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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 26 Sep, 2023
  • 19 min read
प्रारंभिक परीक्षा

आदि शंकराचार्य की प्रतिमा

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

मध्य प्रदेश (MP) के मुख्यमंत्री ने खंडवा ज़िले के ओंकारेश्वर में मांधाता पर्वत पर आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊँची 'स्टैच्यू ऑफ वननेस' का अनावरण किया और अद्वैत लोक की आधारशिला रखी।

मांधाता की महत्ता:

  • मांधाता द्वीप, जो कि नर्मदा नदी पर स्थित है, 12 ज्योतिर्लिंगों में से दो ज्योतिर्लिंग- पहला- द्वीप के दक्षिण की ओर स्थित ओंकारेश्वर तथा दूसरा अमरेश्वर है।
  • इस द्वीप पर 14वीं और 18वीं शताब्दी के शैव, वैष्णव तथा जैन मंदिर हैं।
  • 'ओंकारेश्वर' नाम द्वीप के आकार से लिया गया है, जो पवित्र शब्दांश 'ऊँ' जैसा दिखता है, और इसके नाम का अर्थ है 'ओंकार के ईश्वर'।

आदि शंकराचार्य:

  • परिचय:
    • वह आदि शंकर (788-820 ई.पू.) के नाम से जाने जाते हैं और उनका जन्म केरल के कोच्चि के पास कलाडी में हुआ था।
    • उन्होंने 33 वर्ष की आयु में केदार तीर्थ पर समाधि ली।
    • वह शिव के भक्त थे।
    • ऐसा कहा जाता है कि वह एक युवा भिक्षु के रूप में ओंकारेश्वर पहुँचे थे, जहाँ उनकी भेंट अपने गुरु गोविंद भगवद्पाद से हुई थी।
    • वह चार वर्षों तक इस पवित्र शहर में रहे और शिक्षा प्राप्त की।
    • उन्होंने 12 वर्ष की उम्र में ओंकारेश्वर छोड़ दिया और पूरे देश की यात्रा पर निकल पड़े, उन्होनें अद्वैत वेदांत दर्शन की शिक्षाओं का प्रसार किया एवं लोगों तक इसके सिद्धांतों को पहुँचाया।
    • उन्होनें अद्वैत सिद्धांत (अद्वैतवाद) का प्रतिपादन किया और वैदिक सिद्धांत (उपनिषद, ब्रह्म सूत्र तथा भगवद गीता) पर संस्कृत में कई टिप्पणियाँ लिखीं।
    • वह बौद्ध दार्शनिकों के विरोधी थे।
  • प्रमुख शास्त्र:
    • ब्रह्मसूत्रभाष्य (ब्रह्मसूत्र पर भाष्य)
    • भजगोविंद स्तोत्र
    • निर्वाण षटकम्प्रा
    • करण ग्रंथ
  • अन्य योगदान:
    • जब बौद्ध धर्म लोकप्रियता हासिल कर रहा था तब वे भारत में हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने के लिये काफी हद तक ज़िम्मेदार थे।
    • सनातन धर्म के प्रचार के लिये भारत के चार कोनों शृंगेरी, पुरी, द्वारका और बद्रीनाथ में चार मठों की स्थापना की गई।

अद्वैत वेदांत:

  • यह कट्टरपंथी अद्वैतवाद की एक दार्शनिक स्थिति को स्पष्ट करता है, एक पुनरीक्षण विश्वदृष्टि जिसे यह प्राचीन उपनिषद ग्रंथों से प्राप्त करता है।
  • अद्वैत वेदांतियों के अनुसार, उपनिषद अद्वैत के एक मौलिक सिद्धांत को प्रकट करते हैं जिसे 'ब्राह्मण' कहा जाता है, जो सभी चीज़ों की वास्तविकता है।
  • अद्वैतवादी ब्राह्मण को व्यक्तित्व और अनुभवजन्य बहुलता से परे समझते हैं।
  • वे यह स्थापित करना चाहते हैं कि किसी व्यक्ति का मूल (आत्मन्) ब्रह्म है।
  • अद्वैत वेदांत इस बात पर ज़ोर देता है कि आत्मा शुद्ध अनैच्छिक चेतना अवस्था में होती है।
  • अद्वैत एक क्षणरहित और अनंत अस्तित्ववादी है तथा संख्यात्मक रूप से ब्रह्म के समान है।

अन्य प्रसिद्ध मूर्तियाँ:

  • इससे पहले भारत के प्रधान मंत्री (PM) ने 11वीं सदी के भक्ति संत श्री रामानुजाचार्य की 1,000वीं जयंती पर उनकी स्मृति में हैदराबाद के बाहरी क्षेत्र में स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी का उद्घाटन किया था।
  • वर्ष 2018 में PM ने पूर्व उप प्रधान मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की याद में गुजरात के केवडिया में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का उद्घाटन किया।


प्रारंभिक परीक्षा

फाइव आइज़ एलायंस

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में कनाडाई प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया है कि कनाडा में खालिस्तान आंदोलन के उन्नायक एक सिख अलगाववादी नेता की हत्या में भारत सरकार के "संभावित संबंध" हो सकते हैं, इसलिये दोनों देशों के बीच संबंध तनाव में हैं, साथ ही उनके आरोपों को फाइव आइज़ अलायंस की रिपोर्टों का समर्थन प्राप्त है।

फाइव आइज़ अलायंस:

  • परिचय:
    • फाइव आइज़ एक खुफिया गठबंधन है जिसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैंड, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश शामिल हैं।
    • ये देश बहुपक्षीय UK-USA समझौते के पक्षकार हैं, जो सिग्नल इंटेलिजेंस में संयुक्त सहयोग के लिये एक संधि है।
  • विशेषताएँ:
    • ये भागीदार राष्ट्र सहयोग के हिस्से के रूप में विश्व के सबसे घनिष्ठ बहुपक्षीय समझौतों में से एक इस गठबंधन के अंतर्गत खुफिया जानकारी का व्यापक आदान-प्रदान करते हैं।
    • अपनी स्थापना के बाद एजेंसी ने अपने मुख्य समूह का 'नाइन आइज़' और 14 आइज़ गठबंधनों के रूप में विस्तार किया तथा अधिक देशों को सुरक्षा भागीदार के रूप में शामिल किया।
    • 'नाइन आइज़' समूह नीदरलैंड, डेनमार्क, फ्राँस और नॉर्वे तक विस्तृत है, जबकि 14 आइज़ गठबंधन के अंतर्गत बेल्जियम, इटली, जर्मनी, स्पेन तथा स्वीडन शामिल हैं।

फाइव आइज़ गठबंधन के गठन का कारण:

  • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यह गठबंधन सर्वप्रथम अस्तित्त्व में आया। यू.के. और यू.एस. ने क्रमशः जर्मन और जापानी कूटों को हल करते हुए खुफिया जानकारी साझा करने का निर्णय लिया।
  • वर्ष 1943 में, ब्रिटेन-यू.एस.ए. (BRUSA) समझौते ने यू.के.-यू.एस.ए. (UKUSA) समझौते की नींव रखी।
    • यूरोप में अमेरिकी सेनाओं का समर्थन करने के लिये दोनों देशों के बीच खुफिया जानकारी साझा करने के लिये BRUSA पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • इसके बाद वर्ष 1946 में UK-USA समझौते पर हस्ताक्षर किये गए। वर्ष 1949 में कनाडा इसमें शामिल हुआ और एक अन्य गठबंधन का निर्माण करते हुए न्यूज़ीलैंड तथा ऑस्ट्रेलिया वर्ष 1956 में शामिल हो गए।
  • इस समझौते को आधिकारिक रूप से स्वीकृति नहीं दी गई थी, हालांकि इसके अस्तित्त्व के बारे में 1980 के दशक से ही जानकारी थी। लेकिन UK-USA समझौते की फाइलें/जानकारी वर्ष 2010 में जारी की गईं।

फाइव आइज़ गठबंधन की कार्यप्रणाली:

  • खुफिया जानकारी जुटाने और सुरक्षा के मामलों में विभिन्न देश अक्सर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।
  • हाल के वर्षों में चीन की बढ़त को संतुलित अथवा नियंत्रित करने जैसे सामान्य हितों से फाइव आईज़ देशों के बीच घनिष्ठता बढ़ी है।
  • उनकी निकटता का श्रेय एक समान भाषा और दशकों के सहयोग से बने आपसी विश्वास को भी दिया जाता है।
  • वर्ष 2016 में फाइव आइज़ इंटेलिजेंस ओवरसाइट एंड रिव्यू काउंसिल अस्तित्व में आई। इसमें फाइव आईज़ देशों की गैर-राजनीतिक खुफिया निगरानी, ​​समीक्षा और सुरक्षा संस्थाएँ भी शामिल हैं।

वर्तमान भारत-कनाडा मुद्दे में फाइव आइज़ की भूमिका:

  • खासतौर पर अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को भारत के समकक्ष देखा जाता है। कनाडा के समान उनके भीतर भी बड़ी संख्या में भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों की आबादी है।
    • उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों के कुछ उदाहरण भी देखे हैं। लेकिन एक तरफ कनाडा और गठबंधन के साथ उनकी ऐतिहासिक निकटता तथा दूसरी तरफ भारत के एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने के कारण भारत या कनाडा के लिये पूर्ण समर्थन की संभावना नहीं है।
  • संबंधों की स्थिति को देखते हुए ये देश, विशेष रूप से अमेरिका, मामले पर स्पष्ट खुफिया जानकारी और जानकारी होने पर इस मुद्दे में मध्यस्थता की भूमिका निभा सकते हैं।


प्रारंभिक परीक्षा

नॉर्मन ई. बोरलॉग पुरस्कार

स्रोत: बिज़नेस लाइन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय कृषि वैज्ञानिक डॉ. स्वाति नायक, जिन्हें ओडिशा में स्थानीय समुदायों द्वारा प्यार से "बिहाना दीदी" या "सीड लेडी" के नाम से जाना जाता है, को वर्ष 2023 के नॉर्मन ई. बोरलॉग पुरस्कार (Norman E. Borlaug Award) से सम्मानित किया गया है।

अदिति मुखर्जी (वर्ष 2012) और महालिंगम गोविंदराज (वर्ष 2022) के बाद यह प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वाली वह तीसरी भारतीय हैं, यह पुरस्कार उन्हें कृषि क्षेत्र, विशेष रूप से सूखा-सहिष्णु चावल की किस्मों के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान हेतु दिया गया है।

नॉर्मन ई. बोरलॉग पुरस्कार:

  • यह पुरस्कार रॉकफेलर फाउंडेशन (Rockefeller Foundation) द्वारा समर्थित है तथा प्रत्येक वर्ष अक्तूबर माह में डेस मोइनेस, आयोवा, अमेरिका में विश्व खाद्य पुरस्कार फाउंडेशन द्वारा 40 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों, जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कृषि और भोजन उत्पादन में उल्लेखनीय, विज्ञान-आधारित उपलब्धियाँ हासिल की हैं, को सम्मानित करने हेतु दिया जाता है।
  • इस पुरस्कार का नाम हरित क्रांति के जनक और वर्ष 1970 के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता नॉर्मन ई. बोरलॉग के नाम पर रखा गया है।
  • पुरस्कार डिप्लोमा में मेक्सिको के खेतों में काम करते हुए डॉ. नॉर्मन ई. बोरलॉग की छवि और 10,000 अमेरिकी डॉलर का नकद पुरस्कार सम्मिलित है।

स्वाति नायक का योगदान:

  • डॉ. स्वाति नायक ने ओडिशा में सूखा-सहिष्णु शाहभागी धान चावल की किस्म पेश की। इससे वर्षा आधारित क्षेत्रों में बड़ा बदलाव आया। यह किस्म प्रत्येक किसान परिवार के आहार और फसल चक्र का एक अभिन्न अंग बन गई है।
    • उनकी सतत् रणनीति, साझेदारी और अद्वितीय पोजिशनिंग मॉडल के माध्यम से भारत, बांग्लादेश और नेपाल में चावल की कई जलवायु-प्रत्यास्थ किस्मों को सफलतापूर्वक उगाया गया है।
  • उन्हें मांग-संचालित चावल बीज प्रणालियों में छोटे किसानों को शामिल करने, परीक्षण और तैनाती से लेकर जलवायु-प्रत्यास्थ और पौष्टिक चावल किस्मों की समान पहुँच तथा इसकी कृषि करने तक उनके अभिनव दृष्टिकोण के लिये पहचाना जाता है।
    • इन्होंने महिला किसानों के लिये समर्पित भारत सरकार की प्रथम पहल के लिये एक व्यापक रूपरेखा को तैयार करने में अग्रणी भूमिका निभाई है, जिससे लगभग 40 लाख महिला किसानों को लाभ हुआ।

विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 26 सितंबर, 2023

नासा का पहला क्षुद्रग्रह नमूना पृथ्वी पर लाया गया

  • 8 सितंबर 2016 को लॉन्च किये गए नासा के ऑरिजिंस, स्पेक्ट्रल इंटरप्रिटेशन, रिसोर्स आइडेंटिफिकेशन और सिक्योरिटी-रेजोलिथ एक्सप्लोरर (OSIRIS-REx) अंतरिक्ष यान की सहायता से पृथ्वी के निकटीय क्षुद्रग्रह बेन्नु (पूर्व में 1999 RQ36) से क्षुद्रग्रह के पहले नमूनों को सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लाया गया है। सात वर्ष की लंबी यात्रा के बाद यह अंतरिक्ष यान 4.5 अरब वर्ष पुराने बहुमूल्य नमूने लेकर आया है।
    • पृथ्वी के निकट से तीव्रता से गुज़रने के दौरान ओसिरिस-रेक्स नमूना कैप्सूल रिलीज़ किया गया, यह क्षुद्रग्रह नमूनों को संरक्षित करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका के यूटा रेगिस्तान में सुरक्षित रूप से लैंड हुआ।
    • वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस कैप्सूल में कार्बन-समृद्ध क्षुद्रग्रह बेन्नु का मलबा है, जो मात्रा में कम से कम एक कप जितना हो सकता है।
    • यह नमूना 4.5 अरब वर्ष पूर्व की पृथ्वी और जीवन के बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान करेगा।
  • ओसिरिस-रेक्स अपनी उड़ान और मिशन जारी रखेगा, यह वर्ष 2029 में एपोफिस नामक एक अन्य क्षुद्रग्रह तक पहुँच कर उसका अध्ययन करेगा।

फिलीपींस के अधिकारियों ने चीन के दक्षिण चीन सागर अवरोध को चुनौती दी

  • फिलीपींस के अधिकारियों ने दक्षिण चीन सागर के विवादित स्कारबोरो शोल में चीन के तट रक्षक द्वारा स्थापित 300 मीटर लंबे फ्लोटिंग बैरियर को हटाने की वचनबद्धता जताई है। उन्होंने फिलिपिनो मछुआरों के अधिकारों के उल्लंघन पर प्रकाश डालते हुए इसे "अवैध और अनुचित" कहा।
    • फिलीपींस का दावा है कि स्कारबोरो शोल उसके समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS) द्वारा परिभाषित विशेष आर्थिक क्षेत्र के अंतर्गत आता है, यह दावा वर्ष 2016 के मध्यस्थता निर्णय में बरकरार रखा गया था जिसे चीन ने खारिज़ कर दिया था।
    • यह विवाद संभावित एशियाई भू-राजनीतिक हॉटस्पॉट व दक्षिण चीन सागर में लंबे समय से चले आ रहे क्षेत्रीय तनाव को बढ़ाता है।
  • दक्षिण चीन सागर व पश्चिमी प्रशांत महासागर की एक शाखा, ब्रुनेई, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, ताइवान, थाईलैंड और वियतनाम से लगती है।
    • यह ताइवान जलडमरूमध्य के माध्यम से पूर्वी चीन सागर और लूजॉन जलडमरूमध्य के माध्यम से फिलीपींस सागर से जुड़ता है।
    • इसमें स्प्रैटली द्वीप समूह, पैरासेल द्वीप समूह, प्रतास द्वीप समूह, मैकल्सफील्ड बैंक और स्कारबोरो शोल शामिल हैं।     

और पढ़ें..: दक्षिण चीन सागर

महाराष्ट्र के क्षणभंगुर पौधे (Ephemerals) 

महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में, एक प्रकार के आकर्षक वनस्पति उगते हैं, जिनमें पौधों की ऐसी प्रजातियाँ, जिन्हें क्षणभंगुर पौधे कहा जाता है, में मानसून के मौसम के दौरान पुष्प खिलते हैं।

  • ये क्षणभंगुर पौधे दो रूपों में उगते हैं: वार्षिक और सदाबहार/बारहमासी
    • वार्षिक क्षणभंगुर पौधों में प्रति वर्ष नए पुष्प आते हैं, जो बीज बनने से पूर्व एक संक्षिप्त अवधि के लिये अपनी सुंदरता का प्रदर्शन करते हैं और फिर आगामी मानसून तक निष्क्रिय रहते हैं।
    • दूसरी ओर, सदाबहार पौधों की स्थाई उपस्थिति निरंतर बनी रहती है, जो प्रकंदों द्वारा जीवंत बने रहते हैं।
  • ग्राउंड ऑर्किड से लेकर लिली, जंगली रतालू और इंडियन स्क्विल जैसे क्षणभंगुर पादप स्थानीय परागणकों के लिये मकरंद एवं पराग स्रोतों के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, साथ ही आवश्यक मिट्टी और जल संवहन को भी संरक्षित करते हैं।

भारत से मानसून की वापसी में देरी

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून सामान्य तिथि से आठ दिन की देरी से वापस जाना शुरू हो गया है। वर्ष 2023 में मानसून की 13वीं बार देरी से वापसी हुई।

  • दक्षिण-पश्चिम की दलील आम तौर पर 1 जून तक केरल में शुरू होती है और 8 जुलाई तक पूरे देश को इसमें शामिल कर लिया जाता है।
    • यह 17 सितंबर के आसपास उत्तर पश्चिम भारत से वापस लौटना शुरू कर देता है और 15 अक्तूबर तक पूरी तरह से इसकी वापसी हो जाती है।
  • मानसून की वापसी में देरी से बारिश का मौसम दीर्घकालिक हो जाता है, जिसका कृषि उत्पादन पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर उत्तर पश्चिम भारत के लिये जहाँ रबी फसल उत्पादन के लिये मानसून की वर्षा महत्त्वपूर्ण है।

और पढ़ें: दक्षिण-पश्चिम मानसून


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