भारत-अमेरिका रक्षा समझौते से सहयोग बढ़ेगा | 29 Aug 2024

प्रिलिम्स के लिये:

लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), आपूर्ति सुरक्षा व्यवस्था (SOSA), संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में समझौता ज्ञापन, रक्षा प्राथमिकताएँ और आवंटन प्रणाली (DPAS), रक्षा सहयोग पर संयुक्त घोषणा, संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA), MH-60R सीहॉक हेलीकॉप्टर, सिग सॉयर राइफलें, M777 हॉवित्जर

मेन्स के लिये:

भारत-अमेरिका संबंध, भारत-अमेरिका रक्षा संबंध, चुनौतियाँ, अवसर और आगे की राह

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और अमेरिका ने दो प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं - एक गैर-बाध्यकारी आपूर्ति व्यवस्था की सुरक्षा (Security of Supplies Arrangement- SOSA) और दूसरा संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में समझौता ज्ञापन।

  • दोनों देशों ने रक्षा औद्योगिक सहयोग के लिये 2023 अमेरिका-भारत रोडमैप के हिस्से के रूप में प्राथमिकता वाले सह-उत्पादन परियोजनाओं को बढ़ाने पर भी सहमति व्यक्त की।

भारत और अमेरिका के बीच हस्ताक्षरित प्रमुख रक्षा समझौते क्या हैं?

  • आपूर्ति व्यवस्था की सुरक्षा (SOSA):
    • आपूर्ति व्यवस्था की सुरक्षा (SOSA) अमेरिका और भारत के बीच एक समझौता है।
      • ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, इज़रायल, इटली, जापान, लातविया, लिथुआनिया, नीदरलैंड, नॉर्वे, कोरिया गणराज्य, सिंगापुर, स्पेन, स्वीडन और UK के बाद भारत अमेरिका का 18वाँ SOSA साझेदार है।
    • यह दोनों देशों को राष्ट्रीय रक्षा के लिये एक-दूसरे की वस्तुओं और सेवाओं को प्राथमिकता देने की अनुमति देता है, जिससे आपात स्थितियों के दौरान आपूर्ति शृंखला में लचीलापन सुनिश्चित होता है।
    • SOSA के अंतर्गत अमेरिकी रक्षा ठेकेदार भारत से शीघ्र डिलीवरी की मांग कर सकते हैं, इसके विपरीत भारतीय रक्षा ठेकेदार अमेरिकी से शीघ्र डिलीवरी की मांग कर सकते हैं।
    • यद्यपि कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, लेकिन SOSA पारस्परिक सद्भावना के आधार पर कार्य करता है, जिसमें भारतीय कंपनियाँ अमेरिकी ऑर्डरों को प्राथमिकता देती हैं और अमेरिका अपनी रक्षा प्राथमिकताएँ तथा आवंटन प्रणाली (Defense Priorities and Allocations System- DPAS) के माध्यम से आश्वासन देता है, जिसका प्रबंधन रक्षा विभाग (Department of Defence- DoD) एवं वाणिज्य विभाग (Department of Commerce- DOC) द्वारा किया जाता है।
  • संपर्क अधिकारियों पर समझौता ज्ञापन:
    • समझौता ज्ञापन (MoU) का उद्देश्य संपर्क अधिकारियों की एक प्रणाली स्थापित करके भारत और अमेरिका के बीच सूचना-साझाकरण को बढ़ावा देना है।
    • इसकी शुरुआत फ्लोरिडा में अमेरिकी विशेष अभियान कमान में भारत के एक अधिकारी की तैनाती से होगी
    • यह पहल सितंबर, 2013 के रक्षा सहयोग पर संयुक्त घोषणापत्र और अमेरिका-भारत रक्षा संबंधों के लिये वर्ष 2015 की रूपरेखा सहित पिछले समझौतों पर आधारित है, जो द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को मज़बूत करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • पारस्परिक रक्षा खरीद (RDP) समझौता:
    • भारत और अमेरिका पारस्परिक रक्षा खरीद (Reciprocal Defence Procurement- RDP) समझौते पर चर्चा कर रहे हैं, जिसे अभी अंतिम रूप दिया जाना है।
    • इन्हें अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच रक्षा उपकरणों के युक्तिकरण, मानकीकरण, विनिमेयता तथा अंतर-संचालनशीलता को बढ़ाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • अमेरिका ने अब तक 28 देशों के साथ RDP समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • यह समझौता अमेरिकी कंपनियों को भारत की "मेक इन इंडिया" पहल जैसे कुछ खरीद प्रतिबंधों को दरकिनार करने में सक्षम बनाएगा, जिससे भारत में विनिर्माण आधारों की स्थापना और स्थानीय फर्मों के साथ घनिष्ठ सहयोग में सुविधा होगी।
  • SOSA बनाम RDP:
    • SOSA और RDP दोनों का उद्देश्य दो देशों के बीच रक्षा संबंधों को बढ़ाना है, लेकिन उनके उद्देश्य अलग-अलग हैं। 
    • SOSA संकट के दौरान रक्षा आपूर्ति शृंखला को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि RDP एक कानूनी रूप से बाध्यकारी ढाँचा स्थापित करता है जिसके लिये रक्षा आदेशों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता होती है, जिससे अधिक संयुक्त उत्पादन और तकनीकी सहयोग की सुविधा मिलती है।

भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग में क्या प्रगति हुई है?

  • GSOMIA: भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग की नींव 2002 के जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इंफॉर्मेशन एग्रीमेंट (GSOMIA) के साथ रखी गई थी, जिससे संवेदनशील सैन्य सूचनाओं को साझा करने में सुविधा हुई।
  • LEMOA: इसके बाद वर्ष 2016 में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) हुआ, जिसने दोनों सेनाओं के बीच पारस्परिक रसद समर्थन हेतु रूपरेखा स्थापित की।
  • COMCASA और BECA: वर्ष 2018 में संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA)ने सुरक्षित सैन्य संचार और उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों तक पहुँच को बढ़ाया, जबकि वर्ष 2020 में बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौते (BECA) ने सैन्य अभियानों के लिये महत्त्वपूर्ण भू-स्थानिक डेटा को साझा करने में सक्षम बनाया।
  • 2+2 वार्ता: संयुक्त अभ्यास और 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता द्वारा समर्थित ये आधारभूत समझौते सामूहिक रूप से अंतर-संचालन और विश्वास को बढ़ावा देते हैं, तथा गहन सहयोग के लिए मंच तैयार करते हैं।
  • सामरिक व्यापार प्राधिकरण टियर-1 स्थिति: 2000 के दशक की शुरुआत से भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारत को वर्ष 2016 में एक प्रमुख रक्षा साझेदार नामित किया गया था और वर्ष 2018 में सामरिक व्यापार प्राधिकरण टियर-1 का दर्जा दिया गया था, जिससे उन्नत प्रौद्योगिकियों तक पहुँच संभव हो गई।
  • DTTI: वर्ष 2012 में स्थापित रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी पहल (DTTI) का उद्देश्य रक्षा व्यापार को सुव्यवस्थित करना एवं रक्षा प्रौद्योगिकियों के सह-उत्पादन व सह-विकास को बढ़ावा देना था, जो क्रेता-विक्रेता संबंध से साझेदारी मॉडल में बदलाव को दर्शाता है।
  • सैन्य खरीद: भारत की सेना ने अमेरिका से MH-60R  सीहॉक हेलीकॉप्टर, सिग सॉयर राइफल और M777 हॉवित्जर खरीदे।
    • भारत में GE F-414 जेट इंजन के निर्माण और MQ-9B हाई-एल्टीट्यूड लॉन्ग-एंड्योरेंस (HALE) UAV की खरीद के लिये चल रही चर्चा भारत की 'मेक इन इंडिया' पहल के अनुरूप स्वदेशी उत्पादन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर बढ़ते महत्त्व को दर्शाती है।
  • INDUS-X: जून 2023 में भारत-अमेरिका रक्षा त्वरण पारिस्थितिकी तंत्र (INDUS-X:) के शुभारंभ ने रक्षा नवाचार और औद्योगिक सहयोग को बढ़ावा दिया।
    • वर्ष 2023 में, रक्षा सहयोग रोडमैप ने सूचना, निगरानी और पूर्व परिक्षण (ISR), अंडरसी डोमेन जागरूकता और एयर कॉम्बैट सिस्टम जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर प्रकाश डाला।
  • I2U2 समूह: I2U2 में भारत, इज़राइल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं, जो जल, ऊर्जा, परिवहन, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य एवं खाद्य सुरक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त निवेश व नई पहलों के लिये समर्पित हैं।

समय के साथ भारत और अमेरिका के संबंध कैसे विकसित हुए हैं?

  • शीत युद्ध काल:
    • शीत युद्ध के दौरान, भारत और अमेरिका विपरीत पक्षों पर थे, भारत गुटनिरपेक्षता का अनुसरण कर रहा था तथा पाकिस्तान अमेरिका के साथ था। 
    • वर्ष 1990 के दशक में भारत के आर्थिक उदारीकरण और शीत युद्ध की समाप्ति के बाद संबंधों में सुधार हुआ। 
    • वर्ष 2000 में राष्ट्रपति क्लिंटन की भारत यात्रा ने एक महत्त्वपूर्ण मोड़ दिया, जिससे रणनीतिक वार्ता एवं आर्थिक सहयोग में वृद्धि हुई, जिसे वर्ष 2004 में रणनीतिक साझेदारी में अगले चरण (NSSP) द्वारा और मज़बूत किया गया।
  • परमाणु समझौता:
    • वर्ष 2008 के असैन्य परमाणु समझौते ने भारत के परमाणु अलगाव को समाप्त कर दिया और इसे एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दी, रक्षा एवं उच्च तकनीक क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाया तथा भारत की वैश्विक स्थिति को बढ़ाने के लिये अमेरिकी प्रतिबद्धता को मज़बूत किया।
  • आर्थिक तालमेल: वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 118.28 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँच गया, जिससे अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।
    • अमेरिका-भारत रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी और कोविड-19 टीकों पर सहयोग जैसी पहलों के साथ सहयोग का विस्तार स्वच्छ ऊर्जा, डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं स्वास्थ्य सेवा तक हो गया है।
  • प्रौद्योगिकी सहयोग: यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G में सहयोग के साथ द्विपक्षीय संबंधों की आधारशिला बन गया है।
    • यूएस इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंडोमेंट फंड और यूएस इंडिया एआई इनिशिएटिव एवं आईसीईटी जैसी हालिया पहल तकनीकी सहयोग के रणनीतिक महत्त्व को उजागर करती हैं।
    • भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा हस्ताक्षरित आर्टेमिस समझौते द्विपक्षीय नागरिक अंतरिक्ष संयुक्त कार्य समूह के माध्यम से दोनों देशों के सहयोग के साथ अंतरिक्ष अन्वेषण के भविष्य के लिये एक साझा दृष्टिकोण स्थापित करते हैं।
  • भू-राजनीतिक संरेखण: चीन के उदय ने भारत और अमेरिका को रणनीतिक रूप से करीब ला दिया है।
    • क्वाड का पुन:प्रवर्तन और भारत का अमेरिकी इंडो-पैसिफिक रणनीति में शामिल होना इस संरेखण को दर्शाता है, जो ‘स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक’ पर जोर देता है तथा भू-राजनीतिक सहयोग को गहरा करता है।

भारत-अमेरिका संबंधों के लिये चुनौतियाँ क्या हैं?

  • मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्य: अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों के साथ व्यवहार को लेकर चिंताओं से अमेरिका और भारत के बीच संबंध प्रभावित हुए हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने से धर्मनिरपेक्षता एवं सहिष्णुता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के विषय पर चर्चा शुरू हो गई है।
  • चीन के साथ रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा: जबकि दोनों देश चीन को एक रणनीतिक चुनौती के रूप में देखते हैं, उनके दृष्टिकोण कभी-कभी अलग हो जाते हैं। चीन के साथ भारत के आर्थिक संबंध कभी-कभी अमेरिकी हितों के अनुकूल नहीं होते हैं, जिससे तनाव उत्पन्न होता है। 
  • व्यापार और आर्थिक विवाद: व्यापार विवाद, संरक्षणवादी उपाय और बाज़ार पहुँच एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों पर चिंताएँ एक व्यापक व्यापार सौदाकारी तक अभिगम के प्रयासों को जटिल बनाती हैं।
  • भू-राजनीतिक संरेखण: शीत युद्ध के दौरान भारत की गुटनिरपेक्षता की विरासत, जिसके कारण उसका झुकाव सोवियत संघ की ओर था, अभी भी द्विपक्षीय संबंधों में धारणाओं और अपेक्षाओं को प्रभावित करती है।
    • भारत अमेरिका और रूस दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना चाहता है। यह संतुलनकारी कार्य तनाव उत्पन्न कर सकता है, विशेषकर तब जब अमेरिका को उम्मीद है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत रूस की कड़ी निंदा करेगा।

आगे की राह

  • कूटनीतिक चिंताओं का समाधान: भारत और अमेरिका को लोकतंत्र व रणनीतिक सहयोग से संबंधित मुद्दों से निपट कर तनावों को हल करना चाहिये जिसमें iCET जैसी पहलों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • वैश्विक सेतु के रूप में भारत की भूमिका: भारत पश्चिम और विकासशील देशों के बीच के अंतर को कम करने के लिये G20 एवं शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों में अपने नेतृत्व का लाभ उठा सकता है।
  • आतंकवाद-रोधी सहयोग को प्रोत्साहन: आतंकवाद-रोधी प्रयासों को गति देते हुए, विशेष रूप से अफगानिस्तान द्वारा तालिबान के नेतृत्व वाले प्रबंधन में और आतंकवादी समूहों के समर्थन को रोकने के लिये पाकिस्तान पर दबाव डालने की आवश्यकता है।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों और AI पर फोकस: उभरती प्रौद्योगिकियों और AI पर सहयोग बढ़ाने के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये डेटा विनियमन, सूचना साझाकरण एवं गोपनीयता पर जोर देने की आवश्यकता है।
  • बहुपक्षीय समन्वय को आगे बढ़ाना: अंतर्राष्ट्रीय रणनीतिक मुद्दों को हल करने के लिये क्वाड और I2U2 जैसे मंचों में समन्वय को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
  • आर्थिक जुड़ाव को बढ़ावा दें: iCET जैसी पहलों के साथ आर्थिक विकास और बाज़ार पहुँच को बढ़ावा देते हुए व्यापार, निवेश एवं तकनीकी सहयोग को बढ़ाने की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत-अमेरिका संबंधों के विकास पर चर्चा कीजिये। भारत-अमेरिका रक्षा संबंध भारत के अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत ने निम्नलिखित में से किस देश से बराक एंटी मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदी? (2008)

(a) इज़रायल
(b) फ्राँस
(c) रूस
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका 

उत्तर: (a)


प्रश्न. हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने ‘ऑस्ट्रेलिया समूह’ तथा ‘वासेनार व्यवस्था’ के नाम से ज्ञात बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं में भारत को सदस्य बनाए जाने का समर्थन करने का निर्णय लिया है। इन दोनों व्यवस्थाओं के बीच क्या अंतर है? (2011)

  1. ‘ऑस्ट्रेलिया समूह’ एक अनौपचारिक व्यवस्था है जिसका लक्ष्य निर्यातक देशों द्वारा रासायनिक तथा जैविक हथियारों के प्रगुणन में सहायक होने के जोखिम को न्यूनीकृत करना है, जबकि ‘वासेनार व्यवस्था’ OECD के अंतर्गत गठित औपचारिक समूह है जिसके समान लक्ष्य हैं।
  2. ‘ऑस्ट्रेलिया समूह’ के सहभागी मुख्यतः एशियाई, अफ्रीकी और उत्तरी अमेरिका के देश हैं, जबकि ‘वासेनार व्यवस्था’ के सहभागी मुख्यतः यूरोपीय संघ और अमेरिकी महाद्वीप के देश हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है ? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020)

प्रश्न. भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019)