शासन व्यवस्था
राज्यों के चुनावी वित्तपोषण पर चर्चा : पारदर्शी चुनाव की राह
- 20 Nov 2023
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यह एडिटोरियल 17/11/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Should elections be state funded?” लेख पर आधारित है। इसमें चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता के अभाव के बारे में चर्चा की गई है और चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बढ़ाने के संभावित समाधान के रूप में राज्य वित्तपोषण की संभावना पर विचार किया गया है।
प्रिलिम्स के लिये-राज्यों द्वारा चुनावी वित्तपोषण, भारत का मुख्य न्यायाधीश, इंद्रजीत गुप्ता समिति, भारत का विधि आयोग, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग, राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग, भारत निर्वाचन आयोग। मेन्स के लिये-राज्यों द्वारा चुनावी वित्तपोषण, राज्यों द्वारा चुनावी वित्तपोषण पर गठित विभिन्न आयोग, राज्यों द्वारा चुनावी वित्तपोषण के पक्ष में तर्क, राज्यों द्वारा चुनावी वित्तपोषण के विरुद्ध तर्क, आगे की राह। |
भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली एक संविधान पीठ ने हाल ही में अपनी सुनवाई पूरी की जहाँ चुनावी बॉण्ड योजना की वैधता को चुनौती दी गई थी। इस मामले में मुख्य रूप से मतदाताओं के सूचना के अधिकार और दानदाताओं की गोपनीयता के परस्पर विरोधी पहलुओं पर विचार किया गया।
चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता की आवश्यकता इन कार्यवाहियों में केंद्रीय चिंता का विषय रही। इस संदर्भ में, चुनावों के राज्य वित्तपोषण या सार्वजनिक वित्तपोषण पर पुनर्विचार का विषय एक बार फिर सामने आया है।
चुनावों का राज्य वित्तपोषण क्या है?
- परिचय:
- चुनावों का राज्य वित्तपोषण (State Funding of Elections) एक ऐसी प्रणाली को संदर्भित करता है जिसमें सरकार राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को चुनावी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- यह वित्तपोषण आम तौर पर सार्वजनिक संसाधनों से प्राप्त होता है और इसका उद्देश्य निजी दान पर निर्भरता को कम करना तथा राजनीतिक अभियानों में निहित स्वार्थों के संभावित प्रभाव को कम करना है।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य चुनाव संबंधी विषयों में सभी प्रतिभागियों के लिये पारदर्शिता, निष्पक्षता और समान अवसरों को बढ़ावा देना है।
- राज्य वित्तपोषण के प्रकार :
- प्रत्यक्ष वित्तपोषण: इसमें सरकार राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को उनके चुनाव अभियानों का समर्थन करने के लिये प्रत्यक्ष मौद्रिक सहायता प्रदान करती है।
- अप्रत्यक्ष वित्तपोषण: अप्रत्यक्ष वित्तपोषण में सब्सिडीयुक्त या मुफ्त मीडिया पहुँच, कर लाभ, अभियान सामग्री के लिये सार्वजनिक स्थानों का मानार्थ उपयोग और उपयोगिताओं, यात्रा व्यय, परिवहन एवं सुरक्षा के प्रावधान शामिल हैं।
- भारत में चुनावों के लिये राज्य वित्तपोषण की स्थिति:
- मौजूदा राज्य वित्तपोषण उपायों में आम चुनावों के दौरान राष्ट्रीय दलों के लिये और राज्य विधानमंडल चुनावों में पंजीकृत राज्य दलों के लिये सार्वजनिक प्रसारकों (public broadcasters) पर मुफ्त एयरटाइम आवंटित करना शामिल है।
- राष्ट्रीय दलों को सुरक्षा, कार्यालय स्थान और उपयोगिता सब्सिडी जैसे कुछ लाभ प्राप्त होते हैं।
- भारत में अप्रत्यक्ष राज्य वित्तपोषण का एक दूसरा रूप यह है कि पंजीकृत राजनीतिक दलों को आयकर के भुगतान से छूट दी जाती है, जैसा कि आईटी अधिनियम की धारा 13A में निर्धारित है।
विभिन्न आयोगों ने चुनावों के राज्य वित्तपोषण के बारे में क्या कहा है?
- इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998):
- समिति ने संवैधानिक, विधिक और सार्वजनिक हित कारणों से चुनावों के राज्य वित्तपोषण का समर्थन किया।
- समिति ने माना कि यह विशेष रूप से सीमित वित्तीय संसाधनों वाले दलों के लिये निष्पक्ष एकसमान अवसर प्रदान कर सकेगा।
- भारतीय विधि आयोग (1999):
- आयोग ने माना कि राज्य द्वारा कुल वित्तपोषण वांछनीय है, बशर्ते राजनीतिक दल अन्य स्रोतों से धन लेने से बचें।
- आयोग द्वारा राज्य वित्तपोषण की शुरुआत से पहले राजनीतिक दलों के लिये एक नियामक ढाँचे की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2008):
- चुनाव खर्चों के “अवैध और अनावश्यक वित्तपोषण” पर अंकुश लगाने के लिये आंशिक राज्य वित्तपोषण की वकालत की।
- शासन में नैतिकता के मुद्दे को संबोधित किया और अनुचित वित्तीय प्रभाव को कम करने के उपायों की अनुशंसा की।
- राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग (2001):
- आयोग ने चुनावों के लिये सरकारी वित्तपोषण का समर्थन नहीं किया।
- इसने राज्य के वित्तपोषण पर विचार करने से पहले राजनीतिक दलों के लिये एक सुदृढ़ नियामक ढाँचे को लागू करने की शर्त पर विधि आयोग की रिपोर्ट (1999) से सहमति जताई।
भारत में चुनावों के लिये राज्य वित्तपोषण के पक्ष में प्रमुख तर्क क्या हैं?
- एकसमान अवसर प्रदान करना:
- राज्य वित्तपोषण का उद्देश्य राजनीति में धन के प्रभाव को कम करना है और सबके लिये ऐसे एकसमान स्तर का निर्माण करना है जहाँ राजनीतिक दल वित्तीय संसाधनों के बजाय विचारों एवं नीतियों के आधार पर प्रतिस्पर्द्धा कर सकें।
- राज्य वित्तपोषण उन संभावित उम्मीदवारों के लिये वित्तीय बाधाओं को दूर करके अधिक व्यक्तियों को राजनीति में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है जिनके पास व्यक्तिगत संपत्ति या महत्त्वपूर्ण निजी वित्तपोषण तक पहुँच नहीं हो।
- भ्रष्टाचार कम करना:
- सार्वजनिक वित्तपोषण प्रदान करने से निजी दान पर निर्भरता कम करने, भ्रष्ट आचरण की गुंजाइश कम करने और राजनीति में निहित स्वार्थों के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है।
- राज्य वित्तपोषण राजनीतिक वित्तपोषण में अधिक पारदर्शिता लाने में योगदान कर सकता है, क्योंकि सार्वजनिक धन विनियमन एवं संवीक्षा के अधीन होते हैं, जो राजनीतिक अभियानों के वित्तीय पहलुओं में स्पष्ट अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
- निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना
- राज्य वित्तपोषण कुछ दलों या उम्मीदवारों को केवल उनके वित्तीय संसाधनों के आधार पर अनुचित लाभ प्राप्त करने से रोककर निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दे सकता है।
- निजी दानदाताओं पर निर्भरता कम होने से निर्वाचित प्रतिनिधियों को अधिक स्वतंत्रता मिल सकती है, जिससे उन्हें प्रमुख दानदाताओं के हितों की पूर्ति के बजाय सार्वजनिक हितों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति मिलेगी।
- राजनीतिक दलों को सशक्त बनाना:
- सार्वजनिक वित्तपोषण राजनीतिक दलों की वित्तीय स्थिरता में योगदान कर सकता है, जिससे उन्हें प्रत्येक चुनाव चक्र के लिये अल्पकालिक धन उगाहने के बजाय दीर्घकालिक लक्ष्यों और नीति विकास पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति मिलती है।
- राज्य वित्तपोषण में राजनीतिक दलों के बीच आर्थिक असमानताओं को दूर करने की क्षमता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सकता है कि छोटे या उभरते हुए दलों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का उचित मौका मिले।
चुनावों के लिये राज्य वित्तपोषण के विरुद्ध प्रमुख तर्क क्या हैं?
- करदाताओं पर बोझ:
- चुनावों के लिये सार्वजनिक धन का उपयोग करने से करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है, जो शायद नहीं चाहें कि उनका धन राजनीतिक गतिविधियों के लिये आवंटित किया जाए।
- भारत के पास सीमित वित्तीय संसाधन मौजूद हैं और राज्य द्वारा वित्तपोषित चुनावों के लिये धन आवंटित करने से इन संसाधनों को अन्य आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं से दूसरी ओर मोड़ा जा सकता है।
- दुरुपयोग की संभावना:
- संशयवादी (Skeptics) राज्य निधियों के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंता व्यक्त करते हैं और सार्वजनिक संसाधनों के दुरुपयोग या विचलन को रोकने के लिये कड़े नियमों एवं जवाबदेही उपायों की आवश्यकता पर बल देते हैं।
- ऐसी चिंताएँ भी मौजूद हैं कि राजनीतिक लाभ के लिये राज्य के वित्तपोषण में हेरफेर किया जा सकता है, जहाँ सत्तारूढ़ दल के पास धन के आवंटन एवं वितरण का नियंत्रण होता है और यह संभावित रूप से चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
- निर्भरता का जोखिम:
- राज्य वित्तपोषण से राजनीतिक दल सार्वजनिक धन पर अत्यधिक निर्भर बन सकते हैं, जिससे संभावित रूप से वित्तीय स्वतंत्रता और धन जुटाने में प्रयुक्त नवाचार बाधित हो सकता है।
- विरोधियों का तर्क है कि राज्य वित्तपोषण से राजनीतिक दलों में ज़मीनी स्तर पर धन जुटाने और स्थानीय स्तर पर अपने निर्वाचन क्षेत्रों से जुड़ने का प्रोत्साहन कम हो सकता है।
- कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ:
- आलोचक राज्य वित्तपोषण को लागू करने में मौजूद व्यावहारिक चुनौतियों को भी उजागर करते हैं, जैसे पात्रता मानदंड निर्धारित करना, धन को समान रूप से वितरित करना और प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित करना।
- कुछ लोगों का तर्क है कि राज्य द्वारा वित्तपोषित पहलों में निजी वित्तपोषण की तुलना में दक्षता एवं जवाबदेही की कमी हो सकती है, क्योंकि सार्वजनिक संस्थान उतने उत्तरदायी या पारदर्शी नहीं भी हो सकते हैं।
आगे की राह
- व्यापक कानूनी सुधार:
- राजनीतिक दलों के वित्त, चुनाव व्यय और धन के स्रोतों को विनियमित करने के लिये व्यापक कानूनी सुधार लागू किये जाएँ।
- इसमें मौजूदा कानूनों पर पुनर्विचार करना और उन्हें सशक्त बनाना या खामियों को दूर करने के लिये नए कानून लाना शामिल हो सकता है।
- चुनावी वित्तपोषण सुधारों की आवश्यकता पर सर्वदलीय सम्मति को प्रोत्साहित किया जाए।
- राजनीतिक दलों के वित्तपोषण में पारदर्शिता:
- राजनीतिक दलों को दानदाताओं के विवरण और प्राप्त राशि सहित धन के सभी स्रोतों का खुलासा करने का आदेश दिया जाए।
- सुनिश्चित किया जाए कि यह सूचना जनता के लिये सुगम हो और इसे नियमित रूप से अद्यतन किया जाए।
- बड़े कॉर्पोरेट योगदान के प्रभाव को रोकने के लिये राजनीतिक दलों को दान की जाने वाली राशि पर एक ऊपरी सीमा आरोपित की जाए।
- स्वतंत्र चुनावी निरीक्षण:
- अभियान वित्त कानूनों के अनुपालन की निगरानी एवं कार्यान्वयन के लिये भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) जैसे स्वतंत्र चुनावी निरीक्षण निकायों की भूमिका को सुदृढ़ करें। इन निकायों को पर्याप्त संसाधन और स्वायत्तता प्रदान करें।
- लेखापरीक्षा और जवाबदेही:
- राजनीतिक दलों के वित्तीय खातों की संवीक्षा के लिये एक मज़बूत लेखापरीक्षा या ऑडिटिंग तंत्र स्थापित करें। इसमें उनकी आय, व्यय और कानूनी प्रावधानों के अनुपालन का नियमित ऑडिट करना शामिल होगा।
- अवैध वित्तपोषण अभ्यासों की जानकारी रखने वाले व्यक्तियों को प्रतिशोध के भय के बिना आगे आने के लिये प्रोत्साहित करने के लिये सुदृढ़ सूचनादाता (whistleblower) सुरक्षा लागू करें।
- चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता बढ़ाने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाएँ। वित्तीय लेनदेन को रिकॉर्ड करने और प्रकट करने के लिये ब्लॉकचेन या अन्य सुरक्षित डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का अन्वेषण करें, जिससे एक अपरिवर्तनीय और सुलभ रिकॉर्ड सुनिश्चित हो सके।
- सर्वोत्तम अभ्यासों से प्रेरणा ग्रहण करना:
- चुनाव अभियान वित्तपोषण एवं चुनावी पारदर्शिता में अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम अभ्यासों का अध्ययन करें और उन्हें अपनाएँ।
- उभरती चुनौतियों का समाधान करने और निरंतर प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये चुनावी वित्तपोषण नियमों की नियमित समीक्षा एवं अनुकूलन के लिये एक तंत्र स्थापित करें।
- पारदर्शी चुनावी वित्तपोषण के महत्त्व के बारे में नागरिकों को शिक्षित करने के लिये जन जागरूकता अभियान चलाए जाएँ।
निष्कर्ष
भारत में चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता लाकर देश अपने लोकतांत्रिक संस्थानों की नींव को सुदृढ़ कर सकता है और नागरिकों को इस ज्ञान एवं विश्वास के साथ सशक्त बना सकता है कि उनके चुनावी चयन (दल या उम्मीदवार) वित्तीय स्वार्थों के अनुचित प्रभाव के बजाय विचारों एवं मूल्यों से प्रभावित हैं।
अभ्यास प्रश्न: भारत में चुनावों के लिये राज्य वित्तपोषण को लागू करने से जुड़े संभावित लाभों एवं चुनौतियों की चर्चा कीजिये। भारत में अधिक न्यायसंगत एवं जवाबदेह चुनावी प्रक्रिया के निर्माण के लिये आप किन नीतिगत उपायों के सुझाव दे सकते हैं?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. आदर्श आचार संहिता के विकास के आलोक में भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (2022) प्रश्न. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ई.वी.एम.) के इस्तेमाल संबंधी हाल के विवाद के आलोक में, भारत में चुनावों की विश्वास्यता सुनिश्चित करने के लिये भारत के निर्वाचन आयोग के समक्ष क्या-क्या चुनौतियाँ हैं? |