प्रिलिम्स फैक्ट्स (25 Jul, 2023)



भारत ऊर्जा सुरक्षा परिदृश्य 2047 वर्जन 3.0

नीति आयोग द्वारा भारत सरकार की विभिन्न हरित ऊर्जा नीतियों के एकीकृत प्रभाव का आकलन करने के लिये एक संशोधित भारत ऊर्जा सुरक्षा परिदृश्य (India Energy Security Scenarios- IESS) 2047 V 3.0 जारी किया गया। 

  • बेसलाइन को वर्ष 2020 में मानकीकृत किया गया है और इसकी वर्ष 2022 तक के लिये जाँच भी की गई है।
  • नीति आयोग ने भारत जलवायु ऊर्जा डैशबोर्ड (India Climate Energy Dashboard- ICED) 3.0 भी जारी किया। 

नोट: 

  • ICED सरकार द्वारा प्रकाशित स्रोतों के आधार पर ऊर्जा क्षेत्र, जलवायु और संबंधित आर्थिक डेटा के संबंध में रियल-टाइम डेटा हेतु देश का एक व्यापक प्लेटफॉर्म है।

IESS 2047 V3.0 की विशेषता और कार्यप्रणाली:  

  • व्यापक दायरा: यह हरित हाइड्रोजन मिशन, नवीकरणीय खरीद दायित्व, पीएम-कुसुम, अपतटीय पवन रणनीति जैसे वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों से संबंधित नीतियों पर विचार करते हुए देश में ऊर्जा की मांग और आपूर्ति का आकलन करता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव विश्लेषण: IESS 2047 का लक्ष्य वर्ष 2047 तक उत्सर्जन, लागत, भूमि और जल की आवश्यकताओं का विश्लेषण करते हुए भारत को एक धारणीय तथा शुद्ध-शून्य ऊर्जा भविष्य की ओर अग्रसर करना है।
  • ओपन-सोर्स और उपयोगकर्त्ता-अनुकूल: यह टूल ओपन-सोर्स, आसानी से डाउनलोड करने योग्य और उपयोगकर्त्ता-अनुकूल है, जो शोधकर्त्ताओं, थिंक टैंक तथा जनता तक पहुँच एवं जुड़ाव को प्रोत्साहित करता है।
  • IESS 2047 उपयोकर्त्ताओं को उद्योग, सेवाओं, कृषि, जनसंख्या, शहरीकरण और अंतिम-उपयोग आधार पर अनुकूलित अनुप्रयोगों के विकल्प विकसित करने में सहायता करता है।
  • बाहरी निर्भरता को कम करना: देश की ऊर्जा ज़रूरतों का विश्वसनीय अनुमान प्रदान करके IESS 2047 बाहरी एजेंसियों पर भारत की निर्भरता को कम करने में सहायता करता है।

भारत का पंचामृत लक्ष्य:  

  • वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट (GW) गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता हासिल करना। 
  • वर्ष 2030 तक भारत की 50% ऊर्जा आवश्यकता को नवीकरणीय ऊर्जा (RE) स्रोतों से पूरा करना।
  • वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था में कार्बन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से 45% कम करना।
  • वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन तक कम करना।
  • वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना। 

भारत के ऊर्जा परिवर्तन को आकार देने वाली पहल:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015) 

  1. यह एक पब्लिक लिमिटेड सरकारी कंपनी है।
  2. यह एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है। 

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2  
(c) 1 और 2 दोनों  
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (c) 

स्रोत: पी.आई.बी.


लुडविगिया पेरुवियाना से तमिलनाडु में हाथियों के आवास स्थान को खतरा

लुडविगिया पेरुवियाना (Ludwigia Peruviana) नामक एक आक्रामक खरपतवार तमिलनाडु के वलपराई में हाथियों के आवास स्थान और चरागाह क्षेत्रों के लिये खतरा उत्पन्न कर रहा है।

लुडविगिया पेरुवियाना: 

  • परिचय : 
    • लुडविगिया पेरुवियाना, जिसे प्रिमरोज़ विलो (Primrose Willow) के नाम से भी जाना जाता है, मूल रूप से मध्य और दक्षिण अमेरिका में पाया जाता है।
    • यह एक जलीय पौधा है जिसे संभवतः इसके आकर्षक हल्के पीले फूलों के कारण एक सजावटी प्रजाति के रूप में पेश किया गया था।
    • हालाँकि नए क्षेत्रों में इसके आगमन के परिणामस्वरूप यह एक आक्रामक खरपतवार बन गया है, जिससे विश्व के विभिन्न दलदली क्षेत्रों में पारिस्थितिक व्यवधान पैदा हो रहा है।

  • विशेषताएँ: 
    • लुडविगिया पेरुवियाना अपेक्षाकृत लंबा होता है, जिसकी ऊँचाई लगभग 12 फीट तक होती है।
    • एक जलीय पौधे के रूप में आर्द्रभूमि और जल निकायों में पनपता है।
    • यह कई अन्य हानिकारक खरपतवारों की तुलना में तीव्रता से बढ़ता है, साथ ही प्री-मानसून तापमान एवं मानसूनी बारिश इसके तीव्रता से बढ़ने और विस्तृत होने में सहायता करती है।
  • हाथियों तथा वन्य जीवन और जैवविविधता पर प्रभाव: 
    • लुडविगिया पेरुवियाना के कारण हाथियों के आवासों के लिये अत्यधिक खतरा उत्पन्न हो गया है, जिससे पौधों को भोजन के रूप में ग्रहण करने वाले हाथियों एवं अन्य जानवरों के लिये आवश्यक खाद्य स्रोतों का विकास बाधित हो गया है।
    • इस आक्रामक खरपतवार के फैलने से क्षेत्रों की समग्र जैवविविधता पर भी प्रभाव पड़ता है, जिससे देशी पौधों की प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं, साथ ही संभावित रूप से वन्यजीवों को अन्य क्षेत्रों में जाने के लिये मजबूर होना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप लोगों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष भी होता है।
  • रोकथाम में चुनौतियाँ: 
    • लुडविगिया पेरुवियाना को तमिलनाडु में 22 प्राथमिकता वाले आक्रामक पौधों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है जो रोकथाम और नियंत्रण उपायों की तात्कालिकता पर बल देता है।
    • लुडविगिया का उन्मूलन अन्य आक्रामक पौधों की तुलना में एक अनोखी चुनौती उत्पन्न करता है क्योंकि यह दलदली भूमि पर उगता है तथा मशीनों के उपयोग को सीमित कर देता है।
    • इसे हाथों से हटाना मुश्किल है क्योंकि पौधा आसानी से टूट जाता है और जड़ या टूटे हुए तने से नया पौधा उग सकता है।
    • पौधों की जड़ों को हाथ से खींचना और खोदना प्रभावी हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 25 जुलाई, 2023

मेरी माटी मेरा देश अभियान  

भारत सरकार ने आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के जश्न 'आजादी का अमृत महोत्सव' के हिस्से के रूप में 'मेरी माटी मेरा देश' अभियान शुरू किया है।  

  • देश के विभिन्न हिस्सों से एकत्र की गई मिट्टी का उपयोग दिल्ली में कर्तव्य पथ के किनारे अमृत वाटिका उद्यान को विकसित करने के लिये किया जाएगा।
  • पंचायत और गाँव से लेकर राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न स्तरों पर कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है।
  • सर्वोच्च बलिदान देने वाले बहादुरों के नाम के साथ शिलाफलकम (स्मारक पट्टिका) स्थापित की जाएगी। 
  • नागरिकों द्वारा देश के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाते प्रतिज्ञा ली जाएगी।
  • 'वसुधा वनधन' के अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत या गाँव में देशी प्रजातियों के 75 पौधे लगाए जाएंगे।
  • स्वतंत्रता सेनानियों और मृत स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को सम्मानित करने के लिये 'वीरों का वंदन' का आयोजन किया जाएगा।

और पढ़ें… आजादी का अमृत महोत्सव

 भारत के असंगठित क्षेत्र के श्रमिक

हाल ही में केंद्रीय श्रम और रोज़गार राज्य मंत्री ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में भारत के असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिये विभिन्न योजनाओं का उल्लेख किया है।

और पढ़ें…कोविड-19 महामारी, आत्मनिर्भर भारत

फ्लोरोमिक्स (Fluoromix )

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने फ्लोरीन परमाणु प्राप्त करने के लिये एक सुरक्षित और कम ऊर्जा-गहन विधि विकसित की है।

  • फ्लोरीन को कैल्शियम नमक से प्राप्त किया जाता है जिसे कैल्शियम फ्लोराइड या फ्लोरस्पार कहा जाता है। फ्लोरस्पार का खनन किया जाता है, तत्पश्चात् हाइड्रोजन फ्लोराइड जारी करने के लिये उच्च तापमान पर सल्फ्यूरिक एसिड से उपचारित किया जाता है।
  • फ्लोरीन एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील तत्त्व है, इसका उपयोग फ्लोरोकेमिकल्स बनाने के लिये किया जाता है, जिसे प्लास्टिक, एग्रोकेमिकल्स, लिथियम-आयन बैटरी के साथ दवाओं के उत्पादन के लिये उपयोग किया जाता है।
  • हड्डियों तथा दांँतों में पाए जाने वाले प्राकृतिक कैल्शियम फॉस्फेट बायोमिनरलाइज़ेशन प्रक्रिया से प्रेरणा लेकर शोधकर्ताओं ने ज़हरीले एवं संक्षारक हाइड्रोजन फ्लोराइड के उपयोग से बचते हुए फ्लोरस्पार को पोटेशियम फॉस्फेट के साथ मिलाकर फ्लोरोमिक्स नामक एक यौगिक बनाया।
  • फ्लोरोमिक्स अत्यधिक प्रभावी सिद्ध हुआ, कार्बनिक यौगिकों के साथ संयुक्त होने पर 98% तक दक्षता के साथ लगभग 50 अलग-अलग फ्लोरोकेमिकल्स का उत्पादन हुआ, जो फ्लोरोकेमिकल्स पर निर्भर उद्योगों के लिये महत्त्वपूर्ण संकेत प्रस्तुत करता है।

सिल्वर कॉक्सकॉम्ब 

सिल्वर कॉक्सकॉम्ब, जिसे लागोस स्पिनच (Lagos Spinach) के नाम से भी जाना जाता है, एक व्यवधान कारक खरपतवार है जो तेज़ी से फैलने के साथ ही अन्य फसलों के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती है।

  • हालाँकि कर्नाटक के चामराजनगर ज़िले में सोलिगा जनजाति इसे एक पौष्टिक पत्तेदार हरी सब्जी मानती है, जो इसे मस्सैन और उल्लसप्पु सांभर जैसे पारंपरिक व्यंजनों में उपयोग करती है।
  • वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि सिल्वर कॉक्सकॉम्ब में लाभकारी गुण होते हैं, जिनमें जीवाणुरोधी गतिविधि, उच्च पोषक तत्त्व सामग्री (विटामिन ई, कैल्शियम और आयरन) तथा ऑक्सालिक एसिड एवं फाइटिक एसिड जैसे हानिकारक पदार्थ निम्न मात्रा में शामिल हैं।
  • दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका एवं अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में प्रचलित इस खरपतवार का उपयोग विश्व के समुदायों द्वारा औषधीय प्रयोजनों , जंगली सब्जी व चारे के रूप में किया जाता है।
    • पारंपरिक ज्ञान का प्रलेखन और अन्वेषण करके, सिल्वर कॉक्सकॉम्ब को संभावित रूप से एक मूल्यवान सुपरफूड के रूप में पहचाना जा सकता है।

और पढ़ें…  सोलिगा जनजाति