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डेली न्यूज़


भारतीय इतिहास

शहीदी दिवस

  • 24 Mar 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

शहीदी दिवस, भगत सिंह, हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन, चंद्र शेखर आज़ाद, काकोरी केस

मेन्स के लिये:

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, भगत सिंह और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान।

चर्चा में क्यों?

शहीदी दिवस, जिसे शहीद दिवस या सर्वोदय दिवस के रूप में भी जाना जाता है, प्रतिवर्ष 23 मार्च को मनाया जाता है।

  • ज्ञातव्य है कि 30 जनवरी, जिस दिन महात्मा गांधी की हत्या हुई थी, को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है न कि शहीदी दिवस के रूप में।

शहीदी दिवस का इतिहास

  • इसी दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1931 में फांँसी दी थी।
    • इन तीनों को वर्ष 1928 में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के आरोप में फांँसी पर लटका दिया गया था। क्योकि उन्होंने जॉन सॉन्डर्स को ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट समझकर उसकी हत्या कर दी थी।
      • स्कॉट ने ही लाठीचार्ज का आदेश दिया था जिसके कारण अंततः लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।
    • लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की सार्वजनिक घोषणा करने वाले भगत सिंह इस गोलीबारी के बाद कई महीनों तक छिपते रहे और उन्होंने एक सहयोगी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अप्रैल 1929 में दिल्ली में केंद्रीय विधानसभा में दो विस्फोट किये।
      • "इंकलाब जिंदाबाद" का नारा लगाते हुए खुद को गिरफ्तार होने दिया।
  • उनके जीवन ने अनगिनत युवाओं को प्रेरित किया और उनकी मृत्यु ने इन्हें एक मिसाल के रूप में कायम किया। उन्होंने आज़ादी के लिये अपना रास्ता खुद बनाया और वीरता के साथ राष्ट्र हेतु कुछ करने की अपनी इच्छा को पूरा किया। उसके बाद कॉन्ग्रेस नेताओं द्वारा भी उनके मार्ग का अनुसरण किया गया।

भगत सिंह के बारे में:  

Bhagat-Singh

  • प्रारंभिक जीवन:
    • भगत सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1907 में  भागनवाला (Bhaganwala) के रूप में हुआ तथा इनका पालन पोषण पंजाब के दोआब क्षेत्र में स्थित जालंधर ज़िले में संधू जाट किसान परिवार में हुआ।
      • ये एक ऐसी पीढ़ी से संबंधित थे जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दो निर्णायक चरणों में हस्तक्षेप करती थी- पहला लाल-बाल-पाल के 'अतिवाद' का चरण और दूसरा अहिंसक सामूहिक कार्रवाई का गांधीवादी चरण।
  • स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:
    • वर्ष 1923 में भगत सिंह ने नेशनल कॉलेज, लाहौर में प्रवेश लिया, जिसकी स्थापना और प्रबंधन लाला लाजपत राय एवं भाई परमानंद ने किया था।
      • शिक्षा के क्षेत्र में स्वदेशी का विचार लाने के उद्देश्य से इस कॉलेज को सरकार द्वारा चलाए जा रहे संस्थानों के विकल्प के रूप में स्थापित किया गया था।
      • हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य के रूप में भगत सिंह ने ‘बम का  दर्शन’ (Philosophy of the Bomb) को गंभीरता से लेना शुरू किया।
        • क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा द्वारा प्रसिद्ध लेख ‘बम का  दर्शन’ लिखा गया। बम के दर्शन सहित उन्होंने तीन अन्य महत्त्वपूर्ण राजनीतिक दस्तावेज़ लिखे जिनमें नौजवान सभा के घोषणापत्र (Manifesto of Naujawan Sabha) और एचएसआरए के घोषणापत्र (Manifesto of HSRA) थे।
      • उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ सशस्त्र क्रांति को एकमात्र हथियार माना।
    • वर्ष 1925 में भगत सिंह लाहौर लौट आए और अगले एक वर्ष के भीतर उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ‘नौजवान भारत सभा’ नामक एक उग्रवादी युवा संगठन का गठन किया।
    • अप्रैल 1926 में भगत सिंह ने सोहन सिंह जोश के साथ संपर्क स्थापित किया तथा उनके साथ मिलकर ‘श्रमिक और किसान पार्टी’ की स्थापना की, जिसने पंजाबी में एक मासिक पत्रिका कीर्ति का प्रकाशन किया। 
      • भगत सिंह द्वारा पूरे जोश के साथ कार्य किया गया और अगले वर्ष वे कीर्ति के संपादकीय बोर्ड में शामिल हो गए।
    • उन्हें वर्ष 1927 में काकोरी कांड (Kakori Case) में संलिप्त होने के आरोप में पहली बार गिरफ्तार किया गया था तथा अपने विद्रोही (Vidrohi) नाम से लिखे गए लेख हेतु आरोपी माना गया। उन पर दशहरा मेले के दौरान लाहौर में एक बम विस्फोट के लिये ज़िम्मेदार होने का भी आरोप लगाया गया था।
    • वर्ष 1928 में भगत सिंह ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन (HSRA) कर दिया। वर्ष 1930 में जब आज़ाद को गोली मारी गई, तो उनके साथ ही HSRA भी समाप्त हो गया।
      • नौजवान भारत सभा ने पंजाब में HSRA का स्थान ले लिया।
    • जेल में उनका समय कैदियों के लिये रहने की बेहतर स्थिति की मांग हेतु विरोध प्रदर्शन करते हुए बीता। उन्होंने जनता की सहानुभूति प्राप्त की, खासकर तब जब वे साथी अभियुक्त जतिन दास के साथ भूख हड़ताल में शामिल हुए।
      • सितंबर 1929 में जतिन दास की भूख से मृत्यु होने के कारण हड़ताल समाप्त हो गई। इसके दो साल बाद भगत सिंह को दोषी ठहराकर 23 साल की उम्र में फांँसी दे दी गई।

स्रोत: पी.आई.बी.

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