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भारतीय इतिहास

शहीदी दिवस

  • 24 Mar 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

शहीदी दिवस (23 मार्च) के अवसर पर भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को श्रद्धांजलि दी गई। 

  • 23 मार्च को ‘शहीदी दिवस’ या ‘सर्वोदय दिवस’ के रूप में भी जाना जाता है।
  • इस दिन (23 मार्च) और 30 जनवरी को मनाए जाने वाले शहीद दिवस (महात्मा गांधी की हत्या) के संबंध में भ्रमित नहीं होना चाहिये। 

प्रमुख बिंदु:

शहीदी दिवस के बारे में:

  • हर वर्ष 23 मार्च को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • इसी दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1931 में फांँसी दी थी।
    • इन तीनों को वर्ष 1928 में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के आरोप में फांँसी पर लटका दिया गया था। क्योकि उन्होंने जॉन सॉन्डर्स को ब्रिटिश पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट समझकर उसकी हत्या कर दी थी।
      • यह स्कॉट ही था जिसने लाठीचार्ज का आदेश दिया, जिसके कारण अंततः लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई।
    • लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की सार्वजनिक घोषणा करने वाले भगत सिंह इस गोलीबारी के बाद कई महीनों तक छिपते रहे और उन्होंने एक सहयोगी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अप्रैल 1929 में दिल्ली में केंद्रीय विधानसभा में दो विस्फोट किये।
      • उन्होंने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे के साथ अपनी गिरफ्तारी दी। 
  • उनके जीवन ने अनगिनत युवाओं को प्रेरित किया और उनकी मृत्यु ने इन्हें एक मिसाल के रूप में कायम किया। उन्होंने आज़ादी के लिये अपना रास्ता खुद बनाया और वीरता के साथ राष्ट्र हेतु कुछ करने की अपनी इच्छा को पूरा किया। उसके बाद कॉन्ग्रेस नेताओं द्वारा भी उनके मार्ग का अनुसरण किया गया ।

भगत सिंह:

Bhagat-singh

  • भगत सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1907 में  भागनवाला (Bhaganwala) के रूप में हुआ तथा इनका पालन पोषण पंजाब के दोआब क्षेत्र में स्थित जालंधर ज़िले में संधू जाट किसान परिवार में हुआ।
    • ये एक ऐसी पीढ़ी से ताल्लुक रखते थे जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दो निर्णायक चरणों में हस्तक्षेप करती थी- पहला लाल-बाल-पाल के 'अतिवाद' का चरण और दूसरा अहिंसक सामूहिक कार्रवाई का गांधीवादी चरण।
  • वर्ष 1923 में भगत सिंह ने नेशनल कॉलेज, लाहौर में प्रवेश लिया , जिसकी स्थापना और प्रबंधन लाला लाजपत राय एवं भाई परमानंद ने किया था।
    • शिक्षा के क्षेत्र में स्वदेशी का विचार लाने के उद्देश्य से इस कॉलेज को सरकार द्वारा चलाए जा रहे संस्थानों के विकल्प के रूप में स्थापित किया गया था।
  • वर्ष 1924 में वह कानपुर में सचिंद्रनाथ सान्याल द्वारा एक साल पहले शुरू किए गए हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (Hindustan Republican Association) के सदस्य बने। एसोसिएशन के मुख्य आयोजक चंद्रशेखर आज़ाद थे और भगत सिंह उनके बहुत करीब हो गए।
    • हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य के रूप में भगत सिंह ने ‘बम का  दर्शन’ (Philosophy of the Bomb) को गंभीरता से लेना शुरू किया।
    • उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ सशस्त्र क्रांति को एकमात्र हथियार माना।
  • वर्ष 1925 में भगत सिंह लाहौर लौट आए और अगले एक वर्ष के भीतर उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ‘नौजवान भारत सभा’ नामक एक उग्रवादी युवा संगठन का गठन किया।
  • अप्रैल 1926 में भगत सिंह ने सोहन सिंह जोश के साथ संपर्क स्थापित किया तथा उनके साथ मिलकर ‘श्रमिक और किसान पार्टी’ की स्थापना की, जिसने पंजाबी में एक मासिक पत्रिका कीर्ति का प्रकाशन किया। 
    • भगत सिंह द्वारा पूरे जोश के साथ कार्य किया गया और अगले वर्ष वे कीर्ति के संपादकीय बोर्ड में शामिल हो गए।
  • उन्हें वर्ष 1927 में काकोरी कांड (Kakori Case) में संलिप्त होने के आरोप में पहली बार गिरफ्तार किया गया था तथा अपने विद्रोही (Vidrohi) नाम से लिखे गए लेख हेतु आरोपी माना गया। उन पर दशहरा मेले के दौरान लाहौर में एक बम विस्फोट के लिये ज़िम्मेदार होने का भी आरोप लगाया गया था।
  • वर्ष 1928 में भगत सिंह ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन (HSRA) कर दिया। वर्ष 1930 में जब आज़ाद को गोली मारी गई, तो उनके साथ ही HSRA भी समाप्त हो गया।
    • नौजवान भारत सभा ने पंजाब में HSRA का स्थान ले लिया।
  • जेल में उनका समय कैदियों के लिये रहने की बेहतर स्थिति की मांग हेतु विरोध प्रदर्शन करते हुए बीता। उन्होंने जनता की सहानुभूति प्राप्त की, खासकर तब जब वे साथी अभियुक्त जतिन दास के साथ भूख हड़ताल में शामिल हुए।
    • सितंबर 1929 में जतिन दास की भूख से मृत्यु होने के कारण हड़ताल समाप्त हो गई। इसके दो साल बाद भगत सिंह को दोषी ठहराकर 23 साल की उम्र में फांँसी दे दी गई।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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