प्रिलिम्स फैक्ट्स (22 Oct, 2021)



प्रिलिम्स फैक्ट्स: 22 अक्तूबर, 2021

हॉर्नबिल और ट्रॉपिकल वन

Save Hornbills, Save Tropical Forests

हाल ही में दो वैज्ञानिक संगठनों के शोधकर्त्ताओं द्वारा इस विषय पर अध्ययन किया गया कि अरुणाचल प्रदेश के ‘नामदफा टाइगर रिज़र्व’ में मौजूद पौधों और हॉर्नबिल ने एक-दूसरे के वितरण को किस प्रकार प्रभावित किया।

  • यह अध्ययन इस तर्क को मज़बूत करता है कि ‘हॉर्नबिल’ जंगल के ‘बागवान या किसान’ हैं और वे अपने बीज प्रकीर्णन के माध्यम से अपने स्वयं के लिये खेती करते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • अध्ययन के विषय में
    • उष्णकटिबंधीय वनों के साथ हॉर्नबिल का सहजीवी संबंध होता है। लंबी अवधि में, यह सहजीवी संबंध संभवतः ऐसे बागों का निर्माण करता है, जो हॉर्नबिल को आकर्षित करता है।
    • अध्ययन से पता चलता है कि कैनरियम जैसे दुर्लभ वृक्ष वाले वन बड़ी संख्या में हॉर्नबिल को आकर्षित करते हैं। वहीं परिणामस्वरूप हॉर्नबिल इन वन क्षेत्रों में अधिक संख्या में पौधों की प्रजातियों की एक विविध सरणी के बीजों का प्रकीर्णन करते हैं।
  • हॉर्नबिल 
    • परिचय: हॉर्नबिल (बुसेरोटिडे परिवार) उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय अफ्रीका और एशिया में पाए जाने वाले पक्षियों का एक परिवार है।
    • भारत में: भारत में हॉर्नबिल की नौ प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
      • पूर्वोत्तर क्षेत्र में भारत के भीतर हॉर्नबिल प्रजातियों की विविधता सबसे अधिक है।
      • वे पूर्वोत्तर में कुछ जातीय समुदायों के विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश के ‘न्याशी’ समुदाय का सांस्कृतिक प्रतीक हैं।
      • नगालैंड में मनाए जाने वाले ‘हॉर्नबिल उत्सव’ का नाम ‘हॉर्नबिल’ पक्षी के नाम पर रखा गया है। यह नगाओं के लिये सबसे सम्मानित और प्रशंसित पक्षी है।
    • खतरें
      • हॉर्नबिल का शिकार उनके ‘कास्क’ (ऊपरी चोंच) और उनके पंखों के लिये किया जाता है। उनके माँस और उनके शरीर के अंगों के औषधीय महत्त्व के चलते भी उनका अवैध शिकार किया जाता है।
        • असली ‘हॉर्नबिल कास्क’ के बजाय हेडगियर के लिये फाइबर-ग्लास चोंच के उपयोग को बढ़ावा देने वाले एक संरक्षण कार्यक्रम ने इस खतरे को कम करने में मदद की है।
      • ऐसे वृक्षों, जहाँ हॉर्नबिल पक्षी घोंसला बनाते हैं, की अवैध कटाई से उनके प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं।

भारत में हॉर्नबिल की 9 प्रजातियाँ

द ग्रेट हॉर्नबिल

Great-Hornbil

  • आवास: पश्चिमी घाट और हिमालय। यह भारत में पाई जाने वाली हॉर्नबिल की सभी प्रजातियों में सबसे बड़ा है तथा अरुणाचल प्रदेश व केरल का राजकीय पक्षी भी है। 
  • IUCN रेडलिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable)
  • CITES: परिशिष्ट I
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972: अनुसूची I

रफस-नेक्ड हॉर्नबिल

  • आवास: यह भारत की सबसे उत्तरी सीमा तक पाया जाता है। संपूर्ण उत्तर-पूर्वी भारत से लेकर पश्चिम बंगाल में महानंदा वन्यजीव अभयारण्य तक ये पाए जाते हैं।
  • IUCN रेड लिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable) 
  • CITES: परिशिष्ट I

रेथ्ड हॉर्नबिल

आवास: उत्तर-पूर्वी भारत.

IUCN रेड लिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable) 

CITES: परिशिष्ट II

नारकोंडम हॉर्नबिल

Narkondam

  • आवास: अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के नारकोंडम द्वीप के स्थानिक
  • IUCN रेड लिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable)
  • CITES: परिशिष्ट II
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972: अनुसूची I

मालाबार पाइड हॉर्नबिल

Malabar-Pide

आवास: भारत और श्रीलंका में सदाबहार और नम पर्णपाती वन। 

  • IUCN रेड लिस्ट: संकट-निकट (Near Threatened) 
  • CITES: परिशिष्ट II

ओरिएंटल पाइड हॉर्नबिल

  • आवास: उपोष्णकटिबंधीय या उष्णकटिबंधीय नम तराई वन।
  • IUCN रेड लिस्ट: कम चिंतनीय (Least Concern)
  • CITES: परिशिष्ट II

ऑस्टेंस ब्राउन हॉर्नबिल

Ostance-Brown

  • आवास: उत्तर पूर्व भारत के वन, मुख्य रूप से नामदफा राष्ट्रीय उद्यान, अरुणाचल प्रदेश में।
  • IUCN रेड लिस्ट: संकट-निकट (Near Threatened)
  • CITES: N/A

मालाबार ग्रे हॉर्नबिल

  • आवास: पश्चिमी घात
  • IUCN रेडलिस्ट: कम चिंतनीय 
  • CITES: N/A

इंडियन ग्रे हॉर्नबिल

आवास: दक्षिणी हिमालय की तलहटी

  • IUCN रेड लिस्ट: कम चिंतनीय (Least Concern)
  • CITES: N/A

नामदफा राष्ट्रीय उद्यान

  • पृष्ठभूमि: इसे वर्ष 1983 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। उसी वर्ष, इसे टाइगर रिज़र्व भी घोषित किया गया था।
  • भौगोलिक अवस्थिति:
    • यह अरुणाचल प्रदेश राज्य में भारत और म्याँमार के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित है।
    • नामदफा दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में पटकाई पहाड़ियों से और उत्तर में हिमालय से घिरा हुआ है।
    • नामदफा वास्तव में इस उद्यान से निकलने वाली एक नदी का नाम है और यह नोआ-देहिंग नदी से मिलती है। नोआ-देहिंग नदी, ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी है और राष्ट्रीय उद्यान के मध्य में उत्तर-दक्षिण दिशा में बहती है।
  • जलवायु: यहाँ की जलवायु उपोष्णकटिबंधीय है। पहाड़ी भाग में पर्वतीय प्रकार की जलवायु होती है जबकि निचले मैदानों और घाटियों में उष्णकटिबंधीय जलवायु पाई जाती है।
  • वनस्पति: उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन (उष्णकटिबंधीय वर्षा वन)।
  • जीव जगत: 
    • यह विश्व का एकमात्र पार्क है जिसमें बड़ी बिल्ली की चार प्रजातियाँ- बाघ, तेंदुआ, हिम तेंदुआ और क्लाउडेड लेपर्ड, पाई जाती हैं।
    • प्राइमेट की भी कई प्रजातियाँ यहाँ पाई जाती हैं जैसे- असम मकाक, पिग टेल्ड मकाक, स्टंप टेल्ड मकाक आदि।
    • भारत में पाई जाने वाली एकमात्र 'लंगूर' प्रजाति हूलॉक गिबन भी इस राष्ट्रीय उद्यान में पाई जाती है।
    • यहाँ पाए जाने वाले अन्य महत्त्वपूर्ण जानवरों में हाथी, काला भालू, भारतीय बाइसन और विभिन्न प्रकार के जंगली जानवर शामिल हैं।
    • सफेद पंखों वाली वुड डक यहाँ पाई जाने वाली पक्षी प्रजातियों में, सबसे उल्लेखनीय है क्योंकि यह एक दुर्लभ एवं लुप्तप्राय प्रजाति है। यहाँ ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल सहित हॉर्नबिल की 9 में से 5 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

Arunachal-Pradesh


देबरीगढ़ वन्यजीव अभयारण्य: ओडिशा

Debrigarh Wildlife Sanctuary: Odisha

हाल ही में ओडिशा सरकार ने देबरीगढ़ वन्यजीव अभयारण्य (Debrigarh Wildlife Sanctuary) में चार शून्य-कनेक्टिविटी गाँवों से लगभग 420 परिवारों को स्थानांतरित करने का निर्णय लिया है।

  • पुनर्वास का उद्देश्य मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना और विस्थापित परिवारों को बेहतर रहने की स्थिति प्रदान करना है।

प्रमुख बिंदु

  • अवस्थिति:
    • यह ओडिशा के बरगढ़ ज़िले में हीराकुंड बांध (महानदी नदी) के निकट स्थित है और 346.91 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है।
    • यह पूर्व और उत्तर में विशाल हीराकुंड जलाशय से घिरा है।
    • 8 फरवरी, 1985 को इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था।
    • यह ओडिशा राज्य में वन्यजीवों और इनके आवास के स्वस्थाने (इन-सीटू) संरक्षण के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्थल है।
  • जैवविविधता:
    • वनस्पति:
      • शुष्क पर्णपाती वन
    • जीव-जगत:
      • चार सींग वाला मृग, भारतीय तेंदुआ, भारतीय हाथी, सांभर, चीतल, गौर आदि।
  • ओडिशा में प्रमुख संरक्षित क्षेत्र:

Odisha


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 22 अक्तूबर, 2021

पुलिस स्मृति दिवस

भारत में प्रत्येक वर्ष 21 अक्तूबर को ‘पुलिस स्मृति दिवस’ उन पुलिसकर्मियों को याद करने और उनका सम्मान करने के लिये मनाया जाता है, जिन्होंने अपने दायित्त्वों का निर्वाह करते हुए अपना जीवन दांव पर लगा दिया। साथ ही यह दिवस आम जनमानस को पुलिसकर्मियों के समक्ष मौजूद चुनौतियों को जानने और उनके साहस तथा कठिन परिश्रम का सम्मान करने का भी अवसर प्रदान करता है। ध्यातव्य है कि यह दिवस वर्ष 1959 में हुई एक घटना की स्मृति में मनाया जाता है, जब लद्दाख में चीन की सेना द्वारा किये गए हमले में 10 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई थी। तभी से प्रत्येक वर्ष 21 अक्तूबर को शहीद पुलिसकर्मियों के सम्मान में पुलिस स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2018 में पुलिस स्मृति दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में भारत के पहले राष्ट्रीय पुलिस स्मारक का उद्घाटन किया था। दिल्ली स्थित इस राष्ट्रीय पुलिस स्मारक में सभी केंद्रीय और राज्य पुलिस बलों के 34,844 पुलिसकर्मियों को याद किया गया है, जिन्होंने वर्ष 1947 के बाद से अब तक ड्यूटी पर रहते हुए अपनी जान गंवाई है। वर्ष 2016 के आँकड़ों की मानें तो देश में स्वीकृत पुलिस बल अनुपात प्रति लाख व्यक्तियों पर 181 पुलिसकर्मी था, जबकि वास्तविक संख्या मात्र 137 थी। ज्ञात हो कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रति लाख व्यक्तियों पर 222 पुलिस के अनुशंसित मानक की तुलना में यह बहुत कम है।

विश्व आयोडीन अल्पता दिवस

प्रत्येक वर्ष 21 अक्तूबर को दुनिया भर में ‘विश्व आयोडीन अल्पता दिवस’ का आयोजन किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (WHO) 1980 के दशक से राष्ट्रीय नमक आयोडीनीकरण’ कार्यक्रम के माध्यम से आयोडीन की कमी के प्रभावों को रेखांकित करने हेतु काम कर रहा है। यूनिसेफ ने ‘इंटरनेशनल काउंसिल फॉर कंट्रोल ऑफ आयोडीन डिफिशिएंसी डिसऑर्डर’ (ICCIDC) के साथ मिलकर कई अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों की रणनीति बनाई है और यह 66 प्रतिशत घरों में आयोडीन युक्त नमक उपलब्ध कराने में सक्षम रहा है। आयोडीन एक खनिज पदार्थ है जो आमतौर पर समुद्री भोजन, डेयरी उत्पादों, अनाज और अंडे में पाया जाता है। दुनिया भर में आयोडीन की कमी एक गंभीर समस्या है। वैश्विक स्तर पर 2 बिलियन लोग आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों के खतरे में हैं। आयोडीन की कमी को रोकने में मदद करने के लिये इसे घरेलू नमक में मिलाया जाता है। भारत में वर्ष 1992 में मानव उपभोग के लिये आयोडीन युक्त नमक को अनिवार्य किया गया था। इस अनिवार्यता को वर्ष 2000 में शिथिल कर दिया गया, परंतु वर्ष 2005 में इसे फिर से लागू कर दिया गया।

माउंट ‘एसो’ ज्वालामुखी

हाल ही में जापान की माउंट ‘एसो’ ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ है। जापान के मौसम विज्ञान के विभाग के मुताबिक, ‘ज्वालामुखी’ का पाइरोक्लास्टिक प्रवाह लगभग 2 किलोमीटर के भीतर के क्षेत्रों में फैल सकता है। माउंट ‘एसो’ का निकटतम आबादी वाला शहर ‘एसो’ है, जिसकी आबादी लगभग 26,500 है। माउंट ‘एसो’ में इससे पूर्व वर्ष 2019 में एक छोटा सा विस्फोट हुआ था, जबकि बीते लगभग 90 वर्षों में जापान की सबसे भीषण ज्वालामुखी आपदा सितंबर 2014 में माउंट ‘ओंटेक’ में देखने को मिली थी, जिसमें कुल 63 लोगों की मृत्यु हुई थी। ज्वालामुखी विस्फोट के साथ-साथ, जापान में भूकंप भी एक सामान्य घटना है। यह ज्ञातव्य है कि जापान पृथ्वी पर सबसे अधिक भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है। दुनिया के 6 या उससे अधिक तीव्रता के भूकंपों का लगभग 20 प्रतिशत जापान में दर्ज किये जाते हैं। 

‘G344.7-0.1’ तारकीय विस्फोट अवशेष

हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अपने दूरबीनों के माध्यम से हज़ारों वर्ष पूर्व हुए एक तारकीय विस्फोट के अवशेषों को रिकॉर्ड किया है। नासा के ‘चंद्रा एक्स-रे वेधशाला के अनुसार, यह तारकीय अवशेष- जिसे औपचारिक रूप से ‘G344.7-0.1’ नाम दिया गया है, पृथ्वी से लगभग 19,600 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है और तकरीबन 3,000 से 6,000 वर्ष पुराना है। नासा द्वारा रिकॉर्ड किये गए ‘G344.7-0.1’ के दृश्य से ज्ञात होता है कि ‘तारकीय मलबा’ प्रारंभिक तारकीय विस्फोट के बाद बाहर की ओर विस्तृत हुआ, हालाँकि इस तारकीय मलबे के आसपास गैस का एक भंडार मौजूद है। यह गैस भंडार मलबे की गति को धीमा कर देता है, जिससे एक ‘रिवर्स शॉक वेव’ का निर्माण होता है। ‘चंद्रा एक्स-रे डेटा’ से पता चला है कि सुपरनोवा अवशेष के कोर में आयरन मौजूद है।