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जल्लीकट्टू

  • 06 Jan 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जल्लीकट्टू, अनुच्छेद 29, भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए. नागराज मामला, पोंगल, कंबाला

मेन्स के लिये:

जल्लीकट्टू का पारंपरिक और सांस्कृतिक महत्त्व, जल्लीकट्टू से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने जल्लीकट्टू की रक्षा करने वाले तमिलनाडु के कानून को रद्द करने की मांग करने वाली याचिकाओं के एक समूह के वाद को निर्णय के लिये आरक्षित कर लिया है, जिसमें दावा किया गया है कि साँडों को वश में करने का खेल राज्य की सांस्कृतिक विरासत है और संविधान के अनुच्छेद 29 (1) के तहत संरक्षित है। 

  • हालाँकि इन प्रथाओं की जड़ें कुछ समुदायों की संस्कृति और परंपराओं में गहराई से हो सकती हैं, ये प्रथाएँ अक्सर विवादास्पद होती हैं तथा पशु कल्याण समर्थकों द्वारा उनकी आलोचना की जाती है।

जल्लीकट्टू:

  • जल्लीकट्टू एक पारंपरिक खेल है जो भारतीय राज्य तमिलनाडु में लोकप्रिय है।
  • इस खेल में लोगों की भीड़ में एक साँड को छोड़ दिया जाता है तथा प्रतिभागी साँड के कूबड़ को पकड़ने और यथासंभव लंबे समय तक सवारी करने या इसे नियंत्रण में लाने का प्रयास करते हैं।
  • यह जनवरी के महीने में तमिल फसल उत्सव, पोंगल के दौरान मनाया जाता है।

संबद्ध चिंताएँ:

  • इसमें शामिल प्राथमिक प्रश्न यह था कि क्या जल्लीकट्टू को अनुच्छेद 29 (1) के तहत सामूहिक सांस्कृतिक अधिकार के रूप में संवैधानिक संरक्षण दिया जाना चाहिये।
    • अनुच्छेद 29 (1) नागरिकों के शैक्षिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिये संविधान के भाग III के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार है।
  • न्यायालय ने इस बात की जाँच की कि क्या कानून "पशुओं के प्रति क्रूरता को बनाए रखते हैं" या वास्तव में "बैलों की देशी नस्ल के अस्तित्व और कल्याण" को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं। 
  • पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने इस बात पर पक्षों को सुना कि क्या नए जल्लीकट्टू कानून संविधान के अनुच्छेद 48 के अनुरूप हैं, जिसमें राज्य से कृषि और पशुपालन को आधुनिक एवं वैज्ञानिक आधार पर संगठित करने का आग्रह किया गया है।
  • संविधान पीठ ने इस बात पर भी गौर किया कि क्या कर्नाटक और महाराष्ट्र के जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ कानून वास्तव में पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम 1960 के तहत पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम के उद्देश्य को पूरा करेंगे।

संबद्ध कानूनी हस्तक्षेप:

  • वर्ष 2011 में  केंद्र सरकार द्वारा बैलों को उन जानवरों की सूची में शामिल किया गया जिनका प्रशिक्षण और प्रदर्शनी प्रतिबंधित है।
  • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2011 की अधिसूचना का हवाला देते हुए एक याचिका दायर की गई थी जिस पर फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया था। 
  • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया, जहाँ यह मामला अब भी लंबित है।
  • विवाद की जड़ पशु क्रूरता रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम 2017 और पशु क्रूरता रोकथाम (जल्लीकट्टू का संचालन) नियम 2017 है, जिसने सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2014 के प्रतिबंध के बावजूद संस्कृति और परंपरा के नाम पर बैलों को काबू में करने वाले लोकप्रिय खेल के संचालन के लिये दरवाज़े फिर से खोल दिये थे।

जल्लीकट्टू के पक्ष और विपक्ष में तर्क: 

  • पक्ष में तर्क: 
    • तमिलनाडु में जल्लीकट्टू, राज्य के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जिसका प्रभाव जाति और पंथ की सीमाओं से परे है।
    • राज्य सरकार के अनुसार, "एक प्रथा जो सदियों पुरानी है और एक समुदाय की पहचान का प्रतीक है, को विनियमित एवं सुधारा जा सकता है जिस प्रकार मानव जाति पूरी तरह से समाप्त होने के बजाय विकसित होती है।"
    • इसमें कहा गया है कि इस तरह के उत्सव पर किसी भी प्रतिबंध को "संस्कृति के प्रति शत्रुतापूर्ण और समुदाय की संवेदनशीलता के खिलाफ" के रूप में देखा जाएगा।
    • जल्लीकट्टू को "पशुओं की कीमती स्थानीय नस्ल के संरक्षण के लिये एक उपकरण" के रूप में वर्णित करते हुए सरकार ने तर्क दिया कि पारंपरिक आयोजन करुणा और मानवता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता है।
    • उसने तर्क दिया कि उत्सव के पारंपरिक और सांस्कृतिक महत्त्व एवं सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश के साथ इसके अंतर्संबंध को हाईस्कूल के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जा रहा है ताकि "आगामी पीढ़ियों तक इसका महत्त्व बनाए रखा जा सके।" 
  • विपक्ष में तर्क: 
    • याचिकाकर्त्ताओं का तर्क था कि जानवरों का मनुष्यों के जीवन से अटूट जुड़ाव रहा है। स्वतंत्रता "हर जीवित प्राणी में निहित है, चाहे वह जीवन के किसी भी रूप में हो," क्योंकि यह ऐसा पहलू है जिसे संविधान द्वारा मान्यता दी गई है।
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जल्लीकट्टू पर लगाए गए प्रतिबंध के संदर्भ में तमिलनाडु सरकार द्वारा कानून बनाया गया था।
    • जल्लीकट्टू के आयोजन के परिणामस्वरूप राज्य के कई ज़िलों में हुई मौतों और चोटिलों में मनुष्यों के साथ-साथ साँड भी शामिल थे।
    • याचिकाकर्त्ताओं का मत था कि तमिलनाडु सरकार द्वारा बनाए गए कानून के बावजूद कुछ साँडों पर अत्याचार के मामले देखने को मिलते रहे हैं।
    • उनके अनुसार, ये जानवर अत्यधिक क्रूरता के भी शिकार हुए हैं।
    • जल्लीकट्टू को संस्कृति का एक हिस्सा मानने के संबंध में कोई साक्ष्य नहीं है।
    • आलोचकों ने इस घटना की तुलना सती और दहेज जैसी प्रथाओं से की थी, जिन्हें एक समय संस्कृति के हिस्से के रूप में भी मान्यता दी गई थी और कानून द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था।

अन्य राज्यों में समान प्रकार के खेलों की स्थिति:

  • समान प्रवृत्ति के खेल कंबाला को जीवित रखने के लिये कर्नाटक द्वारा भी एक कानून पारित किया गया।
  • तमिलनाडु और कर्नाटक को छोड़कर साँडों को पालतू बनाने और रेसिंग का आयोजन करने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के 2014 के प्रतिबंध आदेश के कारण आंध्र प्रदेश, पंजाब तथा महाराष्ट्र सहित अन्य सभी राज्यों में इस प्रकार के खेलों पर प्रतिबंध लगाया गया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने क्या-क्या चुनौतियाँ हैं? (2019) 

स्रोत: द हिंदू

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