इंटरनेशनल डे ऑफ अवेयरनेस ऑफ फूड लाॅस एंड वेस्ट | 03 Oct 2024

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

इंटरनेशनल डे ऑफ अवेयरनेस ऑफ फूड लाॅस एंड वेस्ट, खाद्य और कृषि संगठन, प्राकृतिक आपदाएँ, सतत् विकास के लिये एजेंडा 2030, ग्रीनहाउस गैस, मीथेन, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, किसान उत्पादक संगठन 

मुख्य परीक्षा के लिये:

भारत में खाद्य हानि और बर्बादी का खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव, खाद्य बर्बादी के पर्यावरणीय परिणाम

स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

29 सितंबर को इंटरनेशनल डे ऑफ अवेयरनेस ऑफ फूड लाॅस एंड वेस्ट (IDAFLW) के तहत खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता से संबंधित इसके निहितार्थों पर बल दिया गया। हाल ही में 29 सितंबर को विश्व स्तर पर  इंटरनेशनल डे ऑफ अवेयरनेस ऑफ फूड लाॅस एंड वेस्ट (IDAFLW) मनाया गया, जिसमें खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता पर इसके प्रभावों पर प्रकाश डाला गया।

  • खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की वर्ष 2023 की रिपोर्ट से पता चलता है कि वैश्विक खाद्य उत्पादन का लगभग 30% नष्ट हो जाता है या बर्बाद हो जाता है। यह गंभीर मुद्दा इस दिशा में तत्काल कार्रवाई की मांग (खासकर भारत में जहाँ फसल कटाई के बाद होने वाला नुकसान काफी अधिक हैं) का संकेत देता है

प्रमुख शब्द

  • खाद्य हानि: इसका तात्पर्य मानव उपभोग के लिये उपलब्ध भोजन के द्रव्यमान (शुष्क पदार्थ) या पोषण मूल्य (गुणवत्ता) में कमी आना है।
    • ऐसा मुख्य रूप से खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में अक्षमताओं के कारण होता है जिसमें खराब बुनियादी ढाँचा, अपर्याप्त रसद, प्रौद्योगिकी की कमी और अपर्याप्त कौशल तथा प्रबंधन उत्तरदायी हैं। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाएँ भी इन नुकसानों में योगदान करती हैं।
  • खाद्य अपशिष्ट: इसका तात्पर्य मानव उपभोग के लिये उपयुक्त ऐसे खाद्य पदार्थ से है जिसे खराब होने या समाप्ति तिथि बीत जाने के कारण नष्ट किया जाता है। 
    • ऐसा बाज़ार में अधिक आपूर्ति या व्यक्तिगत उपभोक्ता की खरीदारी एवं खाने की आदतों में बदलाव जैसे कारकों के कारण हो सकता है।
  • खाद्य अपव्यय: इसका तात्पर्य किसी भी ऐसे खाद्य पदार्थ से है जो खराब होने या बर्बाद होने के कारण नष्ट हो जाता है। इस प्रकार "अपव्यय" शब्द में खाद्य हानि और खाद्य अपशिष्ट दोनों शामिल हैं।

इंटरनेशनल डे ऑफ अवेयरनेस ऑफ फूड लाॅस एंड वेस्ट क्या है?

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा वर्ष 2019 में नामित IDAFLW के तहत फूड लाॅस एंड वेस्ट जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इसका उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना और फूड लाॅस एंड वेस्ट को कम करने के प्रयास करने के साथ जलवायु लक्ष्यों एवं सतत् विकास हेतु एजेंडा, 2030 को प्राप्त करने के क्रम में वित्तीय सहायता की आवश्यकता पर प्रकाश डालना है।
  • यह पहल सतत् विकास लक्ष्य 12.3 के अनुरूप है जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक वैश्विक खाद्य अपशिष्ट को आधा करना और खाद्य हानि को कम करना है तथा यह कुनमिंग मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क से संबंधित है।
    • फूड लाॅस एंड वेस्ट को कम करने के लिये जलवायु वित्त में वृद्धि की आवश्यकता है।

खाद्य हानि और बर्बादी/फूड लाॅस एंड वेस्ट (FLW) के क्या निहितार्थ हैं?

  • खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वैश्विक जनसंख्या का लगभग 29% मध्यम से गंभीर खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त है जबकि उत्पादित खाद्यान्न का एक तिहाई (1.3 बिलियन टन) नष्ट हो जाता है या बर्बाद हो जाता है।
  • FLW के कारण उपभोग के लिये भोजन की उपलब्धता में उल्लेखनीय कमी आती है, जिससे भूख और कुपोषण में वृद्धि (विशेष रूप से कमज़ोर आबादी में) होती है।
  • पर्यावरणीय परिणाम: भोजन के साथ-साथ बड़ी मात्रा में संसाधन (जैसे भूमि, जल, ऊर्जा और श्रम) बर्बाद होने से प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास होता है।
  • कार्बन फुटप्रिंट: खाद्य पदार्थों की बर्बादी से प्रतिवर्ष 3.3 बिलियन टन CO2 समतुल्य गैसें उत्पन्न होती हैं जिससे वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में भी वृद्धि होती है।
  • जल उपयोग: जिस भोजन को नहीं खाया जाता है उस पर बर्बाद होने वाले जल की मात्रा रूस की वोल्गा नदी के वार्षिक प्रवाह के बराबर या जिनेवा झील के आयतन का तीन गुना है।
  • भूमि उपयोग: लगभग 1.4 बिलियन हेक्टेयर भूमि (जो विश्व की कृषि भूमि का लगभग 28% है) का उपयोग ऐसे खाद्यान्न उत्पादन के लिये किया जाता है जो अंततः बर्बाद हो जाता है।
  • ऊर्जा की बर्बादी: वैश्विक खाद्य प्रणाली की कुल ऊर्जा का लगभग 38% भोजन के उत्पादन (जो नष्ट या बर्बाद हो जाता है) में खपत हो जाता है।
  • मीथेन उत्सर्जन: लैंडफिल में खाद्य अपशिष्ट से मीथेन उत्पन्न होती है, जो CO2 से कहीं अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जिससे जलवायु परिवर्तन में वृद्धि होती है।
  • जलवायु लक्ष्य: कृषि क्षेत्र की अकुशलता के कारण वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करना कठिन हो गया है क्योंकि खाद्य प्रणालियों से होने वाले उत्सर्जन में कुल ग्रीनहाउस गैसों का 37% तक हिस्सा है।
  • आर्थिक प्रभाव: FLW से जुड़ी आर्थिक लागतें बहुत अधिक हैं जिसके कारण उत्पादकों की आय में कमी आती है तथा उपभोक्ताओं के लिये कीमतें बढ़ जाती हैं।
    • खाद्यान्न की कीमतें अक्सर खाद्य उत्पादन की वास्तविक सामाजिक और पर्यावरणीय लागतों को प्रतिबिंबित करने में विफल रहती हैं जिसके परिणामस्वरूप बाजार में अकुशलताएँ पैदा होने के साथ असमानताएँ बढ़ती हैं।

भारत में FLW के क्या निहितार्थ हैं?

  • फसलोत्तर नुकसान: राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास परामर्श सेवा बैंक (NABCONS) द्वारा वर्ष 2022 में किये गए सर्वेक्षण के अनुसार भारत को 1.53 लाख करोड़ रुपये (18.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का खाद्यान्न नुकसान हुआ।
  • इसमें 12.5 मिलियन मीट्रिक टन अनाज, 2.11 मिलियन मीट्रिक टन तिलहन और 1.37 मिलियन मीट्रिक टन दालें शामिल हैं।
  • अपर्याप्त शीत श्रृंखला अवसंरचना के कारण प्रतिवर्ष लगभग 49.9 मिलियन मीट्रिक टन बागवानी फसलें नष्ट हो जाती हैं।
  • फसल-उपरांत हानि के प्रमुख कारण: भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) द्वारा किये गए सर्वेक्षण में पाया गया कि खाद्यान्न की हानि मुख्यतः कटाई, मड़ाई, सुखाने और भंडारण के दौरान मशीनीकरण के निम्न स्तर के कारण होती है।
    • भारतीय अनाज भंडारण प्रबंधन एवं अनुसंधान संस्थान (IGSMRI) के अनुसार भारत में कुल खाद्यान्न क्षति में लगभग 10% का कारण खराब भंडारण सुविधाओं का होना है।
  • राष्ट्रीय खाद्यान्न हानि: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का अनुमान है कि भारत में प्रत्येक वर्ष 74 मिलियन टन खाद्यान्न बर्बाद होता है, जो 92,000 करोड़ रुपये की हानि दर्शाता है।
    • रेस्तराँ में भोजन की बर्बादी अत्यधिक भोजन बनाने, अधिक मात्रा में भोजन परोसने तथा विभिन्न प्रकार के व्यंजन परोसने जैसी जटिलता के कारण होती है।
      • इसके अलावा ग्राहक अक्सर ज़रूरत से ज़्यादा ऑर्डर कर देते हैं जिससे खाना या तो खाया नहीं जाता या फेंक दिया जाता है। कर्मचारियों और ग्राहकों में आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में जागरूकता की कमी से इस समस्या को और बढ़ावा मिलता है।
    • UNEP खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारतीय घरों में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 50 किलोग्राम खाद्य अपशिष्ट होता है, जिसके परिणामस्वरूप सालाना कुल 68,760,163 टन खाद्य अपशिष्ट हो जाता है।

भारत में भविष्य में FLW को कम करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • जलवायु परिवर्तन: खाद्यान्न की बर्बादी को कम करने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आ सकती है, जिससे जलवायु परिवर्तन में प्रमुख योगदान देने वाले कारकों की समस्या का समाधान हो सकता है।
    • FLW को कम करने से उत्सर्जन में 12.5 गीगाटन CO2 समतुल्य (Gt CO2e) की कटौती हो सकती है, जो सड़क पर 2.7 बिलियन कारों से होने वाले उत्सर्जन को हटाने के बराबर है।
    • FLW को न्यूनतम करके, जल और भूमि जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि ज़रूरतमंदों तक अधिक भोजन पहुँचे।
  • खाद्य सुरक्षा: वैश्विक स्तर पर वर्ष 2022 में 691 से 783 मिलियन लोग भूख से ग्रसित थे। खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, भारत की 74% से अधिक आबादी स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ है। 
    • भारत में लाखों लोग अभी भी कुपोषित हैं, इसलिये खाद्यान्न की कमी को कम करने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि अधिक भोजन ज़रूरतमंदों तक पहुँचे
  • आर्थिक दक्षता: फसल की कटाई के बाद की प्रक्रियाओं में सुधार करके, भारत कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकता है, बर्बादी को कम कर सकता है और किसानों की आय को बढ़ा सकता है, जिससे एक अधिक लचीली कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।

खाद्यान्न हानि और बर्बादी से निपटने के लिये भारत की क्या पहल हैं?

  • प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना: यह खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MoFPI) के तहत एक केंद्रीय क्षेत्र की व्यापक योजना है जिसका उद्देश्य पूरे भारत में मज़बूत खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण बुनियादी ढाँचे के विकास के माध्यम से खाद्य हानि एवं बर्बादी को कम करना है।
  • प्रमुख पहलू: 
    • कोल्ड चैन, मूल्य संवर्द्धन एवं संरक्षण अवसंरचना: फसलोपरांत होने वाले नुकसान को न्यूनतम करने के लिये एकीकृत कोल्ड चैन, संरक्षण अवसंरचना एवं मूल्य संवर्द्धन अवसंरचना की स्थापना की गई है।
    • मेगा फूड पार्क: इसका उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण और वितरण को सुव्यवस्थित करना है (अप्रैल 2021 में भारत सरकार द्वारा इसे बंद कर दिया गया)।
    • कृषि प्रसंस्करण क्लस्टर: इसके तहत खाद्य अपव्यय को कम करने और स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ाने के लिये स्थानीय खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा दिया जाता है।
    • ऑपरेशन ग्रीन्स: खाद्य प्रसंस्करण परियोजनाओं की स्थापना के लिये अनुदान/सब्सिडी के रूप में ऋण से जुड़ी वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, जिससे खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण अवसंरचना सुविधाओं का सृजन होता है। 
  • भोजन बचाओ, भोजन बाँटो, आनंद बाँटो (IFSA): भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के नेतृत्व में यह पहल आपूर्ति श्रृंखला में खाद्य हानि और बर्बादी को रोकने के लिये विभिन्न हितधारकों को एक साथ लाती है। यह अधिशेष भोजन के सुरक्षित वितरण की सुविधा भी प्रदान करता है।

खाद्यान्न की बर्बादी से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मॉडल

  • व्यवसायों के लिये प्रोत्साहन: अमेरिका में कर वृद्धि से अमेरिकियों की सुरक्षा (PATH) अधिनियम, 2015 के तहत खाद्य पदार्थ दान करने के संदर्भ में कर कटौती में वृद्धि की गई, जिससे व्यवसायों को अतिरिक्त खाद्य पदार्थ दान करने हेतु प्रोत्साहित किया गया।
  • इटली का प्रोत्साहन मॉडल: इटली ने व्यवसायों को खाद्य पदार्थ दान करने हेतु प्रोत्साहन देकर, दस लाख टन खाद्य अपशिष्ट को कम करने के लिये प्रति वर्ष लगभग 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर आवंटित किये हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र वैश्विक खाद्य हानि और अपशिष्ट प्रोटोकॉल: यह खाद्य हानि और अपशिष्ट के मापन के लिये एक वैश्विक मानक है। इसे प्रसंस्करण, खुदरा, उपभोक्ताओं के संबंध में  SDG लक्ष्य 12.3 के लिये एक संकेतक के रूप में प्रस्तावित किया गया था।
    • इसका उपयोग देश और कंपनियाँ अपनी सीमाओं और आपूर्ति श्रृंखलाओं के तहत FLW को मापने के लिये कर सकती हैं।

FLW से निपटने के लिये क्या कार्रवाई आवश्यक है?

  • मशीनीकरण को बढ़ावा देना: कंबाइन हार्वेस्टर जैसे मशीनीकृत उपकरणों का उपयोग करने से धान उत्पादन में काफी कम नुकसान होता है। हालाँकि भारतीय किसानों का केवल छोटा प्रतिशत ही ऐसी मशीनरी का उपयोग कर पाता है।
  • भंडारण और पैकेजिंग समाधान में सुधार करना: पारंपरिक भंडारण विधियाँ (जिनमें धूप में सुखाना और जूट पैकेजिंग शामिल हैं) उपयुक्त नहीं हैं
    • सौर ड्रायर, वायुरोधी पैकेजिंग को लागू करने के साथ सरकार की योजना के अनुसार पाँच वर्षों में भारत की अनाज भंडारण क्षमता को 70 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) तक उन्नत करने से फसल-उपरांत होने वाले नुकसानों पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन प्रोटोकॉल और पुनर्चक्रण: संयुक्त राष्ट्र वैश्विक खाद्य हानि और अपशिष्ट प्रोटोकॉल को अपनाने से भारत मूल्य शृंखला में खाद्य हानि की मात्रा निर्धारित करने और लक्षित समाधान विकसित करने में सक्षम हो सकता है। 
    • खाद्य अपशिष्ट को खाद, बायोगैस या ऊर्जा में पुनर्चक्रित करना, अतिरिक्त उत्पादन और फसल-पश्चात अपशिष्ट के प्रबंधन का एक स्थायी तरीका प्रदान करता है।
  • अतिरिक्त भोजन का पुनर्वितरण: अतिरिक्त भोजन को ज़रूरतमंदों में पुनर्वितरित किया जा सकता है, जिससे भूख और खाद्य असुरक्षा कम हो सकती है। वैकल्पिक रूप से अतिरिक्त भोजन को पशु आहार या जैविक खाद में परिवर्तित किया जा सकता है जो एक प्रभावी पुनर्चक्रण समाधान प्रदान करता है।
  • उपभोक्ता उत्तरदायित्व: उपभोक्ता केवल आवश्यक वस्तुएँ खरीदकर खाद्य अपव्यय को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 
    • जागरूकता अभियानों के माध्यम से उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन लाकर ज़िम्मेदार उपभोग पैटर्न को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • नवीन प्रौद्योगिकियों को अपनाना: मोबाइल खाद्य प्रसंस्करण प्रणाली, बेहतर लॉजिस्टिक्स और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म जैसे नवाचार, खाद्य उत्पादन और खपत के बीच के अंतराल को कम करने में मदद कर सकते हैं तथा भंडारण, परिवहन और वितरण में अक्षमताओं को कम कर सकते हैं।
  • सामाजिक आयोजनों से भोजन एकत्र करना: सामाजिक आयोजनों में अक्सर भोजन की काफी बर्बादी होती है। शहरी संगठन पहले से ही आयोजनों से बचा हुआ भोजन एकत्र कर रहे हैं और इसे झुग्गी-झोपड़ियों में वितरित कर रहे हैं, जिससे भोजन की बर्बादी और भूख दोनों ही समस्याओं से निपटा जा सकता है।
  • खाद्य उत्पादन को मांग के अनुरूप करना: संसाधनों की बर्बादी को कम करने के लिये खाद्य उत्पादन को वास्तविक मांग के अनुरूप करने से जल, ऊर्जा और भूमि का अनुकूलतम उपयोग होने के साथ यह सुनिश्चित हो सकता है कि अतिरिक्त संसाधनों का उपयोग ऐसे खाद्य पदार्थों पर न किया जाए, जो अंततः बर्बाद हो जाएंगे।

निष्कर्ष:

भारत में खाद्यान्न की हानि और बर्बादी को कम करना केवल आर्थिक दक्षता में सुधार लाने तक सीमित नहीं है; यह लाखों लोगों के लिये खाद्य सुरक्षा की रक्षा करते हुए पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने तक विस्तारित है। तकनीकी नवाचारों के साथ-साथ सहायक नीतियों से खाद्यान्न की बर्बादी को 50% तक कम करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। जैसे-जैसे भारत एक संधारणीय भविष्य की ओर बढ़ रहा है, खाद्यान्न की हानि और बर्बादी की समस्या को हल करना, लोगों की खाद्यान ज़रूरतों एवं ग्रह की रक्षा की दिशा में निर्णायक है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में खाद्य हानि और बर्बादी से खाद्य सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिये। इस मुद्दे को हल करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स:

Q. देश में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियाँ एवं अवसर क्या हैं? खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहित कर कृषकों की आय में पर्याप्त वृद्धि कैसे की जा सकती है? (2020)

Q. खाद्य सुरक्षा बिल से भारत में भूख व कुपोषण के विलोपन की आशा है। उसके प्रभावी कार्यान्वयन में विभिन्न आशंकाओं की समालोचनात्मक विवेचना कीजिये, साथ ही यह बताएँ कि विश्व व्यापार संगठन में इसमें कौन-सी चिंताएँ उत्पन्न हो गई हैं। (2013)