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सामाजिक न्याय

सरोगेसी कानून

  • 02 Nov 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सरोगेसी कानून, सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021, परोपकारी सरोगेसी, वाणिज्यिक सरोगेसी, संविधान का अनुच्छेद 21

मेन्स के लिये:

सरोगेसी कानून तथा संबद्ध चुनौतियाँ, तंत्र, कानून, कमज़ोर वर्गों की सुरक्षा और बेहतरी के लिये गठित संस्थाएँ एवं निकाय।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

 हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत सरोगेसी का लाभ उठाने वाली महिलाओं की पात्रता के साथ उनकी वैवाहिक स्थिति के संबंध पर सवाल उठाया है।

  • याचिकाकर्त्ता ने सरोगेसी अधिनियम की धारा 2(1)(s) को चुनौती दी, जो 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच भारतीय विधवाओं या तलाकशुदा महिलाओं के सरोगेसी का लाभ उठाने के अधिकार को सीमित करती है।
  • याचिकाकर्त्ता की याचिका में उस नियम को भी चुनौती दी गई है जो एकल महिला (विधवा या तलाकशुदा) को सरोगेसी के लिये स्वयं के डिम्ब/अण्डाणु का उपयोग करने के लिये मज़बूर करता है। कई मामलों में महिला की उम्र अधिक होती है, इस स्थिति में उसके स्वयं के युग्मकों का उपयोग चिकित्सकीय रूप से अनुचित है तथा वह मादा युग्मकों के लिये एक दाता की तलाश करती है।

सरोगेसी: 

  • परिचय:
    • सरोगेसी एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक महिला (सरोगेट) किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े (इच्छित माता-पिता) की ओर से बच्चे को जन्म देने के लिये सहमत होती है।
    • सरोगेट, जिसे कभी-कभी गर्भकालीन वाहक भी कहा जाता है, वह महिला होती है जो किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े (इच्छित माता-पिता) के लिये गर्भ धारण करती है और बच्चे को जन्म देती है।
  • परोपकारी सरोगेसी:
    • इसमें गर्भावस्था के दौरान चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज़ के अतिरिक्त सरोगेट माँ के लिये किसी मौद्रिक मुआवज़े को शामिल नहीं किया गया है।
  • वाणिज्यिक सरोगेसी:
    • इसमें बुनियादी चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज़ से अधिक मौद्रिक लाभ या इनाम (नकद या वस्तु के रूप में) के लिये की गई सरोगेसी या उससे संबंधित प्रक्रियाएँ शामिल हैं।

सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021: 

  • प्रावधान:
    • सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के अनुसार, 35 से 45 वर्ष के बीच की आयु की विधवा या तलाकशुदा महिला तथा कानूनी रूप से विवाहित महिला और पुरुष के रूप में परिभाषित युगल सरोगेसी का लाभ उठा सकते है। 
      • सरोगेसी के लिये इच्छित जोड़ा कानूनी रूप से विवाहित भारतीय पुरुष एवं महिला का होगा, पुरुष की आयु 26-55 वर्ष के बीच होगी तथा महिला की आयु 25-50 वर्ष के बीच होगी और उनका पहले से कोई जैविक, गोद लिया हुआ या सरोगेट बच्चा नहीं होगा।
    • यह व्यावसायिक सरोगेसी पर भी प्रतिबंध लगाता है, जिसके लिये 10 वर्ष का काराग्रह और 10 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है।  
    • कानून केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है जहांँ कोई पैसे का आदान-प्रदान नहीं होता है, साथ ही सरोगेट मांँ का/की आनुवंशिक रूप से बच्चे की तलाश करने वालों के साथ कोई सम्बन्ध/ जान-पहचान होनी चाहिये। 
  • चुनौतियाँ:
    • सरोगेट और बच्चे का शोषण: व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध अधिकार-आधारित दृष्टिकोण से आवश्यकता-आधारित दृष्टिकोण की ओर बढ़ता है, जिससे महिलाओं की अपने प्रजनन संबंधी निर्णय लेने की स्वायत्तता और मातृत्त्व का अधिकार समाप्त हो जाता है। यद्यपि कोई यह तर्क दे सकता है कि राज्य को सरोगेसी के तहत गरीब महिलाओं का शोषण रोकना चाहिये और बच्चे के जन्म के अधिकार की रक्षा करनी चाहिये। हालाँकि वर्तमान अधिनियम इन दोनों हितों को संतुलित करने में विफल रहे हैं।
    • पितृसत्तात्मक मानदंडों की सुदृढ़ता: यह अधिनियम हमारे समाज के पारंपरिक पितृसत्तात्मक मानदंडों को सुदृढ़ करता है जो महिलाओं के कार्य को कोई आर्थिक मूल्य नहीं देते हैं और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन के लिये महिलाओं के मौलिक अधिकारों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।
    • भावनात्मक जटिलताएँ: परोपकारी सरोगेसी में सरोगेट माँ के रूप में कोई दोस्त अथवा रिश्तेदार न केवल भावी माता-पिता के लिये बल्कि सरोगेट बच्चे के लिये भी भावनात्मक जटिलताएँ उत्पन्न कर सकता है क्योंकि सरोगेसी की अवधि और जन्म के बाद बच्चे से उनके रिश्ते को लेकर समस्याएँ हो सकती हैं।
      • परोपकारी सरोगेसी इच्छुक दंपत्ति के लिये सरोगेट माँ चुनने के विकल्प को भी सीमित कर देती है क्योंकि बहुत ही सीमित रिश्तेदार इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिये तैयार होंगे।
    • तीसरे पक्ष की भागीदारी न होना: परोपकारी सरोगेसी में किसी तीसरे पक्ष की भागीदारी नहीं होती है। तीसरे पक्ष की भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि इच्छित युगल सरोगेसी प्रक्रिया के दौरान चिकित्सा और अन्य विविध खर्चों को वहन करेगा तथा उसका समर्थन करेगा।
      • कुल मिलाकर, एक तीसरा पक्ष इच्छित युगल और सरोगेट माँ दोनों को जटिल प्रक्रिया से गुज़रने में मदद करता है, जो परोपकारी सरोगेसी के मामले में संभव नहीं हो सकता है।
    • सरोगेसी सेवाओं का लाभ उठाने से संबंधित कुछ शर्तें:
      • सरोगेसी सेवाओं का लाभ उठाने के लिये अविवाहित महिलाओं, एकल पुरुषों, लिव-इन पार्टनर्स और समान-लिंग वाले युग्मों को बाहर रखा गया है।
      • यह वैवाहिक स्थिति लिंग एवं यौन रुझान के आधार पर भेदभाव है और उन्हें अपनी इच्छा का परिवार बनाने के अधिकार से वंचित करता है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में किये गये बदलाव: 

  • मार्च 2023 में एक सरकारी अधिसूचना ने प्रदाता युग्मकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हुए कानून में संशोधन किया।
    • इसमें कहा गया है कि "इच्छुक जोड़ों" को सरोगेसी के लिये अपने स्वयं के युग्मकों का उपयोग करना होगा।
  • इस संशोधन को महिला के मातृत्व के अधिकार का उल्लंघन बताकर चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी।
  • न्यायालय के अनुसार, शिशु का माता या पिता से आनुवंशिक संबंध होना चाहिये
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि गर्भकाल में सरोगेसी की अनुमति देने वाला कानून "महिला-केंद्रित" है, जिसका अर्थ है कि सरोगेट शिशु को जन्म देने का निर्णय महिला की चिकित्सीय या जन्मजात स्थिति के कारण माँ बनने में असमर्थता पर आधारित है।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब सरोगेसी नियमों का नियम 14(a) लागू होता है, जो चिकित्सा या जन्मजात स्थितियों को सूचीबद्ध करता है तथा एक महिला को गर्भकालीन/जेस्टेशनल सरोगेसी का विकल्प चुनने की अनुमति देता है, तो बच्चा इच्छित जोड़े, विशेषकर पिता से संबंधित होना चाहिये। 
    • जेस्टेशनल सरोगेसी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक महिला दूसरे व्यक्ति या जोड़े के लिये एक बच्चे को जन्म देती है। इसमें सरोगेट मदर बच्चे की बायोलॉजिकल माँ नहीं होती है, बल्कि वह सिर्फ बच्चे को जन्म देती है। इस गर्भाधान में होने वाले अथवा डोनर/प्रदाता पिता के शुक्राणु और माता के अंडाणु का टेस्ट-ट्यूब के तहत निषेचन कराने के बाद इसे सरोगेट मदर के गर्भाशय में ट्रांसप्लांट किया जाता है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने उन महिलाओं के लिये सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के नियम 7 को प्रतिबंधित किया है जो मेयर-रोकितांस्की-कुस्टर-हॉसर (MRKH) सिंड्रोम (एक असामान्य जन्मजात विकार जो महिला प्रजनन प्रणाली को प्रभावित करता है) से पीड़ित हैं, ताकि पीड़ित महिला को प्रदाता डिम्ब/अंडाणु का प्रयोग करके सरोगेसी के क्रियान्वयन की अनुमति दी जा सके।
    • सरोगेसी अधिनियम का नियम 7 प्रक्रिया के लिये प्रदाता डिम्ब/अंडाणु के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।

आगे की राह 

  • समावेशिता, नैतिकता और चिकित्सा प्रगति पर ध्यान केंद्रित करके भारत सरोगेसी के लिये एक ऐसा मज़बूत कानूनी ढाँचा स्थापित कर सकता है जो व्यक्तियों के अधिकारों का सम्मान करता है, इसमें शामिल सभी पक्षों की भलाई सुनिश्चित करता है तथा सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकियों के माध्यम से परिवार शुरू करने के इच्छुक लोगों का समर्थन करता है।

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