शासन व्यवस्था
केंद्र द्वारा “नो डिटेंशन पॉलिसी” का समापन
- 25 Dec 2024
- 15 min read
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संवर्द्धित शिक्षा कार्यक्रम मेन्स के लिये:डिटेंशन पॉलिसी के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 की विशेषताएँ, भारत में शिक्षा क्षेत्र से संबंधित मुद्दे, शैक्षिक सुधारों से संबंधित सरकारी पहल |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने केंद्रीय विद्यालयों तथा जवाहर नवोदय विद्यालयों सहित स्वयं द्वारा शासित स्कूलों में कक्षा 5 और 8 के लिये "नो-डिटेंशन" नीति को समाप्त कर दिया है।
- यह “निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024” शीर्षक से एक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से किया गया।
- इस संशोधन से स्कूल उन विद्यार्थियों को अगली कक्षा में जाने से रोक सकेंगे जो पदोन्नति के मानदंडों को पूरा करने में असफल हैं।
नो-डिटेंशन पॉलिसी
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) की धारा 16 के तहत नो-डिटेंशन नीति शुरू की गई थी। इस अधिनियम की धारा 16 में दो प्रमुख प्रावधान हैं:
- पहला, प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने वाले किसी भी बच्चे को स्कूल से निकाला नहीं जाएगा, और दूसरा, किसी भी बच्चे को किसी भी कक्षा में फेल नहीं किया जाएगा।
- इससे स्कूलों पर कक्षा 8 तक के विद्यार्थियों को फेल करने पर रोक लगाई गई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चों को फेल होने के डर के बिना न्यूनतम स्तर की शिक्षा मिले, जिससे स्कूल छोड़ने की दर में कमी आए।
निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024 क्या है?
- शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 को वर्ष 2019 में संशोधित किया गया था ताकि नो-डिटेंशन नीति को समाप्त किया जा सके। संशोधित अधिनियम को लागू करने के नियमों को स्थगित कर दिया गया और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की शुरुआत के बाद उन्हें राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF) के अनुरूप बनाने के लिये वर्ष 2024 में पारित किया गया।
- RTE संशोधन अधिनियम, 2019 के बाद असम, बिहार, गुजरात और तमिलनाडु सहित 18 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों ने इस नीति को समाप्त कर दिया।
- हरियाणा और पुदुचेरी ने अभी तक इस पर निर्णय नहीं लिया है जबकि आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने इसे लागू करना जारी रखा है।
- RTE संशोधन अधिनियम, 2019 के बाद असम, बिहार, गुजरात और तमिलनाडु सहित 18 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों ने इस नीति को समाप्त कर दिया।
- संशोधित नियमों के अंतर्गत प्रमुख प्रावधान:
- उत्तीर्ण करने से संबंधित संशोधित मानदंड: परीक्षा और पुन: परीक्षा से समग्र विकास का आकलन किया जाएगा, जिसमें रटने के बजाय सीखने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- वार्षिक परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को दो महीने के अतिरिक्त प्रशिक्षण के साथ पुनः परीक्षा का अवसर मिलेगा।
- उत्तीर्ण न होने पर उसी कक्षा में रहना: पुन: परीक्षा के बाद अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों को उसी कक्षा में रोक दिया जाएगा।
- प्रमोट नहीं किये गए छात्रों के लिये विशेष उपाय: कक्षा शिक्षकों को प्रमोट नहीं किये गए छात्रों और उनके अभिभावकों का मार्गदर्शन करना चाहिये तथा लक्षित उपाय प्रदान करना चाहिये।
- स्कूल प्रमुख विद्यार्थी की प्रगति की निगरानी करने और सुधारात्मक प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये उत्तरदायी होगा।
- NEP के तहत पढ़ाई में कमज़ोर छात्रों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
- अधिगम का समावेशी दृष्टिकोण और सुरक्षा: नियमों में समग्र विकास को प्राथमिकता दी गई तथा यह सुनिश्चित किया गया है कि RTE अधिनियम के अनुरूप, प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने से पहले किसी भी छात्र को निष्कासित न किया जाए।
- उत्तीर्ण करने से संबंधित संशोधित मानदंड: परीक्षा और पुन: परीक्षा से समग्र विकास का आकलन किया जाएगा, जिसमें रटने के बजाय सीखने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
स्कूली शिक्षा में नो-डिटेंशन पॉलिसी के पक्ष और विपक्ष में तर्क क्या हैं?
- पक्ष में तर्क:
- स्कूल छोड़ने वालों की संख्या में कमी लाना: इस नीति का उद्देश्य फेल होने और फेल होने के डर से स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या में कमी लाना है।
- सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE): इसमें CCE पर ज़ोर दिया गया, जो एक एकल परीक्षा के स्थान पर विभिन्न पहलुओं में विद्यार्थी की प्रगति के सतत् मूल्यांकन पर केंद्रित है।
- इस समग्र दृष्टिकोण का उद्देश्य परीक्षा से संबंधित तनाव और चिंता को कम करना था।
- समावेशी शिक्षा: नीति ने समावेशी शिक्षा को बढ़ावा दिया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि सभी बच्चे, चाहे उनका शैक्षणिक प्रदर्शन कैसा भी हो, स्कूल में बने रहें और शिक्षा प्राप्त करें।
- राज्य की मांगें: कई राज्यों ने नीति के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किये, जिनमें प्राथमिक शिक्षा में जवाबदेही की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- वर्ष 2019 में, RTE अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसमें राज्यों को कक्षा 5 और 8 के लिये डिटेंशन नीतियों को लागू करने पर निर्णय लेने की अनुमति प्रदान की गई।
- NEP 2020 के साथ संरेखण: उक्त नीति को समाप्त करने का निर्णय NEP 2020 के उद्देश्यों के अनुरूप है जिसमें स्कूली शिक्षा में योग्यता-आधारित शिक्षा और उत्तरदायित्व पर ज़ोर दिया गया है।
- वैश्विक प्रथाएँ: फिनलैंड जैसे देश विद्यार्थी के फेल होने पर उसे अगली कक्षा में प्रमोट करने के स्थान पर सुधारात्मक उपायों और निरंतर मूल्यांकन किये जाने पर ज़ोर देते हैं।
- अमेरिका में ग्रेड रिटेंशन एक सामान्य प्रथा है, जहाँ ग्रेड-स्तर के मानकों को पूरा करने में विफल रहने वाले छात्रों को उसी कक्षा में पुनः उत्तीर्ण होना पड़ता है। यह नीति विभिन्न ग्रेड स्तरों और राज्यों में अलग-अलग होती है।
- विपक्ष में तर्क:
- अपर्याप्त अधिगम के परिणाम: नो-डिटेंशन नीति के कारण छात्रों और शिक्षकों में आत्मसंतोष की भावना प्रखर हुई, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा के स्तर में गिरावट आई, क्योंकि स्कूल अधिगम के परिणामों में सुधार लाने के स्थान पर अन्य प्रशासनिक कार्यों जैसे- मध्याह्न भोजन पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
- ASER 2022 की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण भारत में कक्षा 3 के केवल 20% छात्र कक्षा 2 के स्तर की पाठ्य सामग्री पढ़ सकते हैं और 2023 की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 25% युवा कक्षा 2 के स्तर की पाठ्य सामग्री अपनी क्षेत्रीय भाषा में धाराप्रवाह नहीं पढ़ सकते हैं।
- आधे से अधिक बच्चे गणित के भाग संबंधी प्रश्नों का हल करने में विफल रहे तथा 14 से 18 वर्ष आयु वर्ग के केवल 43.3% बच्चे ही ऐसे प्रश्नों को सही ढंग से हल कर पाते हैं।
- उच्च कक्षाओं में असफलता की उच्च दर: शिक्षा मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2023 में कक्षा 10वीं और 12वीं में 65 लाख विद्यार्थी अनुत्तीर्ण हुए, जो आधारभूत शिक्षण अंतराल को दर्शाता है।
- निम्न स्तर पर आवश्यक कौशल और ज्ञान के बिना स्वैच्छिक पदोन्नति से माध्यमिक विद्यालय में असफलता की दर बढ़ जाती है।
- जवाबदेही का अभाव: इस नीति से छात्रों और शिक्षकों के बीच जवाबदेही कम होती है, क्योंकि छात्रों को उनके प्रदर्शन की परवाह किये बिना स्वैच्छिक रूप से अगली कक्षा में पदोन्नत कर दिया जाता है।
- मूल कारणों का समाधान नहीं: इस नीति की आलोचना इस बात के लिये की जाती है कि इसमें खराब शिक्षण परिणामों के मूल कारणों, जैसे अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण, बुनियादी ढाँचे की कमी और सामाजिक-आर्थिक कारकों का पर्याप्त रूप से समाधान नहीं किया गया है।
- अपर्याप्त अधिगम के परिणाम: नो-डिटेंशन नीति के कारण छात्रों और शिक्षकों में आत्मसंतोष की भावना प्रखर हुई, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा के स्तर में गिरावट आई, क्योंकि स्कूल अधिगम के परिणामों में सुधार लाने के स्थान पर अन्य प्रशासनिक कार्यों जैसे- मध्याह्न भोजन पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
शिक्षा का अधिकार
- भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत शिक्षा मूल रूप से भारत में एक राज्य का विषय था। हालाँकि, 42वें संविधान संशोधन 1976 के दौरान, शिक्षा को समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
- इस प्रकार अब केंद्र और राज्य दोनों सरकारें शिक्षा से संबंधित मामलों पर कानून बना सकती हैं।
- 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 ने 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये शिक्षा के अधिकार को अनुच्छेद 21A के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार बना दिया।
- इसने मौलिक अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद 21A को जोड़ा, जिससे 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये शिक्षा एक मौलिक अधिकार बन गई, तथा निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की गई।
- राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों (DPSP) में, अनुच्छेद 45 को प्रतिस्थापित किया गया ताकि 6 वर्ष की आयु तक प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा प्रदान करने की राज्य की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर दिया जा सके।
- इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 51A में संशोधन करके माता-पिता या अभिभावकों के लिये यह कर्त्तव्य शामिल किया गया कि वे 6 से 14 वर्ष की आयु के बीच के अपने बच्चों या आश्रितों के लिये शिक्षा के अवसर सुनिश्चित करें।
- बाद में, संसद ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 पारित किया, जिसमें अनुच्छेद 21-A के तहत RTE को मौलिक अधिकार के रूप में लागू किया गया।
शैक्षिक सुधारों से संबंधित सरकारी पहल
निष्कर्ष
नो-डिटेंशन पॉलिसी समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने और बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या में कमी लाने की दिशा में एक अच्छा कदम था। हालाँकि, इसके कार्यान्वयन को चुनौतियों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। यद्यपि इस नीति का उद्देश्य अधिक बाल-अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाना था, लेकिन इससे अनजाने में ही शैक्षणिक कठोरता और जवाबदेही में गिरावट आई।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: RTE (संशोधन) नियम, 2024 के तहत 'नो-डिटेंशन पॉलिसी' को समाप्त करने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के साथ इसके संरेखण के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का भारत की शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर:(d) मेन्सप्रश्न 1. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) प्रश्न 2. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों को विस्तार से बताइये। (2021) |