मलिन बस्तियों के पुनर्विकास में चुनौतियाँ | 06 Mar 2025
प्रिलिम्स के लिये:आश्रय का अधिकार, अनुच्छेद 21, स्लम पुनर्वास प्राधिकरण (SRA), फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI)। मेन्स के लिये:स्लम पुनर्वास कानूनों की प्रभावकारिता, न्यायिक सक्रियता, रियल एस्टेट हितों एवं झुग्गीवासियों के अधिकारों के बीच संघर्ष। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय (SC) के निर्देश के बाद, बॉम्बे उच्च न्यायालय (HC) ने महाराष्ट्र स्लम क्षेत्र अधिनियम, 1971 की अपनी तरह की पहली समीक्षा शुरू की है।
- इस समीक्षा का उद्देश्य मलिन बस्तियों/झुग्गी/स्लम पुनर्विकास परियोजनाओं में देरी का कारण बनने वाली प्रणालीगत कमियों को दूर करना है, जिससे झुग्गीवासियों के आश्रय (अनुच्छेद 21) एवं आजीविका के अधिकार का उल्लंघन होता है।
महाराष्ट्र स्लम क्षेत्र (सुधार, निकासी और पुनर्विकास) अधिनियम, 1971 क्या है?
- परिचय: सर्वोच्च न्यायालय ने बॉम्बे उच्च न्यायालय को निर्देश दिया कि वह स्वतः कार्यवाही आरंभ करे तथा विधायी कमियों की पहचान करने हेतु इस अधिनियम का निष्पादन लेखा परीक्षण करे।
- न्यायालय ने न्याय तक पहुँच को सुगम बनाने तथा संवैधानिक निकायों की प्रभावी कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करने के क्रम में अपनी भूमिका का विस्तार किया तथा प्रत्यक्ष कार्रवाई के बिना कानून की समीक्षा करने के रूप में उदाहरण प्रस्तुत किया।
- HC द्वारा पहचानी गई प्रमुख कमियाँ:
- बिल्डरों के हस्तक्षेप से निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्वतंत्रता तथा ईमानदारी के संदर्भ में संदेह पैदा होता है।
- झुग्गीवासियों की पहचान एक जटिल प्रक्रिया है और इससे झुग्गीवासियों के बीच प्रतिस्पर्द्धात्मक दावे पैदा होने से मुकदमेबाजी की स्थिति पैदा होती है।
- कानून में डेवलपर के चयन का कार्य झुग्गीवासियों की सहकारी समितियों पर छोड़ दिया गया है, जिनमें अक्सर अनियमितता होती है।
- डेवलपर्स बिक्री योग्य क्षेत्र के अनुपात को बढ़ाना चाहते हैं, जिसके कारण कानून के तहत वंचित झुग्गीवासियों द्वारा विरोध किया जाता है।
- डेवलपर्स, समय पर पारगमन सुविधा उपलब्ध नहीं कराते या विकल्प अपर्याप्त रखते हैं।
- वैधानिक प्राधिकरणों की कार्यप्रणाली में स्वतंत्रता और निष्पक्षता का अभाव रहता है।
- अधिनियम के प्रमुख प्रावधान:
- महाराष्ट्र सरकार को किसी क्षेत्र को "झुग्गी क्षेत्र" घोषित करने और (यदि आवश्यक हो तो) अधिग्रहण करने का अधिकार दिया गया है।
- निजी डेवलपर्स के माध्यम से पुनर्विकास की देखरेख के लिये झोपड़पट्टी पुनर्वसन प्राधिकरण (Slum Rehabilitation Authority- SRA) की स्थापना की गई।
महाराष्ट्र झोपड़पट्टी पुनर्वसन योजना 1995
- इसके अंतर्गत, निजी डेवलपर्स (झुग्गीवासियों के साथ समझौते में) पुनर्विकास को वित्तपोषित करते हैं तथा तैयार मकान निःशुल्क उपलब्ध कराते हैं।
- ऐसा करने हेतु उन्हें निर्माण और खुले बाज़ार में बिक्री के लिये कुछ अतिरिक्त क्षेत्र प्रदान किया जाता है।
- झुग्गीवासियों के लिये मुफ्त आवास के बदले डेवलपर्स को उच्च फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) और बिक्री योग्य क्षेत्र जैसे प्रोत्साहन मिलते हैं।
मलिन बस्तियाँ क्या हैं?
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, मलिन बस्ती शहर का एक जर्जर क्षेत्र है, जिसकी विशेषता अधः मानक आवासन, गरीबी होती है और यहाँ भूस्वामित्व सुरक्षा का अभाव होता है।
- मलिन बस्तियाँ अव्यवस्थित, अतिसंकुलित अथवा बहुजनाकीर्ण और उपेक्षित क्षेत्र हैं जो शहरी विकास प्रक्रियाओं के कारण अनियोजित और अनपेक्षित बस्तियों के रूप में अस्तित्व में आते हैं।
- बढ़ते शहरीकरण के कारण मलिन बस्तियों में रहने वालों की कुल संख्या अनुमानित रूप से 1.1 बिलियन (2020) हो गई है।
- मलिन बस्तियों के विकास के कारण:
- जनसंख्या वृद्धि और गरीबी के कारण नगरीय क्षत्रों के गरीब व्यक्ति मलिन बस्तियों में रहने के लिये विवश होते हैं तथा अनुमान है कि वर्ष 2026 तक कुल जनसंख्या का 40% शहरी क्षेत्रों में निवास करेगा, जिससे भूमि की मांग में अत्यधिक वृद्धि होगी।
- क्षेत्रीय विकास असंतुलन के कारण अल्प विकसित राज्यों (बिहार और ओडिशा) से ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन महाराष्ट्र और गुजरात जैसे समृद्ध राज्यों की ओर बढ़ रहा है।
- अकुशल शहरी स्थानीय निकाय, अनियोजित शहर प्रबंधन, तथा मलिन बस्तियों के विकास के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव से मलिन बस्तियों की स्थिति और खराब होती जा रही है।
मलिन बस्ती विकास की उपेक्षा के कारण कौन-सी समस्याएँ होती हैं?
- नगरीय क्षेत्रों में अवसरों का भ्रम: ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब व्यक्तियों के लिये बेहतर अवसरों के साथ मलिन बस्तियाँ आकर्षक हो सकती हैं, लेकिन सामान्यतः शहरी मलिन बस्तियों में जीवन की कठोर वास्तविकताएँ और चुनौतियाँ प्रच्छन्न होती हैं।
- मलिन बस्ती क्षेत्रों में स्वास्थ्य जोखिम: मलिन बस्ती क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरों, विशेष रूप से टाइफाइड और हैजा जैसी जलजनित बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
- सुभेद्य वर्ग का शोषण: मलिन बस्तियों में रहने वाली महिलाएँ और बच्चे प्रायः स्थानीय राजनेताओं और स्थानीय उग्र व्यक्तियों द्वारा वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति और बाल तस्करी का शिकार होते हैं।
- अपराध और सामाजिक उपेक्षा: प्रायः ऐसा माना जाता है कि शिक्षा, विधि प्रवर्तन और सामुदायिक सेवाओं पर सरकार के अपर्याप्त ध्यान दिये जाने के कारण मलिन बस्तियों में अपराध की घटनाएँ अधिक होती हैं।
- इससे भुखमरी, कुपोषण और शिक्षा तक सीमित पहुँच जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
मलिन बस्ती पुनर्वास के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?
- भूमि एवं कानूनी मुद्दे: भूमि अधिग्रहण और कानूनी मंजूरी में अक्सर नौकरशाही प्रक्रियाओं और नियामक प्राधिकरणों के कारण बाधा उत्पन्न होती है, जो मलिन बस्ती पुनर्वास संबंधी परियोजनाओं में प्रमुख बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।
- वित्तीय बाधाएँ: मलिन बस्ती पुनर्वास परियोजनाओं के लिये पर्याप्त वित्तीय निवेश प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि निजी डेवलपर्स अक्सर निवेश पर कम रिटर्न के कारण अनिच्छुक होते हैं।
- सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ: मलिन बस्ती समुदायों में पुनर्वास को प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों को अपने मज़बूत सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को खोने का डर रहता है।
- पर्यावरणीय विचार: मलिन बस्तियों के पुनर्वास में पर्यावरणीय चुनौतियों में सीमित हरित स्थान और अपशिष्ट संचय शामिल हैं, क्योंकि मलिन बस्तियों में अक्सर उचित अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों का अभाव होता है, जिससे पर्यावरण प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है।
- कार्यान्वयन और प्रशासन के मुद्दे: भूमि की लागत बढ़ाने के लिये डेवलपर्स द्वारा परियोजनाओं में देरी करने से मलिन बस्ती पुनर्वास में बाधा उत्पन्न होती है, जैसा कि मुंबई के SRA मॉडल में देखा गया है, जिसकी धीमी क्रियान्वयन प्रक्रिया और पारदर्शिता की कमी के लिये आलोचना की जाती है।
आगे की राह:
- स्पष्ट विधिक ढाँचा: दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की भूमि पूलिंग नीतियों की तरह भूमि अधिग्रहण के लिये सुव्यवस्थित कानूनी ढाँचे को लागू करने से उचित मुआवजा और कानूनी स्पष्टता सुनिश्चित होती है।
- नवीन वित्तीय मॉडल: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का उपयोग, जैसे कि मुंबई मलिन बस्ती पुनर्वास प्राधिकरण (SRA) मॉडल, सामाजिक प्रभाव सुनिश्चित करते हुए निजी निवेश को आकर्षित करता है।
- सामुदायिक सहभागिता: जैसा कि यूएन-हैबिटेट के सहभागी स्लम उन्नयन कार्यक्रम में देखा गया है, नियोजन में समुदायों को शामिल करने से प्रतिरोध कम होता है तथा निवासियों की सामाजिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं का सम्मान होता है।
- पर्यावरण एकीकरण: दिल्ली की कठपुतली कॉलोनी परियोजना की तरह हरित प्रथाओं को शामिल करने से मलिन बस्ती पुनर्वास में पर्यावरणीय स्थिति में सुधार होता है।
- प्रभावी शासन और पारदर्शिता: शासन और पारदर्शिता को मज़बूत करना, जिसका उदाहरण अहमदाबाद की स्लम नेटवर्किंग प्रोजेक्ट (SNP) है, मलिन बस्ती पुनर्वास परियोजनाओं की प्रभावशीलता को बढ़ाता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: “भारत में मलिन बस्ती पुनर्वास कल्याण उद्देश्यों और अचल संपत्ति हितों के बीच फंसा हुआ है।” आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)मेन्स:Q. क्या भारतीय महानगरों में शहरीकरण गरीबों को और भी अधिक पृथक्करण और/या हाशिये पर ले जाता है? ((2023) Q. भारत में शहरीकरण की तीव्र प्रक्रिया से उत्पन्न विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर चर्चा कीजिये। (2013) |