भारत का राजकोषीय समेकन | 27 Jan 2025
प्रिलिम्स के लिये:राजकोषीय घाटा, GDP, राजकोषीय समेकन, राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003, कर चोरी, मुद्रास्फीति, मुद्रा विनिमय दर, राजस्व घाटा, मध्यम अवधि राजकोषीय नीति विवरण, मैक्रोइकॉनॉमिक फ्रेमवर्क विवरण, राजकोषीय नीति रणनीति विवरण, प्रभावी राजस्व घाटा, एन.के. सिंह समिति, राजकोषीय परिषद, प्राथमिक घाटा, MSME, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था में राजकोषीय समेकन का महत्त्व, राजकोषीय समेकन में भारत का प्रदर्शन और संबंधित चिंताएँ |
स्रोत: लाइव मिंट
चर्चा में क्यों?
भारत ने अपने राजकोषीय घाटे को वित्त वर्ष 2020-21 में महामारी काल के सकल घरेलू उत्पाद के 9.2% के उच्च स्तर से घटाकर वित्त वर्ष 2023-24 में अनुमानित 5.6% कर दिया है, जबकि वित्त वर्ष 2024-25 में इसे 4.9% किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है ।
- लक्षित व्यय और बढ़े हुए राजस्व संग्रह के माध्यम से, देश ने राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003 के अंतर्गत राजकोषीय समेकन में पर्याप्त प्रगति की है।
राजकोषीय समेकन क्या है?
- राजकोषीय समेकन का तात्पर्य दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये सरकारी वित्त के विवेकपूर्ण प्रबंधन से है।
- यह सरकारी राजस्व (कर और गैर-कर प्राप्तियाँ) को व्यय के साथ संतुलित करने पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य राजकोषीय घाटे को न्यूनतम करना, लोक ऋण को नियंत्रित करना और सतत् आर्थिक विकास में सहायता करना है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- विवेकपूर्ण व्यय: बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे आवश्यक, कुशल और उत्पादक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- राजस्व अनुकूलन: कर संग्रह को अधिकतम करना, कर चोरी को कम करना और कर आधार को व्यापक बनाना।
- घाटा नियंत्रण: अत्यधिक उधार लेने से बचने के लिये राजकोषीय घाटे को सीमित किया जाता है।
- ऋण प्रबंधन: आर्थिक संकटों से बचने के लिये लोक ऋण को धारणीय बनाए रखना।
- जवाबदेही: अंकेक्षण और विनियमों के अनुपालन के माध्यम से पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
- महत्त्व:
- समष्टि आर्थिक स्थिरता: इसके माध्यम से सरकारी उधारी में कमी ला कर (मुद्रा का अल्प परिसंचरण) मुद्रास्फीति नियंत्रित होती है, मुद्रा विनिमय दरों में स्थिरता आती है (विनिमय दरों की अस्थिरता में कमी ला कर) और स्थिर आर्थिक विकास सुनिश्चित होता है।
- ऋण बोझ में कमी: इससे अधारणीय उधारी से बचा जा सकता है, जिससे भावी पीढ़ियों पर बोझ कम हो जाता है।
- निवेशक विश्वास: घरेलू और विदेशी निवेश आकर्षित करते हुए सुदृढ़ आर्थिक प्रबंधन होता है।
- कुशल संसाधन उपयोग: इससे व्यर्थ व्यय की रोकथाम होती है और यह सुनिश्चित होता है कि संसाधन विकास प्राथमिकताओं की ओर निर्देशित हों।
राजकोषीय समेकन से आर्थिक स्थिरता और विकास किस प्रकार प्रभावित होता है?
- मुद्रास्फीति नियंत्रण: FRBM अधिनियम, 2003 के तहत, सरकार की उधारी को कम करते हुए वित्तीय वर्ष 2018-19 में राजकोषीय घाटा GDP का 3.4% हो गया जो वित्तीय वर्ष 2013-14 में GDP का 4.5% था।
- अत्यधिक उधारी और सरकारी खर्च पर अंकुश लगाकर, राजकोषीय समेकन कीमतों को स्थिर रखने और मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में मदद करता है।
- पूंजीगत व्यय में वृद्धि: कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत ने MSME और विस्थापित व्यक्तियों जैसे क्षेत्रों पर वित्तीय राहत पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता दी, जो वित्त वर्ष 2014-15 में सकल घरेलू उत्पाद के 1.6% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 3.2% हो गया।
- इससे सुभेद्य क्षेत्रों पर नकारात्मक आर्थिक प्रभाव को कम करने में मदद मिली और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे में सुधार हुआ जिससे दीर्घकालिक आर्थिक विकास सुनिश्चित हुआ।
- राजस्व संग्रहण: कर प्रणाली के डिजिटलीकरण से कर संग्रह में अधिक दक्षता आई है, जिससे कर प्राप्तियाँ वित्त वर्ष 2014-15 में सकल घरेलू उत्पाद के 10% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 11.8% हो गई हैं।
- कर राजस्व में वृद्धि से सरकार की लोक सेवाओं में निवेश करने की क्षमता का वर्द्धन हुआ।
- दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार: भारत ने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना शुरू की।
- इससे वैश्विक व्यापार व्यवधानों और भू-राजनीतिक तनावों के प्रभावों को कम करने में मदद मिली तथा वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद स्थिर विकास सुनिश्चित हुआ।
- क्षमता निर्माण: राजकोषीय घाटे में क्रमिक कमी के साथ, भारत निर्यात में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बन गया, आयात पर इसकी निर्भरता कम हो गई तथा इसके व्यापार संतुलन में सुधार हुआ।
- जैसे-जैसे राजकोषीय घाटा कम हुआ और अर्थव्यवस्था अधिक स्थिर हुई, निर्यात में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार हुआ।
FRBM अधिनियम, 2003 क्या है?
- परिचय: राजकोषीय घाटे को कम करने और राजकोषीय उत्तरदायित्व को बढ़ावा देने के लिये सरकार में वित्तीय समेकन स्थापित करने हेतु वर्ष 2003 में FRBM अधिनियम अधिनियमित किया गया था।
- मुख्य विशेषताएँ: संघ और राज्यों द्वारा राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 3% (संघ) और GSDP (राज्य) के 3% तक कम करना तथा वर्ष 2008 तक राजस्व घाटे को समाप्त करना।
- केंद्रीय बजट के साथ मध्यम अवधि की राजकोषीय नीति, व्यापक आर्थिक ढाँचा और राजकोषीय नीति रणनीति विवरण प्रस्तुत करना।
- छूट संबंधी खंड: FRBM अधिनियम, 2003 की धारा 4(2) के तहत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा/युद्ध की स्थिति, राष्ट्रीय आपदा आदि जैसी स्थितियों में गंभीर आर्थिक संकट के समय अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को सकल घरेलू उत्पाद के 0.5% तक बढ़ा सकती है।
- संशोधन: वर्ष 2012 में इसमें संशोधन करके 0% राजस्व घाटे की आवश्यकता को हटा दिया गया तथा इसके स्थान पर वर्ष 2015 तक 0% प्रभावी राजस्व घाटा अनिवार्य कर दिया गया।
- प्रभावी राजस्व घाटा का तात्पर्य राजस्व घाटे में से उस धनराशि को घटाना है जो पूंजीगत परिसंपत्तियों के निर्माण के लिये राज्यों को दी गई है।
- वर्ष 2016 में इस अधिनियम के लक्ष्यों की कठोरता को देखते हुए इसमें सुधार का सुझाव देने के लिये एन.के. सिंह समिति का गठन किया गया था।
एन.के. सिंह समिति की सिफारिशें:
- विचलन: केंद्र और राज्य दोनों सरकारें राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को सकल घरेलू उत्पाद के 0.5% तक बढ़ा सकती हैं।
- 0% का प्राथमिक घाटा लक्ष्य वर्ष 2022-23 तक स्थानांतरित किया गया (पहले के वर्ष 2020-21 से)।
- प्राथमिक घाटा सरकार के राजकोषीय घाटे और मौजूदा सार्वजनिक ऋण पर ब्याज भुगतान के बीच का अंतर है।
- 0% का प्राथमिक घाटा लक्ष्य वर्ष 2022-23 तक स्थानांतरित किया गया (पहले के वर्ष 2020-21 से)।
- प्राथमिक लक्ष्य के रूप में ऋण: कठोर राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के बजाय ऋण में कमी पर ध्यान केंद्रित करना।
- राजकोषीय परिषद: राजकोषीय नीति की देखरेख के लिये स्वतंत्र सदस्यों वाली एक स्वायत्त राजकोषीय परिषद का गठन।
- उधार: RBI से उधार लेने पर प्रतिबंध, केवल विशिष्ट मामलों में ही इसकी अनुमति जैसे:
- प्राप्तियों में अस्थायी कमी को पूरा करना।
- लक्ष्य से विचलन के क्रम में RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद।
- कुछ परिस्थितियों में RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों को सब्सक्राइब करना।
भारत के राजकोषीय सुदृढ़ीकरण में क्या चुनौतियाँ हैं?
- कल्याण से समझौता: आलोचकों का तर्क है कि राजकोषीय घाटे को कम करने पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करने से आर्थिक विकास के लिये आवश्यक खर्च सीमित हो सकता है तथा लोक कल्याण कार्यक्रमों पर नकारात्मक प्रभाव (क्योंकि 3% GDP लक्ष्य बहुत महत्त्वाकांक्षी है) पड़ सकता है।
- भू-राजनीतिक तनाव: जटिल विनियमन और टैरिफ के साथ व्यापार की गतिशीलता में बदलाव से राजकोषीय स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है और घरेलू उद्योगों एवं आत्मनिर्भरता का समर्थन करने के क्रम में सरकारी खर्च पर दबाव बढ़ सकता है। उदाहरण के लिये, ट्रंप की टैरिफ संबंधी धमकियाँ।
- अस्थिर पूंजी प्रवाह: विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ब्याज दरों में वृद्धि के कारण भारत में पूंजी प्रवाह अस्थिर होता है। अप्रत्याशित बहिर्वाह से राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है या मुद्रा स्थिरता पर दबाव पड़ सकता है।
- राज्यों के घाटे में वृद्धि: कई राज्य बढ़ते राजकोषीय घाटे (जो GSDP के अनुशंसित 3% से अधिक है) से ग्रस्त हैं। उदाहरण के लिये, हिमाचल प्रदेश (4.7%), आंध्र प्रदेश (4.2%)।
- इसके अलावा कई राज्यों में ऋण-GDP अनुपात में वृद्धि देखी जा रही है।
- पूंजीगत व्यय को बनाए रखना: राजकोषीय घाटे को बढ़ाए बिना पूंजीगत निवेश का 3.2% बनाए रखना उच्च उधार लागत, कम कर अनुपालन एवं संग्रहण आदि के कारण एक चुनौती है।
आगे की राह
- कर सुधार: कर आधार में सुधार (विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में कर दरों में वृद्धि किये बिना अधिक कर संग्रह करके) तथा भ्रष्टाचार को समाप्त करके अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक बोझ डाले बिना राजकोषीय लक्ष्यों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- राज्य सरकारों को अपनी विशिष्ट चुनौतियों के अनुरूप राजकोषीय सुधार लागू करने तथा फिजूलखर्ची को कम करने की आवश्यकता है।
- निवेश बनाम घाटा नियंत्रण: राजकोषीय सुदृढ़ीकरण बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन भारत को इसे दीर्घकालिक विकास की आवश्यकता के साथ संतुलित करना होगा, क्योंकि अत्यधिक सख्त उपाय से निवेश में बाधा आ सकती है।
- उदाहरण के लिये, 14वें वित्त आयोग (2013-2014) ने दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करते हुए संवृद्धि एवं विकास को समर्थन देने के क्रम में राजकोषीय प्रबंधन में अधिक लचीलेपन की सिफारिश की।
- मौद्रिक एवं राजकोषीय समन्वय: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और सरकार को मुद्रा बाज़ारों में अस्थिरता को प्रबंधित करने तथा मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिये प्रभावी ढंग से समन्वय करना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत की व्यापक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने में राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। राजकोषीय घाटे को कम करने के लिये क्या कदम उठाए गए हैं तथा इसमें कौन सी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. शासन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त में से किसका उपयोग भारत में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के उपायों के रूप में किया जा सकता है? (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा अपने प्रभाव में सबसे अधिक मुद्रास्फीतिकारक हो सकता है? (2021) (a) सार्वजनिक ऋण की चुकौती उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. पूंजी बजट और राजस्व बजट के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिये। इन दोनों बजटों के संघटकों को समझाइये। (2021) प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019) |