जैव विविधता और पर्यावरण
अरावली के समक्ष गंभीर खतरे
- 21 Aug 2024
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट, भारत में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण, एक सतत् भविष्य के लिये वनों का संरक्षण, भारत में पर्वत श्रेणियाँ, विश्व में पर्वत शृंखलाएँ मेन्स के लिये:वनस्पतियों और जीवों की हानि, जैवविविधता पर वनों की कटाई का प्रभाव, क्षेत्रीय पारिस्थितिकी, जलवायु और जल प्रणालियों में अरावली की भूमिका। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
अरावली में भूमि उपयोग गतिशीलता पर एक हालिया वैज्ञानिक अध्ययन ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि पहाड़ियों के निरंतर विनाश के परिणामस्वरूप जैव विविधता, मृदा क्षरण, तथा वनस्पति आवरण में कमी आई है।
अरावली से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- पहाड़ियों की क्षति: वर्ष 1975 और 2019 के बीच अरावली पहाड़ियों का लगभग 8% (5,772.7 वर्ग किमी) हिस्सा लुप्त हो गया है, जिसमें 5% (3,676 वर्ग किमी) बंजर भूमि में परिवर्तित हो गया है और 1% (776.8 वर्ग किमी) बस्तियों में बदल गया है।
- पहाड़ियों के खंडन से थार रेगिस्तान का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की ओर विस्तार हो गया है, जिससे रेगिस्तानीकरण में वृद्धि, प्रदूषण में वृद्धि और अनियमित मौसम की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
- खनन क्षेत्र में वृद्धि: वर्ष 1975 में 1.8% से 2019 में 2.2% तक।
- ‘वृहत’ शहरीकरण और अवैध खनन अरावली पहाड़ियों के निरंतर विनाश में प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं।
- राजस्थान में अरावली पर्वतमाला का 25 प्रतिशत से अधिक भाग तथा 31 पर्वत शृंखलाएँ अवैध उत्खनन के कारण लुप्त हो गई हैं।
- खनन कार्य श्वसनीय कण पदार्थ (Respirable Particulate Matter- RPM) के माध्यम से NCR क्षेत्र में वायु प्रदूषण में प्रमुख योगदान देता है।
- मानव बस्तियों में वृद्धि: वर्ष 1975 में 4.5% से वर्ष 2019 में 13.3% तक।
- वन क्षेत्र: वर्ष 1975-2019 के बीच मध्य क्षेत्र में 32% की गिरावट आई, जबकि कृषि योग्य भूमि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- वर्ष 1999 से 2019 के दौरान वन क्षेत्र कुल क्षेत्रफल का 0.9% तक कम हो गया।
- अध्ययन अवधि के दौरान औसत वार्षिक निर्वनीकरण दर 0.57% थी।
- जल निकायों पर प्रभाव: जल निकायों का विस्तार वर्ष 1975 में 1.7% से बढ़कर वर्ष 1989 में 1.9% हो गया, लेकिन उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट आई है।
- अत्यधिक खनन के कारण जलभृतों में छिद्र हो गए हैं, जिससे जल प्रवाह बाधित हुआ है, झीलें सूख गई तथा अवैध खननकर्त्ताओं द्वारा छोड़े गए गड्ढों के परिणामस्वरूप नए जल निकाय निर्मित हो गए हैं।
- अरावली में संरक्षित क्षेत्रों का प्रभाव: मध्य अरावली पर्वतमाला में टॉडगढ़-राओली और कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्यों ने पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र पर सकारात्मक प्रभाव डाला, जिससे वनों का क्षरण न्यूनतम हुआ।
- संवर्द्धित वनस्पति सूचकांक (EVI): ऊपरी मध्य अरावली क्षेत्र (नागौर ज़िला) में EVI का न्यूनतम मान 0 से -0.2 है, जो अस्वस्थ वनस्पति को दर्शाता है।
- भविष्य के अनुमान: वर्ष 2059 तक अरावली क्षेत्र का कुल नुकसान 22% (16,360 वर्ग किमी) तक पहुँचने का अनुमान है, जिसमें से 3.5% (2,628.6 वर्ग किमी) क्षेत्र का उपयोग खनन के लिये होने की संभावना है।
- अरावली के सामने आने वाली अन्य प्रमुख चुनौतियाँ:
- तेंदुए, धारीदार लकड़बग्घा, सुनहरे सियार और अन्य प्रजातियों सहित वनस्पतियों एवं जीवों में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
- अरावली से निकलने वाली कई नदियाँ जैसे बनास, लूनी, साहिबी और सखी अब मृत हो चुकी हैं।
- अरावली के किनारे प्राकृतिक वनों के खत्म होने से मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि हुई है।
संवर्द्धित वनस्पति सूचकांक (EVI) क्या है ?
- परिचय:
- EVI एक संवर्द्धित वनस्पति सूचकांक है, जो बायोमास, वायुमंडलीय पृष्ठभूमि और मृदा स्थिति के प्रति उच्च संवेदनशीलता के साथ बनाया गया है।
- इसे सामान्यीकृत अंतर वनस्पति सूचकांक (NDVI) का संशोधित संस्करण माना जाता है, जिसमें सभी बाह्य शोर को हटाकर वनस्पति निगरानी की उच्च क्षमता है।
- EVI मान सीमा:
- 0 से 1 तक की सीमा जिसमें 1 के करीब मान स्वास्थ्यकर वनस्पति को दर्शाता है और 0 के करीब मान अस्वास्थ्यकर वनस्पति को दर्शाता है।
नोट:
- एक काँटेदार सुगंधित झाड़ी लैंटाना कैमरा जिसकी लंबाई 20 फीट तक होती है, राजस्थान और दक्षिण दिल्ली में अरावली पहाड़ियों के बड़े क्षेत्रों पर आक्रामक रूप से पनप गई है।
अरावली के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय:
- अरावली पर्वतमाला गुजरात से राजस्थान होते हुए दिल्ली तक विस्तृत है जिसकी लंबाई 692 किमी. है और चौड़ाई 10 से 120 किमी. के बीच है।
- यह पर्वतमाला एक प्राकृतिक हरित दीवार (green wall) के रूप में कार्य करती है, जिसका 80% हिस्सा राजस्थान में और 20% हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में स्थित है।
- अरावली पर्वतमाला दो मुख्य पर्वतमालाओं में विभाजित है - राजस्थान में सांभर सिरोही पर्वतमाला और सांभर खेतड़ी पर्वतमाला, जहाँ इनका विस्तार लगभग 560 किमी. है।
- यह थार रेगिस्तान और गंगा के मैदान के बीच एक इकोटोन के रूप में कार्य करती है।
- इकोटोन वे क्षेत्र हैं, जहाँ दो या दो से अधिक पारिस्थितिकी तंत्र, जैविक समुदाय या जैविक क्षेत्र मिलते हैं।
- इस पर्वतमाला की सबसे ऊँची चोटी गुरुशिखर (राजस्थान) है, जिसकी ऊँचाई 1,722 मीटर है।
- अरावली पर्वतमाला गुजरात से राजस्थान होते हुए दिल्ली तक विस्तृत है जिसकी लंबाई 692 किमी. है और चौड़ाई 10 से 120 किमी. के बीच है।
अरावली का महत्त्व:
- अरावली थार मरुस्थल को गंगा के मैदानों पर अतिक्र मण करने से रोकती है, जो ऐतिहासिक रूप से नदियों और मैदानों के लिये जलग्रहण क्षेत्र के रूप में कार्य करती है।
- इस पर्वतमाला में 300 स्थानीय पादप प्रजातियाँ, 120 पक्षी प्रजातियाँ और गीदड़ एवं नेवले जैसे विशेष जीव-जंतु पाए जाते हैं।
- मानसून के दौरान अरावली के कारण बादल पूर्व की ओरमुड़ जाते हैं, जिससे उप-हिमालयी नदियाँ और उत्तर भारतीय मैदान लाभांवित होते हैं। सर्दियों में ये उपजाऊ घाटियों को पश्चिमी शीत पवनों से बचाते हैं।
- यह पर्वतमाला वर्षा जल को अवशोषित करके भू-जल पुनःपूर्ति में सहायता करती है, जिससे भू-जल स्तर में सुधार होता है।
- अरावली दिल्ली-NCR के लिये ‘फेफड़ों’ के रूप में कार्य करती है, जो इस क्षेत्र में गंभीर वायु प्रदूषण के कुछ प्रभावों को कम करती है।
अरावली पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और कानूनी अधिसूचनाएँ क्या हैं?
- वर्ष 2018 का निर्णय: हरियाणा में अरावली पर्वतमाला में अवैध निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया गया। कांत एन्क्लेव को ध्वस्त करने और निवेशकों को प्रतिपूर्ति करने का निर्देश दिया गया।
- वर्ष 2009 का आदेश: पूरे अरावली में खनन पर प्रतिबंध लगाया गया।
- वर्ष 2002 का आदेश: बड़े पैमाने पर क्षरण के कारण हरियाणा में खनन गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया गया।
- वर्ष 1996 का निर्णय: यह अनिवार्य किया गया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति के बिना बड़खल झील के 2-5 किलोमीटर के दायरे में खनन पट्टों का नवीनीकरण नहीं किया जा सकता।
- निवारक सिद्धांत (वर्ष 1996): सर्वोच्च न्यायालय ने यह सिद्धांत स्थापित किया कि सरकारों को वैज्ञानिक साक्ष्य (वेल्लोर नागरिक कल्याण मंच बनाम भारत संघ) की प्रतीक्षा किये बिना पर्यावरणीय क्षरण को पूर्वानुमानित करना चाहिये और उसे रोकना चाहिये।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (वर्ष 2010): NGT अधिनियम की धारा 20 के तहत पर्यावरणीय निर्णयों के लिये निवारक सिद्धांत को अपनाया गया।
- पर्यावरण एवं वन मंत्रालय अधिसूचना (वर्ष 1992): पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की पूर्व अनुमति के बिना अरावली पर्वतमाला में नए उद्योगों, खनन, निर्वनीकरण और निर्माण पर प्रतिबंध लगाया गया।
- सरकार द्वारा उठाए गए अन्य कदम: क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिये NCR में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग का गठन।
- अरावली में अवैध खनन को रोकने हेतु गुरुग्राम में सात सदस्यीय "अरावली कायाकल्प बोर्ड" की स्थापना की गई है।
आगे की राह
- अरावली ग्रीन वॉल परियोजना को लागू करें: अरावली पर्वतमाला के चारों ओर 1,400 किलोमीटर लंबी और 5 किलोमीटर चौड़ी ग्रीन वॉल विकसित करना।
- हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली में 75 जल निकायों और बंजर भूमि का पुनरुद्धार करना।
- अफ्रीका की 'ग्रेट ग्रीन वॉल' से प्रेरित इस परियोजना का उद्देश्य पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना और मरुस्थलीकरण से निपटना है।
- सफल बहाली मॉडल अपनाएँ: गुरुग्राम में जैवविविधता पार्क के सफल उदाहरण का अनुसरण करते हुए नागरिक समाज को कॉरपोरेट्स और निवासियों के साथ मिलकर वृक्षारोपण एवं आवास बहाली के लिये भागीदारी बनाना।
- अरावली क्षेत्र में आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये पारिस्थितिकीविदों और स्थानीय स्वयंसेवकों को शामिल करना।
- कानूनी और विनियामक उपायों को मज़बूत करना: अवैध खनन और निर्माण को रोकने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के मौज़ूदा फैसलों एवं कानूनी अधिसूचनाओं को लागू करना।
- पर्यावरण नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना और अरावली पर्वतमाला को और अधिक क्षरण से बचाने के लिए निवारक सिद्धांतों को एकीकृत करना।
- अरावली में अतिक्रमण और अवैध बस्तियों को रोकने के लिये सख्त ज़ोनिंग कानून (zoning laws) लागू करना।
- अवैध खनन के खतरे से निपटने के लिये अरावली कायाकल्प बोर्ड जैसी संस्थाओं को सशक्त बनाना।
निष्कर्ष
अरावली पर्वतमाला का भविष्य पर्यावरण क्षरण को रोकने के लिये तत्काल और प्रभावी कार्रवाई पर निर्भर करता है। अनुमानों के अनुसार वर्ष 2059 तक 22% की हानि होगी और खनन एवं शहरीकरण का विस्तार होगा, इसलिये कानूनी उपायों को सख्ती से लागू करना तथा अरावली ग्रीन वॉल जैसी बड़े पैमाने पर बहाली परियोजनाओं में निवेश करना महत्त्वपूर्ण है। अभिनव संरक्षण मॉडल को लागू करके और न्यायिक निर्णयों का पालन करके, हम इस महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक अवरोध की रक्षा कर सकते हैं, जैवविविधता की रक्षा कर सकते हैं तथा आने वाली पीढ़ियों के लिये प्रतिकूल जलवायु प्रभावों को कम कर सकते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न. अरावली पर्वतमाला पर अवैध खनन और शहरीकरण के प्रभाव की जाँच करें तथा इन मुद्दों को कम करने में हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों की प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिये। |