भूगोल
खनन पट्टों में गैर-खनिज क्षेत्रों को शामिल करना
- 07 Dec 2024
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:खनन पट्टे, खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957, सर्वोच्च न्यायालय, अपशिष्ट प्रबंधन, भारतीय खान ब्यूरो (IBM), अवैध खनिज निष्कर्षण, ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF), राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET), खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023, महत्त्वपूर्ण खनिज, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन। मेन्स के लिये:भारत की खनिज नीति, आर्थिक शासन, सतत् संसाधन प्रबंधन और पर्यावरण विनियमों का महत्त्व। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, केंद्र सरकार ने खनन गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने और उद्योग की चुनौतियों का समाधान करने के लिये राज्य सरकारों को खनन अपशिष्ट/ओवरबर्डन के डंपिंग के उद्देश्य से मौजूदा खनन पट्टों में गैर-खनिज क्षेत्रों को शामिल करने की अनुमति दी है।
- खान मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 के अंतर्गत अपशिष्ट निपटान जैसी सहायक गतिविधियों के लिये गैर-खनिज क्षेत्रों को खनन पट्टे में शामिल किया जा सकता है।
- यह व्याख्या खान अधिनियम, 1952 और खनिज रियायत नियम, 2016 के नियम 57 के अनुरूप है, जो पट्टा क्षेत्र में सहायक क्षेत्रों को शामिल करने की अनुमति प्रदान करता है।
खनन और खनिजों के विनियमन के लिये सर्वोच्च न्यायालय के क्या निर्णय हैं?
- केंद्र का प्राथमिक प्राधिकार: वर्ष 1989 में इंडिया सीमेंट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में सात न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया कि खनन विनियमन मुख्य रूप से खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 और संघ सूची की प्रविष्टि 54 के माध्यम से केंद्र के प्राधिकार के अंतर्गत आता है ।
- करों पर राज्य प्राधिकरण: उड़ीसा राज्य बनाम एमए टुलोच एंड कंपनी मामले में, यह माना गया कि राज्य केवल रॉयल्टी एकत्र कर सकते हैं, अतिरिक्त कर नहीं लगा सकते, क्योंकि रॉयल्टी को करों के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
- पश्चिम बंगाल राज्य बनाम केसोराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड मामले में वर्ष 2004 में दिये गए फैसले में इस वर्गीकरण पर सवाल उठाया गया, जिसके कारण नौ न्यायाधीशों द्वारा इसकी समीक्षा की गई।
- वर्ष 1989 के फैसले को पलटना: जुलाई, 2024 में न्यायालय ने राज्यों के पक्ष में फैसला सुनाया (1989 के फैसले को पलट दिया), जिसमें सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 50 के तहत खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार दिया, लेकिन संसद को खनिज विकास में बाधाओं को रोकने के लिये प्रतिबंध लागू करने तक सीमित कर दिया।
- हालाँकि, कुछ न्यायाधीशों ने चिंता व्यक्त की कि अनियंत्रित राज्य कराधान से खनिज मूल्य निर्धारण और विकास में संघीय एकरूपता बाधित हो सकती है, इसलिये उन्होंने संसद से इसमें स्थिरता लाने के लिये हस्तक्षेप करने का आग्रह किया।
गोवा फाउंडेशन बनाम भारत संघ मामला, 2014: वैध पट्टा क्षेत्रों के बाहर डंपिंग के विरुद्ध
- बाह्य डंपिंग पर प्रतिबंध: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि पर्यावरणीय और कानूनी उल्लंघनों को रोकने के लिये वैध खनन पट्टों की सीमाओं के बाहर खनन अपशिष्ट/ओवरबर्डन की डंपिंग प्रतिबंधित है।
- गैर-खनिज क्षेत्रों का संरक्षण: फैसले में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि गैर-खनिज क्षेत्रों का उपयोग खनन संबंधी गतिविधियों के लिये नहीं किया जाना चाहिये, तथा उनका संरक्षण और उचित विनियमन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- खनन कानूनों के साथ संरेखण: न्यायालय के निर्णय ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 और संबंधित कानूनों के अनुपालन को सुदृढ़ किया, जो भूमि के अनधिकृत उपयोग को प्रतिबंधित करते हैं।
- खनन गतिविधियों पर प्रभाव: खनन कार्यों में पट्टे वाले क्षेत्रों के भीतर अपशिष्ट प्रबंधन को शामिल करना आवश्यक था, जिसके कारण नियोजन एवं भूमि आवंटन में परिवर्तन करना पड़ा।
हाल ही में गैर-खनिज क्षेत्रों को शामिल किये जाने के क्या निहितार्थ हैं?
- सुव्यवस्थित संचालन: खनन पट्टों अथवा खनिपट्टों में गैर-खनिज क्षेत्रों को शामिल करने से ओवरबर्डन और अपशिष्ट का सुरक्षित और कुशल प्रबंधन सुनिश्चित होता है , तथा उद्योग की परिचालन चुनौतियों का समाधान होता है।
- खनिज प्राप्त करने के लिये हटाए गए चट्टानों, मृदा और सामग्रियों से जनित ओवरबर्डन का सुरक्षित खनन के दृष्टिगत उचित प्रबंधन किया जाना चाहिये।
- गैर-खनिज क्षेत्रों (वे क्षेत्र जहाँ महत्त्वपूर्ण खनिज भंडार नहीं हैं) को राज्य सरकारों द्वारा ओवरबर्डन निपटान के लिये आवंटित किया जा सकता है तथा यदि वे समीपस्थ हैं तो उन्हें बिना नीलामी के खनन पट्टों में जोड़ा जा सकता है।
- 2014 के निर्णय के अनुरूप: यह निर्णय वैध पट्टा क्षेत्रों के बाहर डंपिंग के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय के 2014 के निर्णय के अनुरूप है।
- भूमि का कुशल उपयोग: पट्टा क्षेत्रों के भीतर अपशिष्ट निपटान की अनुमति देने से गैर-खनिज क्षेत्रों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित होता है तथा ऐसे प्रयोजनों के लिये अलग से नीलामी की आवश्यकता नहीं होती।
- उद्योग विकास: परिचालन संबंधी बाधाओं को कम करना, स्थायी खनिज निष्कर्षण को प्रोत्साहित करना और खनन क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देना।
- राज्य अपशिष्ट प्रबंधन के लिये सन्निहित या असम्बद्ध गैर-खनिजीकृत क्षेत्रों का आवंटन कर सकते हैं, यदि इससे खनिज विकास को लाभ मिलता है तथा परिचालन अनुकूल होता है।
- दुरुपयोग के विरुद्ध सुरक्षा: राज्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि गैर-खनिज क्षेत्रों का सत्यापन किया जाए, सीमा निर्धारण के लिये भारतीय खान ब्यूरो (IBM) से परामर्श किया जाए तथा पूरक पट्टों के बारे में IBM को सूचित किया जाए ताकि अवैध खनिज निष्कर्षण को रोका जा सके।
खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 क्या है?
- निर्णायक विधान: इस अधिनियम के माध्यम से भारत के खनन क्षेत्र को नियंत्रित किया जाता है, जिसका उद्देश्य उद्योग का विकास, खनिजों का संरक्षण तथा दोहन में पारदर्शिता एवं दक्षता सुनिश्चित करना है।
- प्रारंभिक उद्देश्य: इस अधिनियम का प्रारंभिक उद्देश्य खनन को बढ़ावा देना, संसाधनों का संरक्षण करना और रियायतों को विनियमित करना था।
- 2015 संशोधन: 2015 में किये गए संशोधन के तहत प्रमुख सुधार पेश किए गए, जिनमें पारदर्शिता के लिये नीलामी पद्धति, खनन प्रभावित क्षेत्रों के लिये ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF) की स्थापना, अन्वेषण को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रीय खनिज खोज न्यास (NMET) की स्थापना और अवैध खनन के लिये कड़े दंड शामिल है।
- 2021 संशोधन: कैप्टिव खदानों का संचालन कंपनियों द्वारा विशेष रूप से अपने स्वयं के उपयोग के लिये खनिजों का उत्पादन करने हेतु किया जाता है। कैप्टिव खदानों से निकाले गए खनिज का, अंतिम उपयोग संयंत्र की संपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद अपने वार्षिक खनिज उत्पादन का 50% तक खुले बाज़ार में विक्रय किये जाने की अनुमति दी गई।
- मर्चेंट खदानों का संचालन खुले बाज़ार में बिक्री के लिये खनिजों का उत्पादन करने के लिये किया जाता है तथा निष्कर्षित खनिजों को विभिन्न खरीदारों को बेचा जाता है, जिनमें वे उद्योग भी शामिल हैं जिनके पास अपनी खदानें नहीं हैं।
- केवल नीलामी रियायतें: यह सुनिश्चित किया गया कि सभी निजी क्षेत्र की खनिज रियायतें नीलामी के माध्यम से दी जाएँ।
- 2023 संशोधन : खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 का उद्देश्य भारत की आर्थिक वृद्धि और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों के अन्वेषण और निष्कर्षण में वृद्धि करना है।
- प्रमुख परिवर्तनों में राज्य अभिकरण अन्वेषण के लिये आरक्षित 12 परमाणु खनिजों की सूची से छह खनिजों को हटाना तथा सरकार को महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये विशेष रूप से रियायतों की नीलामी की अनुमति देना शामिल है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने तथा अवर खनन कंपनियों को गभीरस्थ एवं महत्त्वपूर्ण खनिजों की खोज में शामिल करने के लिये अन्वेषण लाइसेंस की शुरुआत की गई है।
- संशोधन में आयात पर निर्भरता कम करने और लिथियम, ग्रेफाइट, कोबाल्ट, टाइटेनियम और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे आवश्यक खनिजों के खनन में तेज़ी लाने के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया, जो भारत के ऊर्जा संक्रमण और 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत के खनन क्षेत्र के विनियमन में खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 तथा इसके संशोधनों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में 'ज़िला खनिज प्रतिष्ठान (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन्स)' का/के उद्देश्य क्या है/ हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न: प्रश्न. अवैध खनन के परिणाम क्या हैं? कोयला खनन क्षेत्र के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय की “गो” और “नो गो” ज़ोन की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। (2013) |