अमरावती एक बौद्ध स्थल | 26 Jul 2024

प्रिलिम्स के लिये:

राजा वेसारेड्डी नायडू, अमरावती स्तूप, मगध, सम्राट अशोक, बौद्ध परिषद, नागार्जुनकोंडा, शैव धर्म, महापाषाणकालीन समाधि, महायान बौद्ध धर्म, आचार्य नागार्जुन, अमरावती कला शैली 

मेन्स के लिये:

अमरावती कला शैली, भारतीय वास्तुकला

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्त मंत्री ने आंध्र प्रदेश को राजधानी अमरावती के निर्माण तथा राज्य में अन्य विकास गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये 15,000 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता की घोषणा की।

  • इससे आंध्र प्रदेश में अमरावती नामक एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्त्व वाले स्थल पर पुनः ध्यान केंद्रित हो गया है, जो अभी तक अपेक्षाकृत अज्ञात है।

अमरावती और आंध्र बौद्ध धर्म के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • ऐतिहासिक विकास:
    • 1700 के दशक के अंत में राजा वेसरेड्डी नायडू ने अनजाने में आंध्र के धन्यकटकम गाँव में प्राचीन चूना पत्थर के खंडहरों की खोज की, जिसका उपयोग उन्होंने और स्थानीय लोगों ने निर्माण के लिये किया तथा इसके परिणामस्वरूप गाँव का नाम बदलकर अमरावती रख दिया गया।
    • खंडहरों का निरंतर विनाश वर्ष 1816 तक जारी रहा, जब कर्नल कोलिन मैकेंज़ी के गहन सर्वेक्षण से और अधिक क्षति होने के बावजूद भव्य अमरावती स्तूप की पुनः खोज हुई।
    • वर्ष 2015 में, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने ऐतिहासिक बौद्ध स्थल से प्रेरित होकर नई राजधानी अमरावती की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य इसे सिंगापुर के समान एक आधुनिक शहर के रूप में विकसित करना था।
  • अमरावती और आंध्र बौद्ध धर्म:
    • बौद्ध धर्म जो पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में प्राचीन मगध राज्य (वर्तमान बिहार) में विकसित हुआ, मुख्यतः व्यापारिक संबंधों के माध्यम से आंध्र प्रदेश तक फैल गया।
      • सिद्धार्थ गौतम जिन्हें बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है, ने ज्ञान प्राप्ति के बाद बौद्ध धर्म की स्थापना की।
    • आंध्र प्रदेश में बौद्ध धर्म का पहला महत्त्वपूर्ण प्रमाण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है, जब सम्राट अशोक ने इस क्षेत्र में एक शिलालेख स्थापित किया, जिससे इसके प्रसार को काफी बढ़ावा मिला।
      • 483 ईसा पूर्व में राजगीर बिहार में आयोजित प्रथम बौद्ध समिति में आंध्र के भिक्षु उपस्थित थे।
    • इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म लगभग छह शताब्दियों तक फलता-फूलता रहा, जिसका समयकाल  तीसरी शताब्दी ई.पू. तक रहा, अमरावती, नागार्जुनकोंडा, जग्गयापेटा, सालिहुंडम और शंकरम जैसे अलग-अलग स्थलों पर 14वीं शताब्दी ई.पू. तक धर्म का पालन होता रहा। 
    • इतिहासकारों ने उल्लेख किया है कि आंध्र में बौद्ध धर्म की उपस्थिति इसकी पहली शहरीकरण प्रक्रिया के साथ हुई, जिसमें समुद्री व्यापार ने महत्त्वपूर्ण रूप से सहायता की, जिसने धर्म के प्रसार को सुगम बनाया।
  • उत्तरी बौद्ध धर्म और आंध्र बौद्ध धर्म की प्रकृति के बीच अंतर:
    • व्यापारी संरक्षण: आंध्र में, व्यापारियों, शिल्पकारों और घुमक्कड़ भिक्षुओं ने बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो उत्तर भारत में देखे जाने वाले शाही संरक्षण (राजा बिम्बिसार या अजातशत्रु) के विपरीत था।
    • राजनीतिक शासकों पर प्रभाव: व्यापारियों की सफलता और बौद्ध धर्म के साथ उनके जुड़ाव ने आंध्र के राजनीतिक शासकों को प्रभावित किया, जिन्होंने बौद्ध संघ का समर्थन करते हुए शिलालेख जारी किये जिनसे बौद्ध धर्म के उर्ध्वगामी प्रसार का संकेत मिलते हैं।
    • स्थानीय प्रथाओं का एकीकरण: आंध्र में बौद्ध धर्म ने स्थानीय धार्मिक प्रथाओं, जैसे कि महापाषाण समाधि, तथा देवी एवं नाग (सर्प) पूजा को अपने सिद्धांतों में एकीकृत किया, जो क्षेत्रीय परंपराओं के लिये बौद्ध धर्म के एक अद्वितीय अनुकूलन को दर्शाता है।
  • बौद्ध धर्म में अमरावती का महत्त्व:
    • अमरावती महायान बौद्ध धर्म के जन्मस्थान के रूप में प्रसिद्ध है, जो बौद्ध धर्म की प्रमुख शाखाओं में से एक है और बोधिसत्व के मार्ग पर ज़ोर देती है।
    • प्रमुख बौद्ध दार्शनिक आचार्य नागार्जुन ने अमरावती में शून्यता और मध्य मार्ग की अवधारणा पर ध्यान केंद्रित करते हुए मध्यमिका दर्शन विकसित किया।
    • अमरावती से, महायान बौद्ध धर्म का प्रसार दक्षिण एशिया, चीन, जापान, कोरिया और दक्षिण पूर्व एशिया तक हो गया।
  • आंध्र प्रदेश में बौद्ध धर्म के पतन के लिये अग्रणी कारक:
    • शैव मत का उदय: आंध्र प्रदेश में बौद्ध धर्म के पतन में योगदान देने वाले प्राथमिक कारकों में से एक शैव मत का उदय था।
      • सातवीं शताब्दी ई.पू. तक, चीनी यात्रियों ने बौद्ध स्तूपों के पतन और शिव मंदिरों को समृद्ध होते देखा, जिन्हें कुलीन परिवारों एवं राजघरानों से संरक्षण प्राप्त था।
      • शैव मत के बढ़ते प्रभाव ने एक अधिक संरचित और सामाजिक रूप से एकीकृत धार्मिक ढाँचा प्रस्तुत किया, जिसने स्थानीय जनता और शासकों को बौद्ध संस्थाओं से समर्थन वापस लेने के लिये प्रेरित किया।।
    • शहरीकरण में गिरावट: तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान, इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण शहरीकरण और व्यापार का उदय हुआ। चूँकि बौद्ध धर्म ने जातिविहीन समाज को अधिक प्रेरित किया जिससे बौद्ध धर्म के प्रसार में सहायता मिली। 
      • हालाँकि, छह शताब्दियों बाद, आर्थिक गिरावट के कारण बौद्ध संस्थाओं के संरक्षण में गिरावट आई।
      • चौथी शताब्दी ई.पू. तक, बौद्ध संस्थाओं को बहुत अधिक संरक्षण नहीं मिला।
    • इस्लाम का आगमन: इस्लाम के आगमन के साथ, आम तौर पर इस्लामी संस्थापन का समर्थन करने वाले इस्लामी शासकों के कारण बौद्ध प्रतिष्ठानों का शाही संरक्षण छीन गया।

अमरावती कला शाखा की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • परिचय:
    • मौर्योत्तर काल में, आंध्र प्रदेश के अमरावती के प्राचीन बौद्ध स्थल से अमरावती कला शैली मथुरा और गांधार शैलियों के साथ-साथ प्राचीन भारतीय कला की तीन सबसे महत्त्वपूर्ण शैलियों में से एक के रूप में उभरी।
  • ऐतिहासिक संदर्भ और प्रभाव:  
    • अमरावती स्तूप: 
      • अमरावती स्तूप, एक भव्य बौद्ध स्मारक, अमरावती मूर्तिकला शैली का केंद्रबिंदु था। यह स्थल कलात्मक और स्थापत्य गतिविधि का केंद्र बन गया, जिसने भारत में बौद्ध कला के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 
      • 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में, प्राचीन स्मारकों के संरक्षण के प्रति सरकार की उदासीनता के कारण स्थानीय लोगों व ब्रिटिश अधिकारियों ने निर्माण के लिये स्तूप सामग्री का प्रयोग किया, जिससे और अधिक गिरावट आई।
      • सन् 1845 में वाल्टर इलियट जैसे अधिकारियों द्वारा उत्खनन और कलकत्ता, लंदन एवं मद्रास में मूर्तियों के आयात ने भी इस स्थल के पतन में योगदान दिया। 

  • अमरावती मूर्तिकला शैली की मुख्य विशेषताएँ: 
    • प्रमुख केंद्र: अमरावती और नागार्जुनकोंडा।
    • संरक्षण: इस मूर्तिकला शैली को सातवाहन शासकों का संरक्षण प्राप्त था।
    • अमरावती शैली की मूर्तियों में त्रिभंग मुद्रा, यानी तीन मोड़ वाला शरीर का अत्यधिक प्रयोग किया गया था।
    • अमरावती की मूर्तियाँ अपनी उच्च सौंदर्य गुणवत्ता और जटिल कलात्मकता के लिये प्रसिद्ध हैं, जिन्हें मुख्य रूप से पलनाद संगमरमर, जो एक विशेष प्रकार का चूना पत्थर है तथा बारीक व जटिल नक्काशी के लिये उपयुक्त होता है, से तैयार किया गया है।
    • इस मूर्तिकला में प्रायः बुद्ध के जीवन, जातक कथाओं और विभिन्न बौद्ध अनुष्ठानों एवं प्रथाओं के दृश्य दर्शाये गए हैं।
    • अमरावती में बुद्ध का एक विशेष चित्रण, जिसमें उनके बाएँ कंधे पर वस्त्र और दूसरा हाथ अभय (निर्भयता की मुद्रा) में था, प्रतिष्ठित हो गया एवं दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य भागों में भी इसका अनुकरण किया गया।
    • मथुरा और गांधार शैलियों के विपरीत, जिनमें ग्रीको-रोमन प्रभाव दिखाई देते हैं, अमरावती शैली ने बहुत कम बाहरी प्रभाव के साथ एक अनूठी शैली विकसित की, जिसमें स्वदेशी कलात्मक परंपराओं पर ज़ोर दिया गया।
  • अमरावती कला का वैश्विक प्रसार:
    • आज अमरावती स्तूप की मूर्तियाँ विश्व भर में फैली हुई हैं तथा ब्रिटिश संग्रहालय, शिकागो के आर्ट इंस्टीट्यूट, पेरिस के म्यूसी गुइमेट तथा न्यूयॉर्क के मेट्रोपोलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट में उनके महत्त्वपूर्ण संग्रह मौजूद हैं।
    • चेन्नई स्थित सरकारी संग्रहालय और नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय जैसे भारतीय संग्रहालयों में भी अमरावती कला की कलाकृतियाँ मौजूद हैं।
    • आस्ट्रेलिया एकमात्र ऐसा देश है जिसने चोरी की हुई अमरावती शैली की मूर्ति लौटा दी है।
  • अमरावती, मथुरा और गांधार कला शैलियों के बीच अंतर:

गांधार

मथुरा

अमरावती

1. हेलेनिस्टिक और ग्रीक कला का उच्च प्रभाव.

1. प्रकृति में स्वदेशी

1. प्रकृति में स्वदेशी

2. ग्रे-बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। (हमें चूने के प्लास्टर के साथ प्लास्टर से बनी छवियाँ भी मिलती हैं)

2. चित्तीदार लाल बलुआ पत्थर

2. सफेद संगमरमर

3. मुख्यतः बौद्ध प्रतिमाएँ पाई जाती हैं

3. बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू धर्म की छवियाँ पाई जाती हैं

3. मुख्यतः बौद्ध धर्म

4. संरक्षक-कुषाण

4. कुषाण

4. शातवाहन 

5. उत्तर-पश्चिम भारत में पाया जाता है

5. उत्तर भारत, मुख्यतः मथुरा का क्षेत्र

5. कृष्णा-गोदावरी डेल्टा के पास दक्कन क्षेत्र

6. आध्यात्मिक बुद्ध की छवियाँ, लहराते बालों के साथ बहुत सुरुचिपूर्ण

6. प्रसन्नचित्त बुद्ध और आध्यात्मिक दृष्टि नहीं

6. मुख्य रूप से जातक कथाओं का चित्रण

7. दाढ़ी और मूँछ है

7. दाढ़ी-मूँछ नहीं

8. दुबला - पतला शरीर

8. मज़बूत मांसपेशीय विशेषता

9. बैठे और खड़े दोनों चित्र पाए जाते हैं

9. उनमें से अधिकतर बैठे हुए हैं

10. आँखें आधी बंद और कान बड़े हैं।

10. आँखें खुली हुई हैं तथा कान छोटे हैं

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. अमरावती कला शैली की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये और प्राचीन भारतीय कला के संदर्भ में इसके महत्त्व का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2021)

(a) अजंता गुफाएँ, वाघोरा नदी की घाटी में स्थित हैं।
(b) साँची स्तूप, चंबल नदी की घाटी में स्थित है।
(c) पांडु-लेणा गुफा देव मंदिर, नर्मदा नदी की घाटी में स्थित हैं।
(d) अमरावती स्तूप, गोदावरी नदी की घाटी में स्थित है।

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित राज्यों में से किनका संबंध बुद्ध के जीवन से था? (2015)

  1. अवंती 
  2. गांधार
  3. कोशल 
  4. मगध

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) 1, 3 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. गांधार कला में मध्य एशियाई एवं यूनानी-बैक्ट्रियाई तत्त्वों को उजागर कीजिये। (2019)

प्रश्न. गांधार मूर्तिकला रोमन की उतनी ही ऋणी थी जितनी कि यूनानियों की थी। स्पष्ट कीजिये। (2014)