भारतीय रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण | 08 Jul 2023

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण, विधिक निविदा, विमुद्रीकरण, वास्तविक समय सकल निपटान, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

मेन्स के लिये:

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ, रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में कदम

चर्चा में क्यों?  

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नियुक्त कार्य समूह ने रुपए को विशेष आहरण अधिकार (SDR) बास्केट में शामिल करने और रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की गति को तेज़ करने के लिये विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (Foreign Portfolio Investor- FPI) प्रणाली के पुन: आकलन करने की सिफारिश की है।

रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण:

  • परिचय:  
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत सीमा पार लेन-देन में स्थानीय मुद्रा के उपयोग को बढ़ावा देना शामिल है। 
    • इसमें आयात और निर्यात व्यापार के लिये रुपए को बढ़ावा देना और अन्य चालू खाता लेन-देन के साथ-साथ पूंजी खाता लेन-देन में इसके उपयोग को प्रोत्साहित करना शामिल है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ:  
    • 1950 के दशक में, भारतीय रुपए का संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, बहरीन, ओमान और कतर में कानूनी निविदा के रूप में व्यापक उपयोग किया जाता था।
    • हालाँकि वर्ष 1966 तक भारत की मुद्रा के अवमूल्यन के कारण इन देशों में भारतीय रुपए पर निर्भरता के लिये संप्रभु मुद्राओं की शुरुआत हुई थी। 
  • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ: 
    • मुद्रा मूल्य की सराहना करना: इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में रुपए की मांग में सुधार होगा।
      • इससे भारत के साथ काम करने वाले व्यवसायों एवं व्यापारियों के लिये सुविधा बढ़ सकती है तथा लेन-देन लागत कम हो सकती है।
    • विनिमय दर की अस्थिरता में कमी: जब किसी मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीयकरण होता है तो उसकी विनिमय दर स्थिर हो जाती है।
      • वैश्विक बाज़ारों में मुद्रा की बढ़ती मांग अस्थिरता को कम करने में सहायता कर सकती है जिससे इसे अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन के लिये अधिक पूर्वानुमानित और विश्वसनीय बनाया जा सकता है।
    • भू-राजनीतिक लाभ: रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण भारत के भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ा सकता है।
      • यह अन्य देशों के साथ आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ कर सकता है, द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को सुविधाजनक बना सकता है तथा राजनयिक संबंधों को बढ़ावा दे सकता है।
  • चुनौतियाँ:  
    • सीमित अंतर्राष्ट्रीय मांग:
      • वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार में रुपए की दैनिक औसत हिस्सेदारी केवल 1.6% के आसपास है, जबकि वैश्विक माल व्यापार में भारत की हिस्सेदारी लगभग 2% है।
    • परिवर्तनीयता संबंधी चुनौती: 
      • भारतीय मुद्रा (INR) पूरी तरह से परिवर्तनीय नहीं है जिसका अर्थ है कि पूंजी लेन-देन जैसे कुछ उद्देश्यों के लिये इसकी परिवर्तनीयता पर प्रतिबंध है। यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वित्त में इसके व्यापक उपयोग को प्रतिबंधित करता है। 
    • विमुद्रीकरण का असर:  
      • वर्ष 2016 में विमुद्रीकरण, हाल ही में  2,000 रुपए के नोट के प्रयोग पर प्रतिबंध ने रुपए के प्रति विश्वास को प्रभावित किया है, खासकर भूटान और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में।
    • व्यापार निपटान में चुनौतियाँ: 
      • हालाँकि लगभग 18 देशों के साथ रुपए में व्यापार करने का प्रयास किया गया है, लेकिन लेन-देन सीमित ही रहा है।  
      • इसके अलावा रुपए में व्यापार निपटाने के लिये रूस के साथ बातचीत धीमी रही है, मुद्रा मूल्यह्रास संबंधी चिंताओं और व्यापारियों के बीच अपर्याप्त जागरूकता के कारण इसमें बाधा आ रही है।
  • अंतर्राष्ट्रीयकरण की ओर कदम:  

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को गति देने हेतु उपाय:   

  • पूर्ण परिवर्तनीयता और व्यापार समझौता: रुपए का लक्ष्य पूर्ण परिवर्तनीयता होना चाहिये, जिससे भारत और अन्य देशों के बीच वित्तीय निवेश की मुक्त आवाजाही संभव हो सके
    • भारतीय निर्यातकों और आयातकों को रुपए में चालान, लेन-देन के लिये प्रोत्साहित करने से व्यापार निपटान औपचारिकता के अनुकूल होगा।
  • तरल बाॅण्ड बाज़ार: RBI को विदेशी निवेशकों और व्यापार भागीदारों के लिये निवेश विकल्प प्रदान करते हुए अधिक तरल रुपए बाॅण्ड बाज़ार विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • RTGS प्रणाली का विस्तार: अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन को निपटाने के लिये रियल-टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) प्रणाली का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • साथ ही भारत में रुपए का उपयोग करने वाले विदेशी व्यवसायों को कर प्रोत्साहन प्रदान करने से इसके उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।
  • मुद्रा स्वैप समझौते: जैसा कि श्रीलंका के साथ देखा गया है, मुद्रा स्वैप समझौते बढ़ने से रुपए में व्यापार और निवेश लेन-देन की सुविधा प्राप्त होगी।
    • आत्मविश्वास बनाए रखने के लिये स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के साथ-साथ सुसंगत और पूर्वानुमानित मुद्रा जारी करने के साथ पुनर्प्राप्ति आवश्यक है।
  •  SDR बास्केट में शामिल करना: रुपए को विशेष आहरण अधिकार (SDR) में शामिल करने के लिये प्रयास किया जाना चाहिये, जो प्रमुख मुद्राओं की बास्केट के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा बनाई गई एक अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित संपत्ति है।
    • साथ ही भारतीय सरकारी बाॅण्ड (IGBs) को वैश्विक सूचकांकों में शामिल किया जा सकता है, जिससे भारतीय ऋण बाज़ारों में विदेशी निवेश आकर्षित होगा। 
  • चीन के अनुभव से सबक: रॅन्मिन्बी के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये चीन का दृष्टिकोण भारत के लिये मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है:
    • चरणबद्ध दृष्टिकोण: आरक्षित मुद्रा के रूप में इसके उपयोग की दिशा में आगे बढ़ने से पहले चीन ने धीरे-धीरे चालू खाता लेन-देन और चुनिंदा निवेश लेन-देन के लिये रॅन्मिन्बी के उपयोग को सक्षम किया।
    • अपतटीय बाज़ार: डिम सम बॉण्ड और अपतटीय RMBD बॉण्ड बाज़ार जैसे अपतटीय बाज़ारों की स्थापना ने अंतर्राष्ट्रीयकरण प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया।

नोट:  

  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment- FPI): इसमें विदेशी निवेशकों द्वारा निष्क्रिय रूप से रखी गई प्रतिभूतियाँ और अन्य वित्तीय संपत्तियाँ शामिल हैं। 
    • यह किसी देश के पूंजी खाते का हिस्सा है और इसे BOP पर प्रदर्शित किया जाता है।
    • यह निवेशक को वित्तीय परिसंपत्तियों का प्रत्यक्ष स्वामित्व प्रदान नहीं करता है।
    • FPI FDI की तुलना में अधिक तरल, अस्थिर और जोखिमभरा है।
    • इसे अक्सर "हॉट मनी" के रूप में जाना जाता है।
    • उदाहरण - स्टॉक, बॉण्ड, म्यूचुअल फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड। 
  • विशेष आहरण अधिकार: 
    • SDR ,IMF के खाते की इकाई के रूप में कार्य करता है, लेकिन यह न तो मुद्रा है और न ही IMF पर दावा है।
    • मुद्राओं की SDR समूह में अमेरिकी डॉलर, यूरो, जापानी येन, पाउंड स्टर्लिंग और चीनी रॅन्मिन्बी (वर्ष 2016 से) शामिल हैं।

निष्कर्ष:  

राजकोषीय घाटे, मुद्रास्फीति दर और बैंकिंग गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को कम करने सहित तारापोर समिति की सिफारिशों (1997 और 2006 में) को रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में प्राथमिक कदम के रूप में अपनाया जाना चाहिये। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में रुपए को आधिकारिक मुद्रा बनाने के लिये प्रोत्साहित करने से इसका दायरा और स्वीकार्यता बढ़ेगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015)

(a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना
(b) रुपए के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना
(c) रुपए को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपए में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुज्ञा प्रदान करना
(d) भारत में मुद्राओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार विकसित करना

उत्तर: (c)


प्रश्न. भुगतान संतुलन के संदर्भ में निम्नलिखित में से किससे/किनसे चालू खाता बनता है? (2014)

  1. व्यापार संतुलन 
  2. विदेशी परिसंपत्तियाँ 
  3. अदृश्यों का संतुलन
  4.  विशेष आहरण अधिकार

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 1, 2 और 4

उत्तर: (c)

स्रोत: द हिंदू