चाइल्ड फूड पाॅवर्टी | 17 Jun 2024
प्रिलिम्स के लिये:चाइल्ड फूड पाॅवर्टी, बाल कुपोषण, चाइल्ड स्टंटिंग, UNICEF, मध्याह्न भोजन (MDM) योजना, पोषण अभियान, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013, मेन्स के लिये:बाल खाद्य गरीबी पर UNICEF की रिपोर्ट, बच्चों के विकास पर इसका प्रभाव, वैश्विक स्तर पर गंभीर बाल खाद्य गरीबी को समाप्त करने के उपाय। |
स्रोत: UNICEF
चर्चा में क्यों?
UNICEF की हालिया रिपोर्ट- 'चाइल्ड फूड पाॅवर्टी: न्यूट्रीशन डिप्राईवेशन इन अर्ली चाइल्डहुड' में प्रारंभिक बाल्यावस्था में चाइल्ड फूड पाॅवर्टी की स्थिति, प्रवृत्तियों एवं असमानताओं का विश्लेषण किया गया है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:
- वैश्विक स्तर पर 5 वर्ष से कम आयु के लगभग 181 मिलियन बच्चे (इस आयु वर्ग के चार बच्चों में से एक) गंभीर फूड पाॅवर्टी/खाद्य अभाव का सामना कर रहे हैं।
- UNICEF के वैश्विक डेटाबेस, 2023 के अनुसार, भारत के 40% बच्चे गंभीर खाद्य अभाव का सामना कर रहे हैं।
- गंभीर चाइल्ड फूड पाॅवर्टी के समाधान की दिशा में प्रगति धीमी बनी हुई है लेकिन कुछ क्षेत्र और देश इस दिशा में सही प्रगति का संकेत दे रहे हैं।
- चाइल्ड फूड पाॅवर्टी की गंभीरता से गरीब एवं संपन्न, दोनों ही परिवारों के बच्चे प्रभावित होते हैं, इससे प्रदर्शित होता है कि घरेलू आय इस मुद्दे के समाधान का एकमात्र कारक नहीं है।
- गंभीर फूड पाॅवर्टी का सामना कर रहे बच्चों को पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ न मिलने के कारण अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों का सेवन करना पड़ता है।
- वैश्विक खाद्य एवं पोषण संकट के साथ ही स्थानीय संघर्ष एवं जलवायु असंतुलन से यह स्थिति और विकराल (खासकर कमज़ोर देशों में) हो जाती है।
- कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और सोमालिया जैसे क्षेत्रों के सुभेद्य/कमज़ोर समुदायों में 80% से अधिक अभिभावकों से यह पता चला है कि उनके बच्चे धन या अन्य संसाधनों की कमी के कारण पूरे दिन के लिये पर्याप्त भोजन उपभोग का नहीं कर पा रहे हैं।
- चाइल्ड फूड पाॅवर्टी, बाल कुपोषण का प्रमुख कारण है। चाइल्ड स्टंटिंग के उच्च प्रसार वाले देशों में गंभीर चाइल्ड फूड पाॅवर्टी का प्रसार तीन गुना अधिक है।
चाइल्ड फूड पाॅवर्टी:
- परिचय:
- UNICEF के अनुसार चाइल्ड फूड पाॅवर्टी का आशय प्रारंभिक बाल्यावस्था में (5 वर्ष से कम उम्र) पौष्टिक तथा विविध आहार तक पहुँच न होने के साथ उसका उपभोग करने में असमर्थता है।
- चाइल्ड फूड पाॅवर्टी या बाल कुपोषण शब्द के तहत दो विशिष्ट समूह शामिल हैं:
- इसमें पहला समूह है 'बाल अल्पपोषण- जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं-
- चाइल्ड स्टंटिंग Child Stunting (आयु के अनुसार कम ऊँचाई),
- चाइल्ड वेस्टिंग Child Wasting (ऊँचाई के अनुसार कम वज़न),
- अल्प-वज़न (आयु के अनुसार कम वज़न) और
- पोषक तत्त्वों का अभाव (प्रमुख विटामिन एवं खनिजों का अभाव)
- इसमें दूसरा समूह है बच्चों का अधिक वज़न, मोटापा और आहार संबंधी आदतें।
- बाल्यावस्था में अधिक वज़न तब होता है जब बच्चों द्वारा भोजन और पेय पदार्थों से ग्रहण की जाने वाली कैलोरी, उनकी ऊर्जा आवश्यकताओं से अधिक हो जाती है।
- इसमें पहला समूह है 'बाल अल्पपोषण- जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं-
नोट
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चाइल्ड फूड पाॅवर्टी के प्रमुख कारण क्या हैं?
- अनुपयुक्त खाद्य वातावरण:
- ग्रामीण क्षेत्रों में व्यवधान: प्रतिकूल मौसम, विषम जलवायु, असुरक्षा अथवा खराब बुनियादी ढाँचा ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में खाद्य के उत्पादन और उसकी पहुँच को बाधित करते हैं।
- उदाहरण: सोमालिया जैसे अफ्रीकी देशों में सूखे और बाढ़ से खाद्य उत्पादन प्रभावित हुआ जिससे उन क्षेत्रों में बच्चों के लिये विविध व स्वस्थ खाद्य पदार्थों तक पहुँच सीमित हो गई।
- अस्वास्थ्यकर विकल्पों की अधिकता: विश्व स्तर पर, शहरी क्षेत्रों में स्थित दुकानों और बाज़ारों में अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ (कम पोषक तत्त्व, अस्वास्थ्यकर वसा, उच्च शुगर और नमक की बहुलता वाले) उपलब्ध होते हैं जिनका अत्यधिक विज्ञापन किया जाता है और प्रायः ये अन्य स्वास्थ्यवर्द्धक विकल्पों की तुलना में सस्ते होते हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में व्यवधान: प्रतिकूल मौसम, विषम जलवायु, असुरक्षा अथवा खराब बुनियादी ढाँचा ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में खाद्य के उत्पादन और उसकी पहुँच को बाधित करते हैं।
- प्रारंभिक बाल्यावस्था के दौरान आहार की अनुपयुक्त पद्धतियाँ:
- पीढ़ीगत ज्ञान अंतराल: बच्चों को आहार देने के तरीकों के बारे में गलत जानकारी और उचित मार्गदर्शन की कमी पीढ़ियों से चली आ रही है, जिसके कारण छोटे बच्चों के लिये अपर्याप्त आहार की समस्या बनी हुई है।
- लैंगिक असमानता: कुछ देशों में ऐसे भेदभावपूर्ण लैंगिक मानदंड विद्यमान हैं जो महिलाओं की सूचना तक पहुँच और आय सृजन के माध्यमों को सीमित करते हैं, जिससे बच्चों के आहार के बारे में उचित निर्णय लेने की उनकी क्षमता बाधित होती है।
- घरेलू आय निर्धनता:
- पौष्टिक खाद्य पदार्थों के वहन की अक्षमता: पौष्टिक खाद्य पदार्थ, प्रमुख तौर पर पशु से प्राप्त होने वाले प्रोटीन (अंडे, माँस, मछली) और फलों व सब्जियों की कीमत, प्रायः मुख्य खाद्य पदार्थों की की अपेक्षा अधिक होती है। इससे निम्न आय अर्जित करने वाले परिवारों के लिये अपने बच्चों के लिये संतुलित आहार का खर्च वहन करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- उदाहरण: मुद्रास्फीति के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि होती है जिससे गरीबी में रहने वाले परिवारों की पौष्टिक खाद्य पदार्थों की पहुँच बाधित हो सकती है, जिससे उन्हें कम पौष्टिक आहार वाले विकल्पों के चयन को प्राथमिकता देनी पड़ती है।
- पौष्टिक खाद्य पदार्थों के वहन की अक्षमता: पौष्टिक खाद्य पदार्थ, प्रमुख तौर पर पशु से प्राप्त होने वाले प्रोटीन (अंडे, माँस, मछली) और फलों व सब्जियों की कीमत, प्रायः मुख्य खाद्य पदार्थों की की अपेक्षा अधिक होती है। इससे निम्न आय अर्जित करने वाले परिवारों के लिये अपने बच्चों के लिये संतुलित आहार का खर्च वहन करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- खाद्य एवं स्वास्थ्य प्रणालियों की विफलता:
- खाद्य प्रणालियाँ परिवारों और बच्चों के लिये वहनीय, विविध और पौष्टिक भोजन विकल्प प्रदान करने में विफल हो रही हैं।
- स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के अंतर्गत बच्चों के आहार के संबंध में पर्याप्त जानकारी, परामर्श और सहायता तक पहुँच का अभाव परिवारों की उचित विकल्प का चयन करने की क्षमता को बाधित करता है।
- इसके अतिरिक्त, अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा जाल के कारण, विशेषकर आर्थिक तंगी के दौरान, सुभेद्य बच्चों के लिये कुपोषण का खतरा बढ़ जाता है।
चाइल्ड फूड पाॅवर्टी के प्रभाव क्या हैं?
- विकास एवं वृद्धि में बाधा:
- शारीरिक विकास: कुपोषण, विशेष रूप से अल्पपोषण, शारीरिक विकास को अवरुद्ध कर सकता है। अवरुद्ध विकास माँसपेशियों और हड्डियों के विकास पर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है, जिससे समग्र शारीरिक स्वास्थ्य एवं कद प्रभावित होता है।
- संज्ञानात्मक विकास: कुपोषित बच्चों में प्राय: मस्तिष्क के विकास के लिये ज़रूरी पोषक तत्त्वों की कमी होती है। इससे संज्ञानात्मक कार्य में कमी, सीखने एवं शैक्षणिक क्षमता में कमी हो सकती है।
- कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र:
- कुपोषण प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करता है, जिससे बच्चे डायरिया, निमोनिया एवं खसरा जैसी संक्रामक बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। ये बीमारियाँ पोषण संबंधी स्थिति को और अधिक खराब कर सकती हैं, जिससे एक दुष्चक्र बन सकता है।
- गंभीर कुपोषण से बच्चों में मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है, विशेषकर जीवन के पहले पाँच वर्षों में।
- दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ:
- दीर्घकालिक बीमारियाँ: बाल्यावस्था में कुपोषण के कारण जीवन में आगे चलकर मधुमेह, हृदय रोग और कुछ कैंसर जैसी दीर्घकालिक बीमारियाँ होने का जोखिम बढ़ जाता है। यह लंबे समय में स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर अत्यधिक बोझ डाल सकता है।
- उत्पादकता में कमी: कुपोषण के कारण होने वाली संज्ञानात्मक एवं शारीरिक सीमाएँ वयस्क होने पर बच्चे की अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच में बाधक हो सकती हैं। इसका परिणाम कार्यबल में कम उत्पादकता के साथ-साथ आर्थिक अवसरों की कमी के रूप में सामने आ सकता है।
- निर्धनता के चक्र का बने रहना:
- कुपोषण का अनुभव करने वाले बच्चे प्राय: निर्धनता की पृष्ठभूमि से आते हैं। उनके स्वास्थ्य, विकास एवं शिक्षा पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव गरीबी या निर्धनता से बचने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकते हैं, जिससे वे और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ एक दुष्चक्र में फँस सकती हैं।
विश्व स्तर पर गंभीर चाइल्ड फूड पाॅवर्टी को समाप्त करने की दिशा में कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं?
- नीति-आधारित लक्ष्य निर्धारित करना:
- प्रासंगिक क्षेत्रीय एवं बहुक्षेत्रीय योजनाओं में समयबद्ध लक्ष्यों और परिणामों के साथ चाइल्ड फूड पाॅवर्टी उन्मूलन को एक नीतिगत अनिवार्यता के रूप में देखा जाना चाहिये।
- खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन:
- सुलभता पर ध्यान देना: पौष्टिक खाद्य पदार्थों को विशेष रूप से आबादी के कमज़ोर वर्गों के लिये सरलता से उपलब्ध कराना महत्त्वपूर्ण है। इसमें शामिल हैं:
- पोषक तत्त्वों से भरपूर फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिये अनुदान एवं प्रशिक्षण के माध्यम से छोटे किसानों को सहायता प्रदान करना।
- खाद्य अपशिष्ट को कम करने के साथ-साथ विशेष रूप से दूर-दराज के क्षेत्रों में विविध खाद्य समूहों तक वर्ष भर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये भंडारण सुविधाओं एवं परिवहन नेटवर्क जैसे बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
- सामर्थ्य:उच्च खाद्य कीमतें एक बड़ी बाधा हैं। निम्न आय वाले परिवारों के लिये लक्षित खाद्य सब्सिडी, स्कूल फीडिंग कार्यक्रम तथा मूल्य स्थिरीकरण उपायों जैसी पहल इस अंतराल को कम करने में सहायता प्रदान कर सकती हैं।
- सुलभता पर ध्यान देना: पौष्टिक खाद्य पदार्थों को विशेष रूप से आबादी के कमज़ोर वर्गों के लिये सरलता से उपलब्ध कराना महत्त्वपूर्ण है। इसमें शामिल हैं:
- खाद्य उद्योग का विनियमन:
- अस्वास्थ्यकर विपणन पर रोक लगाना: बच्चों को लक्षित करने वाले अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों के विपणन को प्रतिबंधित करना आवश्यक है।
- इसमें विज्ञापन सामग्री, प्लेसमेंट (उदाहरण के लिये स्कूलों के पास) और आयु प्रतिबंधों संबंधी विनियमों को लागू करना शामिल हो सकता है।
- पारदर्शिता को बढ़ावा देना: खाद्य लेबलिंग में पारदर्शिता को बढ़ावा देने से परिवारों को सूचित विकल्प चुनने में मदद मिलती है। चीनी, नमक और अस्वास्थ्यकर वसा सहित पोषण सामग्री को उजागर करने वाली स्पष्ट लेबलिंग प्रणाली उपभोक्ताओं को सशक्त बना सकती है।
- अस्वास्थ्यकर विपणन पर रोक लगाना: बच्चों को लक्षित करने वाले अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों के विपणन को प्रतिबंधित करना आवश्यक है।
- स्वास्थ्य प्रणालियों का सशक्तीकरण:
- प्रारंभिक बाल्यावस्था पोषण सेवाएँ: प्रसवपूर्व देखभाल और शिशु देखभाल जैसी मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं में पोषण परामर्श और सहायता को एकीकृत करना महत्त्वपूर्ण है।
- स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर पोषक तत्त्वों के सेवन को अनुकूलतम बनाने के लिये शिशुओं और छोटे बच्चों के आहार संबंधी उपयुक्त तरीकों पर मार्गदर्शन कर सकते हैं।
- सामुदायिक पहुँच: परिवारों के लिये पोषण शिक्षा कार्यक्रम बच्चों के विकास हेतु संतुलित आहार के महत्त्व के बारे में जागरूकता को बढ़ा सकते हैं।
- सामाजिक सुरक्षा तंत्र: कमज़ोर परिवारों को आय सहायता प्रदान करने वाले सामाजिक सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करने से पौष्टिक भोजन प्राप्त करने की उनकी क्षमता में सुधार हो सकता है।
- प्रारंभिक बाल्यावस्था पोषण सेवाएँ: प्रसवपूर्व देखभाल और शिशु देखभाल जैसी मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं में पोषण परामर्श और सहायता को एकीकृत करना महत्त्वपूर्ण है।
- डेटा और निगरानी:
- बेहतर डेटा संग्रहण: विभिन्न क्षेत्रों और जनसांख्यिकी में चाइल्ड फूड पाॅवर्टी की व्यापकता और गंभीरता का सटीक आकलन करने के लिये मज़बूत डेटा संग्रहण प्रणालियों में निवेश करना आवश्यक है।
- इससे लक्षित हस्तक्षेप संभव हो पाता है तथा राष्ट्रीय और वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति की निगरानी की जा सकती है।
- शीघ्र निदान: बच्चों में बढ़ती खाद्य गरीबी का शीघ्र पता लगाने से, विशेष रूप से नाजुक और मानवीय संदर्भों में, स्थिति को और अधिक खराब होने से रोकने हेतु समय पर प्रतिक्रिया और संसाधन आवंटन संभव हो जाता है।
- बेहतर डेटा संग्रहण: विभिन्न क्षेत्रों और जनसांख्यिकी में चाइल्ड फूड पाॅवर्टी की व्यापकता और गंभीरता का सटीक आकलन करने के लिये मज़बूत डेटा संग्रहण प्रणालियों में निवेश करना आवश्यक है।
बाल खाद्य गरीबी से संबंधित भारतीय पहल क्या हैं?
- मध्याह्न भोजन (MDM) योजना
- पोषण अभियान
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013,
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY)
- समेकित बाल विकास सेवा (ICDS) योजना
निष्कर्ष
यूनिसेफ की यह रिपोर्ट चाइल्ड फूड पाॅवर्टी का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करती है, जिसमें इसकी चिंताजनक व्यापकता और इसके हानिकारक परिणामों पर प्रकाश डाला गया है। उल्लिखित सिफारिशों के माध्यम से निर्णायक कार्रवाई करके, सरकारें, साझेदार तथा संगठन एक साथ मिलकर एक ऐसे विश्व का निर्माण कर सकते हैं जहाँ सभी बच्चों को पौष्टिक एवं विविध आहार उपलब्ध हो, जिससे वे अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच सकें व गरीबी के चक्र को तोड़ सकें।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: चाइल्ड फूड पाॅवर्टी क्या है? बच्चों के विकास पर इसके प्रभाव पर चर्चा करते हुए, वैश्विक स्तर पर गंभीर बाल खाद्य गरीबी को समाप्त करने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से वह/वे सूचक है/हैं जिसका/जिनका IFPRI द्वारा वैश्विक भूखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) रिपोर्ट बनाने में उपयोग उपयोग किया गया है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: C मेन्स:प्रश्न. आप इस मत से कहाँ तक सहमत हैं कि अधिकरण सामान्य न्यायालयों की अधिकारिता को कम करते हैं? उपर्युक्त को दृष्टिगत रखते हुए भारत में अधिकरणों की संवैधानिक वैधता तथा सक्षमता की विवेचना कीजिये? (2018) |