शासन व्यवस्था
राजनीतिक वित्त पोषण या निधियन
- 21 Sep 2019
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संदर्भ
विश्व भर में राजनीतिक दलों को निर्वाचकों तक पहुँचने, अपनी नीतियों की व्याख्या करने और लोगों से जानकारी प्राप्त करने के लिये धन की आवश्यकता होती है। और इस धन तक पहुँचने के लिये राजनीतिक दल राजनीतिक वित्तपोषण का सहारा लेते हैं। इस वित्तीयन का एक प्रमुख स्रोत है व्यक्तियों द्वारा स्वैच्छिक योगदान। इसके अलावा कार्पोरेटस भी विभिन्न रूपों में दलों को भारी चंदा देते हैं। हमारे देश में भी जब-जब चुनाव होते हैं राजनीतिक वित्तपोषण का मुद्दा सतह पर आ जाता है।
राजनीतिक वित्तपोषण क्या है?
- राजनीतिक वित्तपोषण का अर्थ वह पद्धति है जिसका प्रयोग राजनीतिक दल अपने चुनाव अभियानों और सामान्य गतिविधियों के वित्तीयन हेतु कोष जुटाने के लिये करते हैं।
- किसी भी राजनीतिक दल को स्वयं को तथा अपने उद्देश्यों को स्थापित करने और वोट प्राप्त करने हेतु अपने इच्छित कार्यों को कार्यरूप देने के लिये धन की आवश्यकता होती है।
वैधानिक प्रावधान
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29B राजनीतिक दलों को सरकारी कंपनी को छोडकर, किसी व्यक्ति या कंपनी से स्वैच्छिक योगदान स्वीकार करने का हक देती है।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29C दलों को 20,000 रुपये से अधिक राशि के चंदों की घोषणा करने का अधिदेश देती है। ऐसी घोषणा एक रिपोर्ट के रूप में तैयार कर चुनाव आयोग को प्रस्तुत कर की जाती है। समय पर ऐसा करने में असफल रहने पर राजनीतिक दल का आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर राहत का अधिकार समाप्त हो जाता है।
कोष जुटाने के लिये भारत के राजनीतिक दलों द्वारा अपनाई जाने वाली कार्यपद्धति
- वैयक्तिक व्यक्ति: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29B राजनीतिक दलों को निजी व्यक्तियों से चंदा प्राप्त करने की अनुमति देती है।
- राज्य/सार्वजनिक वित्तपोषण : यहाँ सरकार चुनाव संबंधी उद्देश्यों के लिये राजनीतिक दलों को निधि प्रदान करती है। राज्य वित्तपोषण दो प्रकार का है-
- प्रत्यक्ष वित्तपोषण: इसमें सरकार सीधे राजनीतिक दलों को निधि प्रदान करती है। कर द्वारा प्रत्यक्ष वित्तपोषण का भारत में निषेध है।
- अप्रत्यक्ष वित्तपोषण: इसमें प्रत्यक्ष वित्तपोषण को छोडकर अन्य तरीके शामिल हैं, जैसे- मीडिया तक मुफ्त पहुँच, रैलियों हेतु सार्वजनिक स्थानों पर मुफ्त पहुँच, मुफ्त या छूट प्राप्त यातायात सुविधा। भारत में एक विनियमित तरीके से यह सुविधा दी जाती है।
- कॉरपोरेट वित्तपोषण : भारत में कॉरपोरेट निकायों द्वारा चंदा कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत दिया जाता है । अधिनियम की धारा 182 निम्नलिखित प्रावधान करती है:
- किसी राजनीतिक दल को चंदा देने की योग्यता हेतु कंपनी कम-से-कम तीन वर्ष से कार्यरत होनी चाहिये।
- पूर्ववर्ती तीन लगातार वित्तीय वर्षों के दौरान कंपनी को प्राप्त शुद्ध औसत लाभ का 7.5 प्रतिशत कंपनी चंदे के रूप मे दे सकती है।
- ऐसे चंदों को कंपनी के लाभ और हानि खाते में अवश्य दिखाया जाना चाहिये।
- चंदे के लिये बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की स्वीकृति अवश्य प्राप्त की जानी चाहिये।
- यदि कंपनी इन प्रावधानों का उल्लंघन करती है तो उसे चंदे में दी गई राशि की 5 गुनी तक धनराशि अर्थदण्ड के रूप में चुकानी होगी और कंपनी का प्रत्येक अधिकारी जो इस चूक के लिये जिम्मेदार हो, वह जेल की सज़ा का अधिकारी होगा जिसकी अवधि 6 माह तक हो सकती है।
नोट: वित्त अधिनियम, 2017 में सरकार ने कॉरपोरेट से राजनीतिक दलों को चंदे में 7.5 प्रतिशत की सीमा को हटा दिया है। इसी अधिनियम ने कंपनी के हानि और लाभ खाते में ऐसे चंदों को दिखाने की बाध्यता को भी समाप्त कर दिया है।
- निर्वाचक ट्रस्ट: जैसे एक व्यक्ति या घरेलू कंपनी से स्वैच्छिक चंदे की विधिवत प्राप्ति के लिये भारत में एक निर्लाभ कंपनी बनाई गई है।
- चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार जनवरी 2013 के बाद बनाए गए सभी निर्वाचक ट्रस्टों को प्राप्त और वितरित धन का विवरण घोषित करना ज़रूरी है।
- केंद्रीय सरकार के नियम इन फर्मों को किसी वित्तीय वर्ष में पंजीकृत राजनीतिक दलों को अपनी कुल आय का 95 प्रतिशत तक दान करने का अधिदेश देते हैं।
राजनीतिक वित्तपोषण से संबंधित मुद्दे
- कॉरपोरेट वित्तपोषण का सबसे बड़ा नुकसान कालेधन को बाहर निकालने के लिये फर्ज़ी कंपनियों का प्रयोग है।
- राजनीतिक दलों पर उन लोगों और कंपनियों का प्रभाव होता जिन्हें वे धन प्रदान करते हैं।
- भारतीय नियमों में कई खामियाँ हैं जिसका लाभ राजनीतिक दल किसी प्रकार की रिपोर्टिंग से बचाने के लिये करते हैं।
- वित्तपोषण का छुपा हुआ स्रोत चुनाव अभियानों में और अधिक धन खर्च करने की राह दिखाता है और इस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था पर असर डालता है।
वर्तमान में उठाए गए कदम
- मार्च 2018 में सरकार ने विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010 में एक महत्त्वपूर्ण संशोधन किया, जिसमें विदेशी कंपनियों को भारत में राजनीतिक दलों के वित्तपोषण की अनुमति प्रदान की गई।
- चुनावी बॉण्ड की शुरुआत: 2 जनवरी 2018 को सरकार ने चुनावी बॉण्ड योजना को भारत में राजनीतिक वित्तपोषण प्रणाली की स्थापना और पारदर्शिता के लिये अधिसूचित किया।
- चुनावी बॉण्ड प्रॉमिसरी नोट की तरह का एक बियरर इन्स्ट्रुमेंट (लिखत) है। इसे भारत के किसी भी नागरिक या भारत में निगमित किसी निकाय द्वारा अपनी पसंद के राजनीतिक दल को अंशदान देने के लिये खरीदा जा सकता है। बॉण्ड पर चंदा देने वाले का नाम नहीं होता।
- राजनीतिक दलों की वित्त पोषण प्रणाली में पारदर्शिता लाने और राजनीतिक दलों को चंदा लेने में सुविधा के लिये मान्यता प्राप्त बैंकों द्वारा समय-समय पर यह चुनावी बॉण्ड जारी किये जाते हैं। चंदा देने वाले केवल चैक और डिजिटल भुगतान कर मान्यता प्राप्त बैंकों से बांड खरीद सकते हैं।
- इनका प्रयोग उन राजनीतिक दलों को अंशदान देने के लिये किया जा सकता है जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत हैं और जिन्होंने विगत लोकसभा या किसी विधानसभा के सामान्य चुनाव में डाले गए मतों के 1 प्रतिशत से कम मत न प्राप्त किये हों।
राजस्थान की योजना
- वर्ष 1998 में लोकसभा आम चुनाव के समय 16 जनवरी, 1998 को आयोग के निर्देश के अनुसार दूरदर्शन और आकाशवाणी के नि:शुल्क उपयोग सुविधा के माध्यम से मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के वित्त पोषण की नई योजना शुरू की गई। यह योजना वर्ष 1998 के बाद हुए राज्य विधानसभाओं के सभी चुनावों तथा 1999, 2004, 2009 तथा 2014 के लोकसभा आम चुनाव में भी जारी रही।
आगे की राह
- किसी दल की व्यय सीमा 50 प्रतिशत या इसके सभी उम्मीदवारों के लिये निर्धारित संयुक्त अधिकतम व्यय से कम होनी चाहिये।
- वैयक्तिक व्यय को इस आधार पर होना चाहिये कि उम्मीदवार विधानसभा के लिये खड़ा है या आम चुनाव के लिये।
- अनाम अंशदान किसी दल के कुल कलेक्शन के 20 प्रतिशत पर सीमित किया जाना चाहिये।