किसान आंदोलन 2.0 और MSP | 16 Feb 2024

प्रिलिम्स के लिये:

न्यूनतम समर्थन मूल्य, किसान आंदोलन 2.0 और MSP, भूमि अधिग्रहण अधिनियम,2013, विद्युत (संशोधन) विधेयक 2020, डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट।

मेन्स के लिये:

किसान आंदोलन 2.0 और MSP, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों का संग्रहण, विकास, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price - MSP) के लिये कानूनी गारंटी की मांग को लेकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान 'दिल्ली चलो' विरोध प्रदर्शन में दिल्ली की ओर मार्च कर रहे हैं।

किसानों की मुख्य मांगें क्या हैं?

  • किसानों के 12 सूत्रीय एजेंडे में मुख्य मांग सभी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी के लिये एक कानून और डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन (मनकोम्बु संबाशिवन स्वामीनाथन) आयोग की रिपोर्ट के अनुसार फसल की कीमतों का निर्धारण करना है।
    • स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को  MSP को उत्पादन की भारित औसत लागत से कम-से-कम 50% अधिक बढ़ाना चाहिये। इसे C2+ 50% फॉर्मूला के रूप में भी जाना जाता है।
    • इसमें किसानों को 50% रिटर्न देने के लिये पूंजी की अनुमानित लागत और भूमि पर किराया (जिसे 'सी2' कहा जाता है) शामिल है।
      • भूमि, श्रम और पूंजी जैसे संसाधनों के उपयोग की अवसर लागत को ध्यान में रखने के लिये अध्यारोपित लागत (imputed cost) का उपयोग किया जाता है।
      • पूंजी की अध्यारोपित लागत उस ब्याज या रिटर्न को दर्शाती है जो अर्जित किया जा सकता था यदि कृषि में निवेश की गई पूंजी को कहीं और निवेश किया जाता।
  • अन्य मांगें:
    • किसानों और मज़दूरों की पूर्ण क़र्ज़ माफी;
    • भूमि अधिग्रहण अधिनियम,2013 का कार्यान्वयन, जिसमें अधिग्रहण से पहले किसानों से लिखित सहमति और कलेक्टर दर से चार गुना मुआवज़ा देने का प्रावधान है।
      • संग्राहक दर (collector rate) वह न्यूनतम मूल्य है जिस पर किसी संपत्ति को खरीदते या बेचते समय पंजीकृत किया जा सकता है। वे संपत्तियों के कम मूल्यांकन और कर चोरी को रोकने के लिये एक संदर्भ बिंदु के रूप में कार्य करते हैं।
    • अक्टूबर 2021 में लखीमपुर खीरी हत्याकांड के अपराधियों को सज़ा;
    • भारत को विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization - WTO) से बाहर हो जाना चाहिये और सभी मुक्त व्यापार समझौतों (free trade agreements - FTAs) पर रोक लगा देनी चाहिये।
    • किसानों और खेतिहर मज़दूरों के लिये पेंशन।
    • वर्ष 2020 में दिल्ली विरोध प्रदर्शन के दौरान मरने वाले किसानों के लिये मुआवज़ा, जिसमें परिवार के एक सदस्य के लिये नौकरी भी शामिल है।

सरकार की प्रतिक्रिया क्या है?

  • नवंबर 2021 में भारत सरकार ने तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के बाद MSP पर एक समिति बनाने की घोषणा की। इसका उद्देश्य MSP पर चर्चा करना, ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देना और फसल पैटर्न पर निर्णय लेना था। इस समिति का गठन जुलाई 2022 में किया गया था और इसने अब तक कोई रिपोर्ट नहीं दी है।
  • कैबिनेट मंत्रियों और किसान संघ के नेताओं के बीच हाल ही में हुई बैठक के दौरान सरकार ने कृषि, ग्रामीण तथा पशुपालन मंत्रालयों के प्रतिनिधियों के साथ एक नई समिति बनाने की पेशकश की
  • यह समिति किसानों की सभी फसलों के लिये MSP की मांग का समाधान करेगी। सरकार ने वादा किया कि यह नई समिति नियमित रूप से बैठक करेगी और निर्धारित समय सीमा के भीतर काम करेगी।

MSP के कानून में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • जबरन खरीद (Forced Procurement): 
    • सरकार को MSP पर सभी उपज खरीदने का आदेश देने से अत्यधिक उत्पादन हो सकता है, जिससे संसाधनों की बर्बादी और भंडारण की समस्या हो सकती है।
    • यह फसल पैटर्न को भी विकृत(distort) कर सकता है क्योंकि किसान अन्य फसलों की तुलना में MSP वाली फसलों को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे जैवविविधता और मिट्टी के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
    • यदि सरकार को उपज खरीदनी पड़ती है क्योंकि MSP की पेशकश करने वाला कोई खरीददार नहीं है, तो उसके पास बड़ी मात्रा में भंडारण करने और बेचने के लिये संसाधन नहीं हैं।
  • किसानों का आपसी भेदभाव (Discrimination Among Farmers): 
    • ऐसा कानून समर्थित फसलें उगाने वाले किसानों और अन्य फसलें उगाने वाले किसानों के बीच असमानता पैदा कर सकता है।
    • बिना समर्थन वाली फसलें उगाने वाले किसानों को बाज़ार पहुँच और सरकारी समर्थन के मामले में नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
  • व्यापारियों का दबाव (Pressure From Traders):
    • फसल कटाई के दौरान, कृषि उपज की कीमतें आमतौर पर सबसे कम होती हैं, जिससे निजी व्यापारियों को फायदा होता है जो इस समय खरीदारी करते हैं। इस वजह से, निजी व्यापारी MSP के किसी भी कानूनी आश्वासन का विरोध करते हैं।
  • वित्तीय बोझ (financial burden):
    • सभी फसलों को MSP पर खरीदने की बाध्यता के कारण बकाया भुगतान और राजकोषीय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • सामाजिक निहितार्थ (Societal Implications): 
    • विकृत फसल पैटर्न और अत्यधिक खरीद के व्यापक सामाजिक प्रभाव हो सकते हैं, जो खाद्य सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता तथा समग्र आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।

MSP को कानूनी रूप देने के बजाय किसानों की आय की रक्षा के लिये क्या पहल की जा सकती है?

  • विशेषज्ञ केवल MSP पर निर्भर रहने के बजाय किसानों को सीधे पैसा देने का सुझाव देते हैं। इस तरह, किसानों को स्थिर आय मिलती है, चाहे बाज़ार कैसा भी हो।
    • इसका संबंध कुछ फसलों के लिये कीमतों की गारंटी देने के बजाय किसानों के पास पर्याप्त पैसा नहीं होने की बड़ी समस्या को ठीक करने से है।
  • प्रत्यक्ष आय सहायता को लागू करने में विभिन्न रणनीतियाँ शामिल हो सकती हैं, जैसे कि:
    • प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण: किसानों को उनकी आय बढ़ाने और वित्तीय तनाव कम करने के लिये सीधे नकद भुगतान प्रदान करना।
      • सरकार पूरे मूल्य समर्थन पैकेज और उर्वरक सब्सिडी को शामिल करके तथा राजस्व-तटस्थ तरीके से किसानों को बहुत अधिक पीएम-किसान भुगतान में PM- किसान योजना का विस्तार करने के बारे में सोच सकती है।
      • यह योजना वर्तमान में किसानों को प्रति वर्ष 6000 रुपए सीधे नकद भुगतान प्रदान करती है।
    • बीमा योजनाएँ:
      • ऐसी बीमा योजनाएँ शुरू करना जो फसल की विफलता, मूल्य अस्थिरता या प्रतिकूल मौसमीय स्थिति जैसे कारकों के कारण किसानों की आय के नुकसान की भरपाई करती हैं।
      • कृषि आदानों (inputs), उपकरणों, प्रौद्योगिकी अपनाने और उच्च मूल्य वाली फसलों या वैकल्पिक आजीविका में विविधीकरण का समर्थन करने के लिये सब्सिडी या अनुदान की पेशकश करना।
    • मूल्य-अंतरण भुगतान विकल्प: सरकार MSP और किसानों द्वारा बेची जाने वाली दर के बीच मूल्य अंतर का भुगतान करने पर भी विचार कर सकती है।
      • हरियाणा और मध्य प्रदेश ने भावांतर भरपाई योजना (मूल्य-अंतरण मुआवज़ा योजना) नामक योजना के तहत इस विकल्प को लागू किया है।
      • मध्यप्रदेश की 'भावांतर भुगतान योजना' के तहत किसानों को भुगतान औसत बाज़ार मूल्य और फसलों के MSP के बीच के अंतर को कवर करता है। यदि किसानों को खुले बाज़ार में MSP से नीचे अपनी उपज बेचनी पड़ी, तो उन्हें मुआवज़ा दिया गया।

WTO और FTA से संबंधित किसानों की चिंताएँ क्या हैं?

  • बाज़ार तक पहुँच: 
    • किसानों को चिंता है कि FTA और WTO नियमों से सस्ते कृषि आयात से प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, जिससे घरेलू कीमतें कम हो सकती हैं तथा स्थानीय उत्पादकों को नुकसान हो सकता है।
    • किसान इन समझौतों को छोटे और मध्यम आकार के किसानों के बजाय बहुराष्ट्रीय निगमों तथा बड़े पैमाने के कृषि व्यवसायों के पक्ष में मानते हैं
  • आयातित वस्तुएँ:
    • इन समझौतों से अन्य देशों से सब्सिडी वाले कृषि उत्पादों की आमद होती है, जिससे घरेलू बाज़ार में बाढ़ आ सकती है और स्थानीय रूप से उत्पादित फसलों की कीमतें कम हो सकती हैं।
    • इससे भारतीय किसानों के लिये प्रतिस्पर्धा करना और अपनी आजीविका बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।
  • कृषि पद्धतियों पर प्रभाव: 
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते कृषि पद्धतियों पर ऐसे नियम या मानक भी लागू करते हैं जिन्हें भारतीय किसान अपनी पारंपरिक खेती पद्धतियों के साथ बोझिल या असंगत पाते हैं।
    • इसमें कीटनाशकों के उपयोग, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव या पर्यावरण मानकों से संबंधित आवश्यकताएँ शामिल हो सकती हैं।
  • संप्रभुता और स्वायत्तता:
    • कुछ किसान WTO से हटने तथा मुक्त व्यापार समझौतों पर अंकुश लगाने को भारत की कृषि नीतियों पर संपूर्ण प्रभुत्त्व और नियंत्रण हासिल करने के एक तरीके के रूप में देखते हैं।
    • उनका तर्क है कि ऐसे समझौते लघु पैमाने के किसानों के हितों को प्राथमिकता देने वाली नीतियों के कार्यान्वन और नागरिकों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सरकार की क्षमता को सीमित करते हैं।

MSP और किसानों की मांग की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • मौजूदा MSP बनाम कृषकों की मांगे:
    • रबी मार्केटिंग सीज़न 2024-25 के लिये सरकार द्वारा निर्धारित गेहूँ का MSP 2,275 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है जो किसानों द्वारा मांगी गई लागत यानी C2 प्लस 50% से अधिक है।
    • हालाँकि MSP A2+FL फॉर्मूला पर आधारित है जिसमें केवल किसानों द्वारा भुगतान की गई लागत शामिल है जिसके परिणामस्वरूप C2 प्लस 50% की तुलना में MSP कम है।
  • CACP की अनुशंसाएँ और कार्यप्रणाली:
    • कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) A2+FL फॉर्मूले के आधार पर MSP निर्धारित करने की अनुशंसा करता है जिसमें केवल भुगतान की गई लागत तथा पारिवारिक श्रम का अनुमानित मूल्य शामिल होता है।
      • यह C2 फॉर्मूले से भिन्न है जिसमें किसान के स्वामित्व वाली भूमि के किराये और स्थिर पूंजी पर ब्याज़ जैसे अतिरिक्त कारक शामिल हैं।
  • उत्पादन लागत पर रिटर्न:
    • पंजाब में गेहूँ का उत्पादन लागत (C2) 1,503 रुपए प्रति क्विंटल है जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2,275 रुपए प्रति क्विंटल है।
      • इसका अर्थ यह है कि किसानों को उत्पादन लागत से 772 रुपए प्रति क्विंटल अधिक मिलता है जो उत्पादन लागत पर 51.36% का रिटर्न दर्शाता है।
    • इसी प्रकार पंजाब में धान की उत्पादन लागत पर रिटर्न 49% का था और A2+FL पर यह 152% था।

विश्व भर में किसान विरोध प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं?

  • दक्षिण अमेरिका:
    • किसान निर्यात के लिये प्रतिकूल विनिमय दर, अधिरोपित उच्च कर, आर्थिक मंदी और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं जैसे कारकों के कारण विरोध कर रहे हैं जिनसे फसलें प्रभावित होती हैं तथा कृषि उत्पादन कम होता है।
      • ब्राज़ील में कृषक वर्ग आनुवंशिक रूप से संशोधित मक्का के परिणामस्वरूप होने वाली अनुचित प्रतिस्पर्द्धा के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
      • वेनेज़ुएला में किसान सहायिकी युक्त डीज़ल की मांग कर रहे हैं।
      • कोलंबियाई धान उत्पादक अपनी फसल के लिये कीमतों में वृद्धि करने की मांग कर रहे हैं।
  • यूरोप:
    • किसान फसल की कम कीमतों, बढ़ती लागत, अल्प लागत वाले आयात और यूरोपीय संघ द्वारा अधिरोपित सख्त पर्यावरण नियमों का विरोध कर रहे हैं।
      • फ्राँस में अल्प लागत वाले आयात, अपर्याप्त सहायिकी और उच्च उत्पादन लागत के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किये जा रहे हैं।
  • उत्तर और मध्य अमेरिका:
    • मैक्सिकन किसान मक्के और गेहूँ की फसल के लिये दिये जाने वाले अनुचित कीमतों का विरोध कर रहे हैं जबकि कोस्टा रिका के किसान कर्ज़ के बोझ से छुटकारा पाने के लिये अधिक सरकारी सहायता की मांग कार रहे हैं।
    • मेक्सिको के चिहुआहुआ प्रांत में संयुक्त राज्य अमेरिका को सीमित जल आपूर्ति निर्यात करने की योजना पर विरोध प्रदर्शन हुआ।
  • एशिया:
    • भारतीय किसान फसल की गारंटीकृत कीमतों, आय दोगुनी करने और ऋण माफी की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
    • नेपाल में आयातित भारतीय सब्ज़ियों की अनुचित कीमतों के कारण विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है।
    • मलेशियाई और नेपाली किसान क्रमशः चावल तथा गन्ने की कम कीमतों का विरोध कर रहे हैं।
  • ओशिनिया:
    • न्यूज़ीलैंड के किसान खाद्य उत्पादकों को प्रभावित करने वाले सरकारी नियमों का विरोध करते हैं जबकि ऑस्ट्रेलियाई किसान अपनी कृषि भूमि से गुज़रने वाली हाई-वोल्टेज विद्युत लाइनों का विरोध कर रहे हैं।

न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है?

  • परिचय:
    • MSP वह गारंटीकृत राशि है जो किसानों को तब दी जाती है जब सरकार उनकी फसल खरीदती है।
    • MSP कृषि लागत और मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs and Prices- CACP) की सिफारिशों पर आधारित है, जो उत्पादन लागत, मांग तथा आपूर्ति, बाज़ार मूल्य रुझान, अंतर-फसल मूल्य समानता आदि जैसे विभिन्न कारकों पर विचार करता है।
      • CACP कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है। इसका गठन जनवरी 1965 में किया गया।
    • भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCEA) MSP के स्तर पर अंतिम निर्णय (अनुमोदन) लेती है।
    • MSP का उद्देश्य उत्पादकों को उनकी फसल के लिये लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करना और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना है।
  • MSP के तहत फसलें:
    • CACP, 22 अधिदिष्ट फसलों (Mandated Crops) के लिये MSP और गन्ने के लिये उचित तथा लाभकारी मूल्य (FRP) की सिफारिश करता है।
    • अधिदिष्ट फसलों में खरीफ सीज़न की 14 फसलें, 6 रबी फसलें और 2 अन्य वाणिज्यिक फसलें शामिल हैं।
  • उत्पादन लागत के तीन प्रकार:
    • CACP प्रत्येक फसल के लिये राज्य और अखिल भारतीय औसत स्तर पर तीन प्रकार की उत्पादन लागत का अनुमान लगाता है।
      • ‘A2’: इसके तहत किसान द्वारा बीज, उर्वरकों, कीटनाशकों, श्रम, पट्टे पर ली गई भूमि, ईंधन, सिंचाई आदि पर किये गए प्रत्यक्ष व्यय को शामिल किया जाता है। 
      • A2+FL': इसके तहत ‘A2’ के साथ-साथ अवैतनिक पारिवारिक श्रम का एक अधिरोपित मूल्य शामिल किया जाता है।
      • ‘C2’: यह एक अधिक व्यापक लागत है, क्योंकि इसके अंतर्गत ‘A2+FL’ में किसान की स्वामित्व वाली भूमि और स्थिर संपत्ति के किराए तथा ब्याज़ को भी शामिल किया जाता है। 
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सिफारिश करते समय CACP द्वारा ‘A2+FL’ और ‘C2’ दोनों लागतों पर विचार किया जाता है। 
      • CACP द्वारा ‘A2+FL’ लागत की ही गणना प्रतिफल के लिये की जाती है। 
      • जबकि ‘C2’ लागत का उपयोग CACP द्वारा मुख्य रूप से बेंचमार्क लागत के रूप में किया जाता है, यह देखने के लिये कि क्या उनके द्वारा अनुशंसित MSP कम-से-कम कुछ प्रमुख उत्पादक राज्यों में इन लागतों को कवर करते हैं।
  • MSP की आवश्यकता: 
    • वर्ष 2014 और वर्ष 2015 में लगातार दो सूखे (Droughts) कि घटनाओं के कारण किसानों को वर्ष 2014 के बाद से वस्तु की कीमतों में लगातार गिरावट का सामना करना पड़ा। 
    • विमुद्रीकरण (Demonetisation) एवं  ‘वस्तु एवं सेवा कर ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था, मुख्य रूप से गैर-कृषि क्षेत्र के साथ-साथ कृषि क्षेत्र को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। 
    • वर्ष 2016-17 के बाद अर्थव्यवस्था में जारी मंदी और उसके बाद कोविड महामारी के कारण अधिकांश किसानों के लिये परिदृश्य विकट बना हुआ है। 
    • डीज़ल, बिजली एवं उर्वरकों के लिये उच्च इनपुट कीमतों ने उनके संकट को और बढ़ाया है। 
    • यह सुनिश्चित करता है कि किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिले, जिससे कृषि संकट एवं निर्धनता को कम करने में मदद मिलती है। यह उन राज्यों में विशेष रूप से प्रमुख है जहाँ कृषि आजीविका का एक प्रमुख स्रोत है।

भारत में MSP व्यवस्था से संबद्ध समस्याएँ:

  • सीमितता:
    • 23 फसलों के लिये MSP की आधिकारिक घोषणा के विपरीत केवल दो- चावल और गेहूँ की खरीद की जाती है क्योंकि इन्हीं दोनों खाद्यान्नों का वितरण राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत किया जाता है। शेष अन्य फसलों के लिये यह अधिकांशतः तदर्थ व महत्त्वहीन ही है। 
    • शेष अन्य फसलों के लिये यह अधिकांशतः तदर्थ व महत्त्वहीन है। इसका अर्थ यह है कि गैर-लक्षित फसलें उगाने वाले अधिकांश किसानों को MSP से लाभ नहीं मिलता है।
  • अप्रभावी कार्यान्वयन:
    • वर्ष 2015 की शांता कुमार समिति की रिपोर्ट के अनुसार किसानों को MSP का मात्र 6% ही प्राप्त हुआ।
    • जिसका अर्थ यह है कि देश के 94% किसान MSP के लाभ से वंचित रहे। इसका मुख्य कारण किसानों के लिये अपर्याप्त खरीद तंत्र और बाज़ार पहुँच है।
  • प्रवण फसल का प्रभुत्व:  
    • चावल और गेहूँ के लिये MSP पर ध्यान केंद्रित करने से इन दो प्रमुख खाद्य पदार्थों के पक्ष में फसल पैटर्न में बदलाव आया है। इन फसलों पर अत्यधिक बल देने से पारिस्थितिक, आर्थिक और पोषण संबंधी प्रभाव पड़ सकते हैं।
    • यह बाज़ार की मांगों के अनुरूप नहीं हो सकता है, जिससे किसानों के लिये आय की संभावना सीमित हो सकती है।
  • बिचौलियों पर निर्भरता:
    • MSP-आधारित खरीद प्रणाली में प्रायः बिचौलिये, कमीशन एजेंट और कृषि उपज बाज़ार समितियों (APMC) के अधिकारी जैसे बिचौलिये शामिल होते हैं।
    • विशेष रूप से छोटे किसानों के लिये इन चैनलों तक पहुँच चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जिससे अक्षमताएँ उत्पन्न होंगी और उनके लिये लाभ कम हो जाएगा।
  • सरकार पर बोझ:
    • सरकार MSP समर्थित फसलों के बफर स्टॉक की खरीद और रखरखाव में एक वृहत वित्तीय बोझ उठाती है। इससे उन संसाधनों का विचलन हो जाता है जिन्हें अन्य कृषि या ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के लिये आवंटित किया जा सकता है।

आगे की राह 

  • फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने और चावल व गेहूँ के प्रभुत्व को कम करने के लिये सरकार धीरे-धीरे MSP समर्थन हेतु पात्र फसलों की सूची का विस्तार कर सकती है। इससे किसानों को अधिक विकल्प मिलेंगे और बाज़ार की मांग के अनुरूप फसलों की खेती को बढ़ावा मिलेगा।
  • MSP मुद्दे का समाधान करने के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें किसानों के हितों और व्यापक आर्थिक निहितार्थ कोई शामिल किया जाना चाहिये।
    • MSP परिकलन पद्धति पर पुनः विचार करने और MSP निर्धारित करने के लिये एक निष्पक्ष तथा पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करने से किसानों द्वारा उठाई गई कुछ चिंताओं को दूर करने में मदद मिल सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

  1. सभी अनाजों, दालों एवं तिलहनों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर प्रापण भारत के किसी भी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश (यू.टी.) में असीमित होता है। 
  2. अनाजों एवं दालों का MSP किसी भी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में उस स्तर पर निर्धारित किया जाता है, जिस स्तर पर बाज़ार मूल्य कभी नहीं पहुँच पाते।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: d 


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)  

  1. भारत सरकार काले तिल नाइजर (गुइज़ोटिया एबिसिनिका) के बीजों के लिये न्यूनतम समर्थन कीमत उपलब्ध कराती है।  
  2. काले तिल की खेती खरीफ की फसल के रूप में की जाती है। 
  3. भारत के कुछ जनजातीय लोग काले तिल के बीजों का तेल भोजन पकाने के लिये प्रयोग में लाते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीन
(d) कोई भी नहीं

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) से आप क्या समझते हैं? न्यूनतम समर्थन मूल्य कृषकों का निम्न आय फंदे से किस प्रकार बचाव करेगा? (2018)

प्रश्न. सहायिकियाँ सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति किस प्रकार प्रभावित करती है? लघु और सीमांत कृषकों के लिये फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है? (2017)

प्रश्न. धान-गेहूँ प्रणाली को सफल बनाने के लिये कौन-से प्रमुख कारक उत्तरदायी हैं? इस सफलता के बावजूद यह प्रणाली भारत में अभिशाप कैसे बन गई है? (2020)

प्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) के द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकियों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ) एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जहाँ लिये गए निर्णय देशों को गहराई से प्रभावित करते हैं। डब्ल्यू.टी.ओ का क्या अधिदेश (मैंडेट) है और उसके निर्णय किस प्रकार बंधनकारी हैं? खाद्य सुरक्षा पर विचार-विमर्श के पिछले चक्र पर भारत के दृढ़-मत का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (2014)