भारत का विदेशी बंदरगाह निवेश | 17 Feb 2025
प्रारंभिक परीक्षा:दक्षिण चीन सागर, भारत-प्रशांत महासागर पहल, सागर (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास), भारत की एक्ट ईस्ट नीति, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, समुद्री भारत विज़न 2030, सागरमाला कार्यक्रम, मोतियों की माला, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा मुख्य परीक्षा:भारत का विदेशी बंदरगाह निवेश, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री अवसंरचना में भारत की उपस्थिति बढ़ाने की पहल, भारत की विदेशी समुद्री उपस्थिति के लिये चुनौतियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी राष्ट्रपति राष्ट्रीय सुरक्षा ज्ञापन (PNSM-2) ईरान पर "अधिकतम दबाव" को लागू करता है, जिसमें विशेष रूप से चाबहार बंदरगाह का उल्लेख है।
- इससे भारत के विदेशी बंदरगाह निवेश और व्यापार पर चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं, तथा क्षेत्र में इसके भू-रणनीतिक और आर्थिक हितों पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
भारत के प्रमुख विदेशी बंदरगाह निवेश क्या हैं?
- हाइफा बंदरगाह (इज़रायल): यह भारत-इज़रायल व्यापार, सुरक्षा संबंधों और भूमध्यसागरीय संपर्क को बढ़ाता है।
- मोंगला और चटगाँव बंदरगाह (बाँग्लादेश): इससे भारत-बाँग्लादेश व्यापार, ट्रांसशिपमेंट और पूर्वोत्तर कनेक्टिविटी में सुधार होगा, तथा परिवहन लागत में कमी आएगी।
- दुक्म बंदरगाह (ओमान): यह भारत की खाड़ी उपस्थिति, नौसैनिक संचालन और ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ करता है।
- सित्तवे बंदरगाह (म्याँमार): यह कलादान परियोजना का हिस्सा है, जो पूर्वोत्तर भारत और आसियान के साथ संपर्क को बढ़ावा देगा तथा सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता को कम करेगा।
- सबांग बंदरगाह (इंडोनेशिया): भारत तथा इंडोनेशिया मलक्का जलडमरूमध्य के पास सबांग बंदरगाह पर सहयोग कर रहे हैं।
- त्रिंकोमाली और कांकेसंथुराई बंदरगाह (श्रीलंका): व्यापार और यात्री संपर्क बढ़ाना, भारत-श्रीलंका समुद्री संबंधों को मज़बूत करना।
भारत के विदेशी बंदरगाह निवेश का क्या महत्त्व है?
- भू-राजनीतिक और सामरिक महत्त्व: भारत का विदेशी बंदरगाह निवेश, प्रमुख समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने के साथ चीन के BRI प्रभुत्व (जैसे, ग्वादर, हंबनटोटा) का मुकाबला करने में सहायक है।
- चाबहार (ईरान) और कोलंबो (श्रीलंका) जैसे बंदरगाह क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाने में सहायक होने के साथ मध्य एशिया के साथ व्यापार को मज़बूत करते हैं।
- दुकम (ओमान) जैसे रणनीतिक स्थान सैन्य एवं रसद संबंधी लाभ प्रदान करते हैं जिससे हिंद महासागर में भारत की समुद्री सुरक्षा और प्रभाव को मज़बूती मिलती है।
- आर्थिक और व्यापारिक लाभ: भारत के विदेशी बंदरगाह निवेश से व्यापारिक मार्ग (जैसे, चाबहार, हाइफा) में वृद्धि होने एवं पारगमन लागत में कमी आने के साथ आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार होगा।
- ये मध्य एशिया और अफ्रीका के स्थलरुद्ध बाज़ारों तक पहुँच को सुगम बनाने में सहायक हैं जिससे व्यापार के अवसर बढ़ते हैं।
- इसके अतिरिक्त, ये निवेश द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के साथ दीर्घकालिक आर्थिक एवं कूटनीतिक साझेदारी को बढ़ावा देने में सहायक हैं।
- ऊर्जा सुरक्षा: यह हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में प्रमुख पारगमन बिंदुओं को नियंत्रित करने के क्रम में प्रमुख तेल एवं गैस आयात की सुरक्षा के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक है।
- ये वैकल्पिक मार्ग (जैसे, चाबहार) की सुविधा प्रदान करके आपूर्ति शृंखला व्यवधानों को भी कम करने में सहायक हैं जिससे क्षेत्रीय संघर्षों या नाकेबंदी से उत्पन्न होने वाली समस्याओं में कमी आती है।
भारत अपनी वैश्विक समुद्री उपस्थिति बढ़ाने के क्रम में और क्या पहल कर रहा है?
- क्षेत्रीय संपर्क को मज़बूत करना:
- INSTC
- अफ्रीका-एशिया विकास गलियारा (AAGC): AAGC एक भारत-जापान पहल है जो बुनियादी ढाँचे, व्यापार और क्षमता निर्माण के माध्यम से एशिया-अफ्रीका संपर्क को बढ़ाने पर केंद्रित है।
- शिपिंग अवसंरचना में निवेश:
- नौसेना कूटनीति और सुरक्षा पहल:
- गहन समुद्र में अन्वेषण और जल के नीचे की अवसंरचना:
विदेशी बंदरगाह निवेश से संबंधित क्या चुनौतियाँ हैं?
- भू-राजनीतिक जोखिम: ग्वादर और हंबनटोटा में चीन के निवेश से भारत को समुद्री परियोजनाओं का विस्तार करने की प्रेरणा मिली है लेकिन मेजबान देशों (जैसे श्रीलंका) में राजनीतिक बदलाव से निवेश स्थिरता पर प्रभाव पड़ता है।
- इसके अतिरिक्त आतंकवाद और संघर्ष (जैसे कि चाबहार में भारतीय श्रमिकों पर तालिबान के हमले और सित्तवे बंदरगाह को प्रभावित करने वाली म्यांमार की अस्थिरता) से सुरक्षा चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- प्रतिबंध और नियामक बाधाएँ: ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण चाबहार बंदरगाह का परिचालन बाधित होने से भारत की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी प्रभावित हो रही है।
- इसके अतिरिक्त संवेदनशील क्षेत्रों में भारत की साझेदारी पर पश्चिमी देशों की निगरानी के चलते निवेश निर्णयों के संबंध में भू-राजनीतिक दबाव उत्पन्न होता है।
- आंतरिक नीतिगत बहस: इस बात पर चर्चा चल रही है कि क्या सरकारी स्वामित्व वाली इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) या निजी संस्थाओं को विदेशी बंदरगाह निवेश का नेतृत्व करना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त ठेके देने और परियोजनाओं के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेहिता को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं।
आगे की राह:
- कूटनीतिक एवं रणनीतिक साझेदारियाँ: भारत को पूर्वी अफ्रीका, इंडोनेशिया और दक्षिण एशिया में नए बंदरगाह निवेश को सुरक्षित करने के लिये कूटनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करना चाहिये, साथ ही संयुक्त उद्यमों को सुविधाजनक बनाने और चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिये पश्चिमी सहयोगियों के साथ संबंधों को मज़बूत करना चाहिये।
- भारत को अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में अपनी भूमिका पर ज़ोर देते हुए चाबहार पर प्रतिबंधों में छूट की मांग करनी चाहिये, साथ ही आईएनएसटीसी के माध्यम से व्यापार में विविधता लाकर उस पर निर्भरता कम करनी चाहिये।
- क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाना: भारत को दक्षिण एशिया में चीनी ऋण-जाल कूटनीति के लिये एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में खुद को स्थापित करना चाहिये। श्रीलंका में अमेरिका समर्थित निवेश का लाभ उठाकर भारत अपनी समुद्री उपस्थिति को मज़बूत कर सकता है।
- संतुलित निवेश दृष्टिकोण: भारत को सतत् समुद्री अवसंरचना विकास के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), संप्रभु निधि और बहुपक्षीय समर्थन (ADB) का लाभ उठाते हुए राज्य संचालित संस्थाओं और निजी खिलाड़ियों के साथ एक संकर निवेश मॉडल अपनाना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत के विदेशी बंदरगाह निवेश के क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव पर पड़ने वाले प्रभाव का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स: प्रश्न. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह विकसित करने का क्या महत्त्व है?(2017) (a) अफ्रीकी देशों से भारत के व्यापार में अपार वृद्धि होगी। उत्तर: C मेन्स: प्रश्न. इस समय जारी अमेरिका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद भारत के राष्ट्रीय हितों को किस प्रकार प्रभावित करेगा? भारत को इस स्थिति के प्रति क्या रवैया अपनाना चाहिये? (2018) प्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017) |