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सामाजिक न्याय

महिलाओं पर कार्य का असंगत बोझ

  • 27 Sep 2024
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

महिला श्रमबल भागीदारी, मजदूरी असमता, लैंगिक असमता, महिला श्रमबल भागीदारी दरअंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) 

मेन्स के लिये:

कार्यबल, कॉर्पोरेट में महिलाओं की भागीदारी की स्थिति, श्रमबल भागीदारी में महिलाओं के समक्ष चुनौतियाँ और बाधाएँ

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अर्न्स्ट एंड यंग (EY) में कार्यरत 26 वर्षीय महिला चार्टर्ड अकाउंटेंट की दुखद मृत्यु हुई जिसके पश्चात्  भारत में युवा महिला पेशेवरों (गैर-श्रमिकीय) द्वारा सामना किये जाने वाला अत्यधिक कार्यभार और तनाव पुनः चर्चा का विषय बना गया है।

भारत में कामकाज़ी महिलाओं की स्थिति क्या है?

  • कार्य के घंटे और तनाव का स्तर: 
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की युवा पेशेवर महिलाएँ औसतन प्रति सप्ताह 55 घंटे कार्य करती हैं, जिसमें प्रतिदिन 9-11 घंटे का कार्य शामिल है तथा घरेलू ज़िम्मेदारियों के कारण उन्हें केवल 7-10 घंटे का ही विराम मिलता है।
      • वैश्विक स्तर के दृष्टिगत जर्मनी में IT और मीडिया क्षेत्र में महिलाएँ 32 घंटे कार्य करती हैं जबकि रूस की महिलाएँ 40 घंटे कार्य करती हैं।
  • युवा पेशेवर महिलाएँ अधिक कार्य करती हैं:
    • ICT/मीडिया के क्षेत्र में 15-24 वर्ष की महिलाएँ प्रति सप्ताह लगभग 57 घंटे कार्य करती हैं जबकि पेशेवर, वैज्ञानिक और तकनीकी गतिविधियों में कार्यरत महिलाएँ प्रति सप्ताह लगभग 55 घंटे कार्य करती हैं। 
      • इस डेटा के विश्लेषण के अनुसार आयु के अल्प होने के क्रम में, कार्य के घंटों की संख्या में वृद्धि हुई, जो उजागर करता है कि कार्यबल में शामिल युवा महिलाओं की स्थिति चिंताजनक है।
  • व्यावसायिक भूमिकाओं में लैंगिक असंतुलन:
    • केवल 8.5% महिलाओं के पास ही पेशेवर वैज्ञानिक और तकनीकी नौकरियाँ हैं और 20% महिलाएँ ICT क्षेत्रों में संलग्न हैं।
      • व्यावसायिक वैज्ञानिक और तकनीकी भूमिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत 145 देशों में 15वें सबसे निम्न स्थान पर है।

  • अवैतनिक घरेलू कार्यों में महिलाएँ अग्रणी:
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-21) के आँकड़ो के अनुसार वर्ष 2019 में, श्रमबल में शामिल नहीं होने वाली महिलाओं ने प्रतिदिन 7.5 घंटे अवैतनिक घरेलू और देखभाल कार्य किये।
    • कार्यरत महिलाओं ने प्रतिदिन औसतन 5.8 घंटे अवैतनिक घरेलू कार्य किये।
    • उक्त विषय में बेरोज़गार पुरुषों का योगदान 3.5 घंटे था जबकि कार्यरत पुरुषों ने घरेलू कार्य में प्रतिदिन केवल 2.7 घंटे ही व्यतीत किये।

  • क्षेत्रीय विविधताएँ:
    • 15 से 59 वर्ष की आयु की लगभग 85% महिलाएँ अवैतनिक रूप से घरेलू कार्य करती हैं, जो दर्शाता है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच बहुत कम अंतर है। 
    • NFHS (2019-21) के आँकड़ो के अनुसार, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में कई क्षेत्रों में पुरुषों की भागीदारी 50% से कम है।

भारत में गैर-श्रमिकीय (व्हाइट-कॉलर) नौकरियों का परिदृश्य क्या है?

  • विनियमन की वर्तमान स्थिति:
    • गैर-श्रमिकीय श्रमिक से तात्पर्य वेतनभोगी पेशेवर से है, जो प्रायः प्रशासनिक अथवा प्रबंधकीय कार्य में संलग्न होता है।
    • वर्तमान में, कई केंद्रीय विधानों, जैसे औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947, दुकान और स्थापना अधिनियम, 1954 और कारखाना अधिनियम, 1948, में निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के अधिकारों का प्रावधान किया गया है। 
    • मानक अनुबंध प्रारूपों के अभाव के कारण कंपनियों में मतभेद होते हैं, जिससे कर्मचारियों के अधिकारों में विसंगतियाँ उत्पन्न होती हैं और इससे विनियमन जटिल हो जाता है।
  • विनियमन की आवश्यकता:
    • ASSOCHAM द्वारा वर्ष 2023 में किये गए अध्ययन के अनुसार 42% भारतीय गैर-श्रमिकीय कर्मचारी प्रति सप्ताह विधिक रूप से निर्धारित 48 घंटे की कार्य सीमा से अधिक कार्य करते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, वर्ष 2022 के टीमलीज सर्वेक्षण (भारत-आधारित मानव संसाधन कंपनी) के अनुसार 68% पेशेवर कार्य और निजी जीवन के संतुलन में संघर्ष करते हैं, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्तिगत संबंध प्रभावित होता है। 
    • गिग अर्थव्यवस्था के उदय से यह अथिति और भी जटिल हो गई है क्योंकि कई फ्रीलांसर सवेतन अवकाश और स्वास्थ्य बीमा जैसी आवश्यक सुविधाओं से वंचित रहते हैं।
  • अधिक सख्त श्रम कानूनों से संबंधित चिंताएँ:
    • नवप्रवर्तन और अनुकूलनशीलता पर प्रभाव: सख्त विनियमन IT जैसे गतिशील क्षेत्रों के लिये आवश्यक अनुकूलनशीलता और त्वरित अनुक्रिया में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
    • नियोक्ता-कर्मचारी संबंध: कार्य और निजी जीवन को संतुलित करने हेतु कठोर नियमों की अपेक्षा मुक्त संचार और आपसी विश्वास अधिक प्रभावी हैं।
    • रोज़गार सृजन पर प्रभाव: अनुपालन लागत में वृद्धि के कारण नियोक्ताओं द्वारा नियुक्तियों में कमी या छंँटनी की जा सकती है, जिससे रोज़गार परिदृश्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी के लिये क्या चुनौतियाँ हैं?

  • पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंड: समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक मानदंड और परंपरागत लैंगिक भूमिकाएँ महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार तक पहुँच को सीमित करती हैं। सामाजिक अपेक्षाओं में प्रायः देखभाल करने वालों और गृहणियों के रूप में उनकी भूमिकाओं को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे कार्यबल में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी प्रभावित होती है।
  • लैंगिक मजदूरी अंतराल: भारत में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में मजदूरी (वेतन) में बड़े अंतराल का सामना करना पड़ता है। विश्व असमानता रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, पुरुष श्रम आय का 82% अर्जित करते हैं जबकि महिलाओं को केवल 18% ही प्राप्त होता है। मजदूरी में यह अंतराल महिलाओं को औपचारिक रोज़गार पाने से हतोत्साहित करता है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंता: महिलाओं को प्रायः कार्यस्थल पर सुरक्षा संबंधी चिंताओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें उत्पीड़न और हिंसा भी शामिल है, जिससे श्रमबल में उनकी भागीदारी बाधित होती है।
  • नेतृत्वकारी भूमिकाओं में अल्प प्रतिनिधित्व: नेतृत्व और निर्णय लेने वाले पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व प्रायः अल्प होता है, जो संगठनात्मक नीतियों में लैंगिक पूर्वाग्रह को बढ़ावा देता है और कार्यबल में अन्य महिलाओं की उन्नति में बाधा डालता है।

गैर-श्रमिकीय भूमिकाओं में महिलाओं की कार्य स्थितियों में सुधार के लिये क्या किया जा सकता है?

  • महिलाओं के समावेशन और समर्थन पर ध्यान केन्द्रित करना: गैर-श्रमिकीय नौकरियों में महिलाओं की स्थितियों में सुधार के लिये लैंगिक समता सुनिश्चित करने वाली नीतियाँ, जिनमें सवेतन मातृत्व अवकाश, स्थिति के अनुरूप कार्य करने के घंटे और सुरक्षित कार्यस्थल वातावरण शामिल हैं, आवश्यक हैं। 
    • कंपनियों को समान अवसरों को बढ़ावा देने के लिये नियुक्ति, पदोन्नति और वेतन में लैंगिक पूर्वाग्रह को समाप्त करने के लिये काम करना चाहिये।
  • सांस्कृतिक परिवर्तन: महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य सहायता की व्यवस्था तथा अत्यधिक कार्य घंटों को हतोत्साहित करने जैसी CSR पहलों के माध्यम से कर्मचारी कल्याण को बढ़ावा देने से कार्य-जीवन संतुलन में सुधार हो सकता है तथा उनकी क्लान्ति कम हो सकती है। 
  • कानूनी सुधार और प्रवर्तन: मौजूदा श्रम कानूनों का सख्ती से पालन करना अत्यंत आवश्यक है और साथ ही गिग और फ्रीलांस कार्य के मुद्दे को संबोधित करने के लिये नियमों का अद्यतन करना भी ज़रूरी है। इसमें न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करना, महिलाओं की सुरक्षा चिंता को संबोधित करना, सामाजिक सुरक्षा लाभ और गैर-पारंपरिक श्रमिकों के लिये कुशल विवाद समाधान तंत्र शामिल हैं।
  • सरकारी नीतियाँ और जागरूकता : सरकार को वे नीतियाँ बनानी चाहिये जो अनुकूल कार्य वातावरण को प्रोत्साहित करें, स्वास्थ्य कवरेज सुनिश्चित करें और विविधता को बढ़ावा दें। 
    • कर्मचारी (महिलाओं सहित) के अधिकारों और नियोक्ता दायित्वों पर जागरूकता अभियान भी निष्पक्ष कार्य स्थितियों को बनाए रखने में मदद कर सकते हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

भारत के कार्यबल में महिलाओं के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं और इन समस्याओं को दूर करने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौमिक लैंगिक अंतराल सूचकांक' का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
(c) संयुक्त राष्ट्र महिला
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. “महिलाओं का सशक्तीकरण जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।” विवेचना कीजिये। (2019) 

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