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सामाजिक न्याय

दिव्यांग जनसंख्या को आपदा से बचाने की तैयारी

  • 18 Oct 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNDRR), आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस, दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर अभिसमय, आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क 2015-2030, भूकंप, ज्वालामुखी

मेन्स के लिये:

आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन में दिव्यांगों की समावेशिता को बढ़ावा देने की आवश्यकता।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

13 अक्तूबर को मनाए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस से ठीक पहले संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) द्वारा हाल ही में जारी एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि पिछले दशक से प्राकृतिक आपदाओं के दौरान दिव्यांग व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये सरकारी नीतियों की प्रगति में कमी आई है। 

UNDRR सर्वेक्षण के निष्कर्ष:

  • सर्वेक्षण के निष्कर्ष:
    • 132 देशों के 6,000 उत्तरदाताओं को शामिल करते हुए वर्ष 2023 सर्वेक्षण से पता चलता है कि 84% दिव्यांग व्यक्तियों को निकासी मार्गों, आश्रय घरों या व्यक्तिगत तैयारी योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं है, जबकि वर्ष 2013 में यह आँकड़ा 71% था।
    • वर्तमान में केवल 11% उत्तरदाता अपने स्थानीय क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन योजनाओं के बारे में जानते हैं, वर्ष 2013 में 17% से कम व्यक्ति आपदा जोखिम जानकारी के बारे में जानते थे।
  • दिव्यांग व्यक्तियों की चिंताएँ:
    • आपदाओं के दौरान दिव्यांग व्यक्ति को अधिक खतरा होता है, वैश्विक आबादी के लगभग 16% लोग दिव्यांग है और इनकी आपदाओं के दौरान मृत्यु होने की संभावना भी अधिक है।
    • समुदाय-स्तरीय आपदा योजना में भाग लेने में बढ़ती रुचि के बावजूद, 86% उत्तरदाताओं को अभी भी बहिष्कृत महसूस होता है, जो समावेशन की आवश्यकता पर बल देते हैं।
  • सर्वेक्षण के सुझाव:
    • यह रिपोर्ट आपदाओं और असमानता के अंतर्संबंध पर ज़ोर देती है तथा सेवाओं तक असमान पहुँच से सर्वाधिक जोखिम वाले समूहों की भेद्यता बढ़ जाती है।
    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क 2015-2030 दिव्यांगता समावेशन, सुलभ आपदा जोखिम जानकारी और समावेशी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का आह्वान करता है।
    • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को सुदृढ़ करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आधे देशों में इन तंत्रों का अभाव है और समय पर चेतावनी से निकासी दर में काफी सुधार हो सकता है।
    • इन चुनौतियों का समाधान करने और सामुदायिक आपदा जोखिम न्यूनीकरण योजना में दिव्यांग जनों का सार्थक समावेश सुनिश्चित करने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण (2015-30) के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क:

  • परिचय:  
    • इसे जापान के सेंदाई में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन, 2015 में अपनाया गया था।
    • वर्तमान रूपरेखा प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों के कारण छोटे और बड़े पैमाने पर तीव्र या धीमी गति से घटित होने वाली आपदाओं के साथ-साथ संबंधित पर्यावरणीय एवं तकनीकी जैविक खतरों और जोखिमों पर लागू होती है।
    • इसका उद्देश्य सभी क्षेत्रों के भीतर और बाहर विकास में आपदा जोखिम के बहु-जोखिम प्रबंधन का मार्गदर्शन करना है। 
    • यह ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (HFA), 2005-2015: आपदाओं के प्रति राष्ट्रों और समुदायों की समुत्थानशक्ति के निर्माण’ का उत्तरोत्तर उपकरण है।

  • चार प्राथमिक क्षेत्रों में की जाने वाली कार्रवाइयाँ:
    • आपदा जोखिम को समझना:
      • प्रासंगिक डेटा और व्यावहारिक जानकारी के संग्रह, विश्लेषण, प्रबंधन एवं उपयोग को बढ़ावा देना तथा इसका प्रसार सुनिश्चित करना।
      • आपदा से होने वाले नुकसान का व्यवस्थित रूप से मूल्यांकन करना, उसे रिकॉर्ड करना, साझा करना व सार्वजनिक रूप से हिसाब देना और इसके आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्यप्रद, शैक्षिक एवं पर्यावरणीय प्रभावों को समझना।
    • आपदा जोखिम के प्रबंधन हेतु आपदा जोखिम प्रशासन का सुदृढ़ीकरण:
      • स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर चिह्नित जोखिमों से निपटने के लिये तकनीकी, वित्तीय एवं प्रशासनिक आपदा जोखिम प्रबंधन क्षमता का आकलन करना।
      • क्षेत्रीय कानूनों और विनियमों के मौजूदा सुरक्षा-बढ़ाने वाले प्रावधानों के उच्च स्तर के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक तंत्र एवं प्रोत्साहन की स्थापना को प्रोत्साहित करना।
    • समुत्थानशक्ति के लिये आपदा जोखिम न्यूनीकरण में निवेश:
      • सभी प्रासंगिक क्षेत्रों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों, नीतियों, योजनाओं, कानूनों तथा विनियमों के विकास और कार्यान्वयन के लिये प्रशासन के सभी स्तरों पर वित्त एवं रसद सहित आवश्यक संसाधनों को उचित रूप से आवंटित करना।
    • पुनर्प्राप्ति, पुनर्वास और पुनर्निर्माण:
      • बचाव और राहत कार्यों को लागू करने के लिये लोगों के बीच जागरूकता को बढ़ावा देना तथा आवश्यक सामग्रियों के भंडारण के लिये सामुदायिक केंद्र की स्थापना।
      • मौजूदा कार्यबल और स्वैच्छिक कार्यकर्त्ताओं को आपदा प्रतिक्रिया के बारे में प्रशिक्षित करना तथा आपात की स्थिति में बेहतर प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये तकनीकी व तार्किक क्षमताओं में वृद्धि करना।

दिव्यांगजनो के सशक्तीकरण के लिये पहलें:

  • वैश्विक स्तर पर:
    • दिव्यांगजनो के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय:
      • PwD के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UN Convention on the Rights of PwD- UNCRPD) को वर्ष 2006 में अपनाया गया था, यह दिव्यांगजनों को ऐसे लोगों के रूप में परिभाषित करता है जो दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक अथवा संवेदी दुर्बलताओं से ग्रस्त हैं और अपनी विशेष सीमितताओं के कारण अन्य लोगों की तुलना में समाज में समान भागीदारी करने में सक्षम नहीं हैं।
      • भारत ने वर्ष 2007 में इस अभिसमय की पुष्टि की।
        • भारतीय संसद ने UNCRPD के तहत दायित्त्वों को पूरा करने की दृष्टि से दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 को अधिनियमित किया।
  • भारत द्वारा किये गए प्रयास:
    • संवैधानिक प्रावधान:
      • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy- DPSP) के अनुच्छेद 41 में वर्णित है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता एवं विकास को ध्यान में रखते हुए कार्य करने, शिक्षा पाने और बेरोज़गारी, बुढ़ापा, बीमारी व दिव्यांगता के मामलों में सार्वजनिक सहायता का अधिकार सुरक्षित करने के लिये प्रभावी प्रावधान लागू करेगा।
      • संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में ‘दिव्यांगजनों और बेरोज़गारों के लिये राहत’ का विषय निर्दिष्ट है।
    • दिव्यांगजनों के लिये कानून:
      • दिव्यांगजन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को दिव्यांगजनों का अधिकार अधिनियम, 2016 से प्रतिस्थापित किया गया है।
      • दिव्यांगता के प्रकारों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है। इस अधिनियम में मानसिक बीमारी, ऑटिज़्म, स्पेक्ट्रम विकार, सेरेब्रल पाल्सी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल स्थितियाँ, बोलने में असमर्थता (जिसमें व्यक्ति के बोलने की क्षमता और भाषा का कौशल दोनों प्रभावित हों), थैलेसीमिया, हीमोफिलिया, सिकल सेल रोग, डेफब्लाइंडनेस, एसिड अटैक पीड़ितों और पार्किंसंस रोग सहित कई दिव्यांगताएँ शामिल की गईं हैं। ये कुछ ऐसी दिव्यांगताएँ हैं जिन्हें पहले के अधिनियम में नज़रअंदाज कर दिया गया था।
      • यह दिव्यांगता से पीड़ित लोगों के लिये सरकारी नौकरियों में आरक्षण को 3% से बढ़ाकर 4% और उच्च शिक्षा संस्थानों में 3% से बढ़ाकर 5% कर देता है।
      • 6 से 18 वर्ष की आयु के बीच बेंचमार्क दिव्यांगता वाले प्रत्येक बच्चे को मुफ्त शिक्षा का अधिकार प्राप्त होगा।
    • सुगम्य भारत अभियान (PwD के लिये सुगम्य वातावरण का निर्माण):
      • सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करने के लिये यह सार्वभौमिक राष्ट्रव्यापी अभियान दिव्यांग लोगों को समान अवसर, स्वतंत्र रूप से जीने और समाज के सभी क्षेत्रों में पूर्ण रूप से शामिल होने की क्षमता प्रदान करेगा।
      • अभियान का लक्ष्य दिव्यांगों तक पर्यावरण, परिवहन प्रणाली और सूचना एवं संचार पारिस्थितिकी तंत्र की पहुँच को बढ़ाना है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत सरकार द्वारा पहले के प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण से हटकर आपदा प्रबंधन हेतु शुरू किये गए हालिया उपायों की चर्चा कीजिये। (2020)

प्रश्न. आपदा प्रभावों और लोगों के लिये उसके खतरे को परिभाषित करने के लिये भेद्यता एक अत्यावश्यक तत्त्व है। आपदाओं के प्रति भेद्यता का किस प्रकार और किन-किन तरीकों के साथ चरित्र-चित्रण किया जा सकता है? आपदाओं के संदर्भ में भेद्यता के विभिन्न प्रकारों पर चर्चा कीजिये। (2019)

प्रश्न. भारत में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डी.आर.आर.) के लिये ‘सेंदाई’ आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप  (2015-30)' हस्ताक्षरित करने से पूर्व एवं उसके पश्चात किये गए विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिये। यह प्रारूप  'ह्योगो कार्यवाई प्रारूप, 2005' से किस प्रकार भिन्न है?(2018)

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