भारतीय अर्थव्यवस्था
वर्ष 2030 तक भारत का 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का वस्तु निर्यात लक्ष्य
- 16 May 2024
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism- CBAM), उत्सर्जन व्यापार प्रणाली ( Emission Trading System- ETS), हरित ऊर्जा, विश्व व्यापार संगठन, विदेश व्यापार नीति, यूरोपीय संघ (European Union- EU) मेन्स के लिये:यूरोपीय संघ (European Union- EU) की हालिया व्यापार प्रतिबंधक नीतियों के कारण भारतीय निर्यात के समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने आवश्यक बुनियादी ढाँचे संबंधी आवश्यकताओं, संभावित क्षेत्रों और समूहों की पहचान करने के लिये एक प्रक्रिया शुरू की है जो देश को वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापारिक निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा।
- हालाँकि, भविष्य की इस संभावना को पूरा करने की राह में एक व्यापक चुनौती समग्र आपूर्ति शृंखला में धारणीय पद्धतियों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना है। यह निर्णय हाल ही में यूरोपीय संघ (European Union- EU) द्वारा पारित एक अन्य पर्यावरण कानून - कॉर्पोरेट सस्टेनेबिलिटी ड्यू डिलिजेंस डायरेक्टिव (CSDDD) का अनुसरण करते हुए लिया गया है।
भारत के निर्यात की वर्तमान स्थिति:
- विदेश व्यापार नीति (FTP), 2023 का लक्ष्य वर्ष 2030 तक भारत के निर्यात को 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना है। यह निर्यात के उभरते क्षेत्रों जैसे उच्च तकनीक विनिर्माण, फार्मास्यूटिकल्स और ई-कॉमर्स पर केंद्रित है।
- भारत का व्यापारिक निर्यात वर्ष 2013-14 के 314 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 451 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, जो औसतन 5% की वार्षिक दर से बढ़ रहा है।
- भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात गंतव्यों के मामले में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा संयुक्त अरब अमीरात (UAE) प्रमुख बाज़ार बने हुए हैं। भारत बांग्लादेश, इंडोनेशिया और नीदरलैंड जैसे बाज़ारों में निर्यात तक पहुँच बढ़ाकर इस संदर्भ में विविधीकरण कर रहा है।
- हालाँकि भारत का व्यापार घाटा पिछले दशक में दोगुना से अधिक हो गया है, जो वर्ष 2022-23 में 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक तक पहुँच गया है।
सतत् एवं पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाने के संदर्भ में भारतीय निर्यात के समक्ष उत्पन्न बाधाएँ:
- आयातक देशों के जटिल पर्यावरण नियम:
- वस्त्र उद्योग (जल-गहन कपास और जूट की कृषि) जैसे क्षेत्रों एवं अन्य से संबंधित भारतीय निर्यातक यदि सतत् उत्पादन प्रथाओं को नहीं अपनाते हैं, तो इन्हें निर्यात में जटिलता का सामना करना पड़ सकता है।
- उदाहरण: यूरोपीय संघ (EU) ने हाल ही में कॉर्पोरेट सस्टेनेबिलिटी ड्यू डिलिजेंस डायरेक्टिव (CSDDD) को पारित किया है।
- इस कानून के तहत यूरोपीय संघ में कार्यरत कंपनियों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी कि उनकी संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला (कच्चे माल की सोर्सिंग से लेकर उत्पादन तक) में पर्यावरणीय नियमों का पालन होने के साथ सतत् प्रथाओं का पालन होता है।
- वस्त्र उद्योग (जल-गहन कपास और जूट की कृषि) जैसे क्षेत्रों एवं अन्य से संबंधित भारतीय निर्यातक यदि सतत् उत्पादन प्रथाओं को नहीं अपनाते हैं, तो इन्हें निर्यात में जटिलता का सामना करना पड़ सकता है।
- सतत् उत्पादों के लिये बढ़ती उपभोक्ता मांग:
- यदि उपभोक्ता यह विचार नहीं करते हैं कि भारतीय निर्यातकों के उत्पाद सतत् हैं, तो वे घरेलू सामान, कपड़े और जूते जैसे उद्योगों में बाज़ार की हिस्सेदारी खो सकते हैं। ग्राहक उन प्रतिद्वंद्वियों से विकल्प चुन सकते हैं जो स्थिरता को अधिक प्राथमिकता देते हैं।
- उदाहरण: वैश्विक स्तर पर उपभोक्ता तेज़ी से पर्यावरण अनुकूल उत्पादों का चयन कर रहे हैं। मुख्यतः फैशन ब्रांडों को जैविक कपास (organic cotton) अथवा पॉलिएस्टर जैसी पुनर्नवीनीकरण योग्य सामग्री का उपयोग करने के लिये।
- भारतीय निर्यातक जो पारदर्शी और सतत् आपूर्ति शृंखला का प्रदर्शन नहीं कर सकते, उन्हें कुछ निर्यात बाज़ारों तक पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
- उदाहरण:आपूर्ति शृंखला में पारदर्शिता बढ़ाने की कई देश मांग कर रहे हैं। इसमें विनिर्माण प्रक्रिया के दौरान नैतिक श्रम मानकों (समान वेतन, सुरक्षित कामकाज़ी परिस्थितियों) और पारिस्थितिक रूप से अनुकूल स्रोतों को बनाए रखना शामिल है।
- यदि उपभोक्ता यह विचार नहीं करते हैं कि भारतीय निर्यातकों के उत्पाद सतत् हैं, तो वे घरेलू सामान, कपड़े और जूते जैसे उद्योगों में बाज़ार की हिस्सेदारी खो सकते हैं। ग्राहक उन प्रतिद्वंद्वियों से विकल्प चुन सकते हैं जो स्थिरता को अधिक प्राथमिकता देते हैं।
- कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र:
- भारतीय निर्यातकों, विशेष रूप से इस्पात (स्टील) या सीमेंट उत्पादन जैसे भारी उद्योगों को, अपने उच्च कार्बन फुटप्रिंट( Carbon Footprint) के कारण बढ़ी हुई लागत का सामना करना पड़ सकता है। इससे वैश्विक बाज़ार में उनके उत्पाद कम उत्सर्जन वाले उत्पादों की तुलना में कम प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं।
- उदाहरण: यूरोपीय संघ (EU) जैसे समूह कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) जैसे कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र को लागू कर रहे हैं।
- भारतीय निर्यातकों, विशेष रूप से इस्पात (स्टील) या सीमेंट उत्पादन जैसे भारी उद्योगों को, अपने उच्च कार्बन फुटप्रिंट( Carbon Footprint) के कारण बढ़ी हुई लागत का सामना करना पड़ सकता है। इससे वैश्विक बाज़ार में उनके उत्पाद कम उत्सर्जन वाले उत्पादों की तुलना में कम प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं।
- बुनियादी ढाँचे और जागरूकता की कमी:
- कुशल अपशिष्ट प्रबंधन से उपलब्ध नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसी सतत् प्रथाओं के लिये बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण भारत को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- इसके अलावा, कंपनियों को स्थिरता के मूल्य और इसे प्राप्त करने के सर्वोत्तम तरीकों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता हो सकती है।
यूरोपीय संघ के पर्यावरण नियम भारत के निर्यात लक्ष्यों को कैसे प्रभावित करते हैं?
- भारत के निर्यात के लिये संवहनीयता के मुद्दे:
- यूरोपीय संघ को भारत के प्रमुख निर्यात, जैसे लौह अयस्क और इस्पात, क्रमशः 19.8% से 52.7% तक के कार्बन टैक्स के कारण एक महत्त्वपूर्ण संकट का सामना कर रहे हैं।
- भारत में कोयला उत्पादित विद्युत का अनुपात लगभग 75% है, जो यूरोपीय संघ (15%) और वैश्विक औसत (36%) से बहुत अधिक है।
- बढ़ी हुई लागत और अनुपालन भार:
- भारत के लौह, इस्पात और एल्युमीनियम के निर्यात का एक-चौथाई से अधिक भाग यूरोपीय संघ को जाता है। हालाँकि, इन उद्योगों को भय है कि संभावित यूरोपीय संघ टैरिफ इन निर्यातों की लागत को 20 से 35% तक बढ़ा सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त, भारतीय कंपनियों को अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में कठोर उद्यम प्रकियाओं को लागू करने की आवश्यकता होगी। इन प्रक्रियाओं में ऑडिट, निगरानी तथा जोखिम मूल्यांकन शामिल है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई बलात् श्रम का उपयोग या पर्यावरणीय क्षति न हो। इन प्रक्रियाओं से संभवतः परिचालन लागत में वृद्धि होगी।
- बाज़ार पहुँच चुनौतियाँ:
- जो कंपनियाँ CSDDD मानकों का अनुपालन करने में विफल रहती हैं, उन्हें EU को निर्यात करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। ये निर्देश ऐसी कंपनियों को नागरिक दायित्व दावों तथा निर्देशों गैर-अनुपालन के लिये यूरोपीय संघ के बाज़ार से संभावित बहिष्कार की शक्ति प्रदान करते हैं।
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये संकट:
- CBAM द्वारा प्रारंभ में कुछ क्षेत्रों को प्रभावित करने की संभावना है, परंतु भविष्य में अन्य क्षेत्रों में भी इसका विस्तार हो सकता है, जैसे परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद, कार्बनिक रसायन, फार्मा दवाएँ और कपड़ा, जो यूरोपीय संघ द्वारा भारत से आयातित शीर्ष 20 वस्तुओं में से एक हैं।
- चूँकि, भारत में कोई घरेलू कार्बन मूल्य निर्धारण योजना नहीं है, इससे निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये अधिक संकट उत्पन्न होता है, क्योंकि कार्बन मूल्य निर्धारण प्रणाली वाले अन्य देशों को कम कार्बन कर देना पड़ सकता है या संभवतः कर से छूट मिल सकती है।
संवहनीयता संबंधी बाधाओं का मुकाबला करने के लिये भारत द्वारा क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- वैश्विक आपूर्ति शृंखला (GVC) का एकीकरण:
- भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के विशाल नेटवर्क में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की आवश्यकता है, यह आपूर्ति शृंखला वैश्विक व्यापार का 70% भाग है, जोकि एक महत्त्वपूर्ण विकास अवसर है।
- विश्व भर के अनुमान बताते हैं कि GVC भागीदारी में 1% की वृद्धि प्रतिव्यक्ति आय को 1% से अधिक तक बढ़ा सकती है, विशेषकर जब देश सीमित और उन्नत विनिर्माण में संलग्न हों।
- अवसंरचना प्रोत्साहन:
- भारत को निर्यात और आयात में अनुमानित वृद्धि को संभालने के लिये बंदरगाहों, हवाई अड्डों तथा रेलवे के विकास पर ध्यान देना चाहिये।
- भारत सरकार ने सहयोग के लिये एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank- ADB) के साथ साझेदारी की है जो निर्यात वृद्धि के लिये उचित क्षेत्रों की पहचान करेगा तथा 2030 तक कुल व्यापार मात्रा में अनुमानित 2.5 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे का विकास करेगा जो सही दिशा में एक कदम है।
- सामूहिक चुनौतियाँ व्यक्त करना:
- भारत को CBAM और CSDDD से संबंधित विकासशील देशों की सामूहिक चुनौतियों को विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाना चाहिये, यह कहते हुए कि यह 'सामान्य लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारी' के महत्त्वपूर्ण सिद्धांत को कमज़ोर करता है।
- विकासशील विश्व की औद्योगीकरण की क्षमता पर प्रतिबंध लगाकर, CBAM अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौतों में परिकल्पित समानता को चुनौती देता है।
- भारत को CBAM और CSDDD से संबंधित विकासशील देशों की सामूहिक चुनौतियों को विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाना चाहिये, यह कहते हुए कि यह 'सामान्य लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारी' के महत्त्वपूर्ण सिद्धांत को कमज़ोर करता है।
- निर्यात कर पर विचार:
- एक रणनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में भारत यूरोपीय संघ से निर्यात पर समान कर लगाने पर विचार कर रहा है। हालाँकि इससे उत्पादकों पर तुलनीय कर का भार पड़ सकता है, लेकिन इससे उत्पन्न धनराशि पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन प्रक्रियाओं में पुनर्निवेश करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है।
- यह न केवल वर्तमान करों के प्रभाव को कम करता है बल्कि भविष्य में संभावित कटौती के लिये भारत को अनुकूल स्थिति में भी रखता है।
- इस जवाबी उपाय की सफलता इन अनिश्चितताओं से निपटने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने पर निर्भर करता है।
- एक रणनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में भारत यूरोपीय संघ से निर्यात पर समान कर लगाने पर विचार कर रहा है। हालाँकि इससे उत्पादकों पर तुलनीय कर का भार पड़ सकता है, लेकिन इससे उत्पन्न धनराशि पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन प्रक्रियाओं में पुनर्निवेश करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है।
निर्यात वृद्धि को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख सरकारी पहल क्या हैं?
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. यूरोपीय संघ (EU) द्वारा हाल ही में व्यापार प्रतिबंधित करने वाली नीतियों और भारतीय निर्यातकों पर उनके प्रभाव के बारे में चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किसने अपने नागरिकों के लिये दत्त संरक्षण (डेटा प्रोटेक्शन) और प्राइवेसी के लिये 'सामान्य दत्त संरक्षण विनियमन (जेनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन)' नामक एक कानून अप्रैल 2016 में अपनाया और उसका 25 मई, 2018 से कार्यान्वयन शुरू किया? (2019) (a) ऑस्ट्रेलिया उत्तर: (c) प्रश्न2. व्यापक-आधारयुक्त व्यापार और निवेश करार (ब्रॉड-बेस्ड ट्रेड ऐंड इन्वेस्टमेंट ऐग्रीमेंट/BTIA)' कभी-कभी समाचारों में भारत तथा निम्नलिखित में से किस एक के बीच बातचीत के संदर्भ में दिखाई पड़ता है? (2017) (a) यूरोपीय संघ उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. "वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस० डी० जी०) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018) |