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भारतीय अर्थव्यवस्था

स्टार्टअप्स के लिये कॉर्पोरेट गवर्नेंस

  • 06 May 2024
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कॉर्पोरेट गवर्नेंस, सेबी, भारतीय उद्योग परिसंघ (CII), स्टार्टअप

मेन्स के लिये:

कॉर्पोरेट गवर्नेंस, भारत में व्यापार से संबंधित मुद्दे, भारतीय स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र, चुनौतियाँ और अवसर।

स्रोत: इकॉनोमिक् टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry - CII) ने स्टार्टअप्स के लिये एक कॉर्पोरेट गवर्नेंस चार्टर लॉन्च किया है, जिसमें एक स्व-मूल्यांकन स्कोरकार्ड भी शामिल है।

  • यह उस अवधि के दौरान हुआ है जब Byju’s, BharatPe और Zilingo जैसी कंपनियों ने पिछले 12-18 महीनों में शासन मानदंडों के विषय में चिंता व्यक्त की है।

चार्टर के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

चार्टर स्टार्टअप्स के लिये कॉर्पोरेट गवर्नेंस के लिये सुझाव प्रदान कर स्टार्टअप के विभिन्न चरणों के लिये  उपयुक्त दिशानिर्देश प्रदान करेगा, जिसका लक्ष्य शासन प्रथाओं को बढ़ाना है।

  • भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस नियमों, प्रथाओं और प्रक्रियाओं का एक समूह है जिसके द्वारा एक कंपनी निर्देशित तथा नियंत्रित होती है।
  • स्व-मूल्यांकनात्मक गवर्नेंस स्कोरकार्ड:
    • चार्टर में एक ऑनलाइन स्व-मूल्यांकनात्मक गवर्नेंस स्कोरकार्ड शामिल है जिसका उपयोग स्टार्टअप अपनी वर्तमान शासन स्थिति और समय के साथ इसके सुधार का मूल्यांकन करने के लिये कर सकते हैं।
      • यह स्टार्टअप्स को अपनी शासन प्रगति को मापने की अनुमति देगा, समय-समय पर स्कोरकार्ड के आधार पर मूल्यांकन किये गए स्कोर परिवर्तन के साथ शासन प्रथाओं में सुधार का संकेत मिलेगा।
  • स्टार्टअप हेतु मार्गदर्शन के 4 प्रमुख चरण:
    • आरंभिक चरण में: स्टार्टअप का केंद्र बिंदु इनके गठन पर होगा:
      • बोर्ड का गठन,
      • अनुपालन निगरानी,
      • लेखांकन, वित्त, बाह्य लेखापरीक्षा, संबंधित-पक्ष लेनदेन के लिये नीतियाँ और
      • संघर्ष समाधान तंत्र की स्थापना 
    • प्रगति चरण में:  स्टार्टअप अतिरिक्त रूप से निम्नलिखित पर ध्यान केंद्रित कर सकता है:
      • प्रमुख व्यावसायिक मेट्रिक्स की निगरानी करना,
      • आंतरिक नियंत्रण बनाये रखना,
      • निर्णय लेने के पदानुक्रम को परिभाषित करना और
      • एक लेखापरीक्षा समिति का गठन.
    • विकास चरण हेतु: केंद्र इस पर होगा:
      • किसी संगठन के दृष्टिकोण, मिशन, आचार संहिता, संस्कृति और नैतिकता के प्रति हितधारक जागरूकता का निर्माण करना,
      • बोर्ड में विविधता व समावेशन सुनिश्चित करना, तथा 
      • कंपनी अधिनियम 2013 और अन्य लागू कानूनों तथा विनियमों के अनुसार, वैधानिक आवश्यकताओं को पूर्ण करना।
    • सार्वजनिक मंच पर: स्टार्टअप का ध्यान इन केंद्र इस पर होगा:
      • विभिन्न समितियों की कार्यप्रणाली की निगरानी के संदर्भ में अपने गवर्नेंस का विस्तार करना,
      • धोखाधड़ी की रोकथाम और पता लगाने पर ध्यान केंद्रित करना,
      • सूचना विषमता को न्यूनतम करना,
      • बोर्ड के प्रदर्शन का मूल्यांकन करनाI 
  • मूल्यांकन: व्यवसायों का मूल्यांकन यथासंभव यथार्थवादी रखा जाना चाहिये।
    • स्टार्टअप अल्पकालिक मूल्यांकन के बजाय दीर्घकालिक मूल्य निर्माण हेतु प्रयास कर सकते हैं।
  • दीर्घकालिक लक्ष्य: व्यावसायिक इकाई की ज़रूरतों को उसके निर्माता या संस्थापकों की व्यक्तिगत ज़रूरतों से अलग रखा जाना चाहिये, संस्थापकों, प्रमोटरों और मूल निवेशकों की आवश्यकताएँ एवं महत्त्वाकांक्षाएँ भी कंपनी के दीर्घकालिक उद्देश्यों के अनुरूप होनी चाहिये।
  • अलग कानूनी संस्थाः स्टार्टअप को एक अलग कानूनी इकाई के रूप में बनाए रखा जाना चाहिये, जिसमें संगठन की संपत्ति संस्थापकों की संपत्ति से अलग हो।

स्टार्टअप क्या है?

  • परिचय: 
    • उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade - DPIIT) के अनुसार, मान्यता के लिये पात्रता प्राप्त करने हेतु, एक स्टार्टअप को निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करना होगा:
      • उसे स्थापना के बाद से व्यवसाय में दस वर्षों से अधिक समय न हुआ हो।
      • एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, एक पंजीकृत साझेदारी फर्म, अथवा एक सीमित देयता भागीदारी के रूप में पंजीकृत होनी चाहिये।
      • कंपनी का वार्षिक कारोबार किसी भी वित्तीय वर्ष में 100 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होना चाहिये।
      • स्टार्ट-अप को पहले से मौज़ूद व्यवसाय को विभाजित करके अथवा पुनर्निर्माण करके न बनाया गया हो।
  • भारत में स्टार्टअप का परिदृश्य:
    • भारत के पास विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है और वर्ष-दर-वर्ष 12-15% की लगातार वार्षिक वृद्धि का अनुमान है।
    • भारत मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं के बीच वैज्ञानिक प्रकाशनों की गुणवत्ता और अपने विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता में शीर्ष स्थान के साथ नवाचार गुणवत्ता में दूसरे स्थान पर है।
    • मई 2023 तक के आँकड़ों के अनुसार, भारत में 108 यूनिकॉर्न हैं और उनका संयुक्त मूल्य 340.80 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।

कॉर्पोरेट गवर्नेंस क्या है?

  • परिचय:
    • किसी कंपनी की नीतियों, प्रक्रियाओं और दिशानिर्देशों की प्रणाली जिसे कॉर्पोरेट गवर्नेंस के रूप में जाना जाता है, जिसका कंपनी के द्वारा ही मार्गदर्शन और नियंत्रण किया जाता है। यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि कंपनियों का प्रबंधन नैतिक रूप से और उनके हितधारकों के हितों को ध्यान में रखते हुए किया जाए।
    • यह व्यक्तियों को उनके कृत्यों के लिये जवाबदेह बनाता है और सख्त नैतिक मानकों को कायम रखता है।
  • कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सिद्धांत:
    • निष्पक्षता: निदेशक मंडल को शेयरधारकों, कर्मचारियों, विक्रेताओं और समुदायों के साथ निष्पक्षता एवं समानता का व्यवहार करना चाहिये। 
    • जवाबदेही: बोर्ड से कंपनी के व्यवहार पर रिपोर्ट करने और इसके संचालन के पीछे के लक्ष्यों की व्याख्या प्रदान करने की अपेक्षा की जाती है।
    • पारदर्शिता: बोर्ड को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि शेयरधारकों और अन्य हितधारकों को वित्तीय प्रदर्शन, हितों के टकराव तथा जोखिमों के बारे में समय पर, सटीक एवं स्पष्ट जानकारी प्रदान की जाए।
    • जोखिम प्रबंधन: बोर्ड और प्रबंधन विभिन्न जोखिमों की पहचान करने तथा उन्हें नियंत्रित करने के लिये ज़िम्मेदार हैं। 
      • उन्हें इन जोखिमों का प्रबंधन करने के लिये सिफारिशों के आधार पर कार्रवाई की जानी चाहिये और संबंधित पक्षों को उनके अस्तित्व एवं स्थिति के बारे में सूचित किया जाना चाहिये।  
    • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR): इसमें पर्यावरण और समाज में रचनात्मक योगदान देने के साथ-साथ कॉर्पोरेट रणनीति एवं संचालन में पर्यावरण, सामाजिक तथा शासन (ESG) कारकों को शामिल करना सम्मिलित है।
  • भारत में नियामक ढाँचा 
  • कॉर्पोरेट गवर्नेंस से संबंधित समितियाँ:
    • भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) कॉर्पोरेट गवर्नेंस पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स (1996): 
      • राहुल बजाज की अध्यक्षता में इस टास्क फोर्स ने भारतीय कंपनियों के लिये एक स्वैच्छिक आचार संहिता विकसित की।
    • कुमार मंगलम बिरला समिति (1999): 
      • सूचीबद्ध कंपनियों के कॉर्पोरेट गवर्नेंस की एक अनिवार्य संहिता विकसित करने के लिये  SEBI द्वारा इस समिति की स्थापना की गई थी।
      • इस समिति की अनुशंसाओं में बोर्ड संरचना, स्वतंत्र निदेशकों, लेखापरीक्षा समितियों तथा जोखिम प्रबंधन जैसे विषयों को संबोधित किया गया।
    • नरेश चंद्र समिति (2002): 
      • कंपनी मामलों के विभाग (DCA) द्वारा गठित इस समिति ने वैधानिक लेखापरीक्षा , लेखापरीक्षकों की स्वतंत्रता तथा स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका से संबंधित विभिन्न कॉर्पोरेट गवर्नेंस मुद्दों की जाँच की।
      • इसकी अनुशंसाओं के कारण कंपनी अधिनियम में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
    • नारायण मूर्ति समिति (2003): SEBI द्वारा गठित इस समिति ने सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा कॉर्पोरेट गवर्नेंस संहिता के कार्यान्वयन की समीक्षा की।
      • समिति की अनुशंसाओं ने संहिता को दृढ़ करने तथा इसकी प्रभावशीलता में सुधार करने में सहायता की।
  • कॉर्पोरेट गवर्नेंस का महत्त्व:
    • निवेशकों का विश्वास मज़बूत होता है: मज़बूत कॉर्पोरेट गवर्नेंस वित्तीय बाज़ार में निवेशकों का विश्वास बनाए रखता है, जिसके परिणामस्वरूप कंपनियां कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से पूंजी जुटा सकती हैं।
    • पूंजी का अंतर्राष्ट्रीय प्रवाह: यह कंपनियों को वैश्विक पूंजी बाज़ार का लाभ उठाने में सक्षम बनाता है जिस से आर्थिक विकास में वृद्धि होती है। 
    • उत्पादकता में वृद्धि: यह अपव्यय, भ्रष्टाचार, जोखिम और कुप्रबंधन को भी कम करता है।
    • ब्रैंड छवि: यह किसी कंपनी के ब्रैंड निर्माण और विकास में सहायता करता है। यह अंततः विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) से पूंजी प्रवाह को बढ़ाता है।
  • चुनौतियाँ:
    • उद्देश्यपूर्ण बोर्ड सुनिश्चित करना: भारत में कंपनी मालिकों के सहयोगियों और रिश्तेदारों को बोर्ड के सदस्यों के रूप में चुना जाना सामान्य है
    • निदेशकों का प्रदर्शन मूल्यांकन: सार्वजनिक जाँच एवं नकारात्मक प्रतिक्रिया से बचने के लिये  कॉर्पोरेट कंपनियाँ कभी-कभी प्रदर्शन मूल्यांकन के परिणाम को प्रदर्शित नहीं करती हैं।
    • स्वतंत्र निदेशकों को हटाना: कभी-कभी, स्वतंत्र निदेशकों को प्रमोटरों द्वारा उनके पदों से सरलता से हटा दिया जाता है, यदि वे प्रमोटरों के निर्णयों का समर्थन नहीं करते हैं।
    • संस्थापकों का नियंत्रण एवं उत्तराधिकार योजना: भारत में संस्थापकों की कंपनी के मामलों को नियंत्रित करने की क्षमता संपूर्ण कॉर्पोरेट गवर्नेंस प्रणाली को बाधित कर सकती है।
      • विकसित अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत, भारत में कंपनी के संस्थापक एवं कंपनी की पहचान में भेद करना कठिन हो जाता है।

भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार कैसे करें?

  • नियामक ढाँचे को दृढ़ करें: कॉर्पोरेट गवर्नेंस को सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के साथ संरेखित करने के लिये नियमों का लगातार अद्यतन तथा अनुप्रयोग किया जाए।
  • स्वतंत्र निदेशक एवं बोर्ड संरचना में विविधता: यह उनकी स्वायत्तता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करता है तथा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में व्यापक दृष्टिकोण एवं विशेषज्ञता को दर्शाता है।
  • पारदर्शिता और प्रकटीकरण: वित्तीय जानकारी, स्वामित्व संरचनाओं, संबंधित-पक्ष लेनदेन और कॉर्पोरेट गवर्नेंस प्रथाओं का समावेशी एवं समय पर प्रकटीकरण का आदेश।
  • शेयरधारक अधिकार एवं सक्रियता: शेयरधारक अधिकारों को बढ़ाया जाए, जिसमें मतदान अधिकार, सूचना पहुँच एवं प्रमुख निर्णयों में भागीदारी सम्मिलित है। 
  • सभी हितधारकों के साथ रचनात्मक संवाद और जुड़ाव को बढ़ावा देना।
  • सतत मूल्यांकन और सुधार: कॉर्पोरेट गवर्नेंस प्रथाओं के मूल्यांकन और मानदण्ड के लिये तंत्र स्थापित करना।
    • हितधारकों से नियमित रूप से प्रतिपुष्टि मांगी जाए तथा तद्नुसार नीतियों और प्रक्रियाओं को अपनाया जाए।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

कॉर्पोरेट गवर्नेंस क्या है? भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस के लिये नियामक ढाँचे की क्या आवश्यकता है? भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार के उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जोखिम पूंजी से क्या तात्पर्य है? (2014)

(a) उद्योगों को उपलब्ध कराई गई अल्पकालीन पूंजी
(b) नये उद्यमियों को उपलब्ध कराई गई दीर्घकालीन प्रारम्भिक पूंजी
(c) उद्योगों को हानि उठाते समय उपलब्ध कराई गई निधियाँ
(d) उद्योगों के प्रतिस्थापन एवं नवीकरण के लिये उपलब्ध कराई गई निधियाँ

उत्तर : (b)


मेन्स: 

प्र1. सत्यम् कलंकपूर्ण कार्य (2009) के प्रकाश में कॉर्पोरेट शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिये लाए गए परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये। (2015)

प्र2. 'शासन', 'सुशासन' और 'नैतिक शासन' शब्दों से आप क्या समझते हैं? (2016)

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