वित्तीय सहायता: विधान में संशोधन किया जाना चाहिये ताकि स्पष्ट रूप से प्रावधान किया जा सके कि किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने प्रत्याशी को दी जाने वाली 'वित्तीय सहायता' भी प्रत्याशी की निर्धारित चुनावी व्यय सीमा के भीतर होनी चाहिये।
- इससे उन कमियों का निवारण किया जा सकेगा जिनका प्रयोग कर राजनीतिक दल व्यय संबंधी नियमों से बचते हुए अपना व्यय असीमित करते हैं।
- व्यापक चुनावी निगरानी: चुनावी निगरानी हेतु एक स्वतंत्र निकाय की स्थापना करने से कैम्पेन व्यय की जवाबदेही में सुधार किया जा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में चुनावों के व्यय से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इन चुनौतियों का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिये भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017) |