कृषि स्थिरता में CSR का योगदान | 18 Nov 2024
प्रिलिम्स के लिये:कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR), लघु और सीमांत किसान, उर्वरक, सिंचाई प्रणाली, चक्रवात, पशुपालन, परिशुद्ध कृषि, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMO), अनाज बैंक, जल संरक्षण, कंपनी अधिनियम, 2013, NGO, कंपनियाँ (CSR नीति) नियम, 2014, आपूर्ति शृंखला। मेन्स के लिये:कृषि के विकास में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) की भूमिका। |
स्रोत: TH
चर्चा में क्यों?
बढ़ते योगदान के साथ इस बात पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है कि किस प्रकार कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility- CSR) भारतीय कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य और पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ बनाने में सहायता कर सकता है।
कृषि में CSR की आवश्यकता क्यों है?
- कृषि पर उच्च निर्भरता: भारत की लगभग 47% आबादी रोज़गार के लिये कृषि पर निर्भर है, जबकि वैश्विक औसत 25% है।
- लघु और सीमांत किसान: 70% से अधिक ग्रामीण परिवार अपनी जीविका के लिये मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं। इनमें से 82% किसान लघु और सीमांत किसान हैं।
- वित्त तक खराब पहुँच: उच्च ब्याज दरें और औपचारिक ऋण स्रोतों की कमी के कारण किसान अक्सर आवश्यक उपकरण, बीज तथा उर्वरक खरीदनें में असमर्थ होते हैं, जिससे उनकी वृद्धि एवं उत्पादकता सीमित हो जाती है।
- बाज़ार संपर्कों का निर्माण: अपर्याप्त भंडारण सुविधाएँ, परिवहन और सिंचाई प्रणालियों जैसी खराब ग्रामीण अवसंरचना के कारण फसल-उपरांत नुकसान, अकुशल आपूर्ति शृंखलाएँ और बाज़ारों तक पहुँच में कमी आती है।
- पर्यावरणीय चुनौतियाँ: अप्रत्याशित मौसम पैटर्न के कारण फसलें बर्बाद होती हैं, पशुधन की हानि होती है तथा बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
- मृदा क्षरण: अनुचित सिंचाई पद्धतियों और रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मृदा क्षरण हुआ है, जिससे मृदा की उर्वरता कम हुई है, फसल की पैदावार कम हुई है और पर्यावरण को नुकसान पहुँचा है।
- जल की कमी: जल की कमी से फसल उत्पादन और पशुपालन दोनों को खतरा है, जिससे सिंचाई और जल प्रबंधन एक गंभीर मुद्दा बन गया है।
कृषि में CSR कैसे मदद कर सकता है?
- तकनीकी नवाचार: CSR पहल से उन्नत प्रौद्योगिकियों जैसे सेंसर, ड्रोन, ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) और डेटा एनालिटिक्स को परिशुद्ध कृषि में एकीकृत करने में मदद मिल सकती है।
- इससे किसानों को अधिक कुशल और सतत् कृषि के लिये सिंचाई, उर्वरक, कीट नियंत्रण और फसल स्वास्थ्य को अनुकूलित करने में मदद मिलेगी।
- वित्तीय पहुँच: कंपनियाँ किफायती वित्तपोषण और ऋण तक पहुँच को सुगम बनाने के लिये कम ब्याज दर पर ऋण और सब्सिडी प्रदान करने हेतु वित्तीय संस्थानों के साथ सहयोग कर सकती हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा: CSR कृषि कार्यों में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और बायोगैस जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को प्रोत्साहित कर सकता है, जो पर्यावरण के अनुकूल तथा सतत् कृषि पद्धतियों में योगदान दे सकता है।
- जैव प्रौद्योगिकी और GMO: CSR प्रयास जैव प्रौद्योगिकी तथा आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (Genetically Modified Organisms- GMO) के विकास को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे फसलें कीटों, बीमारियों एवं तनाव के प्रति अधिक प्रतिरोधी बन सकती हैं, पैदावार बढ़ा सकती हैं, कीटनाशकों के उपयोग को कम कर सकती हैं व खाद्य सुरक्षा में सुधार कर सकती हैं।
- किसानों को सशक्त बनाना: ज्ञान, कौशल निर्माण कार्यक्रमों और आधुनिक कृषि पद्धतियों के व्यावहारिक अनुभव तक पहुँच प्रदान करके, किसानों को उत्पादकता बढ़ाने तथा जोखिम कम करने के लिये बेहतर ढंग से सुसज्जित किया जा सकता है।
- बेहतर बाज़ार पहुँच: CSR किसानों को मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करके बाज़ार संपर्क बनाने में मदद कर सकता है, यह सुनिश्चित कर सकता है कि उन्हें अपने उत्पादों के लिये उचित मूल्य मिले, तथा उन्हें बड़े और अधिक आकर्षक बाज़ारों तक पहुँच बनाने में सक्षम बना सके।
नोट: "पर्यावरण और स्थिरता" कंपनियों के लिये दूसरी प्राथमिकता है, जबकि स्वास्थ्य सेवा, जल, सफाई और स्वच्छता सर्वोच्च प्राथमिकता है।
- CSR समर्थित पहलों के उदाहरणों में अनाज बैंक, किसान स्कूल, जल संरक्षण और ऊर्जा-कुशल सिंचाई शामिल हैं।
कृषि में CSR कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- कोई स्पष्ट सीमांकन नहीं: कृषि से संबंधित CSR गतिविधियों को स्पष्ट रूप से सीमांकित एवं सुपरिभाषित नहीं किया गया है।
- कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची VII के तहत कृषि स्थिरता को लक्षित करने वाली गतिविधियाँ CSR के 29 विकास क्षेत्रों में से 11 के अंतर्गत आ सकती हैं। जैसे लैंगिक समानता, निर्धनता, प्रौद्योगिकी इनक्यूबेटर, पशु कल्याण आदि।
- अल्पकालिक फोकस: CSR कार्यक्रमों के तहत अक्सर अल्पकालिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है जबकि कृषि में लक्षित उद्देश्य प्राप्त करने के लिये दीर्घकालिक निवेश एवं निरंतर समर्थन की आवश्यकता होती है।
- सामाजिक प्रभाव का मापन: कृषि में CSR के सामाजिक प्रभाव को मापना अक्सर कठिन (विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में) होता है।
- CSR परियोजनाओं के कारण किसानों की आय, आजीविका या कल्याण में सुधार का मूल्यांकन व्यक्तिपरक एवं जटिल हो सकता है।
- व्यावसायिक लक्ष्यों के साथ समन्वित न होना: कई कंपनियों को कृषि में CSR को अपनी व्यावसायिक रणनीतियों के साथ इस तरह से एकीकृत करना मुश्किल लग सकता है जो पारस्परिक रूप से लाभकारी हो। उदाहरण के लिये, कॉस्मेटिक कंपनियों को खेती के तरीकों में निवेश करने के प्रति कम रूचि हो सकती है।
- कृषि के प्रति अज्ञानता: CSR वित्तपोषण में शिक्षा और स्वास्थ्य का प्रभुत्व होने से कृषि संबंधी पहलों पर सीमित ध्यान दिया जा रहा है।
- इसके अलावा CSR फंड की काफी मात्रा को पीएम केयर्स फंड जैसे अन्य उद्देश्यों के लिये इस्तेमाल किया जाता है, जिससे विशिष्ट क्षेत्रों में CSR व्यय में कमी आती है।
- असंतुलित दृष्टिकोण: CSR पहल के तहत अक्सर कृषि के अलग-अलग पहलुओं पर असंतुलित ध्यान दिया जाता है, जैसे प्रशिक्षण एवं प्रौद्योगिकी प्रदान करना लेकिन जलवायु परिवर्तन, बाजार पहुँच और वित्तपोषण जैसी व्यापक चुनौतियों को नज़रअंदाज़ करना।
- उपयुक्त NGOs का अभाव: निगमों को अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे NGOs खोजने में कठिनाई होती है जो उनके CSR उद्देश्यों के अनुरूप हों, जिसके परिणामस्वरूप परियोजना कार्यान्वयन के लिये सही साझेदारों की पहचान करने में चुनौतियाँ आती हैं।
- CSR खर्च में असमानता: CSR फंड का प्रमुख भाग (30% से अधिक) महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और तमिलनाडु जैसे औद्योगिक राज्यों में केंद्रित है। इससे कम विकसित क्षेत्रों के लिये कम धन उपलब्ध हो पाता है।
- अकुशल आबंटन: कई कंपनियाँ अपने CSR प्रयासों को उन क्षेत्रों पर केंद्रित करती हैं जहाँ उनका पहले से ही परिचालन है या उस क्षेत्र से संबंध है। इससे रणनीतिक रूप से सबसे अधिक ज़रूरत वाले क्षेत्रों में धन का उपयोग सीमित रह जाता है।
CSR क्या है?
- परिचय: CSR के तहत कंपनियाँ स्वेच्छा से सामाजिक, पर्यावरणीय और नैतिक चिंताओं को दूर करने के क्रम में पहल करती हैं।
- इसमें पर्यावरणीय स्थिरता, गरीबी उन्मूलन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल आदि शामिल हैं।
- भारत का CSR अधिदेश: भारत वर्ष 2013 में कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के अंतर्गत CSR को विधिक रूप से अनिवार्य बनाने वाला पहला देश बन गया।
- वर्ष 2014 से 2023 तक 1.84 लाख करोड़ रुपए का CSR फंड वितरित किया गया।
- विधायी ढाँचा: भारत में CSR की अवधारणा कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135, कंपनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची VII और कंपनी (CSR नीति) नियम, 2014 से संबंधित है।
- 1 अप्रैल 2014 से कुछ कंपनियों के लिये CSR एक अनिवार्य आवश्यकता है।
- CSR मानदंड: CSR प्रावधान उन कंपनियों पर लागू होते हैं जो विगत वित्तीय वर्ष में निम्नलिखित मानदंडों में से किसी एक को पूरा करती हैं: 5 अरब रुपए से अधिक की शुद्ध संपत्ति, 10 अरब रुपए से अधिक का कारोबार या 50 मिलियन रुपए से अधिक का शुद्ध लाभ।
- ऐसी कंपनियों को पिछले तीन वर्षों के अपने शुद्ध लाभ का न्यूनतम 2% CSR गतिविधियों पर खर्च करना होता है।
- तीन वर्ष से कम अवधि की परिचालन अवधि वाली नवगठित कंपनियों के संदर्भ में उपलब्ध वर्षों के औसत शुद्ध लाभ पर विचार किया जाता है।
- राष्ट्रीय CSR डेटा पोर्टल: यह कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा CSR से संबंधित डेटा और सूचना प्रसारित करने की एक पहल है।
- CSR गतिविधियाँ: कंपनियाँ अपनी CSR नीतियों में निम्नलिखित गतिविधियों को शामिल कर सकती हैं, जैसा कि अनुसूची VII में निर्दिष्ट है।
आगे की राह
- स्पष्ट परिभाषा: कृषि CSR पहलों के लिये एक अलग क्षेत्र की स्थापना से संसाधनों को अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग करने में सहायता मिलेगी और यह सुनिश्चित होगा कि निधियां सीधे क्षेत्र के विकास में योगदान दे रही हैं।
- वित्तीय समावेशन: किसानों को किफायती वित्तीय सेवाओं तक पहुँच प्रदान करके, CSR उन्हें गुणवत्तापूर्ण इनपुट में निवेश करने, नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने और पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रति उनकी लचीलापन बढ़ाने के लिये सशक्त बना सकता है।
- आपूर्ति शृंखला स्थिरता: कृषि कई उद्योगों की आपूर्ति शृंखलाओं जैसे खाद्य, वस्त्र और फार्मास्यूटिकल्स का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। CSR के माध्यम से संधारणीय कृषि पद्धतियों में निवेश करके कंपनियाँ अपनी आपूर्ति शृंखलाओं की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने में सहायता करती हैं।
- प्रतिस्पर्धात्मक लाभ: जल संरक्षण, परिशुद्ध कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग जैसी कृषि चुनौतियों का समाधान करके कंपनियाँ नई प्रौद्योगिकियों या सेवाओं का विकास कर सकती हैं जो उन्हें प्रतिस्पर्धियों से अलग बनाती हैं।
- व्यावसायिक लक्ष्यों के साथ संरेखण: कंपनियाँ CSR कार्यक्रमों को अपने मूल मूल्यों के साथ संरेखित कर सकती हैं, जैसे खाद्य कंपनियाँ संधारणीय कृषि का समर्थन करती हैं और प्रौद्योगिकी कंपनियाँ कृषि प्रौद्योगिकी में निवेश करती हैं, जिससे उनके व्यवसाय एवं क्षेत्र दोनों को लाभ होता है।
- समतामूलक विकास: कंपनियों को अपने CSR प्रयासों को कृषि संबंधी चुनौतियों वाले क्षेत्रों की ओर निर्देशित करना चाहिये, भले ही वे वहाँ परिचालन न करती हों, ताकि व्यापक और अधिक समतामूलक विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. कृषि स्थिरता को बढ़ावा देने में सीएसआर की भूमिका और इसके कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा उन विदेशी निवेशकों को, जो स्वयं को सीधे पंजीकृत कराए बिना भारतीय स्टॉक बाज़ार का हिस्सा चाहते हैं, निम्नलिखित में से क्या जारी किया जाता है? (2019) (a) जमा प्रमाण-पत्र (b) वाणिज्यिक पत्र (c) वचन-पत्र (प्रॉमिसरी नोट) (d) सहभागिता पत्र (पार्टिसिपेटरी नोट) उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न: समावेशी विकास की रणनीति को ध्यान में रखते हुए, नए कंपनी बिल 2013 ने 'सामूहिक सामाजिक उत्तरदायित्व' को अप्रत्यक्ष रूप से अनिवार्य कर्त्तव्य बना दिया है। इसके गंभीरता से पालन कराने में अपेक्षित चुनौतियों की विवेचना कीजिये। इस बिल की अन्य व्यवस्थाओं और उनकी उलझनों की भी चर्चा कीजिये। (2013) |