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भारतीय समाज

भारत की कुल प्रजनन दर में गिरावट

  • 25 Jan 2025
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कुल प्रजनन दर, आंतरिक प्रवास, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, निर्भरता अनुपात, मध्यम आय संजाल, इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन, सरोगेसी, सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0, प्रतिस्थापन प्रजनन दर

मेन्स के लिये:

भारत में जनसांख्यिकी परिवर्तन और जनसंख्या वृद्धि, घटती प्रजनन दर के प्रभाव, जनसंख्या नियंत्रण एवं प्रजनन, सरकारी नीतियाँ, वृद्ध होती जनसंख्या और आर्थिक स्थिरता

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़, इंजरी एंड रिस्क फैक्टर स्टडी (GBD) 2021 से पता चला है कि पिछले दशकों में भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) में काफी गिरावट आई है।

  • इससे सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिणामों को लेकर चिंताएँ (विशेषकर दक्षिणी राज्यों में) पैदा हुई हैं।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • भारत की प्रजनन प्रवृत्तियाँ: भारत की TFR, 1950 के दशक के 6.18 से घटकर वर्ष 2021 में 1.9 हो गई, जो 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से कम है।
    • अनुमान है कि वर्ष 2100 तक भारत में कुल प्रजनन दर और भी गिरकर 1.04 (प्रति महिला मात्र एक बच्चा) हो जाएगी।
  • भारत में क्षेत्रीय विविधताएँ: केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे दक्षिणी राज्यों ने उत्तरी राज्यों की तुलना में प्रतिस्थापन-स्तर की प्रजनन क्षमता पहले ही हासिल कर ली।
    • वर्ष 2036 तक केरल की वृद्ध आबादी बच्चों (23%) से अधिक हो जाने की उम्मीद है। उच्च श्रम मज़दूरी, जीवन की गुणवत्ता और आंतरिक प्रवास के कारण वर्ष 2030 तक प्रवासी मज़दूरों की संख्या 60 लाख तक पहुँचने की उम्मीद है (राज्य की आबादी का लगभग छठा भाग)। 
    • जनसांख्यिकीय बदलाव उच्च साक्षरता, महिला सशक्तीकरण तथा सामाजिक एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों में प्रगति से प्रेरित था।
  • प्रजनन क्षमता में कमी के कारण: 
    • सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक कारक: भारत में जन्म नियंत्रण/परिवार नियोजन कार्यक्रम सबसे पुराने कार्यक्रमों में से एक है, लेकिन महिला साक्षरता, कार्यबल में भागीदारी और महिला सशक्तिकरण जैसे कारकों का प्रजनन दर में कमी पर अधिक प्रभाव पड़ा है।
      • विवाह और प्रजनन के प्रति बदलते दृष्टिकोण, जिसमें विवाह और मातृत्व में देरी या परहेज शामिल है, ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • स्वास्थ्य एवं प्रवासन मुद्दे: पुरुषों और महिलाओं दोनों में बांझपन के बढ़ते मामले इस गिरावट में योगदान करते हैं।
      • गर्भपात की उपलब्धता और सामाजिक स्वीकृति ने संभवतः प्रजनन दर में गिरावट में योगदान दिया है।
      • अधिकाधिक युवा लोग शिक्षा और नौकरी के लिये विदेश जा रहे हैं और वहीं बस रहे हैं, जिससे भारत में प्रजनन दर कम हो रही है।

कुल प्रजनन दर और प्रतिस्थापन स्तर

  • कुल प्रजनन दर (TFR): TFR उन बच्चों की औसत संख्या है जो महिलाओं के एक समूह के प्रजनन वर्षों (15 से 49 वर्ष की आयु) के अंत तक हो सकते हैं, यदि वे अपने पूरे जीवन में वर्तमान प्रजनन दरों का पालन करें, यह मानते हुए कि कोई मृत्यु दर नहीं है। इसे प्रति महिला बच्चों के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) (2019-21) के अनुसार, TFR 2.2 बच्चों प्रति महिला (NFHS-4 (2015-16)) से घटकर 2.0 बच्चे प्रति महिला हो गई है।
  • प्रतिस्थापन स्तर: 2.1 की कुल प्रजनन दर को प्रतिस्थापन स्तर माना जाता है, जहाँ प्रत्येक पीढ़ी बिना किसी महत्त्वपूर्ण जनसंख्या वृद्धि या गिरावट के स्वयं को प्रतिस्थापित कर लेती है।
  • हालाँकि, 2.1 से कम कुल प्रजनन दर (TFR) नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि का कारण बन सकती है, जिससे संभावित रूप से दीर्घकालिक जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं, जिसमें वृद्ध होती जनसंख्या भी शामिल है।

निम्न प्रजनन दर के परिणाम क्या हैं?

  • वृद्ध होती जनसंख्या: निम्न जन्म दर और दीर्घ जीवन प्रत्याशा के कारण जनसंख्या तेज़ी से वृद्ध हो रही है। 
    • भारत में वर्तमान में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के 149 मिलियन लोग हैं, जो कुल जनसंख्या का 10.5% है। वर्ष 2050 तक यह संख्या बढ़कर 347 मिलियन या जनसंख्या का 20.8% हो जाने की उम्मीद है। 
  • आर्थिक प्रभाव: युवा कार्यबल में कमी और वृद्ध जनसंख्या में वृद्धि के कारण निर्भरता अनुपात में वृद्धि हो रही है तथा सामाजिक कल्याण और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर दबाव बढ़ रहा है। 
    • पेंशन और वृद्धजनों की देखभाल की बढ़ती लागत से सरकार और परिवार दोनों पर बोझ पड़ेगा।
    • विकसित देशों के विपरीत, जहाँ प्रति व्यक्ति आय अधिक होने के बावजूद जनसंख्या वृद्धावस्था का अनुभव किया गया, भारत को समान आर्थिक सुख-सुविधा के बिना वृद्धावस्था की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
    • यदि भारत की अर्थव्यवस्था तीव्र विकास को कायम नहीं रख पाती है तो उसके मध्य आय के जाल में फंसने का खतरा है।
  • श्रम बाज़ार पर प्रभाव: प्रजनन क्षमता में गिरावट से कार्यबल में कमी आ सकती है, जिससे उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। 

प्रजनन स्तर में गिरावट से निपटने के लिये वैश्विक दृष्टिकोण:

  • जर्मनी: उदार श्रम कानून, पैतृक अवकाश और लाभों से जन्म दर बढ़ाने में सफलता मिली है।
  • डेनमार्क:  40 वर्ष से कम आयु की महिलाओं के लिये राज्य-वित्तपोषित इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) उपचार प्रदान करता है।
  • रूस और पोलैंड: रूस अधिक बच्चों वाले परिवारों को एकमुश्त वित्तीय प्रोत्साहन तथा पोलैंड एक से अधिक बच्चों वाले परिवारों को नकद भुगतान प्रदान करता है।

आगे की राह

  • नीतिगत समायोजन: भारत उपयुक्त श्रम नीतियों को अपनाकर जर्मनी और डेनमार्क का अनुकरण कर सकता है तथा कार्य-जीवन संतुलन में सुधार के लिये माता-पिता को लाभ प्रदान कर सकता है एवं कार्यरत माता-पिता को सहयोग देकर प्रजनन दर बढ़ाने में योगदान दे सकता है।
    • एक बालक के भरण-पोषण में 30 लाख से 1.2 करोड़ रुपए का व्यय होता है, जिससे कई मध्यम वर्गीय परिवार हतोत्साहित हो जाते हैं। इस समस्या से निपटने के लिये, शिक्षा को संवहनीय बनाया जाना चाहिये, कौशल बेमेल की समस्या का निवारण करने हेतु डिजिटल और व्यावहारिक शिक्षा के साथ सार्वजनिक संस्थानों को प्रगत किया जाना चाहिये और सब्सिडी एवं कर लाभ प्रदान किये जाने चाहिये।
    • नीति निर्माताओं को वृद्ध होती जनसंख्या को सहायता प्रदान करते हुए आर्थिक विकास सुनिश्चित करना होगा अन्यथा जनांकिकीय लाभांश आपदा में परिणत हो सकता है।
  • स्वास्थ्य और पोषण पर ध्यान केंद्रित किया जाना: सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0 योजनाओं के माध्यम से माताओं और बच्चों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं एवं स्वास्थ्य देखभाल की पूर्ति करना और साथ ही कल्याण के लिये बाल देखभाल संस्थानों को बढ़ावा देना तथा प्रसवपूर्व अभिघात सहायता, अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • मातृ स्वास्थ्य में सहायता प्रदान करने हेतु तेलंगाना में गर्भावस्था किटों के वितरण जैसी पहलों का विस्तार करने से समग्र भारत में प्रजनन दर में सुधार लाने में मदद मिल सकती है।
  • प्रजनन सहायता: कॅरियर की प्रगति को प्रभावित किये बिना बालकों के अनुपात को बढ़ाने के लिये संवहनीय IVF प्रदान करने और सरोगेसी को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत की सामाजिक-आर्थिक संरचना पर घटती प्रजनन दर के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। इस प्रवृत्ति में पूर्णतया परिवर्तन लाने हेतु कौन-से नीतिगत उपाय कार्यान्वित किये किये जा सकते हैं? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. “महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।” चर्चा कीजिये। (2019) 

प्रश्न. भारत में वृद्ध जनसंख्या पर वैश्वीकरण के प्रभाव का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2013)

प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) 

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