अवक्रमित (बंजर) भूमि पर बायोमास की खेती | 23 May 2024

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, राष्ट्रीय बायोमास एटलस, भुवन पोर्टल, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन

मेन्स के लिये:

बायोमास की खेती का महत्त्व, जैव ऊर्जा उत्पादन, नवीकरणीय ऊर्जा के लिये सरकार की पहल

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (Principal Scientific Adviser- PSA) ने हाल ही में हरित बायोहाइड्रोजन और जैव ऊर्जा (बायोएनर्जी) उत्पादन हेतु अवक्रमित भूमि पर बायोमास खेती करने हेतु चर्चा के लिये बैठक बुलाई।

  • इस महत्त्वपूर्ण बैठक में बायोमास खेती के लिये अवक्रमित भूमि (बंजर) का उपयोग करने की क्षमता का पता लगाने हेतु प्रमुख हितधारकों और अनुसंधान संस्थानों को एक साथ लाया गया। 
  • बैठक में बायोमास खेती के लिये अवक्रमित भूमि के उपयोग का पता लगाने हेतु प्रमुख हितधारक सरकारी मंत्रालयों, ज्ञान भागीदारों एवं अनुसंधान संस्थानों को एक साथ लाया गया। 

नोट: भारत में वर्ष 1999 से एक प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (PSA) है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम वर्ष 1999-2001 तक देश के पहले PSA रहे थे।

  • PSA के कार्यालय का उद्देश्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के मामलों में प्रधानमंत्री तथा कैबिनेट को व्यावहारिक और उद्देश्यपूर्ण सलाह प्रदान करना है।
  • PSA कार्यालय को वर्ष 2018 में कैबिनेट सचिवालय के अधीन रखा गया था।

बैठक के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • बायोमास खेती की संभावनाएँ:
    • समुद्री शैवाल की खेती: बायोएनर्जी उत्पादन और समुद्री जैव विनिर्माण स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये बायोमास के रूप में समुद्री शैवाल की खेती की संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया।
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने शैवाल, शीरा (Molasses) और गन्ने आदि का उपयोग करके हरित ऊर्जा के लिये बायोमास उत्पादन पर एक प्रस्तुति दी।
  • सरकारी कार्यक्रम और डेटा उपयोग:
    • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का एक उद्देश्य बायोमास-आधारित हरित बायोहाइड्रोजन उत्पादन के लिये केंद्रित पायलट (Focused Pilots) योजना शुरू करना है। 
    • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New & Renewable Energy- MNRE) ने बायोएनर्जी के लिये मंत्रालय में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला तथा अतिरिक्त कृषि-अवशेष अधिशेष संबंधी डेटा के लिये राष्ट्रीय बायोमास एटलस पर भी चर्चा की।
  • आर्थिक और सामरिक रूपरेखा:

नोट:

  • भारत का राष्ट्रीय बायोमास एटलस वह टूल है जो लोगों को देश की बायोमास उपलब्धता के विश्लेषण में सहायता करता है।
    • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के तहत सरदार स्वर्ण सिंह राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा संस्थान (SSS-NIBE) के बायोमास एवं ऊर्जा प्रबंधन प्रभाग ने एक एटलस विकसित किया।
  • यह एटलस राज्य-वार और फसल-वार प्रति फसल उपलब्ध विभिन्न अवशेषों के अंशों के साथ-साथ फसलों की छवियों तथा उनके फसल अवशेषों के अनुपात को भी दर्शाता है।

अवक्रमित भूमि पर बायोमास खेती क्या है?

  • परिचय: अवक्रमित भूमि पर बायोमास खेती से तात्पर्य ऐसी भूमि पर फसल या कार्बनिक पोधों को उगाने की प्रथा से है, जो मृदा के अपरदन, लवणीकरण अथवा वनों की कटाई जैसे कारकों के कारण पारंपरिक कृषि के लिये अनुपयुक्त हो गई है।
    • बायोमास नवीकरणीय कार्बनिक पदार्थ है जो पादपों और जानवरों से प्राप्त होता है। बायोमास में सूर्य से संग्रहीत रासायनिक ऊर्जा होती है जो पादपों द्वारा प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से उत्पन्न होती है।

लाभ:

  • मृदा पुनर्स्थापन और अपरदन की रोकथाम:
    • अवक्रमित भूमि पर जैव ऊर्जा फसलों की खेती मृदा के पुनर्निर्माण में सहायता करती है और मृदा की उर्वरता, गुणवत्ता एवं संरचना को बढ़ाती है।
    • यह मृदा के अपरदन को रोकती है और देशी पादपों की प्रजातियों के लिये एक निवास स्थान निर्मित करता है।
    • यह पुनर्स्थापना प्रक्रिया समग्र जैवविविधता में सुधार करती है और अतिरिक्त कार्बन सिंक प्रदान करती है, जिससे जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध निपटने में सहायता मिलती है।
  • कार्बन पृथक्करण: बायोमास पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जो जलवायु परिवर्तन शमन में योगदान देते हैं।
  • सतत् बायोहाइड्रोजन उत्पादन: बायोमास का उपयोग थर्मोकेमिकल अथवा जैव रासायनिक रूपांतरण नामक प्रक्रिया के माध्यम से हरित बायोहाइड्रोजन उत्पादन के लिये फीडस्टॉक के रूप में किया जा सकता है।
    • ग्रीन बायोहाइड्रोजन एक स्वच्छ जलने वाला ईंधन है जो उत्सर्जन के रूप में जलवाष्प का उत्पादन करता है।
  • बायोएनर्जी उत्पादन: पहले से अवक्रमित अथवा बंजर भूमि पर विशिष्ट जैव ऊर्जा फसलें उगाकर, हम ऊर्जा उत्पादन के लिये उनके बायोमास का उपयोग कर सकते हैं।
    • इन फसलों में तेज़ी से बढ़ने वाले वृक्ष, घास और अन्य पादप शामिल हैं जिनमें ऊर्जा की मात्रा अधिक होती है।
    • बायोमास को ऊर्जा के विभिन्न रूपों जैसे कि जैव ईंधन, बायोगैस अथवा ठोस बायोमास में परिवर्तित किया जा सकता है। 
  • खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना: अवक्रमित या बंजर भूमि पर बायोमास खेती पर ध्यान केंद्रित करके यह उपजाऊ कृषि भूमि का उपयोग करने से बचता है, जो खाद्य फसलों के लिये अधिक उपयुक्त है।
    • यह दृष्टिकोण खाद्यान्नों के विचलन को रोकने में सहायता करता है और कृषि-निर्यात को बढ़ावा देने के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा में भी सुधार करता है।

भारत बायोमास ऊर्जा क्षमता:

  • भारत में एक व्यापक कृषि और उससे संबद्ध क्षेत्र है जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) (~20%) में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है तथा आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत (जनसंख्या का>50%) भी है।
    • यह देश के लिये एक बड़ी और व्यापक रूप से उपलब्ध बायोमास की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
  • बायोमास कई लाभ प्रदान करता है क्योंकि यह नवीकरणीय, कार्बन-तटस्थ है तथा इसमें महत्त्वपूर्ण आजीविका सृजन के अवसर प्रदान करने की क्षमता है।
  • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) के एक हालिया अध्ययन में कृषि अवशेषों से प्रतिवर्ष (2017-18) लगभग 230 मिलियन मीट्रिक टन की अधिशेष बायोमास उपलब्धता एवं देश के लिये लगभग 28 गीगावॉट की बायोमास विद्युत् क्षमता का अनुमान लगाया गया है।
  • बायोमास उत्पादन क्षमता: भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है, जिस कारण यह बायोमास उत्पादन हेतु एक उत्तम वातावरण प्रदान करता है।
    • इसके अलावा, विशाल कृषि क्षमता, ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये बड़े स्तर पर कृषि-अवशेष भी उपलब्ध कराती है।
      • प्रतिवर्ष लगभग 460 मिलियन टन कृषि अपशिष्ट के अनुमानित उत्पादन के साथ, बायोमास लगभग 260 मिलियन टन कोयले की पूर्ति करने में सक्षम है।
    • इससे प्रत्येक वर्ष लगभग 250 अरब रुपए की बचत हो सकती है।

अवक्रमित (बंजर) भूमि पर बायोमास खेती के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • मृदा की गुणवत्ता: बंजर भूमि में अक्सर आवश्यक पोषक तत्त्वों और कार्बनिक पदार्थों की कमी होती है। सफल बायोमास खेती के लिये मृदा की गुणवत्ता का पुनर्वास महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रजातियों का चयन एवं अनुकूलन: उपयुक्त बायोमास फसलों का चयन करना कठिन हो सकता है जो विषम वातावरण में जीवित रह सकें। जलवायु अनुकूल किस्मों और उनकी अनुकूलनशीलता बढ़ाने के लिये शोध की आवश्यकता है।
    • अवक्रमित भूमि के कारण अत्यधिक तापमान, सूखा या बाढ़ का संकट उत्पन्न हो सकता है। 
  • जल उपलब्धता एवं प्रबंधन: अवक्रमित भूमि में अक्सर पर्याप्त जल संसाधनों का अभाव होता है। बायोमास फसलों के लिये कुशल सिंचाई पद्धति विकसित करना आवश्यक है।
  • आर्थिक व्यवहार्यता एवं बाज़ार की मांग: भूमि तैयार करने, रोपण करने और बुनियादी ढाँचे में प्रारंभिक निवेश अधिक हो सकता है।
    • बायोमास फसलों को बायोएनर्जी या अन्य उत्पादों की बाज़ार मांग के अनुरूप होना चाहिये।
    • सरकारें वित्तीय प्रोत्साहन के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहित कर सकती हैं। भूमि का पुनर्वास करते समय आर्थिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करना जटिल है।
  • जैवविविधता एवं पारिस्थितिक प्रभाव: बायोमास फसलों की शुरुआत से जैवविविधता और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकते हैं। कुछ बायोमास फसलें तेज़ी से फैल सकती हैं और देशी वनस्पतियों व जीवों को बाधित कर सकती हैं।
    • पारिस्थितिक प्रभाव को न्यूनतम करने वाली खेती की विधियों को अपनाना आवश्यक है।

आगे की राह 

  • खेती करने की तकनीकें: मृदा की निम्न उर्वरता में सुधार के लिये रणनीतियों को लागू करना चाहियेI इसमें मृदा के स्वास्थ्य में सुधार के लिये खाद और बायोचार जैसे कार्बनिक पदार्थों को शामिल करना या बायोफ्लोक्यूलेशन (Biofloculation) (माइक्रोबियल प्रक्रियाओं का दोहन) जैसी तकनीकों का उपयोग करना शामिल हो सकता है।
  • कृषि वानिकी के साथ बायोमास खेती: अवक्रमित भूमि पर एक बहु-स्तरीय फसल प्रणाली लागू करना चाहिये, जिसमें तेज़ी से बढ़ने वाली वृक्ष की प्रजातियों को देशी घास और फलियुक्त पाैधों के साथ एकीकृत किया जाए।
    • पोंगामिया पिनाटा (Pongamia pinnata) (करंज) जैसे वृक्ष मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा को स्थिर कर सकते हैं, जिससे जैव ईंधन (बायोफ्यूल) उत्पादन के लिये उपयुक्त सूखा-प्रतिरोधी घास जैसी सहवर्ती फसलों की उर्वरता में सुधार हो सकता है।
    • यह रणनीति न केवल जैव ईंधन उत्पादन में सहायता करती है बल्कि जैवविविधता को बढ़ावा देते हुए देशी जीवों के लिये आवास का भी प्रबंध करती है।
  • निम्नीकृत भूमि निदान के लिये ड्रोन: निम्नीकृत भूमि के बड़े क्षेत्रों का त्वरित आकलन करने, मृदा मानचित्रण करने, संभावित बायोमास खेती करने हेतु उपयुक्त क्षेत्रों की पहचान करने और मौज़ूदा जैवविविधता का मूल्यांकन करने के लिये मल्टीस्पेक्ट्रल सेंसर वाले ड्रोन का उपयोग करना।
  • बाज़ार विकास: आर्थिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने और ग्रामीण आजीविका का समर्थन करने वाली मूल्य शृंखला बनाने के लिये बायोमास तथा इसके उप-उत्पादों के लिये बाज़ार तंत्र विकसित करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत की बायोमास ऊर्जा क्षमता और एक सतत् ऊर्जा मिश्रण की दिशा में देश के परिवर्तन के लिये इसके द्वारा प्रस्तुत अवसरों का आकलन कीजिये। इस क्षमता का प्रभावी ढंग से दोहन करने के लिये आवश्यक नीतिगत ढाँचे पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. शर्करा उद्योग के उपोत्पाद की उपयोगिता के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2013)

  1. खोई को, ऊर्जा उत्पादन के  लिये जैव मात्रा ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।
  2. शीरे को, कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों के उत्पादन के लिये एक भरण-स्टॉक की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है।
  3. शीरे को, एथनॉल उत्पादन के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)