GDP आधार वर्ष में संशोधन | 12 Oct 2024

प्रिलिम्स के लिये:

सकल घरेलू उत्पाद, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक, उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण, डिफ्लेटर, CPI, WPI, असंगठित क्षेत्र, आधार वर्ष, राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी पर सलाहकार समिति, वस्तु और सेवा कर, ASUSI (असंगठित क्षेत्र उद्यमों का वार्षिक सर्वेक्षण)

मेन्स के लिये:

आधार वर्ष की अवधारणा, इसके नियमित अद्यतन की आवश्यकता, संबंधित चुनौतियाँ।

स्रोत: बीएस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आधार वर्ष के संशोधन पर विचार-विमर्श करने के लिये कई अर्थशास्त्रियों और पूर्वानुमानकर्त्ताओं की बैठक बुलाई थी।

  • यह सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा व्यापक परामर्श दिये जाने वाले महत्त्व को, शेष रूप से अतीत में आधार वर्ष समायोजन के संबंध में विवाद और आलोचना के आलोक में, रेखांकित करता है।
  • वर्ष 2015 में किये गए पिछले आधार वर्ष संशोधन में आधार वर्ष को वर्ष 2004-05 से बदलकर वर्ष 2011-12 कर दिया गया था, लेकिन पद्धतिगत परिवर्तनों में कथित खामियों के कारण इसकी आलोचना की गई थी।

पिछले आधार वर्ष संशोधन से संबंधित विवाद क्या हैं?

  • पद्धतिगत चिंताएँ: आधार वर्ष के पिछले संशोधन ने निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र (PCS) के सकल घरेलू उत्पाद की गणना को कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) डेटाबेस की ऑडिट की गई बैलेंस शीट से सीधे बदल दिया तथा विनिर्माण क्षेत्र GVA का अनुमान लगाने के लिये PCS डेटा का उपयोग किया गया।
    • इस प्रक्रिया में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) और उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) के आँकड़ों को ज़्यादातर खारिज कर दिया गया।
  • एकल अपस्फीति (डिफ्लेटर) की आलोचना: कई विशेषज्ञों ने वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (Real GDP) वृद्धि को नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद (Nominal GDP) वृद्धि से गणना करने के लिये प्रयोग किये जाने वाले एकल अपस्फीति (सिंगल डिफ्लेटर) पर सवाल उठाया, न कि दोहरे अपस्फीति की अंतर्राष्ट्रीय मानक तकनीक पर।
    • एकल अपस्फीति में विभिन्न मूल्य सूचकांकों जैसे CPI, WPI द्वारा प्रत्येक क्षेत्र में नाममात्र मूल्य-वर्द्धित (Nominal Value-Added) को कम करना शामिल है, जबकि दोहरी अपस्फीति में आउटपुट मूल्यों द्वारा आउटपुट तथा इनपुट मूल्यों द्वारा इनपुट को कम करना शामिल है।
    • GDP मूल्य अपस्फीति, मुद्रास्फीति को ध्यान में रखकर अर्थव्यवस्था में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में परिवर्तन को मापता है।
  • सकल घरेलू उत्पाद अनुमानों में विसंगतियाँ: यद्यपि समग्र सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि मज़बूत प्रतीत होती है तथा उपभोग कमज़ोर प्रतीत होता है, जो महत्त्वपूर्ण माप संबंधी मुद्दों को इंगित करता है।
    • इसके अलावा, सकल घरेलू उत्पाद की गणना के उत्पादन उपकरण और व्यय उपकरण के बीच विसंगति है।
    • कमज़ोर उपभोग (Weak consumption), कम रिपोर्ट की गई आर्थिक गतिविधियों या सकल घरेलू उत्पाद की गणना में मुद्रास्फीति की गणना में समस्याओं का संकेत हो सकता है।
  • आँकड़ों की रिपोर्टिंग: पिछले तीन दशकों में, पंजीकृत कंपनियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, विशेष रूप से सेवा क्षेत्र और वित्त क्षेत्र में। 
    • हालाँकि, घरेलू उत्पादन में उनका योगदान अस्पष्ट है, क्योंकि कई कंपनियां रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (ROC) के पास अपनी ऑडिटेड बैलेंस शीट दाखिल नहीं करती हैं।
  • असंगठित क्षेत्र को कम आंकना: वर्ष 2015 के आधार वर्ष के संशोधन की आलोचना इस कारण हुई कि इसमें सकल घरेलू उत्पाद की गणना के लिये उत्पादक इकाइयों से मूल्य-वर्द्धित आँकड़े शामिल करने की बजाय असंगठित क्षेत्र की बैलेंस शीट का उपयोग किया गया।
    • इसका अर्थ है कि, अनौपचारिक क्षेत्र के उत्पादकों, जो कंपनियों के रूप में सूचीबद्ध नहीं हैं, को कम कवरेज़ प्रदान करना।
  • औसत की गणना की समस्या: उत्पादन और व्यय पक्षों का औसत निकालना विकसित देशों में स्वीकार्य है, लेकिन विकासशील देशों में नहीं, क्योंकि भारत सकल घरेलू उत्पाद के दोनों पक्षों को स्वतंत्र रूप से नहीं मापता है।
    • इसके अलावा, व्यय पक्ष, जिसका उपभोग भी एक हिस्सा है, के आँकड़े भी काफी खराब हैं।

आधार वर्ष क्या है?

  • आधार वर्ष: आधार वर्ष एक विशिष्ट संदर्भ वर्ष है जिसके आधार पर आगामी एवं पूर्ववर्ती वर्षों के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आँकड़ों की गणना की जाती है। 
  • आधार वर्ष की आवश्यकता: यह एक स्थिर संदर्भ बिंदु प्रदान करता है और आर्थिक प्रदर्शन को मापने के लिये एक बेंचमार्क के रूप में कार्य करता है तथा समय के साथ तुलना करने की अनुमति प्रदान करता है। 
    • सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आँकड़ों को किसी विशिष्ट वर्ष से जोड़कर, विश्लेषक आर्थिक प्रदर्शन में रुझानों और बदलावों की स्पष्ट व्याख्या कर सकते हैं।
  • आधार वर्ष की विशेषताएँ: आधार वर्ष एक सामान्य वर्ष होना चाहिये, अर्थात इस वर्ष में सूखा, बाढ़, भूकंप, महामारी आदि जैसी कोई असामान्य घटना घटित नहीं होनी चाहिये। इसके अलावा, यह वर्षों के अंतराल में बहुत अधिक अंतर नहीं होना चाहिये।
  • आधार वर्ष को संशोधित करने के कारण: 
    • संकेतकों की परिवर्तनशील प्रकृति: सकल घरेलू उत्पाद की गणना के लिये संकेतक गतिशील होते हैं तथा उपभोक्ता व्यवहार, आर्थिक संरचना और वस्तु संरचना में बदलाव के कारण समय के साथ बदल सकते हैं।
      • इसके अतिरिक्त, विकसित हो रहे डेटा संकलन तरीकों के लिये नई वर्गीकरण प्रणालियों और डेटा स्रोतों को शामिल करने की आवश्यकता हो सकती है।
      • इस प्रकार, संशोधन यह सुनिश्चित करते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद के आँकड़ें वर्तमान आर्थिक वास्तविकता को प्रतिबिंबित करें।
    • आर्थिक संकेतकों पर प्रभाव : जब आधार वर्ष संशोधन के माध्यम से नए डेटा सेट शामिल किये जाते हैं, तो इससे GDP स्तर में समायोजन हो सकता है। 
      • इन परिवर्तनों का व्यापक आर्थिक संकेतकों पर प्रभाव पड़ता है, जिनमें सार्वजनिक व्यय, कराधान और सार्वजनिक क्षेत्र के ऋण के रुझान शामिल हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय मानक अभ्यास: संयुक्त राष्ट्र-राष्ट्रीय लेखा प्रणाली, 1993 के तहत देशों को समय-समय पर गणना प्रथाओं को संशोधित करने की आवश्यकता होती है।
  • आधार वर्ष संशोधन की आवृत्ति: राष्ट्रीय खातों को नवीनतम उपलब्ध आँकड़ों के अनुरूप रखने के लिये आदर्शतः आधार वर्ष को प्रत्येक 5 से 10 वर्ष में संशोधित किया जाना चाहिये।
  • आधार वर्ष संशोधन का इतिहास: वर्ष 1956 में पहला राष्ट्रीय आय अनुमान वित्त वर्ष 1949 को आधार वर्ष मानकर प्रकाशित किया गया था, तब से भारत ने अपने आधार वर्ष को सात बार संशोधित किया है। 
    • सबसे हालिया संशोधन में आधार वर्ष को वित्त वर्ष 2005 से बदलकर वित्त वर्ष 2012 किया गया था।

नये आधार वर्ष के लिये क्या विचारणीय बातें हैं?

  • सलाहकार समिति का गठन: जून, 2024 में, MoSPI ने GDP डेटा के लिये आधार वर्ष तय करने के लिये बिस्वनाथ गोल्डर की अध्यक्षता में 26 सदस्यीय राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी पर सलाहकार समिति (ACNAS) का गठन किया।
    • समिति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को WPI, CPI और IIP जैसे अन्य वृहद संकेतकों के साथ संरेखित करने पर भी विचार करेगी।
  • संभावित आधार वर्ष: समिति GDP के लिये नए आधार वर्ष के रूप में वित्त वर्ष 2022-23 को चुनने पर विचार कर रही है, हालाँकि वित्त वर्ष 2023-24 पर भी विचार किया जा रहा है।
    • वर्ष 2016 ( नोटबंदी), वर्ष 2017-18 (GST का प्रभाव) और वर्ष 2019-21 ( कोविड-19) को अर्थव्यवस्था में असामान्य परिवर्तनों के कारण शामिल नहीं किया गया है।
  • GST के आँकड़ों का उपयोग: अर्थव्यवस्था का बेहतर तस्वीर प्राप्त करने के लिये नए डेटाबेस को शामिल करने हेतु GDP गणना के लिये वस्तु एवं सेवा कर (GST) डेटाबेस को शामिल करने के संबंध में चर्चा चल रही है।
  • पद्धतिगत सुधार: सलाहकार समिति सूचकांक की संरचना में परिवर्तन करने पर भी विचार कर रही है, जैसे कि ASUSI (असंगठित क्षेत्र उद्यमों का वार्षिक सर्वेक्षण) को शामिल करना और GDP माप सटीकता में सुधार के लिये दोहरी अपस्फीति विधि की खोज करना।

निष्कर्ष:

भारत के GDP आधार वर्ष संशोधनों को लेकर पिछले विवादों के आधार पर, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा विशेषज्ञों को शामिल करने तथा एक सलाहकार समिति स्थापित करने की वर्तमान पहल पारदर्शी और पद्धतिगत रूप से ठोस दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करती है। अद्यतन डेटा स्रोतों तथा कठोर कार्यप्रणालियों को शामिल करने का उद्देश्य GDP अनुमानों की सटीकता एवं विश्वसनीयता को बढ़ाना है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: आर्थिक गणना में आधार वर्ष की अवधारणा को समझाइये तथा यह जीडीपी आँकड़ों की सटीक व्याख्या के लिये यह क्यों आवश्यक है? चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स: 

Q. स्फीति दर में होने वाली तीव्र वृद्धि का आरोप्य कभी-कभी "आधार प्रभाव" (base effect) पर लगाया जाता है। यह "आधार प्रभाव" क्या है? (2011)

(a) यह फसलों के खराब होने से आपूर्ति में उत्पन्न उग्र अभाव का प्रभाव है
(b) यह तीव्र आर्थिक विकास के कारण तेज़ी से बढ़ रही मांग का प्रभाव है
(c) यह विगत वर्ष की कीमतों का स्फीति दर की गणना पर आया प्रभाव है
(d) इस संदर्भ में उपर्युक्त (a), (b) तथा (c) कथनों में से कोई भी सही नहीं है

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न. भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वर्ष 2015 से पहले और वर्ष 2015 के पश्चात् परिकलन विधि में अंतर की व्याख्या कीजिये। (2021)