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सामाजिक न्याय

सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा

  • 30 Apr 2021
  • 12 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 29/04/2021 को 'द हिंदू' में प्रकाशित लेख “Making social welfare universal” पर आधारित है। इसमें भारत में सामाजिक कल्याण की स्थिति के बारे में चर्चा की गई है।

भारत दुनिया के सबसे बड़े कल्याणकारी राज्यों में से एक है फिर भी कोविड-19 के दौरान अपने अधिकांश संवेदनशील नागरिकों को सामाजिक कल्याण प्रदान करने में विफल रहा है। वर्तमान में महामारी के कारण, भारत कई संकटों का सामना कर रहा है। जैसे- एक असफल होता हुआ स्वास्थ्य-ढाँचा, बड़े पैमाने पर अंतर्राज्यीय प्रवास एवं खाद्य असुरक्षा इत्यादि। 

कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने मध्यम एवं उच्च आय वर्ग वाले लोगों को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है। साथ ही इसने लगभग 75 मिलियन लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया है। 

महामारी ने हमारी कमज़ोर स्थिति को प्रकट किया है और संदेश दिया है कि हमारे लिये मौजूदा योजनाओं का लाभ उठाने के साथ-साथ देश की आम जनता को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इससे हमारी आबादी किसी आकस्मिक संकट, जैसे- युद्ध, महामारी इत्यादि, को झेलने में अधिक समर्थ होगी। 

सामाजिक सुरक्षा  प्रणाली क्या है? 

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, सामाजिक सुरक्षा एक व्यापक दृष्टिकोण है जो सामाजिक वंचनाओं को रोकने के लिये विकसित की गई है। यह व्यक्ति को किसी भी प्रकार की अनिश्चितताओं में अपने पर आश्रित लोगों के लिये एक बुनियादी न्यूनतम आय का आश्वासन प्रदान करता है।
  • इसके दो तत्त्व हैं:
    • भोजन, कपड़ा, आवास, चिकित्सा देखभाल एवं आवश्यक सामाजिक सेवाओं सहित स्वास्थ्य और बेहतर जीवन स्तर का अधिकार।
    • किसी भी व्यक्ति के नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों, जैसे- बेरोज़गारी, बीमारी, विकलांगता, विधवा अवस्था, वृद्धावस्था या आजीविका के अभाव में आय सुरक्षा का अधिकार। 

सार्वभौमिक सामाजिक कल्याण की आवश्यकता क्यों? 

  • बहुसंख्यक कार्यबल असंगठित क्षेत्र में: भारत में केवल 10% श्रमिक संगठित क्षेत्र से संबंधित हैं बाकी 90% से अधिक श्रमिक असंगठित क्षेत्र से संबंधित हैं। अतः भारत में एक बड़ा कार्यबल नौकरी की सुरक्षा, श्रम अधिकारों और सेवानिवृत्ति के बाद के सुरक्षा प्रावधानों का लाभ नहीं उठा पाता है।
    • इसके अलावा एक गतिशील बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था में तकनीकी परिवर्तनों एवं बढ़ते मशीनीकरण के साथ श्रमिक तेज़ी से अपना रोज़गार खो रहे हैं। इस प्रकार, श्रमिकों को उत्पादक बने रहने के लिये सीखने की क्षमता एवं कार्य की गति को बनाए रखने की आवश्यकता है।
    • हालाँकि, पिछले 15 वर्षों में कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित किये जाने के बावजूद परिणाम बहुत उत्साहजनक नहीं हैं।
  • बीमारी सार्वभौमिक, लेकिन स्वास्थ्य सेवा नहीं: सामाजिक पूंजी की अनुपस्थिति में आर्थिक पूंजी कमज़ोर वर्ग तक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच बनाने में अपर्याप्त साबित हुई है।
    • इसके अलावा स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने के लिये आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (ऋण लेकर क्षमता से अधिक खर्च करना) सीमांत परिवारों को गरीबी में धकेल सकता है। ज्ञातव्य है कि स्वास्थ्य पर निजी व्यय का लगभग 90% आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय है।
    • कोविड-19 ने नि:शुल्क सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। यह प्रदर्शित किया है कि निजी स्वास्थ्य संस्थानों में उपचार केवल अमीर एवं समर्थ लोगों द्वारा ही वहन किया जा सकता है।
  • सामाजिक सुरक्षा पर अपर्याप्त व्यय: भारत में सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का उद्देश्य व्यापक है, लेकिन सामाजिक सुरक्षा (सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को छोड़कर) पर समग्र सार्वजनिक व्यय जीडीपी का केवल 1.5% (लगभग) है, जो दुनिया भर में कई मध्यम आय वाले देशों की तुलना में कम है।
    • इसके अलावा, देश में 500 से अधिक प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजनाएँ हैं जो केंद्र एवं राज्य के विभिन्न विभागों द्वारा संचालित होती हैं। हालाँकि ये योजनाएँ पूरी तरह से उन लोगों तक नहीं पहुँच पाती है जो ज़रूरतमंद हैं।
    • इसके अलावा, मौजूदा योजनाएँ विभिन्न विभागों के अंतर्गत कई उप-योजनाओं में बंटी हुई हैं। इस कारण आँकड़ों के संग्रहण से लेकर अंतिम व्यक्ति तक सेवा एवं सामाजिक सुरक्षा का वितरण नहीं हो पाता है।
  • अपेक्षित लाभ: एक सार्वभौमिक प्रणाली होने से एक डेटाबेस के तहत सभी लाभार्थियों के आँकड़ों को एकत्रित कर सेवाओं के वितरण में आसानी होगी।
    • उदाहरण के लिये प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (Pradhan mantri Garib Kalyan Yojna- PMGKY) एक ऐसी योजना है जिसे सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा में परिणत किया जा सकता है।
    • इसके अंतर्गत पहले से ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), गैस सिलेंडरों के प्रावधान और मनरेगा (MGNREGS) के लिये मज़दूरों के आँकड़े को समेकित कर लिया गया है।
    • एक सार्वभौमिक योजना होने से कोई भी व्यक्ति सेवाओं का लाभ उठाने में पीछे नहीं छूटेगा।
    • उदाहरण के लिये, PDS को किसी सार्वभौमिक पहचान पत्र आधार या वोटर कार्ड से जोड़ा जा सकता है, इससे राशन कार्ड ना होने पर भी सेवाओं को ज़रूरतमंद तक पहुँचाया जा सकता है।
    • शिक्षा, मातृत्व लाभ, विकलांगता लाभ आदि जैसी अन्य योजनाओं/कल्याणकारी प्रावधानों को भी सार्वभौमिक बनाने से लोगों के लिये बेहतर जीवन स्तर सुनिश्चित होगा। 

केस स्टडी:  सार्वभौमिक सामाजिक कल्याणकारी मॉडल

  • ऐसी सामाजिक सुरक्षा योजना का एक उदाहरण आयरलैंड में गरीबों हेतु कानून प्रणाली (Poor Law System) है।
  • 19 वीं शताब्दी में आयरलैंड, एक देश जो गरीबी और अकाल से घिरा हुआ था, ने स्थानीय संपत्ति करों की सहायता से गरीबों को वित्तीय राहत प्रदान करने के लिये गरीब कानून प्रणाली की शुरुआत की।
  • ये कानून न केवल समय पर सहायता प्रदान करने बल्कि ऐसा करते समय गरीबों की गरिमा और सम्मान को बनाए रखने के लिये भी थे।
  • आज आयरलैंड में सामाजिक कल्याण प्रणाली चार स्तरों के एक तंत्र के रूप में विकसित हो चुकी है, जिसमें सामाजिक बीमा, सामाजिक सहायता, सार्वभौमिक योजनाएँ और अतिरिक्त लाभ शामिल हैं। 

आगे की राह

  • पल्स पोलियो यूनिवर्सल टीकाकरण प्रोग्राम का अनुकरण करना: भारत ने पल्स पोलियो यूनिवर्सल टीकाकरण के रूप में एक सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम को सफलतापूर्वक चलाया। इसके अंतर्गत कई वर्षों तक एक समर्पित प्रयास किया गया। परिणामस्वरूप वर्ष 2014 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया गया। 
    • ज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ सामाजिक कल्याण हेतु सार्वभौमिक कवरेज आवश्यक है।
    • इसके कार्यान्वयन को सरकारी विभागों में आँकड़ों का डिजिटलीकरण, आँकड़ों पर आधारित निर्णय लेने और सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है।
  • मौजूदा प्रणालियों की सहायता से नई प्रणाली का निर्माण: प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKY) एक ऐसी योजना है जिसे सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा हेतु तैयार किया जा सकता है।
  • मनरेगा का शहरों में कार्यान्वयन: मनरेगा ने उन लाखों श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करके इसकी उपयोगिता साबित की है, जो पुनः अपने स्थायी निवास स्थानों पर वापस आए जहाँ से वो निर्वासित हुए थे।
    • इस प्रकार, इस कार्यक्रम को शहरी क्षेत्रों में विस्तारित करने पर ध्यान देना चाहिये। नगरपालिका के पास कई ऐसे कार्य होते हैं जिन्हें करना आवश्यक होता है। जैसे- स्वच्छता में सुधार, मामूली मरम्मत कार्य, जिसमें वे मानव श्रम का उपयोग कर सकते हैं।
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करना: प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) के प्रबंधन के लिये शासन के सभी स्तरों पर आयुष्मान भारत-राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा, जन औषधि भंडार से जुड़ी चुनौतियों की समीक्षा और उनके समाधान की ज़रूरत है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे आत्मनिर्भर संस्थाओं के रूप में कार्य करें और पूरे देश में इनकी संख्या में तेज़ी से बढ़ोतरी हो सके।

निष्कर्ष

कोविड-19 से प्राप्त अनुभव दर्शाता है कि सरकारों को उनकी परिस्थितियों, जनसांख्यिकीय विशेषताओं और जोखिम के अनुसार स्वास्थ्य माॅडल अपनाने की आवश्यकता है न कि वन साईज फिट ऑल पर निर्भर रहने की। 

अभ्यास प्रश्न: कोविड-19 महामारी ने भारत में एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा योजना की आवश्यकता की तरफ ध्यान आकर्षित किया है। कथन का विश्लेषण कीजिये।

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