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गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी अंशदान पर सख्ती

  • 07 Sep 2020
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

 गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ), विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम

मेन्स के लिये:

विदेशी अंशदान का दुरुपयोग और इसका नियंत्रण

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा ‘विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम’ (Foreign Contribution Regulation Act -FCRA) के तहत 6 ‘गैर-सरकारी संस्थाओं’ (Non-Governmental Organizations or NGOs) का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2020 में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जिन 6 NGOs के लाइसेंस रद्द किये गए हैं उनमें से 4 ईसाई संगठन (Christian Associations) हैं।
  • इनमें से कई संगठनों के दानकर्त्ताओं के प्रभाव के संदर्भ में चिंताएँ व्यक्त की गई थी।
  • इससे पहले वर्ष 2016 में भी FCRA के प्रावधानों के उल्लंघन के कारण लगभग 20,000 गैर-सरकारी संस्थाओं के लाइसेंस रद्द कर दिये गए थे। 
  • ध्यातव्य है कि गैर-सरकारी संस्थाओं को विदेशी चंदा/अंशदान प्राप्त करने के लिये FCRA लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य होता है।
  • वर्तमान में देश में 22,457 NGOs या अन्य संगठन FCRA के तहत पंजीकृत हैं, जबकि वर्ष 2012 से अब तक 20,674 NGOs का FCRA लाइसेंस रद्द किया जा चुका है और 6,702 NGOs के FCRA लाइसेंस नवीनीकरण के अभाव में समाप्त को गए। 

प्रभावित संस्थाएँ और पृष्ठभूमि:

  • एक्रियोसोकुलिस नॉर्थ वेस्टर्न गॉसनर इवैंजेलिकल (Ecreosoculis North Western Gossner Evangelical)- झारखंड 
  • एवैंजेलिकल चर्चेस एसोसिएशन (Evangelical Churches Association- ECA)- मणिपुर  (वर्ष 1952 में स्थापित, यह एक वेल्श प्रेस्बिटेरियन मिशनरी से संबंधित है, जिसने 1910 में भारत का दौरा किया था। )
  • नॉर्दर्न इवैंजेलिकल लूथरन चर्च (Northern Evangelical Lutheran Church)- झारखंड (वर्ष 1987 में स्थापित, यह लूथरन परंपरा पर आधारित विश्व के 99 देशों में फैले 148 चर्चों के समूह का हिस्सा है।)
  • न्यू लाइफ फैलोशिप एसोसिएशन (New Life Fellowship Association- NLFA)- मुंबई (वर्ष 1964 में न्यूजीलैंड के न्यू लाइफ चर्च से मिशनरियों के आगमन के बाद इस संस्था ने भारत में 1960 के दशक में कार्य करना प्रारंभ किया।)
    • गृह मंत्रालय द्वारा ‘राजनंदगाँव लेप्रोसी हॉस्पिटल एंड क्लीनिक’ (Rajnandgaon Leprosy Hospital and Clinics) और ‘डॉन बॉस्को ट्राइबल डेवलपमेंट सोसाइटी’ नामक दो अन्य NGOs के FCRA लाइसेंस को रद्द कर दिया गया है।

FCRA लाइसेंस निरस्तीकरण से जुड़े पूर्व मामले:

  • वर्ष 2017 में गृह मंत्रालय द्वारा अमेरिका के ‘कंपैशन इंटरनेशनल’ (Compassion International) नामक NGO को धार्मिक मतांतरण को बढ़ावा देने से संबंधित गतिविधियों में शामिल पाए जाने के बाद संस्था को भारत में अपनी कार्यक्रमों को बंद करना पड़ा था।
  • तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव के अनुसार,  ‘कंपैशन इंटरनेशनल’ द्वारा  FCRA के दिशा निर्देशों का सही से पालन नहीं किया जा रहा था। 
  • इसके अतिरिक्त वर्ष 2017 में ही ‘ब्लूमबर्ग फिलैंथ्रपीज़‘ (Bloomberg Philanthropies) नामक अमेरिकी धर्मार्थ संगठन से अनुदान प्राप्त करने वाले दो अन्य NGOs के FCRA लाइसेंस के नवीनीकरण के आवेदन को रद्द कर दिया गया था। 
    • ‘ब्लूमबर्ग फिलैंथ्रपीज़‘ न्यूयॉर्क के पूर्व मेयर और अरबपति माइकल ब्लूमबर्ग द्वारा स्थापित एक धर्मार्थ संस्थान है। 
  • गौरतलब है कि वर्ष 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री और न्यूयॉर्क के पूर्व मेयर माइकल ब्लूमबर्ग ने ‘ब्लूमबर्ग फिलैंथ्रपीज़‘ की सहायता से भारत में ‘स्मार्ट सिटीज़’ (Smart Cities) के निर्माण हेतु एक संयुक्त पहल की घोषणा की थी।

कारण:

  • नवंबर 2019 में कुछ हिंदू समूहों ने NLFA पर धार्मिक मतांतरण को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था और इस संदर्भ में एक पुलिस शिकायत भी दायर की थी।
  • गृह मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, 10 फरवरी 2020 को NLFA के FCRA लाइसेंस को रद्द कर दिया गया था।

भारत में NGOs से जुड़ी समस्याएँ:

  • वर्ष 2015 में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) द्वारा सर्वोच्च न्यायलय को दी गई जानकारी के अनुसार, भारत में सक्रिय कुल NGOs की संख्या लगभग 31 लाख बताई गई थी।
  • देश में बड़ी संख्या में NGOs के कार्यों और वित्तीय प्रबंधन के संदर्भ में पारदर्शिता का अभाव पाया गया है।
  • वर्ष 2015 में देश में सक्रिय कुल NGOs में से 10% से भी कम ने ही अपनी बैलेंस शीट और आय-व्यय विवरण को जमा करने से संबंधी अनिवार्यताओं को पूरा किया था। 
  • वर्ष 2017 में अनेक NGOs को लगातार 5 वर्षो तक अपने वार्षिक रिटर्न न दाखिल करने के कारण नोटिस जारी किया गया था।

गैर-सरकारी संस्था (Non-Governmental Organization or NGO):

  • गैर-लाभकारी या गैर-सरकारी संस्थान या एनजीओ (NGO) से आशय ऐसी संस्थाओं से है जो न तो सरकार का हिस्सा होती हैं और न ही वे अन्य व्यावसायिक संस्थानों की तरह लाभ के उद्देश्य से कार्य करती हैं। 
  • भारत में ‘धार्मिक विन्यास अधिनियम, 1863’, सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860, भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882’ आदि के तहत NGOs का पंजीकरण किया जाता है।

विदेशी अंशदान:  

  • विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत किसी व्यक्ति/संस्था/कंपनी आदि  द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसी विदेशी स्रोत से उपहार के रूप में प्राप्त कोई वस्तु, मुद्रा या प्रतिभूतियों (जिसका मूल्य उस तिथि को 25,000 रुपए से अधिक हो) को विदेशी अंशदान के रूप में परिभाषित किया गया है।

‘विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम’

(Foreign Contribution Regulation Act -FCRA):  

  • किसी विदेशी नागरिक या संस्था द्वारा भारत में किसी NGO या अन्य संस्थाओं को दिये गए अंशदान को विनियमित करने के लिये वर्ष 1976 में विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम लागू किया गया।
  • वर्ष 2010 में इस अधिनियम में बड़े पैमाने पर सुधार किये गए।
  • भारत में कार्यरत NGOs को विदेशी अंशदान प्राप्त करने के लिये FCRA के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय में पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है।
  • इस अधिनियम के तहत NGOs का FCRA लाइसेंस पाँच वर्ष के लिये वैध होता है।
  • FCRA के तहत पंजीकरण के बगैर कोई भी NGO या अन्य संस्थान 25,000 रुपए से अधिक की आर्थिक सहायता या कोई अन्य विदेशी अंशदान नहीं स्वीकार कर सकते।  

आगे की राह :

  • NGOs समाज में सरकार और निजी क्षेत्र की पहुँच से दूर रह गए लोगों तक मूलभूत सुविधाएँ पहुंचाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • ऐसे में सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि किसी भी सामाजिक संस्था पर राजनीतिक दुर्भावना या कानूनों के दुरुपयोग के माध्यम से गलत कार्रवाई न की जाए।   
  • हाल के वर्षों में देश में NGOs की कार्यशैली से संबंधित अनियमितताओं को देखते हुए देश में NGOs के पंजीकरण के नियमों में आवश्यक सुधार किये जाने चाहिये। 
  • NGOs के अंशदान और वित्तीय व्यय के विवरण की नियमित जाँच की जानी चाहिये।

स्रोत:  द हिंदू 

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