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आर्थिक सर्वेक्षण

भारतीय अर्थव्यवस्था

आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22

  • 01 Mar 2022
  • 22 min read

महामारी के लिये भारत की प्रतिक्रिया

  • बारबेल रणनीति, सुरक्षा जाल और त्वरित रूपरेखा: महामारी के लिये भारत की प्रतिक्रिया अद्वितीय रही है और इसमें "बारबेल रणनीति, सुरक्षा जाल और फुर्तीली रूपरेखा" शामिल है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 का केंद्रीय विषय "त्वरित दृष्टिकोण" है।

अर्थव्यवस्था की स्थिति

  • 2020-21 में 7.3% के संकुचन के बाद, भारतीय अर्थव्यवस्था के 2021-22 में वास्तविक रूप से 9.2% बढ़ने की उम्मीद है
  • 2022-23 में जीडीपी के वास्तविक रूप से 8-8.5% बढ़ने की उम्मीद है।
  • 2022-23 में, बड़े विदेशी मुद्रा भंडार, निरंतर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और बढ़ते निर्यात राजस्व का एक संयोजन संभावित वैश्विक तरलता निकासी के खिलाफ एक मज़बूती प्रदान करेगा।
  • "दूसरी लहर" का आर्थिक प्रभाव 2020-21 में पूर्ण लॉकडाउन की तुलना में काफी कम था, लेकिन स्वास्थ्य परिणाम कहीं अधिक गंभीर थे।
  • भारत सरकार की अनूठी प्रतिक्रिया में समाज के कमज़ोर क्षेत्रों और व्यापार क्षेत्र पर प्रभाव को कम करने के लिये सुरक्षा-जाल, विकास को बढ़ावा देने के लिये पूंजी निवेश में एक बड़ी वृद्धि और दीर्घकालिक विस्तार सुनिश्चित करने के लिये आपूर्ति-पक्ष सुधार शामिल थे।

राजकोषीय विकास

  • सतत राजस्व संग्रह और एक लक्षित व्यय नीति ने अप्रैल से नवंबर, 2021 के लिये बजट अनुमानों के 46.2% पर राजकोषीय घाटे(Fiscal Deficit) को नियंत्रित किया है।
  • सकल कर राजस्व में अप्रैल से नवंबर, 2021 के दौरान वर्ष दर वर्ष के हिसाब से 50% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई।
    • यह प्रदर्शन 2019-2020 के पूर्व-महामारी स्तरों की तुलना में भी मज़बूत है।
  • अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान, बुनियादी ढाँचा गहन क्षेत्रों पर ध्यान देने के साथ कैपेक्स (पूंजीगत व्यय) में 13.5% (YoY) की वृद्धि हुई है।
  • कोविड-19 के कारण बढ़ी हुई उधारी के साथ, केंद्र सरकार का ऋण 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद के 49.1% से बढ़कर 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद का 59.3% हो गया है। लेकिन उम्मीद की जा रही है कि अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ गिरावट के रास्ते पर चलना होगा।
  • पूंजीगत व्यय पर ध्यान जारी रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए, इसने संकेत दिया है कि सरकार चालू वर्ष (2021-22) के लिये सकल घरेलू उत्पाद के 6.8% के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को प्राप्त करने के रास्ते पर है।

बाह्य क्षेत्र

  • नवंबर 2021 के अंत तक चीन, जापान और स्विटज़रलैंड के बाद, भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा(Foreign Exchange) रिज़र्व होल्डिंग था।
  • निराशाजनक पर्यटन आय के बावजूद, निवल सेवाओं(Net Services) में बड़ी वृद्धि हुई, जिसमें प्राप्तिँऔर भुगतान दोनों ही महामारी से पहले के स्तर से अधिक थे।
  • चालू वित्त वर्ष के दौरान, भारत के व्यापारिक निर्यात और आयात में तेजी से उछाल आया, जो पूर्व-कोविड स्तरों को पार कर गया।
  • 2021-22 की पहली छमाही में शुद्ध पूंजी प्रवाह बढ़कर 65.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो चल रहे विदेशी निवेश प्रवाह, शुद्ध बाहरी वाणिज्यिक उधार में पुनरुत्थान, बैंकिंग पूंजी में वृद्धि और अतिरिक्त विशेष आहरण अधिकार (SDR) आवंटन के कारण हुआ।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के बढ़ते विशेष आहरण अधिकार (SDR) आवंटन और अधिक वाणिज्यिक उधारी के परिणामस्वरूप सितंबर 2021 के अंत में भारत का बाह्य ऋण बढ़कर 593.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो 2020-21 में 556.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।

मौद्रिक प्रबंधन और वित्तीय मध्यस्थता

  • भारतीय बाज़ारों ने अप्रैल से दिसंबर 2021 तक प्रमुख विकासशील बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में समकक्षों से बेहतर प्रदर्शन किया। सिस्टम की तरलता अधिशेष में रही।
  • 2021-22 में रेपो रेट को 4% पर बनाए रखा गया था।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने चलनिधि प्रदान करने के लिये सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम और विशेष दीर्घकालिक रेपो संचालन जैसे विभिन्न उपाय किये।
  • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का कुल अनुत्पादक अग्रिम अनुपात 2017-18 के अंत के 11.2 प्रतिशत से घटकर सितंबर, 2021 के अंत में 6.9 प्रतिशत हो गया।
  • मूल्य तथा मुद्रास्फीतिः
    • औसत शीर्ष सीपीआई-संयुक्त मुद्रास्फीति 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में सुधरकर 5.2 प्रतिशत हुई, जबकि 2020-21 की इसी अवधि में यह 6.6 प्रतिशत थी।
    • खुदरा स्फीति में गिरावट खाद्य मुद्रास्फीति में सुधार के कारण आई। 2021-22 (अप्रैल से दिसंबर) में औसत खाद्य मुद्रास्फीति 2.9 प्रतिशत के निम्न स्तर पर रही, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 9.1 प्रतिशत थी।
    • वर्ष के दौरान प्रभावी आपूर्ति प्रबंधन ने अधिकतर आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित रखा। दालों और खाद्य तेलों में मूल्य वृद्धि नियंत्रित करने के लिये सक्रिय कदम उठाए गए।
    • सैंट्रल एक्साइज़ में कमी तथा बाद में अधिकतर राज्यों द्वारा मूल्यवर्द्धित कर में कटौती से पेट्रोल तथा डीज़ल की कीमतों में सुधार लाने में मदद मिली।
    • थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित थोक मुद्रास्फीति 2021-22 (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान 12.5 प्रतिशत बढ़ी।
    • ऐसा निम्नलिखित कारणों से हुआः
      • पिछले वर्ष में निम्न आधार
      • आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी
      • कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में भारी वृद्धि तथा अन्य आयातित वस्तुओं और
      • उच्च माल ढुलाई लागत
    • सीपीआई-सी तथा डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति के बीच अंतर: मई, 2020 में यह अंतर शीर्ष पर 9.6 प्रतिशत  रहा। लेकिन इस वर्ष खुदरा मुद्रास्फीति के दिसंबर, 2021 की थोक मुद्रास्फीति के 8.0 प्रतिशत के नीचे आने से इस अंतर में उलटफेर हुआ।
    • इस अंतर की व्याख्या निम्नलिखित कारकों द्वारा की जा सकती हैः
      • बेस प्रभाव के कारण अंतर
      • दो सूचकांकों के स्कोप तथा कवरेज में अंतर
      • मूल्य संग्रह
      • कवर की गई वस्तुएँ
      • वस्तु भारों में अंतर तथा
      • आयातित कच्चे माल की कीमत ज़्यादा होने के कारण डब्ल्यूपीआई आधारित मुद्रास्फीति संवेदी हो जाती है।
    • डब्ल्यूपीआई में बेस प्रभाव की क्रमिक समाप्ति से सीपीआई-सी तथा डब्ल्यूपीआई में अंतर कम होने की आशा की जाती है।
  • सतत् विकास तथ जलवायु परिवर्तन:
    • नीति आयोग के एसडीजी इंडिया इंडेक्स तथा डैशबोर्ड पर भारत का समग्र स्कोर 2020-21 में सुधरकर 66 हो गया, जबकि यह 2019-20 में 60 तथा 2018-19 में 57 था।
    • फ्रंट रनर्स (65-99 स्कोर) की संख्या 2020-21 में 22 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में बढ़ी, जो 2019-20 में 10 थी।
    • नीति आयोग पूर्वोत्तर क्षेत्र ज़िला एसडीजी सूचकांक 2021-22 में पूर्वोत्तर भारत में 64 ज़िले फ्रंट रनर्स तथा 39 ज़िले परफॉर्मर रहे।
    • भारत, विश्व में दसवाँ सबसे बड़ा वन क्षेत्र वाला देश है।
    • वर्ष 2010 से 2020 के दौरान वन क्षेत्र वृद्धि के मामले में 2020 में भारत का विश्व में तीसरा स्थान रहा।
    • अगस्त, 2021 में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2021 अधिसूचित किये गए, जिनका उद्देश्य 2022 तक सिंगल यूज़ प्लास्टिक को समाप्त करना है।
    • प्लास्टिक पैकेजिंग के लिये विस्तारित उत्पादक दायित्व पर प्रारूप विनियमन अधिसूचित किया गया।
    • गंगा तथा उसकी सहायक नदियों के तटों पर अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों (जीपीआई) की अनुपालन स्थिति 2017 में 39 प्रतिशत से सुधर कर 2020 में 81 प्रतिशत हो गई।
    • उत्सर्जित अपशिष्ट में वर्ष 2017 के दैनिक रूप से 349.13 मिलियन लीटर से वर्ष 2020 में 280.20 मिलियन लीटर की कमी आई।
    • प्रधानमंत्री ने नवंबर, 2021 में ग्लास्गो में आयोजित COP-26 के राष्ट्रीय वक्तव्य के हिस्से के रूप में उत्सर्जन में कमी लाने के लिये वर्ष 2030 तक प्राप्त किये जाने वाले महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों की घोषणा की।
    • एक शब्द ‘LIFE’ (पर्यावरण के लिये जीवनशैली) प्रारंभ करने की आवश्यकता महसूस करते हुए बिना सोचे-समझे तथा विनाशकारी खपत के बदले सोचपूर्ण तथा जान-बूझकर उपयोग करने का आग्रह किया गया है।

कृषि तथा खाद्य प्रबंधनः

  • पिछले दो वर्षों में कृषि क्षेत्र में विकास देखा गया। देश के कुल मूल्यवर्द्धन में 18.8 प्रतिशत (2021-22) की महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई, इस तरह वर्ष 2020-21 में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और वर्ष 2021-22 में 3.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नीति का उपयोग फसल विविधिकरण को प्रोत्साहित करने के लिये किया जा रहा है।
  • वर्ष 2014 की ‘एसएएस रिपोर्ट’ की तुलना में नवीनतम ‘सिचुएशन असेसमेंट सर्वे’ (एसएएस) में फसल उत्पादन से शुद्ध प्राप्तियों में 22.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
  • पशुपालन, डेयरी तथा मछली पालन सहित संबंधित क्षेत्र तेज़ी से उच्च वृद्धि वाले क्षेत्र के रूप में तथा कृषि क्षेत्र में संपूर्ण वृद्धि के प्रमुख प्रेरक के रूप में उभर रहे हैं।
  • वर्ष 2019-20 में समाप्त होने वाले पिछले पाँच वर्षों में पशुधन क्षेत्र 8.15 प्रतिशत के सीएजीआर पर बढ़ा रहा।
  • सरकार सूक्ष्म खाद्य उद्यमों को औपचारिक रूप देने के लिये समर्थन और बुनियादी ढाँचे के विकास, रियायती परिवहन जैसे विभिन्न उपायों के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण को सहायता प्रदान करती है।
  • सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKY) जैसी योजनाओं के माध्यम से खाद्य सुरक्षा नेटवर्क कवरेज का और अधिक विस्तार किया है।

उद्योग और बुनियादी ढाँचा:

  • अप्रैल-नवंबर, 2021 के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) बढ़कर 17.4 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष) हो गया है, जो अप्रैल-नवंबर, 2020 में (-)15.3 प्रतिशत था।
  • भारतीय रेलवे के लिये पूंजीगत व्यय वर्ष 2009-2014 के दौरान 45,980 करोड़ रुपए के वार्षिक औसत से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 155,181 करोड़ रुपए हो गया और वर्ष 2021-22 में इसे 215,058 करोड़ रुपए तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है, इस प्रकार इसमें वर्ष 2014 के स्तर की तुलना में पाँच गुना बढ़ोतरी हुई है।
  • वर्ष 2020-21 में सड़क निर्माण की सीमा को बढ़ाकर 36.5 किलोमीटर प्रतिदिन कर दिया गया है जो  वर्ष 2019-20 में 28 किलोमीटर प्रतिदिन थी, इस प्रकार इसमें 30.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई है।
  • बड़े कॉरपोरेट के बिक्री अनुपात से निवल लाभ वर्ष 2021-22 की जुलाई-सितंबर तिमाही में महामारी के बावजूद 10.6 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुँच गया है। (आरबीआई अध्ययन )
  • उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना के शुभारंभ से लेन-देन लागत घटाने और व्यापार को आसान बनाने के कार्य में सुधार लाने के उपायों के साथ-साथ डिजिटल और वस्तुगत दोनों बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा मिला है, जिससे रिकवरी की गति में मदद मिलेगी।  

सेवा

  • जीवीए (GVA) की सेवाओं ने वर्ष 2021-22 की जुलाई-सितंबर तिमाही में पूर्व-महामारी स्तर को पार कर लिया है। 
  • व्यापार, परिवहन आदि जैसे कॉन्टेक्ट इंटेन्सिव सेक्टरों का GVA अभी भी पूर्व-महामारी स्तर से नीचे बना हुआ है।
  • समग्र सेवा क्षेत्र जीवीए में 2021-22 में 8.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।
  • वर्ष 2021-22 की पहली छमाही के दौरान सेवा क्षेत्र ने 16.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्राप्त किया जो भारत में कुल एफडीआई प्रवाह का लगभग 54 प्रतिशत है।
  • प्रमुख सरकारी सुधारों में आईटी-बीपीओ (IT-BPO) क्षेत्र में टेलिकॉम विनियमों को हटाना और निजी क्षेत्र के दिग्गजों के लिये अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलना शामिल है।
  • सेवा निर्यात ने वर्ष 2020-21 की जनवरी-मार्च तिमाही में पूर्व-महामारी स्तर को पार कर लिया और इसमें वर्ष 2021-22 की पहली छमाही में 21.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सॉफ्टवेयर व आईटी सेवा निर्यात के लिये वैश्विक मांग से इसमें मज़बूती आई है।
  • भारत अब अमेरिका और चीन के बाद विश्व में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप्स इकोसिस्टम बन गया है। नए मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप् की संख्या वर्ष 2021-22 में बढ़कर 14 हज़ार से अधिक हो गई है जो वर्ष 2016-17 में केवल 735 थी।
  • 44 भारतीय स्टार्ट-अप्स ने 2021 में यूनिकॉर्न दर्जा हासिल किया, इससे यूनिकॉर्न स्टार्ट-अप्स की कुल संख्या 83 हो गई है और इनमें से अधिकांश सेवा क्षेत्र में हैं।

सामजिक अवसंरचना और रोज़गार

  • अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान से रोज़गार सूचकांक वर्ष 2020-21 की अंतिम तिमाही के दौरान वापस पूर्व-महामारी स्तर पर आ गए हैं।
  • मार्च, 2021 तक प्राप्त तिमाही आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (PFLS) आँकड़ों के अनुसार, महामारी के कारण प्रभावित शहरी क्षेत्र में रोज़गार लगभग पूर्व महामारी स्तर तक वापस आ गए हैं।
  • कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के आँकड़ों के अनुसार, दूसरी कोविड-19 लहर के दौरान रोज़गारों का औपचारीकरण जारी रहा। कोविड-19 की पहली लहर की तुलना में रोज़गारों के औपचारीकरण पर कोविड का प्रतिकूल प्रभाव कम रहा है।
  • सामाजिक अवसंरचना:
    • सामाजिक सेवाओं (स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य) पर जीडीपी के अनुपात के रूप में केंद्र और राज्यों का व्यय जो वर्ष 2014-15 में 6.2 प्रतिशत था, वर्ष 2021-22 (बजट अनुमान) में बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गया।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार:
    • कुल प्रजनन दर (TFR) वर्ष 2019-21 में घटकर 2 हो गई, जो वर्ष 2015-16 में 2.2 थी।
    • शिशु मृत्यु दर (IMR), पाँच वर्ष से कम आयु के शिशुओं की मृत्यु दर में कमी आई है और अस्पतालों/प्रसव केंद्रों में शिशुओं के जन्म में वर्ष 2015-16 की तुलना में वर्ष 2019-21 में सुधार हुआ है।
  • जल जीवन मिशन के तहत 83 ज़िले ‘हर घर जल’, प्रदान करने वाले ज़िले बन गए हैं।
  • महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में असंगठित श्रम के लिये बफर उपलब्ध कराने हेतु महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MNREGS) के लिये निधियों का अधिक आवंटन।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अलावा केंद्रीय बजट वर्ष 2021-22 में आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन, प्राथमिक, माध्यमिक एवं तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों की क्षमता विकसित करने, मौजूदा राष्ट्रीय संस्थानों को मज़बूत करने और ज़रूरतों को पूरा करने तथा उभरती बीमारियों का पता लगाने व उनका इलाज़ करने के लिये नए संस्थान बनाने हेतु एक नई केंद्र प्रायोजित योजना की घोषणा की गई है।
  • भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जो कोविड-19 के टीके तैयार कर रहे हैं। देश ने भारत में बने दो कोविड-19 टीकों के साथ शुरुआत की। आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप भारत की पहली घरेलू कोविड-19 वैक्सीन (COVAXIN), भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड द्वारा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के सहयोग से विकसित और निर्मित की गई थी। 
  • टीकाकरण की प्रगति को न केवल स्वास्थ्य प्रतिक्रिया संकेतक के रूप में देखा जाना चाहिये, बल्कि बार-बार महामारी की लहर के कारण होने वाले आर्थिक व्यवधानों के खिलाफ एक बफर के रूप में भी देखा जाना चाहिये।

क्षेत्र सुधार

  •  मांग प्रबंधन पर भरोसा करने के बजाय, भारत आपूर्ति पक्ष में सुधारों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जैसे:
    • कई क्षेत्रों का विनियमन
    • प्रक्रियाओं का सरलीकरण
    • 'पूर्वव्यापी कर' जैसे पुराने मुद्दों को हटाना
    • निजीकरण
  • विभिन्न क्षेत्रों में कुछ प्रमुख सुधार इस प्रकार हैं:
    • 2021-22 से 2024-25 तक चार साल की अवधि में, केंद्र सरकार की प्रमुख संपत्ति में कुल मुद्रीकरण क्षमता  6 लाख करोड़ रुपये है।
    • दूरसंचार उद्योग में स्वचालित मार्ग से 100% एफडीआई की अनुमति है।
    • ऑटोमोबाइल, टेलीकॉम और फार्मास्यूटिकल्स ड्रग्स सहित 13 क्षेत्रों के लिये प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजनाओं की स्थापना।
    • पारंपरिक उपग्रह संचार और रिमोट सेंसिंग उद्योगों को उदार बनाकर निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना।
    • स्वचालित मार्ग से रक्षा क्षेत्र में FDI में 74% की वृद्धि हुई, जबकि सरकारी मार्ग से इसमें 100% की वृद्धि हुई।
    • जमा बीमा प्रति बैंक प्रति जमाकर्ता 1 लाख रुपये से 5 लाख रुपये तक बढ़ाया गया है।
    • एमएसएमई की संशोधित परिभाषा।
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