प्रारंभिक परीक्षा
तिलापिया पार्वोवायरस
स्रोत: द हिंदू
तिलापिया पार्वोवायरस (TiPV) की भारत में पहली उपस्थिति तमिलनाडु में देखी गई है, जहाँ इसका देश के जलीय कृषि पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- यह वायरस मीठे जल की मछली प्रजाति तिलापिया में पाया गया है और उच्च मृत्यु दर के कारक के चलते इसको लेकर चिंता बढ़ गई है।
तिलापिया पार्वोवायरस:
- परिचय:
- TiPV एक वायरल रोगजनक है जो मुख्य रूप से तिलापिया को प्रभावित करता है।
- यह पारवोविरिडा परिवार से संबंधित है, जो अपने छोटे, अपरिबद्ध, सिंगल स्ट्रैंडेड DNA वायरस के लिये जाना जाता है।
- उद्भव और प्रभाव:
- पहली बार इसकी उपस्थिति वर्ष 2019 में चीन में और वर्ष 2021 में थाईलैंड में दर्ज की गई। भारत TiPV की घटना की रिपोर्ट करने वाला तीसरा देश है।
- TiPV के कारण मछली फार्मों पर मृत्यु दर 30% से 50% तक देखी गई है।
- साथ ही प्रयोगशाला में इसने 100% मृत्यु दर दर्ज की है जो इसके विनाशकारी प्रभाव को उजागर करती है।
- पहली बार इसकी उपस्थिति वर्ष 2019 में चीन में और वर्ष 2021 में थाईलैंड में दर्ज की गई। भारत TiPV की घटना की रिपोर्ट करने वाला तीसरा देश है।
- TiPV प्रकोप के परिणाम:
- TiPV का प्रकोप मीठे जल के निकायों की जैवविविधता और पारिस्थितिकी के लिये भी खतरा उत्पन्न कर सकता है क्योंकि तिलापिया एक आक्रामक प्रजाति है जो भोजन एवं आवास स्थान के लिये मछली की स्थानीय प्रजाति के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकती है।
- TiPV का प्रकोप उन लोगों की खाद्य सुरक्षा और पोषण को भी प्रभावित कर सकता है जो भोजन में प्रोटीन और आय के स्रोत के रूप में तिलापिया पर निर्भर हैं।
तिलापिया मछली के बारे में मुख्य तथ्य:
- परिचय :
- तिलापिया मीठे जल की मछली प्रजाति है जिसका पालन भारत में व्यापक स्तर पर किया जाता है और भोजन के रूप में उपयोग की जाती है। यह पर्सीफोर्मेस प्रजाति के अंतर्गत सिक्लिडे परिवार से संबंधित है।
- ये मछलियाँ मूलतः अफ्रीका में पाई जाती हैं और व्यापक रूप से खाद्य स्रोत के रूप में लोकप्रियता हासिल कर चुकी हैं।
- भारत में तिलापिया का पालन :
- तिलापिया का पालन देश के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर आंध्र प्रदेश और केरल में किया जाता है।
- नील तिलापिया और मोज़ाम्बिक तिलापिया सहित विभिन्न तिलापिया प्रजातियों के आगमन/प्रवेश के परिणामस्वरूप विविध मत्स्यपालन पद्धतियों की उत्पत्ति हुई है।
- 1970 के दशक में लाई गई नील तिलापिया को इसके बड़े आकार और उत्पादन के पैमाने के लिये पसंद किया जाता है।
- मोज़ाम्बिक तिलापिया, जिसे तमिल में "जिलाबी" कहा जाता है, को 1950 के दशक में भारतीय अलवणीय जल निकायों में छोड़ा गया था।
- मोज़ाम्बिक तिलापिया जल में कम ऑक्सीजन स्तर के प्रति अपनी अनुकूलनशीलता के लिये जानी जाती है। यह विभिन्न प्रकार के जलीय वातावरणों में जीवित रह सकती है।
- 1970 के दशक में लाई गई नील तिलापिया को इसके बड़े आकार और उत्पादन के पैमाने के लिये पसंद किया जाता है।
- भारत सरकार ने वर्ष 1970 में विशिष्ट तिलापिया प्रजातियों, अर्थात् ओरियोक्रोमिस निलोटिकस (Oreochromis Niloticus) एवं लाल संकर प्रजाति के आयात को अधिकृत किया। इन प्रजातियों को इनके तेज़ी से विकास और बाज़ार की मांग के कारण पसंद किया गया, जिससे मत्स्यपालन पर नियंत्रण बना रहा।
प्रारंभिक परीक्षा
CCSEA ने आवारा कुत्तों को वैक्सीन परीक्षण से बाहर रखा
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
हाल ही में भारत में जानवरों पर अनुप्रयोगों के नियंत्रण और पर्यवेक्षण के लिये समिति (CCSEA) ने वैक्सीन परीक्षणों में आवारा कुत्तों को शामिल करने की अपनी सिफारिश वापस ले ली है।
- पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने अनुसंधान में आवारा कुत्तों पर अनुप्रयोग के वैज्ञानिक और नैतिक प्रभावों के संबंध में चिंता व्यक्त की, जिसके कारण यह निर्णय लिया गया।
आवारा कुत्तों पर वैक्सीन परीक्षण अनुप्रयोग की CCSEA की सिफारिश को लेकर चिंताएँ:
- PETA ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वैक्सीन परीक्षणों में आवारा कुत्तों को शामिल करने की CCSEA की सिफारिश पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 तथा पशुओं के प्रजनन और अनुप्रयोग (नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण) संशोधन नियम, 2006 के तहत उसके दायित्वों का खंडन करती है।
- साथ ही इसमें बताया गया है कि आवारा कुत्तों पर अनुप्रयोग करने की सिफारिश विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत के समकक्षों- यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया द्वारा अपनाई गई नीतियों के विपरीत है।
- PETA इंडिया के अनुसार, आवारा कुत्तों पर अनुप्रयोग करने से यह अनुमान लगाना असंभव हो जाता है कि मनुष्य टीकों पर कैसे प्रतिक्रिया करेंगे, जिससे कुशल उपचारों के अनुमोदन में देरी हो सकती है।
- इस सिफारिश को वापस लिया जाना पशु कल्याण, उनकी सुरक्षा और वैज्ञानिक प्रगति को बढ़ावा देने की दिशा में एक सकारात्मक प्रगति का प्रतिनिधित्व करती है।
नोट: PETA इंडिया पशु अधिकार संगठन है। यह एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है जो व्यवसाय और समाज में पशु दुर्व्यवहार को समाप्त करने के लिये कार्य करता है।
- PETA इंडिया का मिशन: पशु क्रूरता के विषय में जागरूकता बढ़ाना, नीति निर्माताओं और जनता को शिक्षित करना तथा सभी जानवरों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना।
पशुओं पर अनुप्रयोग संबंधी नियंत्रण और पर्यवेक्षण समिति
- परिचय:
- CCSEA पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960 के तहत गठित पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD), मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय (MoFAH) की एक वैधानिक समिति है।
- प्रकार्य:
- पशुओं को उन पर प्रयोगों से पहले, उसके दौरान अथवा उसके बाद अनावश्यक कष्ट अथवा पीड़ा का सामना न करना पड़े यह सुनिश्चित करने हेतु CCSEA द्वारा सभी उचित कदम उठाए जाते हैं।
- इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु समिति ने पशुओं पर प्रयोग को विनियमित करने के लिये पशुओं के प्रजनन एवं प्रयोग (नियंत्रण और पर्यवेक्षण) नियम, 1998 (2001 एवं 2006 में संशोधित) की रूपरेखा तैयार की।
- उपरोक्त नियमों के प्रावधानों के तहत चिकित्सा अनुसंधान, प्रयोगशाला में पशुओं के प्रजनन एवं उनके व्यापार से संबंधित प्रतिष्ठानों को CPCSEA के साथ स्वयं का पंजीकरण कराना आवश्यक है।
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960:
- यह भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जो पशुओं को अनावश्यक कष्ट अथवा पीड़ा पहुँचाने से रोकने का प्रावधान करता है।
- वर्ष 1960 के अधिनियम ने वर्ष 1890 के अधिनियम का स्थान लिया, जो कि मूल रूप से पारित किया गया था।
- यह अधिनियम पशुओं से संबंधित क्रूरता, अनावश्यक कष्ट, अत्यधिक श्रम, यातना, दुर्व्यवहार की रोकथाम और सुरक्षा का प्रावधान करता है।
- भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की स्थापना भी इस अधिनियम के तहत की गई थी।
प्रारंभिक परीक्षा
श्वेत फॉस्फोरस युद्ध सामग्री
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में वैश्विक मानवाधिकार संगठनों- एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने इज़रायल रक्षा बलों (Israel Defense Forces- IDF) पर अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानून (IHL) का उल्लंघन करते हुए गाज़ा और लेबनान में श्वेत फॉस्फोरस हथियारों का उपयोग करने का आरोप लगाया है।
श्वेत फॉस्फोरस:
- परिचय:
- श्वेत फॉस्फोरस एक पायरोफोरिक अर्थात् स्वत: ज्वलनशील है जो ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर प्रज्वलित होता है, जिससे गाढ़ा, हल्का धुआँ और साथ ही 815 डिग्री सेल्सियस की तीव्र उष्मा उत्पन्न होती है।
- पायरोफोरिक पदार्थ वे होते हैं जो वायु के संपर्क में आने पर स्वतः बहुत तेज़ी से (5 मिनट से कम समय में) प्रज्वलित हो जाते हैं।
- श्वेत फॉस्फोरस एक पायरोफोरिक अर्थात् स्वत: ज्वलनशील है जो ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर प्रज्वलित होता है, जिससे गाढ़ा, हल्का धुआँ और साथ ही 815 डिग्री सेल्सियस की तीव्र उष्मा उत्पन्न होती है।
- वैश्विक स्थिति:
- रसायनों के वर्गीकरण और लेबलिंग के विश्व स्तर पर सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण के तहत श्वेत फॉस्फोरस को पायरोफोरिक ठोस (श्रेणी 1, जिसमें ऐसे रसायन शामिल हैं जो वायु के संपर्क में आने पर "सहज" प्रज्वलित हो उठते हैं) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो रासायनिक खतरे के वर्गीकरण और संचार को मानकीकृत करने के लिये विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त दृष्टिकोण है।
- सैन्य उपयोग:
- श्वेत फॉस्फोरस तोप के गोले, बम और रॉकेट में प्रयुक्त होता है। इस रसायन में भिगोए गए फेल्ट (कपड़ा) वेजेज़ के माध्यम से भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
- इसका प्राथमिक सैन्य उपयोग एक स्मोकस्क्रीन के रूप में होता है, जिसका उपयोग थल सेना द्वारा दुश्मन से अपनी गतिविधियों को छिपाने के लिये किया जाता है। धुआँ दृश्य अस्पष्टता का कार्य करता है। श्वेत फॉस्फोरस इन्फ्रारेड ऑप्टिक्स और आयुध ट्रैकिंग प्रणाली को भी नुकसान पहुँचा सकता है।
- श्वेत फॉस्फोरस का उपयोग आग लगाने वाले हथियार के रूप में भी किया जा सकता है। अमेरिकी सेना ने वर्ष 2004 में इराक में फालुजा की दूसरी लड़ाई के दौरान छिपे हुए लड़ाकों को अपना स्थान छोड़ने के लिये मज़बूर करने हेतु श्वेत फॉस्फोरस हथियारों का इस्तेमाल किया था।
- घातकता:
- यह बेहद ज्वलनशील होने के कारण हड्डियों तक को जला सकता है, इससे लोगों में श्वसन संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं तथा आधारभूत अवसंरचना व फसलों को नुकसान पहुँच सकता है, साथ ही वायु के संपर्क में आने से उग्र अग्नि की वजह से पशुधन की मौत/हानि हो सकती है।
ग्लोबली हार्मोनाइज़्ड सिस्टम ऑफ क्लासिफिकेशन एंड लेबलिंग ऑफ केमिकल्स (GHS):
- 1970 और 1980 के दशक में कई गंभीर औद्योगिक दुर्घटनाओं के बाद GHS की रूपरेखा तैयार की गई जो हार्मोनाइज़्ड केमिकल लेबल (पिक्टोग्राम) तथा सेफ्टी डेटा शीट की अपनी प्रणाली के माध्यम से श्रमिकों को रासायनिक खतरों/जोखिमों से बचाने में मुख्य भूमिका निभाता है।
- वर्ष 1992 के रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन के एजेंडा 21 के अध्याय 19 के अनुसरण में संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2003 में GHS के पहले आधिकारिक संस्करण का समर्थन किया।
फॉस्फोरस बम का इतिहास एवं विधिक प्रास्थिति:
- इतिहास:
- आयरिश राष्ट्रवादियों द्वारा 19वीं सदी के अंत में सर्वप्रथम श्वेत/ह्वाइट फास्फोरस बम का इस्तेमाल किया गया, जिसे "फेनियन फायर" के रूप में जाना जाने लगा (फेनियन शब्द आयरिश राष्ट्रवादियों को संदर्भित करता है)।
- तब से इन बमों का प्रयोग विश्व में कई संघर्षों में किया गया है, जिसमें लंबे समय तक चलने वाला नागोर्नो-काराबाख संघर्ष तथा नॉर्मंडी पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आक्रमण शामिल हैं।
- विधिक प्रास्थिति:
- श्वेत फॉस्फोरस बम का उपयोग पूर्ण रूप से प्रतिबंधित (blanket ban) नहीं है, हालाँकि इनका उपयोग IHL के तहत विनियमित है।
- इसे रासायनिक हथियार नहीं माना जाता है क्योंकि इनके प्रमुख घटकों में ऊष्मा और धूम्र शामिल हैं। परिणामस्वरूप इसके अनुप्रयोग को कतिपय पारंपरिक हथियारों (CCW) के अभिसमय के प्रोटोकॉल III द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो आग लगाने वाले हथियारों को संबोधित करता है।
- सर्वप्रथम, यह बड़ी आबादी वाले क्षेत्रों में सतह से लॉन्च किये जाने वाले तापदीप्त बमों के उपयोग पर रोक लगाता है। हालाँकि यह सतह से लॉन्च किये गए सभी तापदीप्त बमों के उपयोग को सीमित नहीं करता है।
- दूसरा, बहुउद्देशीय हथियार जिनमें श्वेत फास्फोरस बम शामिल है को आमतौर पर "स्मोकिंग" एजेंट के रूप में माना जाता है, इन्हें प्रोटोकॉल की तापदीप्त बमों की परिभाषा से बाहर रखा जा सकता है क्योंकि इसमें ऐसे बम शामिल हैं जो "मुख्य रूप से आग लगाने तथा लोगों को जलाने के लिये डिज़ाइन किये गए" हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: 'रासायनिक हथियार निषेध संगठन (OPCW)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने ‘ऑस्ट्रेलिया समूह’ तथा ‘वासेनार व्यवस्था’ के नाम से ज्ञात बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं में भारत को सदस्य बनाए जाने का समर्थन करने का निर्णय लिया है। इन दोनों व्यवस्थाओं के बीच क्या अंतर है? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 अक्तूबर, 2023
गोल्डन पीकॉक अवार्ड से सम्मानित REC लिमिटेड
विद्युत मंत्रालय के अधीन केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम महारत्न कंपनी REC लिमिटेड (पूर्व ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड) को प्रभावी संकट मूल्यांकन रणनीतियों को लागू करने की प्रतिबद्धता के लिये जोखिम प्रबंधन में गोल्डन पीकॉक पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
- वर्ष 1991 में इंस्टीट्यूट ऑफ डायरेक्टर्स (IOD), भारत द्वारा स्थापित गोल्डन पीकॉक अवार्ड्स, कॉर्पोरेट के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित मानक के रूप में उभरा है।
- IOD कॉर्पोरेट निदेशकों के पेशेवर विकास और प्रभावी बोर्डों के गठन की आवश्यकता को पूरा करने के लिये सोसायटी पंजीकरण अधिनियम XXI, 1860 के तहत भारत में निदेशकों का एक शीर्ष पेशेवर संघ है।
- REC लिमिटेड एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) है जो भारत में पावर सेक्टर फाइनेंसिंग और विकास पर केंद्रित है। यह विद्युत ऊर्जा क्षेत्र में विभिन्न संस्थाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- REC की फंडिंग से भारत में हर चौथा बल्ब रोशन होता है ।
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लघु हिम युग आर्द्र था
1671-1942 ई. के मध्य हुई एक वैश्विक जलवायु घटना, लघु हिम युग (LIA) का एक नया अध्ययन, जो उस युग में वर्षा के प्रकार में महत्त्वपूर्ण बदलाव प्रदर्शित करता है, इस लघु हिम युग के दौरान कम मानसूनी वर्षा के साथ समान रूप से शीतल एवं शुष्क जलवायु की पारंपरिक धारणा को चुनौती देता है।
- अध्ययन के लिये दक्षिण-पश्चिम ग्रीष्मकालीन मानसून (SWM) और पूर्वोत्तर शीतकालीन मानसून (NEM) दोनों से प्रभावित पश्चिमी घाट को चुना गया था।
- वैज्ञानिकों ने भारत के पश्चिमी घाट से पराग-आधारित विश्लेषण का उपयोग करके 1219-1942 ई. तक की शाक-गतिकी और जलवायु परिवर्तनशीलता का विश्लेषण किया।
- पराग विश्लेषण में पूर्व काल सदृश वातावरण के पुनर्निर्माण के लिये पराग (बीज-पौधे में नर बीजाणु) का प्रयोग किया जाता है।
- अध्ययन में पश्चिमी घाट में आर्द्र LIA के रिकॉर्ड के संकेत मिले हैं, क्योंकि नमी की स्थिति LIA के दौरान बढ़ी हुई NEM के कारण हुई थी।
- अध्ययन क्षेत्र में मुख्य रूप से आर्द्र नम/अर्द्ध-सदाबहार और शुष्क उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन शामिल थे।
- अध्ययन से यह भी पता चलता है कि अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) की गति, सकारात्मक तापमान विसंगतियों, सौर धब्बों की संख्या में वृद्धि और उच्च सौर गतिविधि के कारण भी जलवायु परिवर्तन हो सकता है।
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