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नीतिशास्त्र

विरोध की एक पद्धति के रूप में भूख हड़ताल

  • 02 Aug 2024
  • 20 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विरोध का अधिकार, जीवन का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, IPC, BNS

मेन्स के लिये:

हड़ताल का माध्यम भूख, भूख हड़ताल से संबंधित नैतिक दुविधा।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भूख हड़तालों ने हमेशा कई जटिल नैतिक प्रश्न खड़े किये हैं, जैसे कि क्या हड़ताल पर बैठे व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध उसे दवा देना उचित है या फिर क्या उसे ज़बरदस्ती खिलाना एक जोखिम भरी पद्धति है।

भूख हड़ताल क्या है?

  • परिचय:
    • भूख हड़ताल विरोध का एक रूप है जिसमें स्वैच्छिक रूप से भोजन और कभी-कभी जल से भी वंचित रहना शामिल होता है।
    • इनका उपयोग अन्याय को उजागर करके या परिवर्तन की मांग करके दूसरों को प्रेरित करने, हतोत्साहित करने या दबाव डालने के लिये किया जाता है।
    • विरोध की इस पद्धति को अंतिम उपाय के रूप में देखा जा सकता है, जब विरोध के अन्य साधन अनुपलब्ध या अप्रभावी हों।
  • भूख हड़ताल का ऐतिहासिक संदर्भ:
    • प्राचीन प्रथाएँ:
      • ईसाई-पूर्व आयरलैंड के नियमों के अनुसार, भुगतान न किये गए ऋण का विरोध करने तथा ऋणदाता को शर्मिंदा करने के लिये ट्रॉस्कैड (उपवास) का पालन किया जाता था।
      • कल्हण की राजतरंगिणी (प्राचीन कश्मीर के शाही राजवंशों का विवरण) में भी अवांछनीय शाही आदेशों या करों के खिलाफ भूख हड़तालों का कई बार उल्लेख मिलता है।
    • आधुनिक विकास:
      • रूसी राजनीतिक कैदी (1870 का दशक): जेल की स्थितियों का विरोध करने के लिये भूख हड़ताल का सहारा लिया।
      • आयरिश रिपब्लिकन (1917-1920): थॉमस ऐश और टेरेंस मैकस्विनी जैसी प्रमुख हस्तियों की भूख हड़ताल के दौरान मृत्यु हो गई, जिससे आयरिश स्वतंत्रता आंदोलन की ओर ध्यान आकर्षित हुआ।
    • भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों:
      • महात्मा गांधी: उन्होंने उपवास को “सत्याग्रह के शस्त्रागार में एक महान हथियार” बताया और स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कम-से-कम 20 बार इस प्रकार का विरोध किया।
      • जतिन दास (1929): राजनीतिक कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार को उजागर करने वाले 63 दिनों के भूख हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गई।
      • भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त: जेल की खराब स्थितियों का विरोध किया, जिससे व्यापक समर्थन और मीडिया का ध्यान आकर्षित हुआ।
  • स्वतंत्र भारत में भूख हड़ताल का आधुनिक संदर्भ:
  • हालिया उदाहरण:
    • मराठा समुदाय के लिये आरक्षण की मांग को लेकर कार्यकर्त्ता मनोज जरांगे-पाटिल का अनशन।
    • लद्दाख के लिये संवैधानिक सुरक्षा हेतु सोनम वांगचुक की 21 दिन की भूख हड़ताल।
    • फिलिस्तीनी कैदी खादर अदनान की वर्ष 2023 में 87 दिनों की भूख हड़ताल के बाद मृत्यु।

भूख हड़ताल के पक्ष में तर्क क्या हैं?

  • व्यक्तिगत स्वायत्तता और चुनाव की स्वतंत्रता:
    • स्वायत्तता: भूख हड़ताल को व्यक्तिगत स्वायत्तता और आत्मनिर्णय की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है। व्यक्तियों को अपने शरीर के बारे में निर्णय लेने और अपनी इच्छानुसार विरोध करने का अधिकार है।
    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: भूख हड़ताल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक रूप है और व्यक्तियों के लिये शांतिपूर्ण तरीके से अपनी असहमति व्यक्त करने की एक पद्धति है। यह लोकतांत्रिक मूल्यों और विरोध के अधिकार के साथ संरेखित है।
  • अहिंसक प्रतिरोध:
    • अहिंसा: भूख हड़ताल अहिंसक विरोध का एक रूप है, जो नैतिक रूप से हिंसक प्रतिरोध से बेहतर हो सकता है। यह दृष्टिकोण दूसरों को नुकसान पहुँचाए बिना अन्याय की ओर ध्यान आकर्षित कर सकता है।
    • नैतिक उच्च तर्क: दूसरों को कष्ट पहुँचाने के बजाय व्यक्तिगत रूप से कष्ट सहने का विकल्प चुनकर भूख हड़ताल करने वाले लोग नैतिक उच्च तर्क का दावा कर सकते हैं। व्यक्तिगत कष्ट सहन की उनकी इच्छा उस कथित अन्याय को उजागर कर सकती है जिसके खिलाफ वे विरोध कर रहे हैं।
  • अन्याय की ओर ध्यान आकर्षित करना:
    • जागरूकता: भूख हड़ताल प्रभावी रूप से जनता और मीडिया का ध्यान उन मुद्दों की ओर आकर्षित कर सकती है जिन्हें अन्यथा अनदेखा किया जा सकता है। इससे जागरूकता बढ़ सकती है और अधिकारियों पर विरोध की जा रही शिकायतों को दूर करने का दबाव बढ़ सकता है।
    • प्रतीकात्मक शक्ति: भूख हड़ताल का कार्य शक्तिशाली प्रतीकात्मकता रखता है। यह प्रदर्शनकारियों के दृढ़ विश्वास की गहराई और मुद्दे की गंभीरता को दर्शाता है, जो संभावित रूप से जनता की राय तथा समर्थन को प्रेरित करता है।
  • ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व:
    • ऐतिहासिक उदाहरण: भूख हड़ताल का इस्तेमाल कई ऐतिहासिक संदर्भों में प्रभावी ढंग से किया गया है, जैसे कि मताधिकार आंदोलन, महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और हाल ही में राजनीतिक कैदियों के लिये। यह ऐतिहासिक संदर्भ इस प्रथा को नैतिक महत्त्व देता है।
    • सांस्कृतिक अनुनाद: कुछ संस्कृतियों में, भूख हड़ताल विरोध और बलिदान के एक रूप के रूप में गहराई से अनुनाद होती है (जैन की संथारा प्रथा)। वे समुदाय और व्यापक समाज से सहानुभूति तथा एकजुटता प्राप्त कर सकते हैं।
  •  सत्ता की गतिशीलता:
    • सत्ता की गतिशीलता को चुनौती देना: भूख हड़ताल प्रदर्शनकारियों की मांगों को पूरा करने के लिये सत्ता में बैठे लोगों पर दबाव डालकर सत्ता की गतिशीलता को चुनौती दे सकती है। इससे बातचीत और संभावित रूप से शांतिपूर्ण समाधान हो सकता है।

भूख हड़ताल के खिलाफ क्या तर्क हैं?

  • आत्म-क्षति और जीवन-रक्षण:
    • आत्म-क्षति: भूख हड़ताल में जानबूझकर खुद को भूखा रखना शामिल है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य परिणाम या यहाँ तक ​​कि मृत्यु भी हो सकती है।
      • नैतिक दृष्टिकोण से, जानबूझकर खुद को नुकसान पहुँचाना संकट की स्थिति उत्पन्न कर सकती है, विशेषकर अगर विरोध करने के अन्य गैर-हानिकारक तरीके मौजूद हों।
    • जीवन का संरक्षण: धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं सहित कई नैतिक ढाँचे, जीवन के संरक्षण के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं। भूख हड़ताल, विशेष रूप से वह जो गंभीर स्वास्थ्य क्षरण या मृत्यु की ओर ले जाती है, इन सिद्धांतों के विरुद्ध हो सकती है।
  • ज़बरदस्ती और हेरफेर:
    • अवपीड़न/ज़बरदस्ती: भूख हड़ताल को ज़बरदस्ती के एक रूप के तौर पर देखा जा सकता है, जिसमें प्रदर्शनकारियों की मांगों को पूरा करने के लिये अधिकारियों या जनता पर दबाव डाला जाता है।
      • यह किसी की अपनी मांग की निष्पक्षता और वैधता के बारे में नैतिक प्रश्न उठा सकता है।
    • भ्रमित करना: भूख हड़ताल में सहानुभूति और नैतिक अपराधबोध का फायदा उठाकर सार्वजनिक भावना एवं निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को प्रभाव द्वारा भ्रमित किया जा सकता है, जिससे हमेशा तर्कसंगत या न्यायसंगत परिणाम नहीं मिल सकते हैं।
  • दूसरों पर प्रभाव:
    • भावनात्मक बोझ: भूख हड़ताल परिवार, मित्रों और समर्थकों पर एक महत्त्वपूर्ण भावनात्मक बोझ डाल सकती है जो तनाव, चिंता एवं अपराधबोध से पीड़ित हो सकते हैं।
      • यह निर्दोष पक्षों पर विरोध के व्यापक प्रभाव के संदर्भ में नैतिक चिंताओं को उत्पन्न होता है।
    • ज़िम्मेदारी: हड़ताल करने वाले की भलाई की ज़िम्मेदारी दूसरों पर पड़ सकती है जो व्यक्ति के जीवन को बचाने के लिये हस्तक्षेप करने को बाध्य हो सकते हैं और यह संभावित रूप से हड़ताल करने वाले की स्वायत्तता के विरुद्ध हो सकता है।
  • प्रभावशीलता:
    • संदिग्ध प्रभावशीलता: इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि भूख हड़ताल अपने इच्छित लक्ष्यों को प्राप्त करेगी। विरोध की आनुपातिकता और तर्कसंगतता के बारे में नैतिक चिंताएँ भी उठाई जा सकती हैं। 
    • नैतिक परिणाम: सफल होने पर भी, भूख हड़ताल के परिणाम हमेशा नैतिक रूप से उचित नहीं हो सकते हैं।
  • शोषण और भेद्यता:
    • शोषण: कैदियों या हाशिये पर पड़े समूहों सहित कमज़ोर व्यक्तियों को अधिक प्रभावशाली अभिनेताओं द्वारा भूख हड़ताल में भाग लेने के लिये मजबूर किया जा सकता है या उनपर प्रभाव डाला जा सकता है, जिससे शोषण और सूचित सहमति को लेकर चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
      • इसे वास्तविक विकल्प के बजाय हताशा की नैतिक रूप से समस्याग्रस्त स्थिति के रूप में देखा जा सकता है।
  • कानूनी और चिकित्सा नैतिकता:
    • कानूनी दायित्व: अधिकारियों को देखभाल के अपने कर्त्तव्य के बारे में कानूनी और नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
      • उदाहरण के लिये, भूख हड़ताल/अनशन करने वाले को जबरन खाना खिलाना उनकी स्वायत्तता का उल्लंघन माना जा सकता है, लेकिन हस्तक्षेप न करना उपेक्षा के रूप में देखा जा सकता है।
    • चिकित्सा नैतिकता: स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को रोगी की स्वायत्तता का सम्मान करने और जीवन को बचाने के अपने कर्त्तव्य के बीच संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है।
      • “डू नॉ हार्म अर्थात् कोई नुकसान न करें के नैतिक सिद्धांत को भूख हड़ताल करने वाले द्वारा स्वयं को पहुँचाए गए नुकसान के माध्यम से चुनौती मिल सकती है। 

भूख हड़ताल के अन्य आयाम क्या हैं?

  • भूख हड़ताल पर महत्त्वपूर्ण विचार:
    • महात्मा गांधी: 'उपवास' शब्द को प्राथमिकता देते थे और इसे अहिंसक विरोध के रूप में इस्तेमाल करते थे।
      • सत्ता में बैठे लोगों से सुधार की मांग और उनकी अंतरात्मा को अपील करने के उद्देश्य से उपवास किया जाता था। 
      • माना जाता था कि उपवास का इस्तेमाल अधिकारों को छीनने के बजाय "प्रेमी" (जिसे कोई प्यार करता है) के खिलाफ सुधार के लिये किया जाना चाहिये।
    • डॉ. बी.आर. अंबेडकर: ने भूख हड़ताल की ‘असंवैधानिक विधि’ के रूप में आलोचना की।
      • सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये कानूनी फ्रेमवर्क के भीतर रचनात्मक दृष्टिकोण का आह्वान किया।
  • भूख हड़ताल के लिये कानूनी फ्रेमवर्क:
    • जिनेवा कन्वेंशन: जिनेवा कन्वेंशन ने घायल लड़ाकों/अनशनकारियों के उपचार के लिये मानक तय किये हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ये दिशा-निर्देश भूख हड़ताल करने वालों पर किस प्रकार लागू होते हैं।
      • विरोध के रूप में भूख हड़ताल को युद्ध के विस्तार के रूप में देखा जा सकता है, जो स्वास्थ्य पेशेवरों की भूमिका को जटिल बनाता है।
    • भारतीय संदर्भ: मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया था कि भूख हड़ताल पर बैठना IPC की धारा 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत अपराध नहीं माना जा सकता है और यह आत्महत्या का प्रयास नहीं माना जाएगा।
      • हालाँकि BNS की धारा 224 के अनुसार, जो कोई भी व्यक्ति किसी लोक सेवक को अपना काम करने से रोकने या मजबूर करने के लिये आत्महत्या करने की कोशिश करता है, उसे एक वर्ष तक की जेल, ज़ुर्माना, दोनों या सामुदायिक सेवा से दंडित किया जा सकता है।

आगे की राह

  • स्पष्ट एवं विशिष्ट मांगें: भूख हड़ताल के चरम उपाय को उचित ठहराने के लिये, मांगें स्पष्ट रूप से व्यक्त, विशिष्ट और प्राप्त करने योग्य होनी चाहिये। इससे यह सुनिश्चित होता है कि विरोध केवल एक प्रतीकात्मक इशारा नहीं है, बल्कि समाधान की संभावना के साथ एक लक्षित कार्रवाई है।
  • स्वतंत्र मध्यस्थता: एक तटस्थ तीसरे पक्ष के मध्यस्थ को शुरू से ही शामिल किया जाना चाहिये। उनकी भूमिका भूख हड़ताल करने वाले और संबंधित अधिकारियों के बीच बातचीत को सुविधाजनक बनाना होगी, जिसका उद्देश्य प्रदर्शनकारियों के स्वास्थ्य या सुरक्षा से समझौता किये बिना समाधान निकालना होगा।
    • एक स्वतंत्र नैतिक समीक्षा बोर्ड को भूख हड़ताल की आनुपातिकता का आकलन करना चाहिये।
  • स्वास्थ्य देखभाल नैतिकता दिशा-निर्देश: भूख हड़ताल करने वालों का इलाज करने वाले चिकित्सा पेशेवरों के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित किये जाने चाहिये।
    • इन दिशा-निर्देशों में जीवन को बचाने के कर्त्तव्य और रोगी की स्वायत्तता के सम्मान के बीच संतुलन होना चाहिये। उन्हें अनैच्छिक भोजन जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देना चाहिये, जो जटिल नैतिक प्रश्न उठाते हैं।
  • जन जागरूकता और शिक्षा: समाज को भूख हड़ताल के नैतिक निहितार्थों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिये। इसमें व्यक्ति के लिये संभावित परिणामों, समुदाय पर प्रभाव और विरोध के वैकल्पिक रूपों की तलाश करने के महत्त्व को समझना शामिल है।
  • कानूनी ढाँचा: सरकारों को भूख हड़ताल को नियंत्रित करने के लिये विशिष्ट कानूनी ढाँचा विकसित करने पर विचार करना चाहिये। इसमें मध्यस्थता, नैतिक समीक्षा और भूख हड़ताल करने वालों के अधिकारों की सुरक्षा के प्रावधान शामिल हो सकते हैं, साथ ही सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
  • सकारात्मक प्रोत्साहन: भूख हड़ताल के नकारात्मक परिणामों पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित करने के बजाय, नीतियों को शांतिपूर्ण विरोध और संवाद के लिये सकारात्मक प्रोत्साहन को बढ़ावा देना चाहिये। इसमें मध्यस्थता सेवाओं, नागरिक समाज संगठनों तथा रचनात्मक जुड़ाव हेतु मंचों का समर्थन शामिल हो सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भूख हड़ताल से जुड़ी नैतिक दुविधाओं पर चर्चा कीजिये। भूख हड़ताल करने वालों की शिकायतों का समाधान करते समय अधिकारियों को इन चिंताओं को कैसे संतुलित करना चाहिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय संविधान के अंतर्गत धन का केंद्रीकरण किसका उल्लंघन करता है? (2021)

(a) समता का अधिकार   
(b) राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(c) स्वातंत्र्य का अधिकार 
(d) कल्याण की अवधारणा

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित मूल अधिकारों के किस संवर्ग में अस्पृश्यता के रूप में किये गए विभेदन के विरुद्ध संरक्षण समाविष्ण है? (2020)

(a) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(b) स्वतंत्रता का अधिकार
(c) संवैधानिक उपचार का अधिकार
(d) समता का अधिकार

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के संविधानों में समता के अधिकार की धारणा की विशिष्ट विशेषताओं का विश्लेषण कीजिये। (2021)

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