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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 26 Dec, 2024
  • 26 min read
प्रारंभिक परीक्षा

आयु-संबंधित मांसपेशीय क्षय पर mtDNA उत्परिवर्तन का प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

जीनोम रिसर्च में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि माइटोकॉन्ड्रियल डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (mtDNA) में विलोपन उत्परिवर्तन उम्र के साथ मांसपेशियों के क्षय में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

  • शोधकर्त्ताओं ने पाया कि ये उत्परिवर्तन माइटोकॉन्ड्रियल कार्य को बाधित करते हैं, जिससे मांसपेशियों का क्षरण होता है। यह खोज आयु-संबंधित मांसपेशीय क्षय को विलंबित करने के लिये संभावित मार्ग प्रस्तुत करती है।

माइटोकॉन्ड्रिया क्या है?

  • परिचय: माइटोकॉन्ड्रिया झिल्ली से घिरे हुए कोशिकांग हैं जो अधिकांश यूकेरियोटिक कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में पाए जाते हैं। 
    • कोशिका के "पावरहाउस" के रूप में संदर्भित माइटोकॉन्ड्रिया विभिन्न कोशिकीय प्रक्रियाओं के लिये आवश्यक ऊर्जा के उत्पादन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • माइटोकॉन्ड्रिया विशेष रूप से माँ के अंडाणु (एग सेल) के माध्यम से वंशानुगत प्राप्त होते हैं।
  • महत्त्वपूर्ण कार्य:
    • ATP उत्पादन: माइटोकॉन्ड्रिया एडेनोसिन ट्राइफॉस्फेट (ATP) उत्पन्न करते हैं, जो कोशिकाओं में प्राथमिक ऊर्जा वाहक है। 
      • ATP लगभग सभी कोशिकीय कार्यों के लिये महत्त्वपूर्ण है, जिसमें मांसपेशी संकुचन, प्रोटीन संश्लेषण (वह प्रक्रिया जिसके द्वारा कोशिकाएँ DNA से प्रोटीन बनाती हैं) और कोशिका विभाजन शामिल हैं।
    • कोशिकीय श्वसन: माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकीय श्वसन (भोजन को तोड़ते हैं और ATP के रूप में ऊर्जा मुक्त करते हैं) में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
    • कोशिका मृत्यु का विनियमन: माइटोकॉन्ड्रिया एपोप्टोसिस (कोशिका मृत्यु का एक प्रकार) को विनियमित करने में शामिल होते हैं, जो स्वस्थ ऊतकों और अंगों को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • माइटोकॉन्ड्रियल DNA (mtDNA): अधिकांश अन्य अंगों के विपरीत, माइटोकॉन्ड्रिया का अपना DNA होता है, जिसे mtDNA के नाम से जाना जाता है।
    • mtDNA विलोपन उत्परिवर्तन के लिये प्रवण है, जहाँ DNA के कुछ हिस्से नष्ट हो जाते हैं। इन उत्परिवर्तनों का कोशिकीय कार्य पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
      • mtDNA में विलोपन उत्परिवर्तन अणु को छोटा और कम कार्यात्मक बनाता है। उत्परिवर्तित mtDNA प्रतिकृतिकरण के दौरान स्वस्थ mtDNA से प्रतिस्पर्द्धा कर सकता है, जिसके कारण माइटोकॉन्ड्रियल कार्य में क्रमिक गिरावट आ सकती है।

Mitochondria

विशेषता

परमाणु जीनोम (DNA) 

माइटोकॉन्ड्रियल DNA (mtDNA)

आकार

3.2 अरब आधार युग्म 

16,569 आधार युग्म 

आकार

रेखीय, 23 गुणसूत्रों में संगठित

गोलाकार

जीन

~20,000 प्रोटीन-कोडिंग जीन और ~15,000-20,000 गैर-कोडिंग जीन

13 प्रोटीन-कोडिंग जीन, 24 गैर-कोडिंग जीन

वंशानुगत 

माता-पिता दोनों से वंशानुगत प्राप्त होते हैं 

केवल माँ से वंशानुगत प्राप्त होते हैं

जगह

नाभिक में पाया जाता है

माइटोकॉन्ड्रिया में पाया जाता है

समारोह

अधिकांश प्रोटीन बनाने के लिये निर्देशों को एनकोड करता है

माइटोकॉन्ड्रियल कार्य के लिये महत्त्वपूर्ण प्रोटीन को एनकोड करता है

नोट: जीन DNA का एक खंड है जिसे मैसेंज़र आरएनए (mRNA) में ट्रांसक्राइब किया जाता है। फिर mRNA नाभिक से कोशिका द्रव्य में चला जाता है, जहाँ कोशिका इसका उपयोग प्रोटीन बनाने के लिये करती है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • mtDNA उत्परिवर्तन: अध्ययन में पाया गया है कि माइटोकॉन्ड्रियल DNA (mtDNA) में विलोपन उत्परिवर्तन उम्र के साथ मांसपेशियों की हानि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • शिथिलता और मांसपेशी हानि: उत्परिवर्तन माइटोकॉन्ड्रियल कार्य को बाधित करते हैं, जिससे मांसपेशी कोशिकाओं को पर्याप्त ATP उत्पन्न करने में कठिनाई होती है, जिससे मांसपेशी कोशिका का अपक्षयन और मृत्यु हो जाती है।
    • अध्ययन में पाया गया कि mtDNA विलोपन के कारण काइमेरिक जीन का निर्माण होता है (जहाँ दो अलग-अलग माइटोकॉन्ड्रियल जीन मिलकर असामान्य अनुक्रम बनाते हैं)। 
      • ये काइमेरिक जीन mtDNA की सामान्य अभिव्यक्ति को बाधित करते हैं, जिससे माइटोकॉन्ड्रियल शिथिलता और अधिक बढ़ जाती है।
  • आयु-संबंधी परिवर्तन: शोधकर्त्ताओं ने पाया कि वृद्ध व्यक्तियों में mtDNA विलोपन के कारण काइमेरिक माइटोकॉन्ड्रियल mRNA में दो गुना वृद्धि देखी गई, जो असामान्य जीन अभिव्यक्ति के साथ, मांसपेशियों और मस्तिष्क के ऊतकों में माइटोकॉन्ड्रियल शिथिलता और उम्र बढ़ने की गति को तेज़ करता है।
  • जैविक आयु संकेतक: mtDNA विलोपन उत्परिवर्तन और काइमेरिक mRNA जैविक आयु के लिये मूल्यवान बायोमार्कर हैं। 
    • उनके महत्त्व को समझने से ऐसी चिकित्सा पद्धति विकसित हो सकती है जो इन उत्परिवर्तनों को रोक सकती है या उनकी मरम्मत कर सकती है, जिससे संभावित रूप से आयु-संबंधित मांसपेशी हानि और अन्य बुढ़ापे के लक्षणों में देरी देखने को मिल सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. वंशानुगत रोगों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021) 

  1. अंडों के अंतःपात्र (इन विट्रो) निषेचन से पहले या बाद में सुत्रकणिका प्रतिस्थापन (माइटोकॉन्ड्रिया रिप्लेसमेंट) चिकित्सा द्वारा सुत्रकणिका रोगों (माइटोकॉन्ड्रियल डिजीज़) को माता-पिता से संतान में जाने से रोका जा सकता है।
  2. किसी संतान में सुत्रकणिका रोग (माइटोकॉन्ड्रियल डिजीज़) आनुवंशिक रूप से पूर्णतः माता से जाता है न कि पिता से।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (C)


प्रारंभिक परीक्षा

सर आइजैक न्यूटन का योगदान

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

25 दिसंबर 1642 को जन्मे सर आइजैक न्यूटन इतिहास के सबसे प्रभावशाली वैज्ञानिकों में से एक हैं। उनकी 382वीं जयंती पर, विज्ञान के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान पर विचार करना महत्त्वपूर्ण है, जो आज भी विश्व की समझ को आकार दे रहा है।

Isaac_Newton

आइजैक न्यूटन कौन थे?

  • प्रारंभिक जीवन: आइजैक न्यूटन का जन्म इंग्लैंड के वूल्सथॉर्प में हुआ था। उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उनकी गणित, प्रकाशिकी, भौतिकी और खगोल विज्ञान में रुचि विकसित हुई। 
    • स्नातक होने के बाद, वह कैम्ब्रिज में प्रोफेसर बन गए और बाद में गणित के प्रतिष्ठित दूसरे लुकासियन चेयर पर आसीन हुए।
      • कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में किंग चार्ल्स द्वितीय द्वारा वर्ष 1664 में स्थापित गणित की लुकासियन चेयर, विश्व के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक पदों में से एक है।
    • वर्ष 1705 में, रानी ऐनी (ग्रेट ब्रिटेन की रानी) ने आइजैक न्यूटन को "सर" की उपाधि देते हुए नाइट से सम्मानित किया।

न्यूटन का योगदान:

 गति के नियम: 

  • प्रथम नियम (जड़त्व): जब तक किसी वस्तु पर बाह्य बल नहीं लगाया जाता तब तक वह स्थिर या एकसमान गति में रहती है।
    • यह सिद्धांत आधुनिक भौतिकी में आधारभूत है, जो कार दुर्घटनाओं से लेकर अंतरिक्ष में उपग्रह की गति तक सब कुछ समझाता है।
  • दूसरा नियम (बल और त्वरण): न्यूटन ने स्थापित किया कि किसी वस्तु पर लगने वाला बल उसके द्रव्यमान तथा त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है (F=ma)।
    • इस सिद्धांत का प्रयोग इंजीनियरिंग, एयरोस्पेस और वाहन डिजाइन में संरचनाओं और मशीनों को बलों का सामना करने में सहायता करने के लिये किया जाता है।
  • तृतीय नियम (क्रिया और प्रतिक्रिया): प्रत्येक क्रिया के बराबर एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है।
    • यह नियम रॉकेट प्रणोदन और चलने जैसी रोजमर्रा की गतिविधियों का आधार है।

गुरुत्वाकर्षण (g) और गुरुत्वाकर्षण (G): 

  • गुरुत्वाकर्षण: सर आइजैक न्यूटन ने 1660 के दशक के अंत में  गुरुत्वाकर्षण के अस्तित्व की खोज की थी।
    • गुरुत्वाकर्षण वह बल है जिसके द्वारा कोई ग्रह या अन्य पिंड वस्तुओं को अपने केंद्र की ओर खींचता है।
  • गुरुत्वाकर्षण का सार्वभौमिक नियम: न्यूटन ने पहचाना कि दो वस्तुओं के बीच गुरुत्वाकर्षण बल उनके द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती होता है और उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है, जिसका अर्थ है कि जैसे-जैसे वस्तुएँ एक-दूसरे से दूर होती जाती हैं, गुरुत्वाकर्षण कमज़ोर होता जाता है।
    • उनके कार्य ने ग्रहों की गति और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली शक्तियों की समझ में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया।
    • यह नियम ग्रहों की गति की व्याख्या करता है तथा उपग्रहों की कक्षाओं और अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रकाशिकी: प्रकाश की प्रकृति पर उनके शोध से यह खोज हुई कि श्वेत प्रकाश विभिन्न रंगों का संयोजन है, जिसे उन्होंने प्रिज्म (त्रि-आयामी ठोस वस्तु) का उपयोग करके प्रदर्शित किया।
  • परावर्तक दूरबीन: लेंस का उपयोग करने वाली दूरबीनों में रंगीन विपथन (रंग विरूपण) की समस्या को हल करने के लिये, आइजैक न्यूटन ने वर्ष 1668 में परावर्तक दूरबीन का निर्माण किया।
  • प्राथमिक लेंस के स्थान पर दर्पण लगाकर, वह रंगीन विपथन को समाप्त करने और छवि की स्पष्टता में वृद्धि करने में सक्षम हो गये। 
  • गणित: एक गणितज्ञ के रूप में, न्यूटन को गाटफ्रीड विलहेल्म लाइबनिज के साथ मिलकर कैलकुलस विकसित करने का श्रेय दिया जाता है, यह एक ऐसा उपकरण था जिसका विज्ञान और इंजीनियरिंग पर महत्वपूर्ण प्रभाव है।
  • उल्लेखनीय कार्य: वर्ष 1687 में आइज़क न्यूटन द्वारा प्रकाशित ‘फिलासफी नेचुरलिस प्रिंसिपिया मैथमैटिका’, जिसे प्रिंसिपिया के नाम से भी जाना जाता है, ने याँत्रिकी (वस्तुओं और बलों की गति का अध्ययन) की खोज की।
  • न्यूटन ने कीमिया/एल्केमी (आधारभूत धातुओं को सोने में बदलने के अध्ययन से संबंधित) पर दशकों तक अध्ययन किया, हालाँकि वह असफल रहे, लेकिन उनके कीमिया संबंधी कार्य ने रसायन विज्ञान और भौतिकी को मिलाकर पदार्थ और प्रकाशिकी की उनकी समझ को प्रभावित किया।
  • पुरस्कार: आइज़क न्यूटन पदक और पुरस्कार, भौतिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान को मान्यता देने के लिये, यूके और आयरलैंड में भौतिकी के लिये एक सोसायटी, इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स (IOP) द्वारा दिया जाने वाला एक वार्षिक पुरस्कार है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रकृति के ज्ञात बलों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, अर्थात् गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुंबकत्व, दुर्बल नाभिकीय बल और प्रबल नाभिकीय बल। उनके संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है? (2013)

(a) गुरूत्व, चारों में सबसे प्रबल है
(b) विद्युत चुंबकत्व  सिर्फ विद्युत आवेश वाले कणों पर क्रिया करता है
(c) दुर्बल नाभिकीय बल रेडियोधर्मिता का कारण है
(d) प्रबल नाभिकीय बल परमाणु के केंद्रक में प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों को धारित किये रखता है

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • गुरुत्वाकर्षण बल: न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम के अनुसार, ब्रह्मांड में प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को ​​एक बल से आकर्षित करता है जो उनके द्रव्यमान के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यह चारों प्राकृतिक बलों में सबसे कमज़ोर बल है। 
  • विद्युत चुम्बकीय बल: यह वह बल आवेशित कणों के बीच कार्य करता है तथा यह सभी विद्युत एवं चुंबकीय बलों का संयोजन है। यह आकर्षक या प्रतिकर्षक हो सकता है। इसकी प्रभावशीलता कणों के बीच की दूरी के व्युत्क्रम वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है। यह विद्युत आवेश वाले कणों पर कार्य करता है। 
  • नाभिकीय बल: यह प्रकृति में एक आकर्षक बल है तथा यह परमाणु के नाभिक में स्थित प्रोटॉनों तथा न्यूट्रॉनों के बीच लगने वाला बल नाभिकीय बल है। न्यूक्लिऑन के बीच की दूरी बढ़ने पर बल कम जबकि दूरी कम होने पर यह बढ़ जाता है। यह दो प्रकार का होता है: 
    • प्रबल नाभिकीय बल: यह वह बल है जो नाभिक के अंदर न्यूक्लिऑन को रोके रखता है अर्थात् यह परमाणु के नाभिक के अंदर प्रोटॉन और न्यूट्रॉन को रोके रखता है। 
    • दुर्बल नाभिकीय बल: यह उप-परमाण्विक कणों के बीच अन्तः क्रिया बल है, जो परमाणुओं के रेडियोधर्मी क्षय के लिये ज़िम्मेदार है। 

अतः विकल्प (A) सही है।


रैपिड फायर

प्रकाश की चाल

स्रोत: द हिंदू

प्रकाश की चाल, जो भौतिकी में एक मौलिक स्थिरांक है, सदियों से बढ़ती हुई परिशुद्धता के साथ निर्धारित की जाती रही है।

  • प्रकाश की चाल वह दर है जिस पर प्रकाश तरंगें विभिन्न पदार्थों के माध्यम से फैलती हैं। विशेष रूप से, निर्वात में प्रकाश की चाल को 299,792,458 मीटर प्रति सेकंड के रूप में परिभाषित किया गया है। 
    • विभिन्न पदार्थों से गुजरते समय प्रकाश की चाल भिन्न हो सकती है, जो उस पदार्थ के अपवर्तनांक (एक माध्यम से दूसरे माध्यम में गमन करते समय प्रकाश किरण के मुड़ने की माप) पर निर्भर करता है।
  • प्रकाश की चाल के प्रारंभिक अनुमान इस बात पर आधारित थे कि प्रकाश को एक ज्ञात दूरी तय करने में कितना समय लगता है, तथा उपकरणों के उन्नत होने के साथ-साथ माप में भी सुधार होता गया।
  • ओले रोमर (1676) ने बृहस्पति के चंद्रमाओं और पृथ्वी से बृहस्पति की दूरी के आधार पर उनके ग्रहण के समय में होने वाले परिवर्तन का अवलोकन करके सबसे पहले प्रकाश की चाल का अनुमान लगाया था। 
    • उनका अनुमान था कि यह गति 225,300 किमी/सेकंड होगी, जो बृहस्पति की दूरी के संदर्भ में सीमित जानकारी के कारण आधुनिक माप से बहुत दूर थी।
  • प्रकाश की चाल का आधुनिक माप लेज़र किरणों और परमाणु घड़ियों का उपयोग करके किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान में सटीक मान प्राप्त होता है।

और पढ़ें: प्रारंभिक ब्रह्मांड में काल-विस्तारण


रैपिड फायर

मानव संपर्क से लायन-टेल्ड मेकाक को खतरा

स्रोत: द हिंदू

लुप्तप्राय लायन-टेल्ड मेकाक/सिंह-पूँछ वाले मैकाक (Lion-Tailed Macaques) को बढ़ते मानवीय संपर्क से खतरा है, जो आवास की कमी, मानव अतिक्रमण और भोजन की बढ़ती आपूर्ति से प्रेरित है।

  • मानव द्वारा उपलब्ध कराया गया भोजन से बीमारी फैलने, कुपोषण और अप्राकृतिक खाद्य स्रोतों पर निर्भरता तथा सड़क दुर्घटनाओं एवं मानव आक्रामकता के जोखिम बढ़ रहे है।
    • लायन-टेल्ड मेकाक मानव-परिवर्तित वातावरण के प्रति अत्यधिक अनुकूलनीय है तथा अक्सर मनुष्यों के साथ अंतःक्रिया करता है।

Lion_Tailed_Macaques

  • लायन-टेल्ड मेकाक:
    • यह पूर्वजगत बंदर हैं जो भारत के पश्चिमी घाटों में स्थानिक रूप से पाये जाते हैं ।
      • उनके प्रमुख आवासों में पश्चिमी घाट के अनामलाई पहाड़ियाँ, नेलियामपैथी, नीलांबुर घाट, शोलायार, गवी, सबरीमाला, वल्लीमलाई पहाड़ियाँ और अगुम्बे शामिल हैं।
    • लायन-टेल्ड मेकाक के काले फर और सिर तथा ठोड़ी के चारों ओर एक धूसर अयाल होता है जिसके कारण उन्हें “दाढ़ी वाले बंदर (Beard Ape)” भी कहा जाता है।
    • समूह के प्रमुख नर मेकाक अपने क्षेत्र में प्रवेश करते समय अन्य को सचेत करने के लिये मानव-जैसी तेज़ 'आवाज़/उफ (Whoops)' का उपयोग करते हैं।
  • संरक्षण की स्थिति:

Western_Ghats

और पढ़ें: लायन-टेल्ड मेकाक


रैपिड फायर

जल्लीकट्टू

स्रोत:द हिंदू

तमिलनाडु सरकार ने भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के मार्गदर्शन में वर्ष 2025 में सुरक्षित जल्लीकट्टू आयोजनों के लिये एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की है।

  • आयोजनों को तमिलनाडु पशु क्रूरता निवारण (जल्लीकट्टू का आयोजन) नियम, 2017 की धारा 3(2) का पालन करना होगा, जिसके तहत केवल अनुमति के साथ अधिसूचित स्थानों पर ही जल्लीकट्टू की अनुमति दी जाएगी, बैलों की सुरक्षा और क्रूरता की रोकथाम सुनिश्चित की जाएगी।
  • 2,000 वर्ष से अधिक पुराना, जल्लीकट्टू, तमिलनाडु का एक पारंपरिक खेल है जो मूल रूप से उपयुक्त वर का चयन करने के लिये आयोजित किया जाता था। 
    • यह खेल भारत के एक जातीय समूह अयार से जुड़ा हुआ है, और इसका नाम "जल्ली" (सिक्के) और "कट्टू" (बंधा हुआ) से निकला है।
    • यह मट्टू पोंगल दिवस (पोंगल का तीसरा दिन ) पर मनाया जाता है, जहाँ एक बैल को छोड़ दिया जाता है, और प्रतिभागी उसके सींग पर बंधे सिक्के जीतने के लिये उसे वश में करते हैं। 
    • इस खेल में पुलिकुलम या कंगायम नस्ल के बैलों का उपयोग किया जाता है, जो प्रजनन और बाज़ार में बिक्री के लिये अत्यधिक मूल्यवान हैं।
  • जल्लीकट्टू को दर्शाती एक मुहर सिंधु घाटी स्थल पर मिली थी, जिसे राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में संरक्षित किया गया है। मदुरै के निकट एक 1500 वर्ष पुरानी गुफा चित्रकला में भी इस खेल को दर्शाया गया है।
  • जल्लीकट्टू के विभिन्न संस्करणों, जैसे वादी मंजुविरट्टू, वेलि विरट्टू और वटम मंजुविरट्टू में बैल को पकड़ने की अवधि या तय की जाने वाली दूरी के संबंध में अलग-अलग नियम हैं।

Jallikattu

और पढ़ें: जल्लीकट्टू


रैपिड फायर

सरदार उधम सिंह की 125वीं जयंती

हाल ही में 26 दिसंबर को सरदार उधम सिंह की जयंती मनाई गई, जिसमें जलियाँवाला बाग हत्याकांड में न्याय के अथक प्रयास के प्रतीक के रूप में उनकी विरासत का स्मरण किया गया।

  • जन्म एवं प्रारंभिक जीवन: उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर ज़िले के सुनाम में हुआ था। कम आयु में ही माता-पिता की मृत्यु हो जाने पर यह अमृतसर के केंद्रीय खालसा अनाथालय में पले-बढ़े।
  • जलियाँवाला बाग हत्याकांड के प्रत्यक्षदर्शी: उधम सिंह 13 अप्रैल 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड में जीवित बचे थे, जहाँ ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल डायर के नेतृत्व में सेना ने 400 से अधिक निहत्थे नागरिकों की हत्या कर दी थी।
  • क्रांतिकारी गतिविधियाँ: इस नरसंहार से गहराई से प्रभावित होकर उधम सिंह वर्ष 1924 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विदेशों में भारतीयों को संगठित करने के लिये गदर पार्टी में शामिल हो गए।
    • वर्ष 1927 में फायरआर्म रखने के जुर्म में उन्हें पाँच वर्ष के कारावास की सज़ा सुनाई गई।
  • बदला और फाँसी: 13 मार्च 1940 को उधम सिंह ने लंदन के कैक्सटन हॉल में एक बैठक के दौरान माइकल ओ' डायर की हत्या कर दी।
    • उन्हें 31 जुलाई 1940 को लंदन के पेंटनविले जेल में फाँसी दे दी गई।
  • विरासत: शहीद-ए-आज़म के रूप में सम्मानित, उधम सिंह के अवशेषों को वर्ष 1974 में वापस लाया गया।  
    • उनके कार्य औपनिवेशिक उत्पीड़न के विरुद्ध अटूट प्रतिरोध का प्रतीक हैं।

Sardar_Udham_Singh

और पढ़ें: सरदार उधम सिंह


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