रात्रि प्रकाश प्रदूषण और अल्ज़ाइमर
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
फ्रंटियर्स इन न्यूरोसाइंस में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार रात्रि प्रकाश प्रदूषण और अल्ज़ाइमर के बीच संबंध होता है।
- रात में प्रकाश के संपर्क में आने से प्राकृतिक सर्कैडियन लय और नींद बाधित होती है जिससे अल्ज़ाइमर रोग की संभावना बढ़ जाती है।
प्रकाश प्रदूषण:
- प्रकाश प्रदूषण से तात्पर्य कृत्रिम प्रकाश के अत्यधिक या अनुचित उपयोग से है जो मानव स्वास्थ्य, वन्य जीव और जलवायु के लिये प्रमुख पर्यावरणीय खतरा है।
अल्ज़ाइमर रोग क्या है?
- परिचय:
- अल्ज़ाइमर रोग एक प्रगतिशील न्यूरोडीजनेरेटिव विकार है जो मस्तिष्क को प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप स्मृति हानि, संज्ञानात्मक हानि, व्यवहार में परिवर्तन, बोलने या लिखने में समस्या, अनुचित निर्णय, मनोदशा और व्यक्तित्व में परिवर्तन, समय या स्थान के बारे में भ्रम आदि होता है।
- इसमें मस्तिष्क में पट्टिकाओं का निर्माण तथा स्मृति के भंडारण और प्रसंस्करण से संबंधित कुछ न्यूरॉन्स में विकार होना शामिल है।
- अल्ज़ाइमर रोग डिमेंशिया का सबसे आम कारण है, जो डिमेंशिया के 60-80% मामलों के लिये ज़िम्मेदार है।
- कारण और जोखिम कारक: वर्तमान में अल्ज़ाइमर के कारण पूरी तरह से ज्ञात नहीं हैं फिर भी अल्ज़ाइमर हेतु निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं:
- आयु: बढ़ती उम्र प्राथमिक कारक है तथा अधिकांश मामले 65 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों में होते हैं।
- आनुवंशिकी: कुछ जीन उत्परिवर्तनों से अल्ज़ाइमर विकसित होने का खतरा बढ़ सकता है।
- एमिलॉयड प्रोटीन: ऐसा माना जाता है कि अल्ज़ाइमर रोग मस्तिष्क कोशिकाओं में और उसके आसपास प्रोटीन के असामान्य निर्माण के कारण होता है।
- इसमें शामिल प्रोटीनों में से एक को एमिलॉयड कहा जाता है, जिसके संग्रहण से मस्तिष्क कोशिकाओं के चारों ओर पट्टिकाएँ बनती हैं।
- जीवनशैली कारक: हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा, धूम्रपान और गतिहीन जीवनशैली जैसी दीर्घकालिक बीमारियाँ इसके जोखिम को बढ़ा सकती हैं।
- निदान:
- स्मृति, चिंतन और समस्या समाधान क्षमताओं का आकलन करने के लिये संज्ञानात्मक और तंत्रिका-मनोवैज्ञानिक परीक्षण।
- मस्तिष्क में परिवर्तन की पहचान करने के लिये इमेजिंग तकनीकें (MRI, PET स्कैन)।
- एमिलॉयड पट्टिकाओं का पता लगाने के लिये बायोमार्कर परीक्षण (एमिलॉयड PET)।
- उपचार और प्रबंधन:
- वर्तमान में अल्ज़ाइमर रोग का कोई इलाज नहीं है। लेकिन ऐसी दवाएँ और सहायक उपचार उपलब्ध हैं जो लक्षणों को अस्थायी रूप से कम कर सकते हैं।
- व्यापकता:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2023 के अनुमान के अनुसार विश्वभर में 55 मिलियन से अधिक व्यक्ति डिमेंशिया से प्रभावित हैं जिनमें से लगभग 75% मामले अल्ज़ाइमर के हैं।
- भारत में अनुमानतः 3 से 9 मिलियन लोग इस रोग से प्रभावित हैं तथा देश की जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ यह आँकड़ा बढ़ने की आशा है।
नोट:
- डिमेंशिया: यह एक सिंड्रोम है- जो आमतौर पर दीर्घकालिक या प्रगतिशील प्रकृति का होता है- जो संज्ञानात्मक कार्य (अर्थात विचार करने की क्षमता) में कमी लाता है।
- यह स्मृति, चिंतन, अभिविन्यास, समझ, गणना, सीखने की क्षमता, भाषा और निर्णय को प्रभावित करता है।
- हालाँकि इससे चेतना प्रभावित नहीं होती है।
- यह स्मृति, चिंतन, अभिविन्यास, समझ, गणना, सीखने की क्षमता, भाषा और निर्णय को प्रभावित करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. भारत में इस्पात उद्योग द्वारा छोड़े गए कुछ महत्त्वपूर्ण प्रदूषक निम्नलिखित में से कौन से हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1, 3 और 4 उत्तर: (D) |
केरल में महापाषाणकालीन स्थल
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल में वर्षा जल संचयन परियोजना के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में महापाषाणकालीन कलशों की खोज हुई।
- यह खोज नेनमारा वन प्रभाग में कुंडलिक्कड़ पहाड़ी (जिसे मालमपल्ला या मलप्पुरम पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है) पर हुई।
- कलश दफन में मृत व्यक्ति के अवशेषों को मृद्भांड या कलश में रखकर दफना दिया जाता था।
महापषाणकालीन कलशों के दफन स्थल की खोज से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- पारंपरिक कलश अंत्येष्टि: पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित अंत्येष्टि स्थलों में कब्रों के ढेर, कब्रगाह, तथा पाषाणयुक्त अंत्येष्टि स्थल पाए गए हैं ।
- 2,500 वर्ष से भी अधिक प्राचीन इन कलशों की उपस्थिति, पहाड़ी स्थल के लिये दुर्लभ है।
- कलश की विशेषताएँ: इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के मृद्भांडों के टुकड़े पाए गए, जिनमें काले मृद्भांड, लाल मृद्भांड तथा काले और लाल मृद्भांड शामिल हैं।
- हालाँकि एक उल्लेखनीय खोज में उंगलियों के निशान वाला एक कलश, तथा लघु मृद्भांड शामिल हैं जिन पर डोरी के निशान बने हुए हैं, जो मृद्भांडों में प्रयुक्त विशिष्ट सजावटी तकनीकों का संकेत देते हैं।
- पहाड़ी के शीर्ष पर छेनी के निशान पाए गए, जिनसे यह संकेत मिलता है कि गोलाकार पत्थरों को छेनी का उपयोग करके बनाया गया था।
- इससे इस क्षेत्र में दफन स्थल के निर्माण के लिये अधिक संगठित दृष्टिकोण का पता चलता है।
- खोज का महत्त्व: यह खोज मध्यपाषाण काल (इस स्थल पर सूक्ष्मपाषाण काल की उपस्थिति के कारण) और केरल में लौह युग के बीच संबंधों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है।
- पुरातत्वविदों के अनुसार, मध्यपाषाण और लौह युग के अवशेषों का ऐसा संयोजन असामान्य है।
महापषाणकालीन संस्कृति क्या है?
- महापषाण का परिचय: महापषाण से तात्पर्य बड़े पत्थरों से बने स्मारकों से है। अधिकतर मामलों में महापषाण निवास क्षेत्रों से दूर स्थित दफन स्थल हैं।
- महापषाण का कालक्रम: ब्रह्मगिरी उत्खनन के आधार पर दक्षिण भारत में महापषाणकालीन संस्कृतियों का काल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व और पहली शताब्दी ईस्वी के बीच माना जाता है।
- भारत में महापषाण का भौगोलिक वितरण: महापषाणकालीन संस्कृति का मुख्य संकेंद्रण दक्कन में है, विशेष रूप से गोदावरी नदी के दक्षिण में।
- हालाँकि इसके अवशेष पंजाब के मैदानी भाग, सिंधु-गंगा बेसिन, राजस्थान, गुजरात और जम्मू एवं कश्मीर के बुर्ज़होम में भी पाए गए हैं।
- इसके महत्त्वपूर्ण स्थलों में सरायकला (बिहार), खेड़ा (उत्तर प्रदेश), देवसा (राजस्थान) आदि शामिल हैं।
- दक्षिण भारत में लौह का उपयोग: दक्षिण भारत में महापषाण काल एक पूर्ण लौह कालीन संस्कृति थी, जहाँ लौह प्रौद्योगिकी के लाभों को पूर्ण रूप से उपयोग किया गया था।
- विदर्भ के जूनापानी से लेकर तमिलनाडु के आदिचनल्लूर तक लौह वस्तुएँ जैसे शस्त्रों और कृषि उपकरण पाए गए।
- निर्वाह पद्धति: वे कृषि, शिकार, मत्स्याग्रह और पशुपालन के संयोजन पर जीवन यापन करते थे ।
- शैल चित्र: महापाषाण स्थलों पर पाए गए शैल चित्रों में शिकार, पशु आक्रमण और सामूहिक नृत्य के दृश्य दर्शाए गए हैं।
नोट:
- मध्य पाषाणकाल लगभग 12,000 वर्ष पूर्व से आरंभ होकर लगभग 10,000 वर्ष पूर्व तक चला। इस काल में पाए जाने वाले पत्थर के औज़ार आमतौर पर छोटे होते हैं, इन्हें माइक्रोलिथ अथवा लघुपाषाण कहा जाता है ।
- लघुपाषाण को संभवतः हड्डी या काष्ठ हैंडल पर आरी और दरांती जैसे उपकरण बनाए जाते थे ।
पृथ्वी का अस्थायी मिनी-मून
स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र सितंबर 2024 के अंत तक 2024 PT5 नामक एक छोटे क्षुद्रग्रह को अस्थायी रूप से आकर्षित किया है।
- मिनी-मून: यह छोटे क्षुद्रग्रहों को संदर्भित करता है जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण द्वारा अस्थायी रूप से आकर्षित किये जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्रह के चारों ओर अल्पकालिक कक्षीय पथ निर्मित होते हैं। ये खगोलीय पिंड सामान्यतः आकार में छोटे होते हैं और अक्सर जानकारी से वंचित रह जाते हैं।
- हालाँकि यह घटना दुर्लभ है, क्योंकि अधिकतर मामलों में क्षुद्रग्रह या तो ग्रह के प्रभाव क्षेत्र से बचे रहते हैं या पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही जल जाते हैं।
- अब तक केवल चार छोटे-छोटे चंद्रमा खोजे गए हैं, उनमें से कोई भी अभी पृथ्वी की परिक्रमा नहीं कर रहा है। इनमें से कुछ को अंतरिक्ष अपशिष्ट के रूप में अमान्य समझा गया होगा, जैसे कि गैया अंतरिक्ष यान या पिछले मिशनों के रॉकेट चरण।
- 2024 PT5:
- इसका पता नासा ने लगाया था। यह पृथ्वी के निकट स्थित क्षुद्रग्रहों की वैज्ञानिक सोच को आगे बढ़ाने में योगदान देगा, विशेष रूप से वे जो प्रायः ग्रह के नज़दीक आते हैं या कभी-कभी ग्रह को प्रभावित करते हैं।
और पढ़ें: वर्ष 2024 में अंतरिक्ष मिशन , अंतर्राष्ट्रीय क्षुद्रग्रह दिवस
रॉकेट में हीलियम की भूमिका
स्रोत: द हिंदू
हीलियम रिसाव से प्रभावित प्रणोदन प्रणाली की खराबी के कारण, बोइंग के स्टारलाइनर पर सवार नासा के दो अंतरिक्ष यात्री अधिक समय के लिये अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर ही रहेंगे।
- हीलियम रिसाव से प्रभावित पिछले मिशनों में इसरो का चंद्रयान 2 और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) का एरियन 5 शामिल हैं।
- हीलियम (He):
- यह हाइड्रोजन के बाद दूसरी सबसे हल्की रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन और निष्क्रिय गैस है, जिसका परमाणु क्रमांक 2 है।
- हीलियम एक स्थिर, अप्रतिक्रियाशील उत्कृष्ट गैस है। हानिकारक न होने के बावजूद, इसे साँस के माध्यम से नहीं लिया जा सकता क्योंकि क्योंकि यह श्वसन के लिये आवश्यक ऑक्सीजन को विस्थापित कर देता है।
- यह क्रायोजेनिक्स के लिये उपयोगी है, क्योंकि इसका क्वथनांक बहुत कम (-268.9 डिग्री सेल्सियस) होता है, जिससे यह काफी कम तापमान में भी गैसीय अवस्था में रहती है।
- इससे रॉकेट के भार और ऊर्जा की ज़रूरत को कम करने में मदद मिलती है, जिससे ईंधन की खपत और इंजन की लागत कम हो जाती है।
- रॉकेटरी अनुप्रयोग:
- टैंकों पर दबाव डालकर ईंधन का निरंतर प्रवाह बनाए रखता है।
- अधिक निम्न तापमान पर रॉकेट ईंधन और ऑक्सीडाइज़र के भंडारण के लिये शीतलन प्रणालियों में सहायता करता है।
- ईंधन के उपयोग के दौरान टैंकों में रिक्त स्थान को भरता है, जिससे दाब स्थिर रहता है।
- हीलियम का उपयोग औद्योगिक वेल्डिंग, रिसाव की पहचान प्रणालियों आदि में भी किया जाता है।
- यूरोपीय अंतरिक्ष के एरियन 6 जैसे कुछ प्रक्षेपणों ने आर्गन और नाइट्रोजन जैसी अन्य अक्रिय गैसों के साथ प्रयोग किया है, जो सस्ते विकल्प हो सकते हैं। हालाँकि, हीलियम अंतरिक्ष उद्योग में सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली गैस बनी हुई है।
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एनपीएस वात्सल्य योजना
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने केंद्रीय बजट में नाबालिगों के लिये एक नई पेंशन योजना के रूप में घोषित NPS वात्सल्य योजना का अनावरण किया।
- इस योजना के तहत वात्सल्य खाता खोलने के लिये न्यूनतम 1,000 रुपये का प्रारंभिक योगदान आवश्यक है। खाता बनाए रखने के लिये धारकों को प्रतिवर्ष 1,000 रुपये का वार्षिक योगदान करना होगा।
- वयस्क होने (18 वर्ष) पर खाता स्वचालित रूप से मानक राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) खाते में परिवर्तित हो जाता है। पेंशन तभी प्राप्त होगी जब वे 60 वर्ष के हो जाएंगे।
- इसका विनियमन और प्रशासन पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA) द्वारा किया जाएगा और नए पंजीकृत नाबालिगों को स्थायी सेवानिवृत्ति खाता संख्या (PRAN) कार्ड जारी किये जाएंगे।
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